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आधार बायोमेट्रिक डेटा तक पहुँच तथा गोपनीयता का अधिकार

Lokesh Pal November 06, 2024 05:30 40 0

संदर्भ :

भारत में आधार अधिनियम, 2016 के माध्यम से बायोमेट्रिक डेटा की सुरक्षा ने मृतक व्यक्तियों की पहचान के लिए इसके उपयोग पर चर्चा प्रारंभ कर दी है, मुख्य रूप से उन मामलों में जहाँ परिवार का पता नहीं चल पाता है। हालाँकि, इससे निजता के अधिकारों और गरिमा की आवश्यकता के बीच संतुलन स्थापित करने का एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा सामने आया है।

गोपनीयता संरक्षण में UIDAI  विनियमों की भूमिका

  • भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) व्यक्तियों की निजता के अधिकार की रक्षा करने और व्यक्तिगत डेटा के दुरुपयोग को रोकने के लिए कठोर नियम लागू करता है।
  • आमतौर पर आधार की बायोमेट्रिक और जनसांख्यिकीय जानकारी तक पहुँच प्रतिबंधित है, जिसमें कानून प्रवर्तन भी शामिल है।
  • आधार अधिनियम की धारा-33(1) उच्च न्यायालय या उससे ऊपर के न्यायालय के आदेश द्वारा सीमित जानकारी के प्रकटीकरण की अनुमति देती है।
  • हालाँकि, धारा-29(1) और धारा-33 किसी भी परिस्थिति में मुख्य बायोमेट्रिक डेटा-फिंगरप्रिंट तथा आईरिस स्कैन को साझा करने पर सख्ती से रोक लगाती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि व्यक्तिगत गोपनीयता को प्राथमिकता दी जाए।

एक कानूनी दुविधा

  • निजता का अधिकार आवश्यक है, लेकिन कुछ जाँचों, विशेषतः अज्ञात मृतक व्यक्तियों से जुड़ी जाँचों में एक अनोखी दुविधा का सामना करना पड़ता है। 
  • बायोमेट्रिक डेटा जैसे कि फिंगरप्रिंट तक पहुँच अज्ञात शवों की पहचान में महत्त्वपूर्ण रूप से सहायक हो सकती है, जिससे मृत्यु में सम्मान के संवैधानिक अधिकार को पूरा किया जा सकता है। 
  • भारतीय न्यायालयों ने मृतक व्यक्तियों के साथ सम्मानजनक व्यवहार के महत्त्व को रेखांकित किया है तथा मृत्यु के बाद शवों के साथ मानवीय व्यवहार और प्रवासी श्रमिकों के अवशेषों को सम्मानजनक तरीके से वापस भेजने जैसे मामलों पर निर्णय दिए हैं। 
  • मृत्यु में सम्मान के अधिकार के साथ निजता का संतुलन, प्राण एवं दैहिक जीवन के अधिकार के भीतर एक जटिल संघर्ष को उजागर करता है।

अज्ञात शव और संबंधित चुनौतियाँ

  • अज्ञात शवों के मामलों में प्रायः आर्थिक रूप से वंचित पृष्ठभूमि, दैनिक वेतन भोगी, प्रवासी या सीमित पारिवारिक संबंध वाले व्यक्ति शामिल होते हैं। 
  • ये व्यक्ति प्रायः आपराधिक न्याय प्रणाली के भीतर अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के प्रति संवेदनशील होते हैं। 
  • जब वे घर से दूर अज्ञात रूप से मर जाते हैं, तो परिवार को सूचित करने और सम्मानजनक अंतिम संस्कार की संभावना कम हो जाती है। 
  • पुलिस को पहचान में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि ये शव आमतौर पर बेघर व्यक्तियों, प्रवासी मजदूरों, दुर्घटना के शिकार लोगों या मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों वाले व्यक्तियों के होते हैं, जो प्रायः पहचान दस्तावेजों या मोबाइल फोन के बिना पाए जाते हैं। 
  • अज्ञात शवों के लिए मानक प्रक्रिया में शव की तस्वीर लेना, विशिष्ट विशेषताओं को नोट करना, साक्ष्य एकत्रित करना, CCTV फुटेज का विश्लेषण करना एवं आपराधिक रिकॉर्ड के साथ फिंगरप्रिंट का मिलान करना शामिल है। 
  • हालाँकि, पुलिस के उपयोग के लिए सीमित और प्रायः ‘गैर-डिजिटाइज्ड फिंगरप्रिंट’ डेटाबेस उपलब्ध होने के कारण यह प्रक्रिया अपर्याप्त हो जाती है।

