100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

भारत में प्रकृति पुनर्स्थापन कानून की माँग

Lokesh Pal October 26, 2024 01:40 45 0

संदर्भ

हाल ही में यूरोपीय संसद द्वारा प्रकृति को पुनर्स्थापित करने के लिए यूरोपीय संघ के प्रकृति पुनर्स्थापन कानून (Nature Restoration Law- NRL) को हरी झंडी दे दी गई।

यूरोपीय संघ के प्रकृति पुनर्स्थापन कानून के बारे में 

  • इसे 17 जून, 2024 को यूरोपीय संघ की पर्यावरण परिषद द्वारा अपनाया गया।
  • क्षेत्र: यूरोपीय संघ की जैव विविधता रणनीति, 2030 और यूरोपीय ग्रीन डील का हिस्सा।
  • उद्देश्य: कानून का लक्ष्य वर्ष 2030 तक यूरोपीय संघ के भूमि और समुद्री क्षेत्रों के 20% को पुनर्स्थापित करना है, जिसे वर्ष 2050 तक 90% तक बढ़ाया जाना है।
    • वर्ष 2030 तक 30%, वर्ष 2040 तक 60% तथा वर्ष 2050 तक 90% क्षरण हो चुके आवासों की पुनर्स्थापना करना।
  • प्रमुख कार्यवाहियाँ
    • 25,000 किलोमीटर लंबी नदियों को पुनुरूद्धार करना।
    • वर्ष 2030 तक 3 बिलियन वृक्ष लगाना।
  • दायरा: यह वनों, नदियों और आर्द्रभूमि जैसे क्षीण पारिस्थितिकी तंत्रों को लक्षित करता है, विशेष रूप से नैचुरा 2000 (संरक्षित क्षेत्र) को।
    • जैव-विविधता की हानि को संबोधित करता है तथा क्षरणशील आवासों की स्थिति में सुधार करता है (यूरोप में 80%)।
  • जैव विविधता लक्ष्य: यूरोपीय संघ की वर्ष 2030 जैव विविधता रणनीति और वैश्विक कुनमिंग-मॉन्ट्रियल ढाँचे के अनुरूप, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक 30% भूमि और समुद्र का संरक्षण करना है।
  • सदस्य राष्ट्रों के लिए लचीलापन: देश पुनर्स्थापना के लिए विशिष्ट क्षेत्रों और पारिस्थितिकी प्रणालियों का चयन करते हैं, राष्ट्रीय पुनर्स्थापना योजनाएँ प्रस्तुत करते हैं तथा उनसे नियमित रूप से प्रगति की निगरानी और रिपोर्ट करने की अपेक्षा की जाती है।

नैचुरा 2000 (Natura 2000)

  • यह यूरोपीय संघ के क्षेत्र में प्रकृति संरक्षण क्षेत्रों का एक नेटवर्क है।
  • यह क्रमशः आवास निदेशक और पक्षी निदेशक के तहत नामित संरक्षण के विशेष क्षेत्रों (Special Areas of Conservation) और विशेष संरक्षण क्षेत्रों (Special Protection Areas) से बना है।
  • नेटवर्क में स्थलीय और समुद्री दोनों संरक्षित क्षेत्र शामिल है।
  • स्थापना: वर्षं 1992

प्रकृति पुनर्स्थापन कानून का महत्त्व 

  • जलवायु शमन: स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र कार्बन उत्सर्जन को अवशोषित करने, चरम मौसम के प्रभावों को कम करने तथा जलवायु लचीलापन बढ़ाने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • जैव विविधता संरक्षण: आवासों को बहाल करने से लुप्तप्राय प्रजातियों को सहायता मिलेगी और परागणकों, कृषि और खाद्य सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्रों के अस्तित्व में योगदान मिलेगा।
  • आर्थिक लाभ: प्रकृति का पुनर्स्थापन कृषि उत्पादकता, जल सुरक्षा को बढ़ाकर और विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार उत्पन्न करके महत्त्वपूर्ण आर्थिक लाभ उत्पन्न कर सकती है।
    • यूरोपीय संघ आयोग के प्रभाव मूल्यांकन से पता चलता है कि वर्ष 2050 तक पुनर्स्थापन कार्यों से 1.86 ट्रिलियन यूरो का आर्थिक लाभ होगा, जबकि इसकी लागत 154 बिलियन यूरो होगी।
  • सतत् विकास: सतत् भूमि उपयोग को बढ़ावा देकर और मरुस्थलीकरण से निपटकर SDG 15 (स्थल पर जीवन) जैसे वैश्विक लक्ष्यों के साथ संरेखित करता है।
  • जलवायु लचीलापन: बहाल किए गए पारिस्थितिकी तंत्र बाढ़ और सूखे जैसे जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करते हैं, जिससे पर्यावरणीय स्थिरता में सुधार होता है।

