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बायोसिमिलर और एवरग्रीनिंग का मुद्दा

Lokesh Pal October 30, 2024 03:27 44 0

संदर्भ

पर्टुजुमैब (Pertuzumab) पर चल रहा विवाद इस बात पर प्रकाश डालता है कि कानूनी सुरक्षा के बावजूद, एवरग्रीनिंग अभी भी किफायती बायोसिमिलर्स (Biosimilars) की शुरुआत को जटिल बना रहा है। 

संबंधित तथ्य

  • पर्टुजुमैब का विवाद: पर्टुजुमैब (Pertuzumab) स्तन कैंसर का एक लोकप्रिय उपचार है।
  • ओन्कोलॉजी दवाओं की दुनिया की शीर्ष विक्रेता कंपनी रोश (Roche) ने भारतीय दवा निर्माता कंपनी जाइडस लाइफसाइंसेस (Zydus Lifesciences) द्वारा अपने लोकप्रिय स्तन कैंसर उपचार, पेरजेटा [पर्टुजुमैब (Pertuzumab)] पर किए गए क्लिनिकल परीक्षणों के खिलाफ चेतावनी दी है। 
  • स्विस दवा निर्माता कंपनी रोश (Roche) ने आरोप लगाया है कि भारत में क्लिनिकल परीक्षण के लिए दवा की 500 शीशियाँ संदिग्ध स्रोतों से प्राप्त की गई थीं। 
  • रोश (Roche) ने भारत के औषधि नियामक, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organisation-CDSCO) को अपनी चिंताओं से अवगत कराया है तथा बायोसिमिलर परीक्षणों में उचित सोर्सिंग और निरीक्षण से संबंधित मुद्दों पर प्रकाश डाला है। 
  • भारतीय बायोफार्मास्युटिकल उद्योग विश्व स्तर पर सबसे तेजी से बढ़ने वाले उद्योगों में से एक है और इसका मूल्य 60 बिलियन डॉलर है।
  • भारत अब वैश्विक नवाचार सूचकांक (Global Innovation Index) में 39वें स्थान पर है, जो वर्ष 2015 में 81वें स्थान पर था।

बायोफार्मास्यूटिकल्स के बारे में

  • बायोफार्मास्यूटिकल्स ऐसी दवाइयाँ हैं, जो जैविक प्रक्रियाओं का उपयोग करके जीवित कोशिकाओं जैसे मनुष्य, पशु, खमीर, बैक्टीरिया आदि से प्राप्त या संश्लेषित की जाती हैं, जो पारंपरिक रसायन आधारित दवाओं से भिन्न हैं।
  • वे कैंसर और मधुमेह जैसी दीर्घकालिक बीमारियों के इलाज में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

बायोफार्मास्यूटिकल्स के घटक

  • बायोलॉजिक्स (Biologics): यह शब्द विशेष रूप से जीवित कोशिकाओं या जीवों से प्राप्त उत्पादों, जैसे प्रोटीन, न्यूक्लिक एसिड या कोशिकाओं को संदर्भित करता है।
  • इनमें उत्पादों की एक विस्तृत शृंखला शामिल है, जिनमें शामिल हैं:- टीके, रक्त घटक, जीन थेरेपी, ऊतक, प्रोटीन, जैसे मोनोक्लोनल एंटीबॉडी और सेल सिग्नलिंग प्रोटीन आदि।
  • बायोसिमिलर (Biosimilars): बायोसिमिलर एक जैविक दवा है, जो किसी अन्य जैविक दवा (जिसे ‘रिफरेंस प्रोडक्ट’ के रूप में जाना जाता है) के समान है, जिसे डॉक्टरों द्वारा पर्चे के लिए अधिकारियों द्वारा मंजूरी दी गई है।
    • इसीलिए इन्हें ‘फॉलो-ऑन बायोलॉजिक्स’ (Follow-on Biologics) भी कहा जाता है और इनका इस्तेमाल पहली बायोलॉजिक दवा के समान ही विकारों के इलाज के लिए किया जाता है। 
    • बायोसिमिलर उत्पाद सुरक्षा, शुद्धता और क्षमता के मामले में संदर्भ उत्पाद से काफी मिलते-जुलते हैं, हालाँकि उनमें निष्क्रिय घटकों में मामूली भिन्नता हो सकती है। उदाहरण के लिए 
  • ट्रैस्टुजुमैब (Trastuzumab) या हर्सेप्टिन (Herceptin): स्तन कैंसर के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है। 
  • एपोएटिन अल्फा (Epoetin alfa) या एपोजेन (Epogen): एनीमिया के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है, विशेष रूप से क्रोनिक किडनी रोग वाले रोगियों में।
  • वे मूल जैविक दवाओं के लागत प्रभावी विकल्प उपलब्ध कराकर मरीजों के लिए नई आशा की किरण प्रस्तुत करते हैं, जो अक्सर महंगी एवं जटिल होती हैं।

