जैविक विविधता अभिसमय (CBD) का 16वाँ ‘काॅफ्रेंस ऑफ पार्टीज’ (COP-16) कोलंबिया के कैली में आयोजित हुआ, जो नवंबर 2024 की शुरुआत में समाप्त होगा।
‘काॅफ्रेंस ऑफ पार्टीज’ (COP) क्या है?
COP जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है।
इस कन्वेंशन के सभी पक्षकार राष्ट्रों का COP में प्रतिनिधित्व होता है, जहाँ वे कन्वेंशन के कार्यान्वयन तथा COP द्वारा अपनाए गए किसी भी अन्य कानूनी साधन की समीक्षा करते हैं।
वे संस्थागत तथा प्रशासनिक व्यवस्थाओं सहित कन्वेंशन के प्रभावी कार्यान्वयन को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक निर्णय भी लेते हैं।
सिंथेटिक बायोलॉजी (Synthetic Biology)
सिंथेटिक बायोलॉजी एक वैज्ञानिक क्षेत्र है, जो नए जीवों को बनाने या मौजूदा जीवों को संशोधित करने के लिए इंजीनियरिंग सिद्धांतों का उपयोग करता है।
यह चिकित्सा, कृषि और विनिर्माण में समस्याओं को हल करने के लिए इंजीनियरिंग दृष्टिकोणों के साथ DNA अनुक्रमण तथा जीनोम संपादन जैसी जैव प्रौद्योगिकी तकनीकों को जोड़ता है।
COP 16 के मुख्य निष्कर्ष
जैव विविधता संरक्षण पर निरंतर प्रयास: वर्ष 2022 में स्थापित कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क (Kunming-Montreal Global Biodiversity Framework- KMGBF) पर आधारित यह COP वैश्विक जैव विविधता लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में एक महत्त्वपूर्ण कदम था।
KMGBF ने वर्ष 2030 के लिए 23 कार्य-उन्मुख लक्ष्य निर्धारित किए हैं, जैसे कि 30% भूमि एवं जल को संरक्षित करने का ’30-बाई-30 (30-by-30)’ लक्ष्य।
जैव विविधता तथा स्वास्थ्य पर वैश्विक कार्य योजना: COP 16 में भाग लेने वाले देशों ने एक व्यापक वैश्विक कार्य योजना का समर्थन किया, जो जैव विविधता संरक्षण और सार्वजनिक स्वास्थ्य उद्देश्यों को जोड़ती है।
इस एकीकृत रणनीति का उद्देश्य तीन परस्पर संबंधित लक्ष्यों को प्राप्त करना है: पशुओं से मनुष्यों में फैलने वाली बीमारियों के जोखिम को कम करना,गैर-संचारी रोगों की घटनाओं को कम करना और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को बढ़ावा देना।
यह कार्य योजना पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य परिणामों के बीच मूलभूत संबंधों को पहचानती है।
डिजिटल अनुक्रम सूचना (DSI) समझौता: सबसे अधिक बहस वाले मुद्दों में से एक DSI या आनुवंशिक संसाधनों से ‘लाभ-साझाकरण’ था।
विभिन्न राष्ट्र इस बात पर एक मत नहीं थे कि वाणिज्यिक उत्पादों (जैसे दवाइयों) में आनुवंशिक डेटा के उपयोग से होने वाले लाभों को उन देशों एवं समुदायों के साथ कैसे साझा किया जाना चाहिए, जहाँ ये संसाधन पाए जाते हैं।
संसाधन जुटाने की रणनीति: COP 16 में हुई चर्चाओं में नवीन वित्तपोषण तंत्रों की आवश्यकता तथा जैव विविधता प्रयासों में स्वदेशी समुदायों की भागीदारी पर प्रकाश डाला गया।
जैव विविधता लक्ष्यों के लिए अनुमानित वार्षिक आवश्यकता 200 बिलियन डॉलर है, लेकिन अभी तक इस धनराशि का केवल एक भाग ही प्रतिबद्ध किया गया है।
कुनमिंग जैव विविधता कोष (KBF) को चीन सरकार के 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर के योगदान से COP 16 में लॉन्च किया गया। KBF, विशेष रूप से विकासशील देशों में वर्ष 2030 एजेंडा और SDG लक्ष्यों तथा KMGBF के वर्ष 2050 लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए त्वरित कार्रवाई का समर्थन करता है।
