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दिल्ली-एनसीआर में बढ़ता वायु प्रदूषण : पराली जलाने पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

Lokesh Pal October 28, 2024 05:15 66 0

संदर्भ: 

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) हर साल प्रदूषण संकट का सामना करता है, जिसमें पराली जलाना एक प्रमुख कारण है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा समय-समय पर कार्रवाई के लिए दिए गए निर्देशों के बावजूद भी मौजूदा समय में सरकार व प्रशासन का दृष्टिकोण नियमों का अनुपालन न करने वाले किसानों को दंडित करने और महंगी मशीनों को बढ़ावा देने में पर्याप्त सफलता हासिल नहीं कर पा रहा है।

दिल्ली-एनसीआर में पराली जलाने की घटना और वायु प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां

  • सरकार की निष्क्रियता की आलोचना: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और दिल्ली-एनसीआर से संबंधित राज्यों की पराली जलाने की समस्या से प्रभावी तरीके से निपटने में विफल रहने के लिए आलोचना की, जो वायु प्रदूषण में लगातार योगदान दे रही है।
  • स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार: न्यायालय ने अनुच्छेद 21 का हवाला देते हुए इस बात पर जोर दिया कि जीवन के अधिकार में प्रदूषण मुक्त वातावरण शामिल है।
  • दंडात्मक कार्रवाई बनाम फसल अवशेष प्रबंधन : हालांकि पूर्व की तुलना में पराली जलाने की घटनाओं में कमी आ रही है, लेकिन न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि दंडात्मक उपाय पर्याप्त नहीं हो सकते हैं। इसके लिए सर्वप्रथम फसल अवशेष प्रबंधन में किसानों की चुनौतियों को समझने की आवश्यकता है।
  • प्रदूषण के व्यापक स्रोत: दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण को बढ़ावा देने वाले अनेक स्रोत हैं, जिनमें पराली जलाने के अलावा निम्न स्रोत शामिल हैं:
    • स्थानीय यातायात उत्सर्जन
    • औद्योगिक गतिविधियाँ
    • निर्माण ईकाइयों से निकलती धूल
    • सड़क सफाई
    • स्थानीय बायोमास जलाना
    • त्योहारों के दौरान आतिशबाजी आदि। 
  • पराली जलाने से संबंधित आँकड़े : सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि सर्दियों के महीनों में दिल्ली-एनसीआर के वायु प्रदूषण में पराली जलाने का योगदान 5-30% है। इसमें भी अधिकांश मामले पंजाब और हरियाणा में दर्ज किए जाते हैं।

पराली जलाने के मूल कारणों को समझना

  • बुआई संबंधी नियम:
    • 2009 से पहले, पंजाब और हरियाणा में किसान मध्य जून से पहले धान की बुआई कर सकते थे।
    • हालांकि, इन राज्यों में लागू किए गए उप-भूमि जल संरक्षण अधिनियमों ने भूजल संरक्षण के लिए धान की बुआई को मानसून के मौसम के करीब आने तक टाल दिया।
    • जल संरक्षण में प्रभावी होने के साथ-साथ, इस विलंबित नियमावली से बुआई की वजह से कटाई का समय भी बढ़ जाता है, जिससे कटाई और अगली बुआई के मौसम के बीच की अवधि कम हो जाती है।
  • नैरो हार्वेस्ट विंडो:
    • परंपरागत रूप से, किसानों के पास धान की कटाई के बाद रबी की फसल, मुख्य रूप से गेहूं की तैयारी के लिए चार से छह सप्ताह का समय होता था। हालांकि, पिछले 15 वर्षों में यह समय आधा रह गया है।
    • सीमित समय के कारण, किसानों पर अगली फसल की तैयारी के लिए खेतों को जल्दी से जल्दी साफ करने का दबाव होता है। 
    • इस छोटी अवधि के दौरान मज़दूरों की उच्च माँग के कारण मज़दूरों की कमी हो जाती है और मज़दूरों की लागत बढ़ जाती है, जिससे किसानों के लिए हाथ से कटाई करना मुश्किल हो जाता है। 
    • नतीजतन, वे मशीन से कटाई करने लगते हैं, जिससे खेतों में बहुत ज़्यादा पराली बच जाती है, जिसे जल्दी से जल्दी साफ़ करना पड़ता है, इसके लिए किसान अक्सर पराली जलाकर खेतों की सफाई करते हैं ।