बायोसिमिलर और जेनेरिक के बीच अंतर

पहलू बायोसिमिलर्स (Biosimilars) जेनेरिक्स
उत्पाद की प्रकृति
  • अनुमोदित जैविक उत्पाद के समान; जीवित जीवों से निर्मित; निष्क्रिय घटकों में मामूली अंतर हो सकता है।
  • समान रासायनिक संरचना वाली छोटी-अणु वाली दवाओं की सटीक प्रतिलिपियाँ
विनियामक अनुमोदन
  • जैव समानता और नैदानिक ​​प्रदर्शन को साबित करने के लिए व्यापक अध्ययन की आवश्यकता है।
  • ब्रांडेड दवा के लिए जैव तुल्यता के आधार पर अनुमोदित।
  • इसके लिए व्यापक नैदानिक ​​परीक्षणों की आवश्यकता नहीं होती, जो मूल ब्रांडेड दवा के लिए आवश्यक थे।
विनिर्माण प्रक्रिया
  • जटिल उत्पादन में जीवित कोशिकाएँ शामिल होती हैं; छोटे परिवर्तन भी अंतिम उत्पाद को प्रभावित कर सकते हैं।
  • सरल रासायनिक संश्लेषण; लगातार उत्पादित किया जा सकता है।
बाजार की गतिशीलता
  • नया बाजार, प्रतिस्पर्द्धा बढ़ी, कीमतें कम हुईं, लेकिन विकास लागत अधिक।
  • प्रवेश पर महत्त्वपूर्ण मूल्य कटौती के साथ स्थापित बाजार।

भारत और ग्लोबल बायोसिमिलर मार्केट

  • वैश्विक बायोसिमिलर बाजार में अग्रणी: भारत हेपेटाइटिस B के लिए बायोसिमिलर उत्पाद को मंजूरी देने वाला पहला देश था।
    • आज भारत में 98 स्वीकृत बायोसिमिलर हैं, जिनमें से कम-से-कम 50 बाजार में हैं, जो किसी भी देश में सबसे अधिक है।
    • भारत में निर्मित कई बायोसिमिलर को अमेरिका जैसे बाजारों में मंजूरी मिल चुकी है।
  • भारतीय बायोसिमिलर बाजार का तेजी से विकास: भारतीय बायोसिमिलर बाजार का मूल्य वर्ष 2022 में 349 मिलियन डॉलर था और अनुमान है कि वर्ष 2022 से 2030 तक यह 25.2 प्रतिशत प्रति वर्ष की वृद्धि दर से बढ़कर वर्ष 2030 तक 2,108 मिलियन डॉलर तक पहुँच जाएगा।
  • दायरा विस्तार: वर्ष 2030 तक लगभग 170 बिलियन डॉलर मूल्य के जैविक उत्पाद पेटेंट संरक्षण खो देंगे। 
    • इससे भारतीय बायोफार्मा के लिए और अधिक बायोसिमिलर उत्पाद लॉन्च करने का अवसर खुलेगा।
  • भारत में नियामक ढाँचा: भारत में, बायोफार्मास्यूटिकल्स और जेनेरिक दवाओं को औषधियों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है और इन्हें औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 के तहत केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organization- CDSCO) द्वारा विनियमित किया जाता है।