कैली फंड (Cali Fund): कोलंबिया के कैली में आयोजित COP 16 में एक नए वित्तीय तंत्र की स्थापना की गई, जिसे ‘कैली फंड’ के नाम से जाना जाता है।
यह पहल आनुवंशिक अनुक्रमों का उपयोग करने वालों तथा इन संसाधनों की उत्पत्ति वाले समुदायों के बीच उचित लाभ-साझाकरण के लिए एक ढाँचा तैयार करके डिजिटल आनुवंशिक डेटा के बढ़ते महत्त्व को संबोधित करती है।
समतापूर्ण लाभ-साझाकरण के कन्वेंशन के मूल सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए, कोष ने प्रत्यक्ष संवितरण और सरकारी चैनलों दोनों का उपयोग करते हुए, अपने संसाधनों का कम-से-कम 50% स्वदेशी लोगों और स्थानीय समुदायों को देने की प्रतिबद्धता जताई है।
सिंथेटिक बायोलॉजी (Synthetic Biology): सिंथेटिक बायोलॉजी COP 16 में एक प्रमुख विषय था, जिसमें जोखिमों पर विचार करते हुए इसके संभावित लाभों पर ध्यान दिया गया।
सिंथेटिक बायोलॉजी में विकासशील देशों की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए, COP 16 क्षमता निर्माण, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण तथा ज्ञान-साझाकरण के लिए एक विषयगत कार्य योजना पेश करता है।
यह पहल नवाचार को बढ़ावा देने तथा जैव विविधता की रक्षा के लिए सिंथेटिक बायोलॉजी प्रौद्योगिकियों का सुरक्षित रूप से लाभ उठाने में देशों की सहायता करती है।
स्वदेशी प्रतिनिधित्व: जैव विविधता पर चर्चा में स्वदेशी समूहों को शामिल करने वाली एक सहायक संस्था की स्थापना की गई, जिसमें संरक्षण में उनकी भूमिका को मान्यता दी गई।
पारिस्थितिकी या जैविक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण समुद्री क्षेत्र (Ecologically or Biologically Significant Marine Areas- EBSA): COP-16 पारिस्थितिकी या जैविक रूप से महत्त्वपूर्ण समुद्री क्षेत्रों (EBSA) की पहचान करने के लिए एक नई तथा विकसित प्रक्रिया पर सहमत हुआ।
CBD के अंतर्गत EBSA, जो महासागर के सबसे महत्त्वपूर्ण तथा संवेदनशील भागों की पहचान करता है, पर कार्य, वर्ष 2010 में शुरू हुआ तथा महासागर संबंधी कार्य का एक केंद्रीय क्षेत्र बन गया।
आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ: आक्रामक विदेशी प्रजातियों पर COP 16 का निर्णय जैव विविधता हानि के शीर्ष पाँच प्रत्यक्ष चालकों में से एक को संबोधित करता है तथा विकासशील देशों के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग, क्षमता निर्माण एवं तकनीकी सहायता की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
इसमें आक्रामक विदेशी प्रजातियों के प्रबंधन के लिए दिशा-निर्देश प्रस्तावित किए गए हैं, जिनमें ई-कॉमर्स, बहु-मानदंड विश्लेषण पद्धतियाँ और अन्य मुद्दे शामिल हैं।
जैविक विविधता अभिसमय (CBD)
जैविक विविधता अभिसमय (CBD), जिसे ‘बायोडाइवर्सिटी कन्वेंशन’ या UNCBD के नाम से भी जाना जाता है, एक बहुपक्षीय संधि है, जिसका उद्देश्य है:
जैविक विविधता का संरक्षण (आनुवंशिक विविधता, प्रजाति विविधता और आवास विविधता)।
जैविक विविधता का सतत् उपयोग।
आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से उत्पन्न होने वाले लाभों का उचित एवं न्यायसंगत बँटवारा।
CBD को 5 जून, 1992 को रियो पृथ्वी शिखर सम्मेलन में हस्ताक्षर के लिए प्रस्तावित किया गया था तथा यह 29 दिसंबर, 1993 को लागू हुआ था।
यह कानूनी रूप से बाध्यकारी है तथा वर्ष 196 देशों द्वारा इसका अनुमोदन किया गया है; संयुक्त राज्य अमेरिका एकमात्र संयुक्त राष्ट्र सदस्य देश है, जिसने इसका अनुमोदन नहीं किया है।
इसका सचिवालय मॉन्ट्रियल, कनाडा में अवस्थित है।
