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नीलगिरि साझा वन प्रदेश : संरक्षण हेतु बहु-हितधारक दृष्टिकोण की आवश्यकता

Lokesh Pal November 02, 2024 05:30 39 0

संदर्भ: 

नीलगिरि, दक्षिण भारत में अवस्थित पारिस्थितिकी रूप से एक समृद्ध क्षेत्र है। यह अपनी अद्वितीय एवं विशिष्ट वनस्पतियों और जीव-जंतुओं की दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। इस संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण हेतु स्थानीय समुदायों, सरकार और हितधारकों द्वारा सहयोगात्मक संरक्षण की आवश्यकता है।

नीलगिरि बायोस्फीयर रिजर्व का अवलोकन 

  • नीलगिरि बायोस्फीयर यूनेस्को द्वारा नामित या चिन्हित भारत का प्रथम बायोस्फीयर है, जिसका विस्तार कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु में 5,500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में है। 
  • यह 2,637 मीटर ऊँची डोड्डाबेट्टा चोटी से लेकर 260 मीटर तक गहरी मोयार घाटी जैसे विविध परिदृश्यों का प्रतिनिधित्व करता है। 
  • यह क्षेत्र अद्वितीय वनस्पति और जीवों का निवास स्थल है जो कहीं अन्यत्र नहीं पाए जाते हैं। जिनमें इरुला जनजाति द्वारा औषधीय रूप में उपयोग किया जाने वाला ‘बेओलेपिस नर्वोसा’ (Baeolepis nervosa), नीलगिरि चिलप्पन (Nilgiri Chilappan) और ‘स्टार-आइड बुश फ्रॉग’ (Star-Eyed Bush Frog) शामिल हैं।

मानवीय गतिविधियाँ : नीलगिरि बायोस्फीयर की नवीन चुनौतियाँ

  • हाल ही में नीलगिरि बायोस्फीयर में मानवीय गतिविधियों में वृद्धि देखी गई है। मुख्य रूप से औपनिवेशिक काल के चाय बागानों के लिए प्रसिद्ध इस क्षेत्र में हाल ही में कृषि और पर्यटन क्षेत्र में वृद्धि देखी जा रही है। हालाँकि ये दोनों ही उद्योग आवश्यक आजीविका के अवसर प्रदान करते हैं, परंतु नवीन चुनौतियाँ भी प्रस्तुत करते हैं।
  • पर्यटन हब  : नीलगिरी क्षेत्र में, पर्यटन स्थानीय समुदायों और सरकार के प्रयासों के बावजूद भी जारी है।  यहाँ दिन भर, घूमने आने वाले पर्यटक अपशिष्ट वृद्धि करते हैं और यातायात संबंधी भीड़ में योगदान देते हैं।
  • कृषि गतिविधियाँ व कीटनाशक : इसके अतिरिक्त, किसान भारी मात्रा में कीटनाशकों और उर्वरकों का उपयोग कर रहे हैं जिससे सर्वप्रथम स्वच्छ जल के स्रोत दूषित हो रहे हैं, जिसका प्रभाव यहाँ के संवेदनशील जीव-जंतुओं पर भी पड़ रहा है ।
  • टोडा समुदाय के निवास पर्यटक स्थलों में तब्दील : टोडा समुदाय के लोग, जो हज़ारों वर्षों से ‘ब्लू माउंटेन’ (Blue Mountains) में निवास करते आए हैं, अब उनके गाँव पर्यटकों के लिए लोकप्रिय स्थल बन गए हैं।
    • चिंताजनक स्थिति यह है कि वर्तमान समय में केवल कुछ ही टोडा समुदाय के लोग शेष बचे हैं, जो अपने पूर्वजों के पारिस्थितिकी ज्ञान के साथ एक अत्यधिक संवेदनशील संबंध को बनाए हुए हैं।
  • बदलते समय में वन्यजीवों का अनुकूलन : वन्यजीवों की बढ़ती आबादी के कारण वन्य जीव जंतु संरक्षित क्षेत्रों से बाहर भी विचरण कर रहे हैं। इसका एक प्रमुख उदाहरण है- तेंदुआ/एलुसिव लेपर्ड (Elusive Leopard), जो पालतू कुत्तों का शिकार करने लगा है।
    • चाय के बागानों में भारतीय गौर (इंडियन बाइसन), कचरे के ढेरों में घूमते जंगली सूअर तथा रात के समय लोगों के घरों के आस-पास भालू और तेंदुओं को घूमते हुए देखा जा सकता है।

