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Lokesh Pal November 01, 2024 05:15 47 0
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ‘सोसाइटी फॉर एनलाइटनमेंट एंड वॉलंटरी एक्शन’ बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले के निर्णय में, बाल विवाह के प्रति एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है, जो कि दंड व्यवस्था के वर्तमान प्रावधानों से परे है।
बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 (PCMA)
निरस्तीकरण बनाम तलाक (Annulment vs Divorce)
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बाल विवाह से निपटने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण को अपनाने की आवश्यकता है जिसमें शिक्षा, सामुदायिक सहभागिता और प्रणालीगत सुधारों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। कानूनी दंड से परे जाकर, हम ऐसा माहौल विकसित कर सकते हैं जो बच्चों के अधिकारों की रक्षा करता हो और लैंगिक समानता को बढ़ावा देता हो, जिससे अंततः एक स्वस्थ और अधिक समतापूर्ण समाज का निर्माण हो सके।
मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न
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