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बाल विवाह पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

Lokesh Pal November 01, 2024 05:15 47 0

संदर्भ: 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ‘सोसाइटी फॉर एनलाइटनमेंट एंड वॉलंटरी एक्शन’ बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले के निर्णय में, बाल विवाह के प्रति एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है, जो कि दंड व्यवस्था के वर्तमान प्रावधानों से परे है।

भारतीय दंड व्यवस्था  की वर्तमान प्रवृत्ति 

रोकथाम और अभियोजन प्रतिक्रिया (Prevention And Prosecution Response)

  • संस्थागत प्रतिक्रिया (Institutional Response) : यह मुख्य रूप से रोकथाम और अभियोजन पर केंद्रित रही है, जिसका उदाहरण हाल ही में असम में उन पुरुषों की सामूहिक गिरफ्तारी है जिनकी पत्नियाँ विवाह के समय नाबालिग थी।

बाल विवाह में कमी (Declining Child Marriages)

  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंँकड़ों के अनुसार, 18 वर्ष से पहले विवाहित 20-24 वर्ष की महिलाओं का प्रतिशत वर्ष 2005 में 47.4 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2016 में 26.8 प्रतिशत हो गया और वर्ष 2021 में यह और अधिक घटकर 23.3 प्रतिशत हो गया।
    • हालाँकि, वर्ष 2030 तक बाल विवाह को समाप्त करने से संबंधित संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्य (SDG) को प्राप्त करना कठिन प्रतीत होता है।

बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 (PCMA)

  • वर्ष 2006 के बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत, “बाल विवाह” को ऐसे विवाह के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसमें या तो पति 21 वर्ष से कम आयु का हो या पत्नी 18 वर्ष से कम आयु की हो।
  • ऐसे विवाह को “अमान्य” माना जाता है, जिसका अर्थ है कि जो पक्ष अधिनियम के लागू होने के बाद  बाल विवाह की आयु वर्ग का था, वह न्यायालय से उस विवाह को अमान्य घोषित करने (या निरस्त करने) की मांग कर सकता है।
  • हालांकि जब तक न्यायालय द्वारा यह निरस्तीकरण नहीं हो जाता, तब तक उसका विवाह वैध और प्रभावी बना रहता है।

निरस्तीकरण बनाम तलाक (Annulment vs Divorce)

  • ‘तलाक’ से तात्पर्य है कि विवाह कुछ समय तक अस्तित्व में रहा, उसके बाद उसे विच्छेदित (Dissolved) कर दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप दोनों पक्षों को तलाकशुदा के रूप में वर्गीकृत किया गया।
    • तलाक का आधार: तलाक के लिए प्रासंगिक व्यक्तिगत कानून के आधार पर क्रूरता या व्यभिचार जैसे विशिष्ट आधारों का होना आवश्यक है।
  • विवाह को निरस्त करने की प्रक्रिया में विवाह को ऐसे माना जाता है जैसे कि वह कभी हुआ ही नहीं, तथा व्यक्तियों को अविवाहित माना जाता है।
    • निरस्तीकरण के आधार: बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 (PCMA) के अंतर्गत निरस्तीकरण के लिए, किसी व्यक्ति को केवल यह सिद्ध करना होगा कि उसका बाल विवाह हुआ था और वह निरस्तीकरण की मांग करने के लिए कानूनी आयु सीमा के अंतर्गत था।
  • बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 (PCMA) नाबालिग वर्ग को अतिरिक्त नागरिक उपचार भी प्रदान करता है, जिसमें भरण-पोषण, निवास आदेश, तथा विवाह के दौरान आदान-प्रदान किए गए उपहारों को पुनः वापस करना शामिल है।