फार्मास्यूटिकल्स में बौद्धिक संपदा और पेटेंट

  • बौद्धिक संपदा अधिकार: बौद्धिक संपदा (IP) अधिकार, विशेष रूप से पेटेंट, आविष्कारकों को सीमित अवधि के लिए, आमतौर पर आवेदन की तारीख से 20 वर्ष तक, विशेष अधिकार प्रदान करके नवाचार को प्रोत्साहित करते हैं।
  • यह विशिष्टता दवा कंपनियों को अनुसंधान, नैदानिक ​​परीक्षण और विनियामक अनुमोदन सहित दवा विकास से जुड़ी पर्याप्त लागतों की वसूली करने की अनुमति देती है।
  • पेटेंट एवरग्रीनिंग  
  • यह पेटेंट और पेटेंट सुरक्षा के जीवन को उसके मूल अवधि से आगे बढ़ाने की प्रथा को संदर्भित करता है।
  • जब पेटेंट की अवधि समाप्त होने वाला होता है, तो फार्मा कंपनियाँ मामूली संशोधन करके एवरग्रीनिंग प्रथाओं का सहारा लेती हैं, जिससे उन्हें बायोसिमिलर के प्रवेश को रोकने और देरी करने की अनुमति मिलती है, जिससे कीमतें अधिक रहती हैं।
  • उदाहरण के लिए, नोवार्टिस (Novartis) ने इमैटिनिब (Imatinib) के लिए कई पेटेंट माँगे, तथा बाजार में अपनी विशिष्टता बढ़ाने के लिए इसके लवण के रूप और खुराक में संशोधन किया।
  • एकाधिकार नियंत्रण: इससे किसी उत्पाद पर एकाधिकार नियंत्रण हो सकता है। पेटेंट सुरक्षा का विस्तार करके, कंपनियाँ बाजार पर हावी हो सकती हैं, जिससे प्रतिस्पर्द्धा और उपभोक्ता विकल्प सीमित हो सकते हैं।

बायोसिमिलर के संबंध में भारत के सामने आने वाली चुनौतियाँ

  • पेटेंट एवरग्रीनिंग (Patent Evergreening): पेटेंट एवरग्रीनिंग भारतीय बायोसिमिलर निर्माताओं के सामने आने वाली महत्त्वपूर्ण बाधाओं में से एक है।
  • उदाहरण: बहुराष्ट्रीय कंपनी रोश (Roche) ने स्तन कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली जैविक दवा ट्रास्टुजुमैब (हर्सेप्टिन) की विशिष्टता को बढ़ाते हुए, इसके अवत्वचीय संस्करण को पेश किया, ठीक उस समय जब इसका मूल पेटेंट समाप्त होने वाला था।
  • विनियामक चुनौतियाँ: जेनेरिक दवाओं के विपरीत, बायोसिमिलर दवाएँ जीवित जीवों से प्राप्त होती हैं और गुणवत्ता, सुरक्षा तथा प्रभावकारिता में समानता प्रदर्शित करने के लिए कठोर नैदानिक ​​परीक्षणों की आवश्यकता होती है।
  • जैविक उत्पादों की जटिलता के कारण उनमें अंतर्निहित परिवर्तनशीलता होती है, जिससे अनुमोदन और बाजार में प्रवेश अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • उदाहरण: ट्रास्टुजुमाब के बायोसिमिलर (Biosimilar of Trastuzumab)  (स्तन कैंसर के उपचार में प्रयुक्त) को स्वीकृति मिलने में कई वर्ष लग गए, जिससे बाजार में इसके समय पर प्रवेश पर असर पड़ा।
  • सीमित परीक्षण सुविधाएँ: भारत वर्तमान में सीमित परीक्षण सुविधाओं के साथ एक महत्त्वपूर्ण चुनौती का सामना कर रहा है, जो बायोसिमिलर के लिए आवश्यक व्यापक जैव-समानता आकलन करने में सक्षम हैं।
  • अपनाने में संकोच: बायोसिमिलर की सुरक्षा और प्रभावकारिता के बारे में स्वास्थ्य पेशेवरों और रोगियों के बीच अक्सर जागरूकता की कमी होती है, जिसके कारण इसे अपनाने में संकोच होता है।
    • समझ की कमी के कारण मरीजों की संभावित लागत-प्रभावी उपचार विकल्पों तक पहुँच सीमित हो सकती है।
  • बाजार प्रतिस्पर्द्धा: बायोसिमिलर बाजार में स्थापित वैश्विक अभिकर्ताओं से तीव्र प्रतिस्पर्द्धा के कारण भारतीय निर्माताओं के लिए बाजार में हिस्सेदारी हासिल करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
    • वैश्विक बायोसिमिलर बाजार में भारत की हिस्सेदारी केवल 3% है।
  • बौद्धिक संपदा चुनौतियाँ: बौद्धिक संपदा कानूनों की जटिलताओं और संभावित मुकदमेबाजी से निपटना भारतीय बायोसिमिलर कंपनियों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
    • उदाहरण: रिलायंस लाइफ साइंसेज (RLS) को स्तन कैंसर के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली बायोसिमिलर ट्रैस्टुजुमाब के संबंध में रोश से कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ा। 
  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने वर्ष 2015 में रोश के उद्देश्यों पर चिंता व्यक्त की थी तथा कहा था कि मुकदमे का उद्देश्य प्रतिस्पर्द्धा को रोकना है।