शासी निकाय:‘काॅफ्रेंस ऑफ पार्टीज’(COP)अनुसमर्थनकर्ता राष्ट्रों से मिलकर बना होता है, जो कार्यान्वयन की देखरेख करते है।
CBD के अंतर्गत प्रोटोकॉल
कार्टाजेना प्रोटोकॉल (वर्ष 2003): जीवित संशोधित जीवों (Living Modified Organisms- LMO) की सीमापार आवाजाही को नियंत्रित करता है।
नागोया प्रोटोकॉल (वर्ष 2010): आनुवंशिक संसाधनों तक पहुँच तथा लाभों के उचित बँटवारे के लिए एक रूपरेखा निर्धारित करता है।
प्रमुख पहल एवं लक्ष्य
आईची जैव विविधता लक्ष्य (वर्ष 2011 से वर्ष 2020): जैव विविधता को बचाने के लिए 20 लक्ष्यों वाली 10-वर्षीय रणनीतिक योजना।
कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता रूपरेखा (GBF) (वर्ष 2022): COP 15 में अपनाई गई यह रूपरेखा वर्ष 2030 तक पृथ्वी के 30% हिस्से की सुरक्षा के लिए 4 लक्ष्य और 23 उपलक्ष्य निर्धारित करती है, जिसका उद्देश्य पारिस्थितिकी तंत्र के क्षरण को रोकना एवं आईची लक्ष्यों को प्रतिस्थापित करना है।
भारत COP 16 से CBD तक
भारत ने KMGBF लक्ष्यों के अनुरूप अपनी अद्यतन राष्ट्रीय जैव विविधता रणनीति और कार्य योजना (National Biodiversity Strategy and Action Plan- NBSAP) प्रस्तुत की है।
भारत के जैव विविधता लक्ष्य वर्ष 2030 तक जैव विविधता की हानि को रोकने पर केंद्रित हैं तथा वर्ष 2050 तक प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने की दीर्घकालिक दृष्टि रखते हैं।
भारत ने वर्ष 2025-30 तक जैव विविधता और संरक्षण के लिए 81,664 करोड़ रुपये के अनुमानित व्यय की घोषणा की, जो वर्ष 2018-22 तक व्यय किए गए 32,207 करोड़ रुपये से अधिक है।
भारत ने अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अंतरराष्ट्रीय वित्त की आवश्यकता पर बल दिया तथा कहा कि कुल 200 बिलियन डॉलर के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए 30 बिलियन डॉलर के अंतरराष्ट्रीय वित्तपोषण की आवश्यकता है।
राष्ट्रीय जैव विविधता रणनीति और कार्य योजना (National Biodiversity Strategy and Action Plan- NBSAP)
भारत ने कोलंबिया में जैविक विविधता अभिसमय पर COP 16 के दौरान वर्ष 2024-2030 के लिए अपनी राष्ट्रीय जैव विविधता रणनीति और कार्य योजना (NBSAP) का अनावरण किया है।
यह अद्यतन योजना भारत के जैव विविधता संरक्षण प्रयासों में एक महत्त्वपूर्ण विकास को दर्शाती है, जो वर्ष 1999 की इसकी पहली रणनीति और उसके बाद के संशोधनों पर आधारित है।
NBSAP की मुख्य विशेषताएँ
रणनीतिक रूपरेखा
जैव विविधता संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करता है।
संसाधनों के सतत् उपयोग को बढ़ावा देता है।
समान लाभ-साझाकरण सुनिश्चित करता है।
कार्यान्वयन संरचना: तीन मुख्य विषयों पर 23 राष्ट्रीय जैव विविधता लक्ष्य निर्धारित किए गए है:
जैव विविधता के खतरे में कमी
संसाधनों का सतत् प्रबंधन
कार्यान्वयन उपकरण में सुधार।
कार्यान्वयन निकाय: केंद्रीयपर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) केंद्रीय समन्वय एजेंसी के रूप में।
वैश्विक संरेखण: जैव विविधता हानि को रोकने और इसे समृद्ध करने के लिए कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क के वर्ष 2030 लक्ष्यों के साथ सामंजस्य स्थापित करता है।
भारत के अद्यतन NBSAP में प्रमुख लक्ष्य
संरक्षण लक्ष्य: भारत ने वर्ष 2030 तक अपने स्थलीय और समुद्री क्षेत्रों के 30% हिस्से का संरक्षण करने का संकल्प लिया है, जिसमें जैव विविधता से समृद्ध तथा पारिस्थितिकी दृष्टि से महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर विशेष जोर दिया जाएगा।