बाल विवाह से निपटने में की जाने वाली आपराधिक कार्रवाई से संबंधित चुनौतियाँ 

  • गोपनीयता व प्रभावी सहायता तंत्र का अभाव: यदि कोई लड़की विवाह को रद्द या निरस्त करने का प्रयास करती है तो कानूनी तंत्र (Legal System) को इस बात की जानकारी उपलब्ध हो जाएगी कि उसका बाल विवाह हुआ है।
    • इन आपराधिक प्रावधानों (POCSO, BNS, PCMA) का प्रयोग लड़की के पूरे परिवार के विरुद्ध किया जा सकता है, जिससे उसके व उसके परिवार के लिए संकट की स्थित उत्पन्न हो सकती है।
    • बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 (PCMA)  के तहत बाल विवाह कराना और उसे बढ़ावा देना दोनों ही आपराधिक कृत्य हैं।
  • स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच में बाधा: यह कानूनी तंत्र यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच में भी बाधा उत्पन्न कर सकता है, क्योंकि ऐसी सेवाएँ प्राप्त करने के लिए अप्रत्यक्ष रूप से उसके परिवार को आपराधिक दायित्व का सामना करना पड़ सकता है।
  • स्व-प्रेरित विवाह को प्रोत्साहन : कुछ लड़कियाँ माता-पिता के दबाव या दुर्व्यवहार के कारण विवाह से इनकार कर देती हैं, जिसके परिणामस्वरूप वे स्व-प्रेरित विवाह (Self-Initiated Marriages) कर लेती हैं।
    • एक अध्ययन के अनुसार,  बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 (PCMA) के आपराधिक प्रावधानों का प्रयोग, परिवार की सहमति से किये गए विवाहों/अरेंज मेरिज की तुलना में स्व-प्रेरित विवाहों में दोगुने से भी अधिक किया गया।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का महत्व (Significance Of The Supreme Court Judgement):

  • आपराधिक दंड की अपेक्षा पीड़ित की सहायता पर केंद्रित दृष्टिकोण: 
    • इस निर्णय में केवल अपराधियों को दंडित करने पर ही नहीं, बल्कि  बाल विवाह के पीड़ितों को होने वाली क्षति को संबोधित करने पर भी जोर दिया गया है, तथा पीड़ित-केंद्रित दृष्टिकोण को सुनिश्चित किया गया है।
  • बाल विवाह से निपटने के लिए व्यापक दृष्टिकोण:
    • यह निर्णय बाल विवाह विरोधी प्रयासों के दायरे का विस्तार करता है, तथा ऐसे उपायों के पक्ष में  है जो पहले से ही ऐसी विवाह व्यवस्था में रह रहे लोगों को पर्याप्त सहायता प्रदान करने हेतु प्रतिबद्ध हैं।
  • विशेष योजनाएँ : आत्मनिर्भरता को बढ़ाना 
    • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय में बाल विवाह को निरस्त करने या इससे बाहर आने वाली महिलाओं के लिए कौशल विकास, व्यावसायिक प्रशिक्षण और आर्थिक स्थिरता पर केंद्रित एक विशेष योजना शुरू करने की बात कही गई है।
  • पुनर्वास और क्षतिपूर्ति/मुआवजा: 
    • इसमें पुनर्वास सेवाओं की आवश्यकता पर भी बल दिया गया है तथा साथ ही इन महिलाओं के लिए पीड़ित क्षतिपूर्ति/मुआवजा योजनाओं (Victim Compensation Schemes) के अंतर्गत इनके  लिए क्षतिपूर्ति पर भी विचार किया गया है।
  • कार्यवाही करना/फॉलो-अप कॉल: 
    • इसके अलावा, पीड़ित को अपने मूल परिवार में पुनः एकीकरण को सुगम बनाने के लिए अनुवर्ती सहायता (Follow-Up Support) भी प्रदान की जानी चाहिए तथा यह भी जाँच की जानी चाहिए कि क्या इन महिलाओं को उनके परिवारों द्वारा किसी प्रकार से परेशान तो नहीं किया जा रहा है।
  • बालिकाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक बनाना: 
    • कुछ महिलाएँ अपनी शादी को समाप्त नहीं करना चाहती हैं, लेकिन प्रजनन स्वास्थ्य, कार्य और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में अपने अधिकारों का दावा करने के लिए उन्हें समर्थन देने  की आवश्यकता है। 
    • इससे वे अपने वैवाहिक जीवन में सशक्त महसूस करेगी, और एक आम महिला की भांति स्वतंत्र जीवन का आनंद ले सकेंगी।

निष्कर्ष

बाल विवाह से निपटने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण को अपनाने की आवश्यकता है जिसमें शिक्षा, सामुदायिक सहभागिता और प्रणालीगत सुधारों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। कानूनी दंड से परे जाकर, हम ऐसा माहौल विकसित कर सकते हैं जो बच्चों के अधिकारों की रक्षा करता हो और लैंगिक समानता को बढ़ावा देता हो, जिससे अंततः एक स्वस्थ और अधिक समतापूर्ण समाज का निर्माण हो सके।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

प्रश्न. “बाल विवाह को अपराध घोषित करने से विशेषकर समाज की मुख्य धारा से दूर रहने वाले लोगों के संदर्भ में, अनापेक्षित सामाजिक परिणाम सामने आ सकते हैं।” इस कथन के आलोक में, भारत में बाल विवाह को संबोधित करने के लिए दंडात्मक कानूनी उपायों के प्रयोग से संबंधित चिंताओं पर चर्चा कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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