पराली जलाने के प्रभाव

  • मिट्टी का क्षरण: पराली जलाने से मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम सहित महत्वपूर्ण पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं। पोषक तत्वों की इस कमी से अगली फसलों के लिए मिट्टी की उर्वरता को बहाल करने के लिए रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता बढ़ जाती है।
  • पर्यावरण को नुकसान: पराली जलाने से ग्रीनहाउस गैसें और पार्टिकुलेट मैटर निकलते हैं, जो वायु प्रदूषण में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
    • इस प्रथा से मिट्टी के लाभकारी जीव भी नष्ट हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, केंचुए, जो मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • अतः समग्र रूप से इस घटना से उत्पन्न पारिस्थितिकीय नुकसान मिट्टी की गुणवत्ता को और भी खराब करता है, जिसका असर भविष्य की फसल पैदावार और पर्यावरण पर पड़ता है।

पराली जलाने पर वर्तमान प्रावधान व दृष्टिकोण:

  • दंड: अक्सर इस घटना के मूल कारणों को संबोधित किए बिना, एकमात्र समाधान के रूप में किसानों को दंडित करने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। यह दृष्टिकोण किसानों को पराली जलाने के लिए मजबूर करने वाली प्रणालीगत बाधाओं को नजरअंदाज करता है।
  • मशीन सब्सिडी: जीवाश्म ईंधन पर निर्भर मशीनों को एक विकल्प के रूप में बढ़ावा दिया जाता है। हालाँकि, ये समाधान महंगे हैं और अक्सर कई किसानों के लिए वहनीय नहीं होते।
  • सरकारी प्रयासों की असफलता : वर्तमान आंकड़ों के मुताबिक सरकार द्वारा किए गए अधिकांश प्रयास असफल आके गए हैं। यदि वे सफल होते, तो अब तक पराली जलाना बंद हो गया होता।

वायु प्रदूषण और पराली जलाने से निपटने के लिए समग्र समाधान

  • पर्यावरण अनुकूल समाधान के रूप में मैनुअल कटाई:
    • लाभ: इस विधि का प्रयोग करने पर कम से कम पराली निकलती है, मिट्टी के पोषक तत्वों को संरक्षित रहते हैं। यह विधि जैव विविधता को बढ़ाती है और उत्सर्जन को कम करती है। फसल अवशेष चारे और पशुओं के बिस्तर के रूप में काम आ सकते हैं, जिससे ग्रामीण आजीविका को बढ़ावा मिल सकता है।
    • आर्थिक प्रभाव: मैन्युअल कटाई की लागत लगभग ₹4,000 प्रति एकड़ है, जिसे मनरेगा योजना (MGNREGA) या प्रत्यक्ष सरकारी सब्सिडी जैसी योजनाओं के माध्यम से वित्तपोषित किया जा सकता है, जिससे मौसमी रोजगार पैदा होगा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।
  • जल संरक्षण और फसल विविधीकरण:
    • पानी की अधिक खपत वाली फसलों को प्रतिस्थापित करना : अधिक पानी की खपत वाली धान की फसल की जगह तिलहन, दलहन और मोटे अनाज जैसे वैकल्पिक फसलों की खेती करने से पानी की बचत होगी जिससे भू-जल संरक्षण संभव होगा और पराली जलाने में कमी आ सकती है।
    • प्रोत्साहन और एमएसपी सहायता: वनस्पति तेल और दलहन जैसी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर सुनिश्चित खरीद किसानों को विविधता लाने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है, जिससे धान पर निर्भरता कम होगी और खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता बढ़ेगी।
    • आर्थिक लाभ: विविधीकरण से तिलहन के आयात में कमी आ सकती है (भारत अपने खाद्य तेल का लगभग 60% आयात करता है, जिसकी लागत 2021-22 में 19 बिलियन डॉलर है) जबकि संसाधनों का संरक्षण और कृषि लचीलापन बढ़ाया जा सकता है।

निष्कर्ष :

अतः किसानों को दंडित करना और महंगी मशीनों की खरीद हेतु सब्सिडी देना आदि ही एनसीआर के प्रदूषण संकट के लिए व्यवहार्य समाधान नहीं हैं। मैनुअल कटाई के लिए एक सक्रिय व प्रोत्साहन-आधारित दृष्टिकोण, पानी की अधिक खपत वाली फसलों को प्रतिस्थापित करना,  प्रोत्साहन और एमएसपी सहायता जैसे उपाय एक स्थायी विकल्प प्रदान कर सकते हैं, जिससे मृदा स्वास्थ्य, जल संरक्षण और ग्रामीण रोजगार को लाभ मिलता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न :

प्रश्न: कृषि के मशीनीकरण के कारण भारत में पराली जलाने की प्रवृत्ति बढ़ी है। किसानों के लिए मशीनीकृत कटाई से जुड़ी चुनौतियों पर प्रकाश डालिए और आकलन करें कि ये चुनौतियाँ पर्यावरण क्षरण में किस प्रकार योगदान देती हैं।

 (15 अंक , 250 शब्द)

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