NRL के कार्यान्वयन की चुनौतियाँ

  • कृषि प्रभाव: कृषि योग्य भूमि में कमी तथा खाद्य उत्पादन पर संभावित नकारात्मक प्रभावों के बारे में चिंतित किसानों का प्रतिरोध।
  • राजनीतिक प्रतिरोध: रूढ़िवादी तथा राष्ट्रवादी दल आर्थिक विकास या प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन पर संप्रभुता के साथ कथित संघर्षों के कारण बहाली के प्रयासों का विरोध कर सकते है।
  • आर्थिक लागत: उच्च प्रारंभिक निवेश और कार्यान्वयन लागत दीर्घकालिक लाभों के बावजूद तत्काल अपनाने में बाधा डाल सकती है।
  • राज्यों के बीच समन्वय: राज्यों या क्षेत्रों के बीच अनुपालन तथा समन्वय सुनिश्चित करना, जिनमें से प्रत्येक की पर्यावरण प्राथमिकताएँ और शासन संरचनाएँ अलग-अलग हैं, चुनौतीपूर्ण है।
  • शहरीकरण का दबाव: तीव्र शहरीकरण वाले क्षेत्रों में, विकास की आवश्यकताओं के साथ भूमि बहाली को संतुलित करना मुश्किल है।
  • पीटलैंड पुनर्स्थापन: सूखाग्रस्त पीटलैंड पुनर्स्थापन करने से कृषक समुदायों द्वारा प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है, क्योंकि इससे कृषि योग्य भूमि कम हो सकती है।

भारत की प्रमुख पर्यावरणीय चुनौतियाँ

  • वनों की कटाई
    • वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए वनों को खतरनाक दर से नष्ट किया जा रहा है, जिससे जलवायु परिवर्तन हो सकता है।
    • केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2008-09 से भारत में 3 लाख हेक्टेयर से अधिक वन भूमि को गैर-वानिकी उपयोग के लिए परिवर्तित कर दिया गया है।
  • भूमि क्षरण
    • कृषि भूमि और वन भारत में सबसे आम प्रकार की भूमि है, जो क्षरित होती है। इससे खाद्य असुरक्षा और जलवायु परिवर्तन हो सकता है।
    • वर्ष 2018-19 में 97.85 मिलियन हेक्टेयर (29.7%) भूमि क्षरित हुई, जो वर्ष 2003-05 में 94.53 मिलियन हेक्टेयर थी।
    • वर्ष 2018-19 में मरुस्थलीकरण ने 83.69 मिलियन हेक्टेयर को प्रभावित किया।
    • गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र तथा राजस्थान में उच्च गिरावट देखी गई है।
  • जल प्रदूषण
    • भारत में अधिकांश नदियाँ, झीलें और सतही जल प्रदूषित हैं। 
    • जल प्रदूषण के मुख्य स्रोत अनुपचारित सीवेज, कृषि अपवाह और अनियमित लघु उद्योग है।
    • जल गुणवत्ता डेटा के विश्लेषण के आधार पर, CPCB ने वर्ष 2022 में, जैविक प्रदूषण के संकेतक यानी बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) (3 मिलीग्राम/लीटर) के आधार पर देश के 30 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 279 नदियों पर 311 प्रदूषित नदी खंडों की पहचान की है।
    • भारत में भूजल निकेल, ताँबा, क्रोमियम, सीसा, पारा तथा कैडमियम जैसी धातुओं से दूषित हो सकता है।

  • भूजल की कमी
    • प्राकृतिक तथा मानवजनित कारकों के कारण उत्तर भारत में भूजल भंडारण तेजी से घट रहा है। यह खाद्य और जल सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती है।
    • भारत प्रत्येक वर्ष कृषि के लिए लगभग 230 बिलियन क्यूबिक मीटर भूजल निकालता है।
    • उत्तर भारत में भूजल में तेजी से कमी आई है, वर्ष 2002 से वर्ष 2021 के बीच 450 क्यूबिक किलोमीटर भूजल कम हुआ है।
    • केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) की रिपोर्ट के अनुसार 17% भूजल ब्लॉकों का अत्यधिक दोहन हो चुका है, जिनमें से 5% गंभीर अवस्था में तथा 14% अर्द्ध-गंभीर अवस्था में हैं।
  • मृदा अपरदन 
    • मृदा अपरदन भारत में मानव जीवन एवं कृषि के लिए एक गंभीर खतरा है। यह वन भूमि, कृषि भूमि तथा अन्य क्षेत्रों में होता है।
    • भारत में औसत वार्षिक मृदा क्षति 21 टन प्रति हेक्टेयर है।
    • राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण तथा भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो का अनुमान है कि भारत में लगभग 30% मृदा क्षरित हो चुकी है।
    • क्षरित मृदा में से 29% समुद्र में चली जाती है, 10% जलाशयों में जमा हो जाती है तथा 61% एक स्थान से दूसरे स्थान पर चली जाती है।
  • जैव विविधता हानि
    • भारत की जैव विविधता में गिरावट में योगदान देने वाले कारकों में आवास की हानि, शिकार, अवैध शिकार, अति-दोहन और जंगल की आग शामिल है।
    • भारत में वैश्विक भूमि क्षेत्र का 2.4% हिस्सा है, जो वैश्विक जैव विविधता के लगभग 8% का आवास है।
    • IUCN ने भारत में कम-से-कम 97 स्तनधारी, 94 पक्षी प्रजातियाँ और 482 पौधों की प्रजातियों को विलुप्त होने के खतरे मे बताया है।
  • जनसंख्या वृद्धि
    • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, वर्ष 2024 के अंत तक भारत की वर्तमान जनसंख्या 1.44 अरब होगी, जो वर्ष 2023 से 0.92% अधिक है। यह वर्ष 1951 की जनगणना के बाद से चार गुना से भी अधिक है।