भारत में पेटेंट व्यवस्था

  • भारत में पेटेंट का नियमन पेटेंट अधिनियम, 1970 द्वारा किया जाता है। यह ढाँचा पेटेंट प्रदान करने के लिए मानदंड स्थापित करता है, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:
    • पेटेंट योग्य विषय वस्तु: नए आविष्कारों के लिए पेटेंट दिए जा सकते हैं, जिनमें नवीनता, आविष्कारशील कदम और औद्योगिक अनुप्रयोग के मानदंडों को पूरा करने वाली प्रक्रियाएँ या उत्पाद शामिल हैं।
    • बहिष्करण (Exclusions): कुछ बहिष्करण लागू होते हैं, जैसे कि मात्र वैज्ञानिक सिद्धांतों और कृषि के तरीकों की खोज।
  • पेटेंट की मानक अवधि दाखिल करने की तिथि से 20 वर्ष है।
  • एवरग्रीनिंग प्रतिबंध: पेटेंट अधिनियम की धारा 3(d) का उद्देश्य महत्त्वपूर्ण चिकित्सीय प्रभावकारिता की कमी वाले मामूली संशोधनों के लिए पेटेंट को अस्वीकार करके एवरग्रीनिंग को रोकना है।
  • अनिवार्य लाइसेंसिंग: यह एक कानूनी तंत्र है, जो सरकार को पेटेंट स्वामी की सहमति के बिना पेटेंट उत्पाद के उत्पादन की अनुमति देता है।
  • ट्रिप्स समझौते (TRIPS Agreement) द्वारा कानूनी रूप से समर्थित, भारत ने आवश्यक दवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिए अपने पेटेंट अधिनियम, 1970 के अध्याय XVI में इस प्रावधान को शामिल किया है।
  • विनियामक प्राधिकरण: पेटेंट, डिजाइन और ट्रेडमार्क महानियंत्रक कार्यालय (Controller General of Patents, Designs and TradeMarks- CGPDTM), जिसे सामान्यतः भारतीय पेटेंट कार्यालय के रूप में जाना जाता है, उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (भारत सरकार) के अधीन एक एजेंसी है जो पेटेंट, डिजाइन और ट्रेडमार्क के भारतीय कानून का प्रशासन करती है।
  • पेटेंट अधिनियम में संशोधन: विश्व व्यापार संगठन (WTO) के TRIPS समझौते के अनुरूप भारतीय पेटेंट अधिनियम, 1970 में संशोधन किया गया।
    • संशोधित भारतीय पेटेंट अधिनियम, 2005 में विशेष रूप से फार्मास्यूटिकल उत्पादों के लिए पेटेंट प्रदान करने का प्रावधान किया गया।

भारत के बायोफार्मास्यूटिकल विकास के लिए सरकार की पहल

  • राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन (National Biopharma Mission)
  • पहल का अवलोकन: मेक इन इंडिया पहल के तहत, राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन (National Biopharma Mission- NBM) को उद्योग-अकादमिक सहयोगात्मक मिशन के रूप में लॉन्च किया गया है, जिसका प्रबंधन जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (Biotechnology Industry Research Assistance Council- BIRAC) द्वारा किया जाता है।
  • वित्तपोषण और दायरा: यह 250 मिलियन डॉलर का मिशन विश्व बैंक द्वारा सह-वित्तपोषित है तथा इसका उद्देश्य बायोफार्मास्यूटिकल्स के विकास में तेजी लाना है।
  • संगठनों के लिए समर्थन: NBM बायोफार्मास्यूटिकल क्षेत्र में लगभग 150 संगठनों और 300 सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (Micro, Small, and Medium Enterprises- MSME) का समर्थन करता है।
  • भारत का पेटेंट कानून: विशेष रूप से पेटेंट अधिनियम, 1970 की धारा 3(d) का उद्देश्य, उन छोटे नवाचारों के पेटेंट को अस्वीकार करके ‘एवरग्रीनिंग’ (Evergreening) को रोकना है, जिनमें ठोस सुधार का अभाव है।
  • उदाहरण: नोवार्टिस बनाम भारत संघ मामले में, ल्यूकेमिया के इलाज में प्रयुक्त कैंसर की दवा ग्लिवेक (इमैटिनिब) के लिए नोवार्टिस का पेटेंट आवेदन खारिज कर दिया गया था, क्योंकि इसमें महत्त्वपूर्ण तकनीकी प्रगति नहीं दिखाई गई थी। 
  • इसने ‘एवरग्रीनिंग’ प्रथाओं के खिलाफ एक मजबूत उदाहरण कायम किया।
  • अधिनियम की धारा 3(e) ज्ञात यौगिकों के मिश्रणों को पेटेंट करने पर प्रतिबंध लगाती है, जब तक कि सहक्रियात्मक प्रभाव सिद्ध न हो जाए, और धारा 3(i) उपचार विधियों पर पेटेंट को रोकती है।
  • समान बायोलाॅजिक्स पर दिशा-निर्देश: बायोसिमिलर को सिमिलर बायोलॉजिक्स (Biologics) के नाम से भी जाना जाता है।
    • समान जैविक दवाओं पर दिशा-निर्देश एक व्यापक नीति दस्तावेज है, जो भारत में समान जैविक दवाओं को मंजूरी देने के लिए विनियामक मार्ग की रूपरेखा तैयार करता है। इसे केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) और जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) द्वारा सहयोगात्मक रूप से विकसित किया गया है।

