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उर्वरक आयात

Lokesh Pal October 30, 2024 03:48 181 0

संदर्भ

यूक्रेन और गाजा में संकट ने पेट्रोलियम आधारित रासायनिक उर्वरक बनाने में प्रयुक्त घटकों की कीमतों में वृद्धि के बारे में चिंताएँ उत्पन्न कर दी हैं।

संबंधित तथ्य

  • आयात पर निर्भरता: भारत अपनी उर्वरक माँगों, विशेष तौर पर यूरिया, DAP और MOP को पूरा करने के लिए आयात पर बहुत अधिक निर्भर करता है।
    • यूरिया का लगभग 20%, DAP का 50-60% और MOP का 100% आयात किया जाता है।
  • संघर्ष संकट के कारण आयात स्रोत प्रभावित हुए हैं: भारत का प्राथमिक उर्वरक आयात रूस, चीन, सऊदी अरब और यूएई जैसे देशों से होता है।
    • वर्तमान भू-राजनीतिक अस्थिरता इन क्षेत्रों से आपूर्ति को बाधित कर सकती है।

‘संतुलित उर्वरीकरण’ (Balanced Fertilisation) शब्द का क्या अर्थ है?

  • यह मिट्टी के प्रकार और विशिष्ट फसल के अनुसार सही समय पर सही मात्रा में नाइट्रोजन, फॉस्फेट और पोटाश जैसे पोषक तत्त्वों को डालने की प्रथा है। 
  • यह महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करता है, फसल की पैदावार बढ़ाता है और पर्यावरण की रक्षा करता है।

भारत में उर्वरक उद्योग

  • यह उद्योग मुख्य उद्योगों में से एक है।
  • फसल की पैदावार बढ़ाने और मिट्टी की उर्वरता में सुधार के लिए उर्वरक आवश्यक हैं।
  • भारत वैश्विक स्तर पर उर्वरकों का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है।
  • उत्पादन: भारत समग्र उर्वरक उत्पादन के लिए दुनिया में तीसरे स्थान पर है, नाइट्रोजन उर्वरकों में दूसरे स्थान पर है और फॉस्फेट उर्वरकों में तीसरे स्थान पर है।
    • भारत में 57 उर्वरक इकाइयाँ हैं, जिनमें 29 यूरिया उत्पादक इकाइयाँ और 9 अमोनिया सल्फेट उत्पादक इकाइयाँ शामिल हैं।

जल में घुलनशील उर्वरक (Water-soluble fertilizers- WSFs)

  • ये उर्वरक पानी में घुल जाते हैं।
  • नाइट्रोजन (N), फॉस्फोरस (P), और पोटेशियम (K) जैसे 3 मुख्य मैक्रोन्यूट्रिएंट्स पर आधारित हैं।
  • इसका प्रयोग ड्रिप सिंचाई या पत्तियों पर छिड़काव जैसी तकनीकों के माध्यम से किया जाता है।

महत्त्व

  • यह पौधों को तुरंत पोषक तत्त्व प्रदान करता है।
  • पोषक तत्त्वों की कमी को कम करता है।
  • पौधों की अवशोषण क्षमता को बढ़ाता है।

भारत में उर्वरक उत्पादन

  • वर्ष 2021-22 उत्पादन बनाम माँग: भारत ने 579.67 लाख मीट्रिक टन (LMT) उर्वरकों की खपत की, जिसमें 341.73 LMT यूरिया शामिल है। हालाँकि, घरेलू उत्पादन केवल 435.95 LMT था, जिससे 143.72 LMT की कमी रह गई।
  • तुलनात्मक डेटा: वर्ष 2014-15 में, उर्वरक उत्पादन 385.39 LMT था, जो सात वर्षों में केवल 50 LMT की वृद्धि दर्शाता है।
  • सब्सिडी आवंटन: वर्ष 2023-24 के बजट में उर्वरक सब्सिडी के लिए ₹1.79 लाख करोड़ आवंटित किए गए, जिसमें एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा (₹1.04 लाख करोड़) स्वदेशी यूरिया की ओर निर्देशित किया गया।

यूरिया के प्रमुख उर्वरक के बने रहने के कारण

यह कई कारणों से लोकप्रिय उर्वरक है:-

  • उच्च नाइट्रोजन सामग्री: यूरिया में लगभग (46%) उच्च नाइट्रोजन सामग्री होती है।
    • नाइट्रोजन पौधों की वृद्धि के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है।
  • कम हानिकारक: यूरिया अन्य उर्वरकों की तुलना में मिट्टी के लिए कम हानिकारक है।
  • कम लागत: यह नाइट्रोजन युक्त उर्वरक अपने कम परिवहन और भंडारण लागत के कारण सस्ता है।
  • व्यापक उपलब्धता: बाजार में व्यापक पहुँच के कारण यूरिया आसानी से उपलब्ध है।
  • विभिन्न फसलों और मिट्टी के प्रकार के लिए उपयुक्त: इस उर्वरक का उपयोग अनाज, सब्जियों और फलों जैसी कई फसलों पर सीधे मिट्टी में किया जा सकता है।