भारत में पर्यावरण पुनर्स्थापन की चुनौतियाँ

  • तेजी से शहरीकरण: शहरी विस्तार से प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र पर बहुत दबाव पड़ता है, जिससे वनों की कटाई, आर्द्रभूमि का नुकसान और हरित क्षेत्र कम होते जा रहे है।
  • कृषि विस्तार: गहन कृषि पद्धतियाँ, एकल कृषि और कृषि के लिए भूमि-उपयोग परिवर्तन भूमि क्षरण, मृदा अपरदन और जैव विविधता में कमी में योगदान करते है।
  • औद्योगिक प्रदूषण: नदियों, झीलों और मिट्टी में अनुपचारित अपशिष्ट निपटान सहित उद्योगों से होने वाला प्रदूषण, विशेष रूप से नदियों और आर्द्रभूमि जैसे महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्रों में बहाली के प्रयासों को गंभीर रूप से बाधित करता है।
  • निधि और संसाधनों की कमी: अपर्याप्त वित्तीय आवंटन और तकनीकी विशेषज्ञता बड़े पैमाने पर बहाली परियोजनाओं में बाधा डालती है, खासकर ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में।
  • कमजोर नीति प्रवर्तन: भले ही पर्यावरण कानून मौजूद हों, लेकिन खराब कार्यान्वयन और कमजोर प्रवर्तन तंत्र प्रभावी पारिस्थितिकी तंत्र बहाली को बाधित करते हैं।
  • सामुदायिक प्रतिरोध: स्थानीय समुदाय, विशेष रूप से आजीविका के लिए प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर रहने वाले समुदाय, भूमि तक पहुँच खोने या आर्थिक गतिविधियों में व्यवधान के डर से बहाली प्रयासों का विरोध कर सकते है।
  • जलवायु परिवर्तन के प्रभाव: चरम मौसम की घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति – सूखा, बाढ़ और बढ़ता तापमान – क्षरण को बढ़ाता है तथा बहाली के प्रयासों को जटिल बनाता है।
  • विखंडित शासन: पर्यावरण प्रबंधन की जिम्मेदारियाँ सरकार और एजेंसियों के विभिन्न स्तरों पर विभाजित हैं, जिसके कारण खराब समन्वय तथा धीमी निर्णय लेने की प्रक्रिया होती है।

भारत में पर्यावरण पुनरुद्धार के लिए आगे की राह

  • कानूनी रूप से बाध्यकारी बहाली लक्ष्य: भारत को यूरोपीय संघ के NRL के समान कानूनी रूप से बाध्यकारी लक्ष्यों के साथ एक प्रकृति पुनर्स्थापन कानून स्थापित करना चाहिए, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक 20% खराब पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्स्थापित करना तथा वर्ष 2050 तक सभी को पुनर्स्थापित करना है।
  • एकीकृत भूमि और जल प्रबंधन: भूमि, वन, नदियों और आर्द्रभूमि के प्रबंधन के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने से कृषि उत्पादकता और जल सुरक्षा को बढ़ाते हुए पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने में मदद मिलेगी।
  • सामुदायिक भागीदारी: रोजगार के अवसरों, जागरूकता अभियानों और सहभागी शासन के माध्यम से बहाली के प्रयासों में स्थानीय समुदायों, विशेष रूप से प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर लोगों को शामिल करें।
  • नीति कार्यान्वयन को मजबूत करना: बहाल क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए मजबूत निगरानी तंत्र और गैर-अनुपालन के लिए दंड के साथ पर्यावरण कानूनों का सख्त प्रवर्तन सुनिश्चित करें।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी: बड़े पैमाने पर बहाली परियोजनाओं के लिए धन, तकनीकी विशेषज्ञता और नवाचार जुटाने के लिए सरकार, निजी क्षेत्र तथा नागरिक समाज संगठनों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करें।
  • जलवायु-लचीला पुनर्स्थापन: वैश्विक तापमान वृद्धि के प्रभावों से निपटने के लिए जलवायु-अनुकूल प्रजातियों और पुनर्स्थापन तकनीकों का उपयोग करके पुनर्स्थापन परियोजनाओं में जलवायु लचीलापन को शामिल करना।

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.