सरकार व संगठनों द्वारा उठाए गए महत्त्वपूर्ण  कदम

  • इन तीव्र हुए परिवर्तनों के प्रत्युत्तर में, स्थानीय समुदाय अपने आस-पास के पर्यावरण की रक्षा के लिए एक साझा दृष्टिकोण पर सहमत हुए हैं।
  • “क्लीन कुन्नूर” (Clean Coonoor) जैसे नागरिक समाज संगठन सार्वजनिक-निजी भागीदारी के द्वारा वातावरण को सतत व विविधता से परिपूर्ण बनाए रखने की दिशा में प्रयासरत है, जो ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए एक चक्रीय अर्थव्यवस्था (Circular Economy) को बढ़ावा देता है।

चक्रीय अर्थव्यवस्था (Circular Economy): 

  • यह संसाधन-बचत (Resource-Saving) और पर्यावरण अनुकूल समाज की स्थापना के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपाय के रूप में उत्पादन, संचलन और उपभोग में कटौती, पुनः उपयोग और पुनर्चक्रण की सभी गतिविधियों को संदर्भित करती है। 

रैखिक अर्थव्यवस्था (Linear Economy) : 

  • एक ऐसी प्रणाली है जिसमें लोग एक उत्पाद खरीदते हैं, उसका उपयोग करते हैं और फिर उसे छोड़ देते हैं।

  • राज्य सरकार और जिला प्रशासन द्वारा भी भी नीलगिरि क्षेत्र के लिए महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए जा रहे हैं।
    • उनकी योजनाओं का उद्देश्य कार्बन तटस्थता, प्लास्टिक अपशिष्ट पर प्रतिबंध, नीलगिरि तहर (Nilgiri Tahr) जैसी स्थानिक प्रजातियों का संरक्षण तथा स्थानिक वनस्पतियों को पुनर्स्थापित करने हेतु ‘लैंटाना कैमरा’ और चीड़ जैसे आक्रामक प्रजाति के पौधों को कम करना है।

नीलगिरि तहर (Nilgiri Tahr)  :

  • नीलगिरि तहर उष्णकटिबंधीय पर्वतीय घास के मैदानों, शोला वनों और चट्टानी तथा अत्यधिक ऊंँचाई वाले क्षेत्रों में पाया जाता है। नीलगिरि तहर को आसानी से ऊर्ध्वाधर ढलानों पर चलने के लिए जाना जाता है।

‘अंतर्राष्ट्रीय बायोस्फीयर रिजर्व दिवस’ : 

  • प्रतिवर्ष 3 नवंबर को ‘अंतर्राष्ट्रीय बायोस्फीयर रिजर्व दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इसे वर्ष 2021 में  संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा घोषित किया गया था।

आगे की राह

  • सरकार के साथ सामुदायिक भागीदारी : सरकार ही एकमात्र ऐसी संस्था नहीं हो सकती जो जैवमंडल की सुरक्षा के लिए उत्तरदायी हो अतः सामुदायिक सहभागिता बढ़ाने के प्रयास किए जाने चाहिए।
  • पर्यटन उद्योग (बाजार): पर्यटन उद्योग को संधारणीय प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए प्रावधान करने चाहिए।
  • समाज: लोगों को इन जैवमंडलों के प्रति जवाबदेह होने की आवश्यकता है तथा उन्हें इस बात को जानने की आवश्यकता है कि  इनकी सुरक्षा करना भी उनका मौलिक कर्तव्य है।

निष्कर्ष 

नीलगिरि बायोस्फीयर में संरक्षण के लिए तत्काल सहयोग की आवश्यकता है। इस बात पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए कि इस अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा के लिए स्थानीय समुदायों, सरकार और हितधारकों की साझा प्रतिबद्धता की आवश्यकता है, ताकि भविष्य की पीढ़ियों के लिए इसकी स्थिरता को सुनिश्चित की जा सके।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न 

प्रश्न. जैव विविधता के संरक्षण के लिए समाज, राज्य और बाजार को शामिल करते हुए बहु-हितधारक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। नीलगिरि बायोस्फीयर में संरक्षण प्रयासों के संदर्भ में इस कथन पर चर्चा कीजिये। 

(10 अंक, 150 शब्द)

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