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औद्योगिक अल्कोहल विनियमन पर न्यायिक निर्णय : संघवाद

Lokesh Pal October 28, 2024 06:00 46 0

संदर्भ: 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के अपने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में, राज्य के नियमों के संदर्भ में ‘मादक शराब’ की परिभाषा को स्पष्ट कर दिया है, जिसका भारत में शासन के संघीय ढांचे पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है।

पृष्ठभूमि 

  • इस मामले में प्रश्न उठाया गया कि:
    • राज्यों के पास शराब संबंधी सभी प्रविष्टियों पर अधिकार है – जिसमें औद्योगिक शराब भी शामिल है। 
    • केंद्र सरकार 1951 के उद्योग विकास और विनियमन अधिनियम (आईडीआरए) के माध्यम से अधिकार क्षेत्र का दावा कर सकती है।
  • उद्योग विकास और विनियमन अधिनियम 1951 में “किण्वन उद्योग” को उन विषयों के अंतर्गत शामिल किया गया है जिन पर संघ नियंत्रण कर सकता है, जिससे इस बात पर बहस छिड़ गई है कि औद्योगिक शराब राज्य या संघ के अधिकार क्षेत्र में आनी चाहिए या नहीं।
  • मुख्य विवाद : मुख्य विवाद यह था कि क्या राज्य सूची में “नशीली शराब” में शराब के पीने योग्य और गैर-पीने योग्य दोनों रूप शामिल हैं, या क्या इसे उपभोग के लिए मादक पेय पदार्थों तक सीमित रखा जाना चाहिए।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय और उसका दायरा:

  • मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की बेंच ने इस मामले पर स्पष्टता प्रदान की।
  • बहुमत की राय में माना गया कि राज्य सूची में प्रविष्टि 8 व्यापक रूप से सभी प्रकार के अल्कोहल पर लागू होती है, जिसमें औद्योगिक अल्कोहल भी शामिल है, जो मादक पेय पदार्थों तक सीमित नहीं है।
  • मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने इस बात पर जोर दिया कि संसद को पूरे अल्कोहल उद्योग को विनियमित करने की अनुमति देने से भारतीय लोकतंत्र की संघीय प्रणाली का संतुलन बिगड़ जाएगा, जिससे सत्ता का झुकाव संघ की ओर हो जाएगा।

असहमतिपूर्ण राय

  • न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना ने असहमतिपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हुए तर्क दिया कि ‘नशीली शराब’ शब्द का तात्पर्य केवल पीने योग्य शराब से होना चाहिए।
  • उन्होंने चिंता व्यक्त की कि यह निर्णय राज्यों से औद्योगिक शराब को विनियमित करने के उनके अधिकार को छीन सकता है, जो किसी भी राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ होने के कारण , विशेष रूप से रसायन क्षेत्र में और जैव ईंधन के रूप में महत्वपूर्ण है ।

संघवाद को मजबूत करने वाले न्यायिक रुझान:

  •  राज्यों की स्वायत्तता सुरक्षित : यह निर्णय महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधियों पर राज्यों की स्वायत्तता को सुरक्षित रखता है, तथा यह सुनिश्चित करता है कि केंद्रीय कानून संवैधानिक रूप से राज्य विनियमन के लिए आरक्षित क्षेत्रों में अतिक्रमण न करें। 
  • यह निर्णय माह जुलाई में दिए गए एक निर्णय से भी मेल खाता है, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने खनिज अधिकारों और खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने के राज्यों के अधिकार को बरकरार रखा था।

निष्कर्ष :

शराब विनियमन पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला एक संतुलित संघीय ढांचे को मजबूत करता है, जिससे राज्यों को संघीय ढांचे में रहते हुए महत्वपूर्ण उद्योगों पर महत्वपूर्ण विनियामक शक्तियां प्राप्त होती हैं। चूंकि औद्योगिक बनाम पीने योग्य शराब पर चर्चा जारी है, इसलिए शासन और आर्थिक स्थिरता पर इन फैसलों के व्यापक प्रभावों पर विचार करना आवश्यक है।

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