वर्तमान डेटा संग्रह प्रणाली की सीमाएँ

  • कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए उपलब्ध ‘फिंगरप्रिंट डेटाबेस’ आमतौर पर ज्ञात अपराधियों के रिकॉर्ड तक ही सीमित होते हैं।
  • कई राज्यों ने इन रिकॉर्ड्स को पूरी तरह से डिजिटल नहीं किया है, जिससे ‘क्रॉस-रेफ़रेंसिंग’ की दक्षता में बाधा आती है और जाँच में देरी होती है।
  • आधार जैसे अधिक व्यापक डेटाबेस तक पहुँच से पहचान में तेजी आएगी, परिवारों द्वारा अंतिम संस्कार किए जा सकेंगे और विशेषतः हत्या के मामलों में समय पर जाँच की जा सकेगी।
  • हालाँकि आधार अधिनियम, 2016 के कठोर प्रावधान मूल बायोमेट्रिक डेटा को साझा करने के विरुद्ध एक बाधा प्रस्तुत करते हैं।

संयुक्त राज्य अमेरिका 

  • संयुक्त राज्य अमेरिका में कानून प्रवर्तन एजेंसियों को मृतक व्यक्ति पहचान (DPI) सेवाओं जैसे उन्नत पहचान उपकरणों तक पहुँच प्राप्त है । 
  • DPI एल्गोरिदम का लाभ उठाता है और ‘होमलैंड सिक्योरिटी’ एवं रक्षा विभाग सहित व्यापक डेटाबेस तक पहुँच प्रदान करता है। 
  • यह प्रणाली मृतक व्यक्तियों की पहचान करने के लिए पुलिस को बायोमेट्रिक डेटा तक सीमित पहुँच की अनुमति देने की व्यवहार्यता और नैतिक विचारों में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।

पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता

  • आधार अधिनियम, 2016 के बायोमेट्रिक डेटा प्रतिबंध गोपनीयता के लिए महत्त्वपूर्ण हैं, मृतक व्यक्तियों की पहचान से जुड़े मामलों में उन पर पुनर्विचार किया जा सकता है। 
  • प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) के आधार पर मृतक व्यक्तियों के बायोमेट्रिक्स तक सीमित पहुँच प्रदान करना उचित हो सकता है। 
  • धारा-33 के अनुसार, ऐसी पहुँच के लिए उच्च न्यायालय के आदेश की आवश्यकता नहीं होगी, बल्कि इसके स्थान पर इसे क्षेत्राधिकार प्राप्त न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा अधिकृत किया जा सकता है, जिससे उच्च न्यायालयों पर बोझ कम होगा और गोपनीयता संबंधी चिंताओं के बिना मामलों में समय पर समाधान संभव होगा।

निष्कर्ष

अज्ञात मृतक व्यक्तियों की पहचान करना, मृत्यु के पश्चात् भी प्राण एवं गरिमामय जीवन के अधिकार का सम्मान करके संवैधानिक कर्तव्य को पूरा करता है। यह आर्थिक रूप से वंचित या हाशिए पर व्याप्त समुदायों के लिए विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है, जो आपराधिक न्याय प्रणाली में प्रणालीगत बाधाओं का सामना करते हैं। पहचान संबंधी यह दृष्टिकोण न केवल शोकग्रस्त परिवारों का समर्थन करेगा, बल्कि सामाजिक या आर्थिक पृष्ठभूमि की चिंता किए बिना मृतक के साथ सम्मानजनक व्यवहार करके संवैधानिक मूल्यों को भी सुनिश्चित करेगा ।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न 

“मृतक के गरिमामय जीवन का अधिकार जीवित व्यक्ति के गोपनीयता की सुरक्षा के समान ही आवश्यक है।” इस कथन के आलोक में भारत में सार्वजनिक हित के साथ गोपनीयता अधिकारों को संतुलित करने में कानून प्रवर्तन एजेंसियों और न्यायिक निगरानी की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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