उर्वरक आयात में भारत के सामने चुनौतियाँ

  • आयात पर उच्च निर्भरता
    • भारत यूरिया, DAP (डायमोनियम फॉस्फेट) और MOP (म्यूरिएट ऑफ पोटाश) जैसे आयातित उर्वरकों पर बहुत अधिक निर्भर है।
    • यह निर्भरता भारत को वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में व्यवधान और मूल्य अस्थिरता के प्रति संवेदनशील बनाती है।
  • भू-राजनीतिक संघर्षों का प्रभाव
    • यूक्रेन और पश्चिम एशिया जैसे क्षेत्रों में संघर्ष उर्वरक उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे माल की उपलब्धता और लागत को प्रभावित करते हैं। 
    • उदाहरण के लिए, यूक्रेन में चल रहे संकट के कारण उर्वरकों के लिए महत्त्वपूर्ण पेट्रोलियम आधारित इनपुट की कीमतें बढ़ गई हैं।
  • सीमित वैश्विक आपूर्तिकर्ता
    • रॉक फॉस्फेट, फॉस्फोरिक एसिड और अमोनिया जैसे आवश्यक कच्चे माल के लिए केवल कुछ आपूर्तिकर्ताओं के साथ, भारत की वैश्विक बाजार में सौदेबाजी की शक्ति सीमित है।
  • सब्सिडी का बोझ
    • आयातित उर्वरकों की उच्च लागत सरकार के सब्सिडी व्यय को काफी हद तक बढ़ा देती है। 
    • उदाहरण के लिए, आयातित यूरिया के लिए आवश्यक सब्सिडी काफी अधिक है, जिससे राष्ट्रीय बजट पर दबाव पड़ता है।
  • घरेलू उत्पादन में कमी
    • भारत की उर्वरक उत्पादन क्षमता राष्ट्रीय माँग को पूरा नहीं कर पाती, जिससे कमी पैदा होती है, जिसकी पूर्ति आयात के माध्यम से करनी पड़ती है।
  • आपूर्ति शृंखला व्यवधान
    • वैश्विक आपूर्ति शृंखला संबंधी समस्याएँ, जो प्रायः भू-राजनीतिक तनावों के कारण उत्पन्न होती हैं, के परिणामस्वरूप उर्वरक आयात में देरी और कमी होती है।

भारत में उर्वरक सब्सिडी तंत्र

इस तंत्र का मुख्य उद्देश्य किसानों के लिए उर्वरक को सस्ता बनाना है।

  • सब्सिडी के दो मुख्य प्रकार हैं, जैसे- यूरिया सब्सिडी और पोषक तत्त्व-आधारित सब्सिडी (Nutrient-Based Subsidy-NBS)।
  • यूरिया सब्सिडी: सरकार उत्पादन लागत के आधार पर उर्वरक निर्माताओं को सब्सिडी का भुगतान करती है।
    • निर्माताओं को प्रशासन द्वारा निर्धारित अधिकतम खुदरा मूल्य (Maximum Retail Price-MRP) पर यूरिया बेचना होगा।
  • पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी (Nutrient Based Subsidy-NBS) योजना
    • कार्यान्वयन: अप्रैल 2010 में शुरू की गई NBS योजना फॉस्फेटिक और पोटासिक (P&K) उर्वरकों के विभिन्न ग्रेडों पर उनकी पोषक सामग्री के आधार पर एक निश्चित वार्षिक सब्सिडी प्रदान करती है।
    • लक्ष्य
      • संतुलित उर्वरक उपयोग को बढ़ावा देना।
      • कृषि उत्पादकता में सुधार लाना।
      • घरेलू उर्वरक उद्योग के विकास को समर्थन देना।
      • सरकार के सब्सिडी बोझ को कम करना।
  • वितरण प्रक्रिया
  • उर्वरक की अनुशंसित मात्रा (Recommended Dose of Fertilizer-RDF): केंद्र सरकार प्रत्येक राज्य द्वारा उपलब्ध कराए गए पोषक तत्त्व आँकड़ों का विश्लेषण करके उर्वरक की अनुशंसित मात्रा (RDF) निर्धारित करती है।
    • इस मूल्यांकन के आधार पर, कृषि की क्षेत्रीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए राज्यों को उर्वरक आवंटित किए जाते हैं।
  • किसानों को बिक्री: उर्वरकों को स्थानीय डीलरों और प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों को बेचा जाता है।
    • बिक्री रिकॉर्ड करने के लिए ‘पॉइंट-ऑफ-सेल’ उपकरणों का उपयोग किया जाता है।
    • यह पारदर्शिता सुनिश्चित करता है और उर्वरक वितरण पर नजर रखता है।
  • सब्सिडी भुगतान: उर्वरक विभाग उर्वरक कंपनियों को सब्सिडी वितरित करता है।
    • सब्सिडी भुगतान की गणना किसानों को बेचे गए उर्वरक की कुल मात्रा के आधार पर की जाती है, जिससे किफायती मूल्य सुनिश्चित होता है और उपयोग को बढ़ावा मिलता है।