आगे की राह  

  • पेटेंट कानून को मजबूत करना: भारत के पेटेंट अधिनियम की धारा 3(d) को सुदृढ़ करना, जो मामूली संशोधनों के लिए पेटेंट को रोकता है।
  • अनिवार्य लाइसेंसिंग को प्रोत्साहित करना: उच्च सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रभाव के मामलों में, आवश्यक बायोसिमिलर को अधिक सुलभ बनाने और एकाधिकार नियंत्रण को कम करने के लिए अनिवार्य लाइसेंसिंग प्रावधानों का लाभ उठाना।
  • क्लिनिकल परीक्षण क्षमताओं का विस्तार: घरेलू क्लिनिकल परीक्षण बुनियादी ढाँचे में निवेश बढ़ाना।
  • कंपनियों को बायोसिमिलर परीक्षण करने के लिए अनुदान तथा प्रोत्साहन प्रदान करने से ये परीक्षण अधिक व्यवहार्य और सुलभ हो सकते हैं।
  • बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड (Intellectual Property Appellate Board- IPAB) की पुनः स्थापना: पेटेंट विवाद मामलों के शीघ्र निपटान के लिए इसकी स्थापना की जानी चाहिए।
  • अप्रैल 2021 में न्यायाधिकरण सुधार (सुव्यवस्थीकरण और सेवा की शर्तें) अध्यादेश, 2021 के पारित होने के साथ बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड (Intellectual Property Appellate Board- IPAB) को समाप्त कर दिया गया था।
  • गुणवत्ता प्रबंधन प्रणाली लागू करना: निरंतर बायोसिमिलर गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए उत्पादन प्रोटोकॉल को मानकीकृत करना है।
  • राष्ट्रीय जैविक संस्थान भारत के स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत जैविक पदार्थों की गुणवत्ता नियंत्रण के लिए एक स्वायत्त संस्थान है।
  • यह गुणवत्ता नियंत्रण मानकों तथा निगरानी स्थापित करने में मदद कर सकता है।
    • बायोफार्मा में उद्यम पूँजी को प्रोत्साहित करना: बायोसिमिलर क्षेत्र में अधिक निजी निवेश को आकर्षित करने के लिए कर छूट या जोखिम-साझाकरण तंत्र को लागू करना, विशेष रूप से उच्च विकास क्षमता वाले छोटे अभिकर्ताओं को लक्षित करना है।
  • निष्पक्ष बौद्धिक नीतियों (IP) की वकालत: विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization- WTO) और विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (World Intellectual Property Organization- WIPO) जैसे मंचों के माध्यम से, भारत बायोसिमिलर के लिए मुकदमेबाजी के जोखिम को कम करते हुए, निष्पक्ष वैश्विक IP प्रथाओं की वकालत कर सकता है।
  • वैश्विक अनुभवों से सीखना: यूरोपीय औषधि एजेंसी के वर्ष 2005 बायोसिमिलर दिशा-निर्देश एक सुव्यवस्थित अनुमोदन प्रक्रिया प्रदान करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप जर्मनी, UK तथा नॉर्डिक देशों में बायोसिमिलर को पर्याप्त रूप से अपनाया गया है, जिससे महत्त्वपूर्ण लागत बचत हुई है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका में, बायोसिमिलर को मंजूरी देने के लिए एक कानूनी ढाँचा वर्ष 2009 में बायोलॉजिक्स प्राइस कॉम्पिटिशन एंड इनोवेशन एक्ट 2009 (BPCI एक्ट) के माध्यम से स्थापित किया गया था। BPCI एक्ट बायोसिमिलर के लिए एक संक्षिप्त अनुमोदन मार्ग स्थापित करता है।

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