पारिस्थितिकी तंत्र का पुनर्स्थापन: वनों तथा आर्द्रभूमि जैसे क्षरण हो चुके पारिस्थितिकी तंत्रों को पुनर्स्थापित करने तथा तटीय एवं समुद्री क्षेत्रों का स्थायी रूप से प्रबंधन करने की दिशा में प्रयास किए जाएँगे।
खतरों में कमी: इसमें आक्रामक प्रजातियों, प्रदूषण, जलवायु प्रभावों और भूमि-उपयोग परिवर्तनों का प्रबंधन करना शामिल है, जिसका उद्देश्य जैव विविधता को लगभग शून्य नुकसान पहुँचाना है।
नीतिगत रूपरेखा और कार्यान्वयन दृष्टिकोण
भारत की जैव विविधता नीति रूपरेखा, 2002 के जैविक विविधता अधिनियम और इसके हालिया संशोधनों द्वारा निर्देशित, संरक्षण के लिए एक मजबूत संरचना निर्धारित करती है।
राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण, राज्य बोर्ड तथा स्थानीय प्रबंधन समितियों के साथ तीन-स्तरीय प्रणाली, अद्यतन NBSAP के कार्यान्वयन का समर्थन करेगी।
शासन: केंद्रीयपर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) भारत के जैव विविधता प्रयासों का समन्वय करता है।
‘संपूर्ण सरकार और संपूर्ण समाज’ का दृष्टिकोण (Whole-of-Government and Whole-of-Society Approach): भारत का दृष्टिकोण सरकार, क्षेत्रों और समुदायों के बीच सहयोग पर जोर देता है।
स्थानीय समुदाय की भागीदारी: योजना पारिस्थितिकी तंत्र आधारित प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करते हुए नीचे से ऊपर तक कार्यान्वयन पर जोर देती है।
भारत की संरक्षण पहल एवं उपलब्धियाँ
भारत ने जैव विविधता संरक्षण में उल्लेखनीय प्रगति की है, वर्ष 2014 से अपने रामसर स्थलों को 26 से बढ़ा करके 85 कर दिया है तथा अनुमान है कि यह 100 स्थलों तक पहुँच जाएगा।
भारत ने ‘इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस’ की भी शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य के संकेतक के रूप में प्रमुख बिग कैट प्रजातियों की रक्षा करना है।
नदी बेसिन तथा तटीय प्रबंधन में भारत के प्रयासों में उच्च जैव विविधता वाले पारिस्थितिकी तंत्रों को प्राथमिकता दी जाती है।
भारत में जैव विविधता संरक्षण की चुनौतियाँ
नीति क्रियान्वयन में कमी: हालाँकि लक्ष्य महत्त्वाकांक्षी हैं, जैव विविधता नीतियों को लागू करने में विसंगतियाँ प्रगति में बाधा डालती हैं।
विकास बनाम पर्यावरण: पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ और प्रतिपूरक वनरोपण अक्सर देशी पारिस्थितिकी प्रणालियों पर वृक्षारोपण को प्राथमिकता देते है।
सीमित प्रजातियों पर ध्यान: संरक्षण प्रयासों में संरक्षित क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जाती है, जिससे इन क्षेत्रों के बाहर कमजोर प्रजातियाँ असुरक्षित रह जाती हैं।
कमजोर कानून: वर्तमान पर्यावरण कानून व्यापक आवास संरक्षण और पारिस्थितिकी तंत्र बहाली के लिए अपर्याप्त है।
आगे की राह
कार्यान्वयन को मजबूत करना: एजेंसियों के बीच समन्वय बढ़ाएँ और जमीनी स्तर पर नीति कार्यान्वयन सुनिश्चित करना।
पारिस्थितिकी तंत्र आधारित वनरोपण को बढ़ावा देना: एकल-फसल वृक्षारोपण की तुलना में देशी प्रजातियों और आवास पुनर्स्थापन पर ध्यान केंद्रित करना।
संरक्षण क्षेत्र का विस्तार करना: संरक्षित क्षेत्रों से परे प्रजातियों और पारिस्थितिकी तंत्रों को शामिल करने के लिए संरक्षण प्रयासों को व्यापक बनाना।
पर्यावरण कानूनों को सख्त बनाना: प्राकृतिक आवास संरक्षण को प्राथमिकता देने के लिए कानून को अद्यतन करना।
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