अनुशंसाएँ

  • उत्पादन क्षमता में वृद्धि: घरेलू उर्वरक उत्पादन में वृद्धि और आयात पर निर्भरता कम करना।
  • नई पद्धतियाँ अपनाएँ: नैनो यूरिया, प्राकृतिक खेती को लागू करना और उर्वरक कारखानों की क्षमता में सुधार करना।
  • नीतिगत पहल: उर्वरकों के विनिर्माण और विपणन के लिए सार्वजनिक, सहकारी और निजी क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहित करना।
  • एकीकृत पोषक तत्त्व प्रबंधन (INM): यह एक व्यापक रणनीति है, जिसका उद्देश्य मृदा स्वास्थ्य को संरक्षित करते हुए फसलों को पोषक तत्त्वों की आपूर्ति को अनुकूलित करना है।
    • विभिन्न पोषक स्रोतों को मिलाकर, INM सतत् कृषि को बढ़ावा देता है और रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम करता है।
  • INM के प्रमुख घटक
    • अकार्बनिक उर्वरक: यूरिया, DAP, MOP और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों सहित रासायनिक उर्वरक, आवश्यक पौधों के पोषक तत्त्वों का त्वरित स्रोत प्रदान करते हैं।
    • जैविक खाद: खेत के अपशिष्ट, खाद और वर्मीकंपोस्ट जैसे प्राकृतिक उर्वरक मिट्टी की संरचना, जल धारण क्षमता और पोषक तत्त्वों की मात्रा में सुधार करते हैं।
    • जैविक उर्वरक: राइजोबियम, एजोटोबैक्टर और माइकोराइजा जैसे माइक्रोबियल इनोक्युलेंट वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर करके या पोषक तत्त्वों के अवशोषण में सुधार करके पोषक तत्त्वों की उपलब्धता को बढ़ाते हैं।
  • नई गतिविधि
    • निवेश नीति: वर्ष 2012 में नई निवेश नीति के बाद से छह नए यूरिया संयंत्र स्थापित किए गए, जिससे उत्पादन क्षमता में प्रति वर्ष 76.2 LMT की वृद्धि हुई।
    • पुनर्स्थापित इकाइयाँ: रामगुंडम्, गोरखपुर, सिंदरी और बरौनी में यूरिया निर्माण के लिए नई गैस-आधारित ग्रीनफील्ड इकाइयाँ स्थापित की गईं।

उर्वरक क्षेत्र में सरकारी पहल और योजनाएँ

  • नीम लेपित यूरिया (Neem Coating of Urea)
    • अनिवार्य कोटिंग: उर्वरक विभाग (DoF) द्वारा सभी घरेलू उत्पादकों को 100% नीम लेपित यूरिया (Neem Coated Urea-NCU) का उत्पादन करना आवश्यक है।
    • लाभ
      • मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करता है।
      • पौधे के संरक्षण हेतु प्रयुक्त रसायनों की आवश्यकता को कम करता है।
      • कीट एवं रोग की घटनाओं को कम करता है।
      • फसल की पैदावार बढ़ाता है, विशेषकर धान, गन्ना, मक्का, सोयाबीन और अरहर/लाल चना के लिए।
      • गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए दुरुपयोग को कम करता है।
      • नाइट्रोजन उपयोग दक्षता (NUE) में सुधार करता है, जिससे मानक यूरिया की तुलना में आवश्यक NCU की मात्रा कम हो जाती है।
  • नई यूरिया नीति (NUP) 2015
    • उद्देश्य
      • घरेलू यूरिया उत्पादन को अधिकतम करना।
      •  यूरिया उत्पादन इकाइयों में ऊर्जा दक्षता बढ़ाना। 
      • सरकार के सब्सिडी बोझ को कम करना।
  • नई निवेश नीति (NIP) 2012 
    • उद्देश्य: जनवरी 2013 में घोषित और वर्ष 2014 में संशोधित यह नीति यूरिया उत्पादन में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए यूरिया क्षेत्र में नए निवेश को प्रोत्साहित करती है।
  • सिटी कंपोस्ट को बढ़ावा देने की नीति (Policy on Promotion of City Compost)
    • नीति अनुमोदन: उर्वरक विभाग की वर्ष 2016 की नीति उत्पादन और खपत बढ़ाने के लिए ₹1,500 की बाजार विकास सहायता प्रदान करके सिटी कंपोस्ट के उपयोग को बढ़ावा देती है।
    • बिक्री और DBT : खाद निर्माता सीधे किसानों को थोक में बेच सकते हैं और सिटी कंपोस्ट का विपणन करने वाली उर्वरक कंपनियाँ उर्वरकों के लिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) के अंतर्गत आती हैं।
  • उर्वरक क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग
    • पायलट अध्ययन: पृथ्वी अवलोकन और स्पेक्ट्रोस्कोपी का उपयोग करके रॉक फॉस्फेट संसाधनों का मानचित्रण करने के लिए वन विभाग ने ISRO के राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र, भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) और परमाणु खनिज निदेशालय (AMD) के साथ तीन वर्ष का अध्ययन शुरू किया।

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