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अमेरिकी चुनाव, 2024: भारत और विश्व के लिए संभावित निहितार्थ

Lokesh Pal November 08, 2024 12:54 181 0

संदर्भ

डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीतने के साथ भारत, इस घटनाक्रम पर करीब से नजर रख रहा है, क्योंकि अमेरिका के साथ मजबूत संबंध उसके व्यापार, सुरक्षा और भू-राजनीतिक हितों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

संबंधित तथ्य

  • डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति बनने के लिए आवश्यक 270 इलेक्टोरल कॉलेज वोटों से अधिक वोट जीते हैं।
  • वर्ष 2024 का चुनाव, 2016 में पहली बार संयुक्त राज्य अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने के बाद उनका दूसरा सफल राष्ट्रपति पद का चुनाव है।
  • 78 वर्षीय ट्रंप अनिरंतर कार्यकाल पूर्ण करने वाले केवल दूसरे अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में इतिहास रचेंगे, वे ग्रोवर क्लीवलैंड के साथ शामिल होंगे, जिन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका के 22वें और 24वें राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया था।

ट्रंपोनॉमिक्स (Trumponomics) के बारे में

  • परिभाषा: ‘ट्रंपोनॉमिक्स’ शब्द का प्रयोग अक्सर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा अपनाई गईं आर्थिक नीतियों का वर्णन करने के लिए किया जाता है।
  • ट्रंपोनॉमिक्स के प्रमुख सिद्धांत: आर्थिक संरक्षणवाद, व्यापार घाटे में कमी, श्रमिक संरक्षण, कर कटौती, व्यवसायों पर विनियमन हटाना, आर्थिक विकास को गति देना आदि।

पृष्ठभूमि: ट्रंप के पहले कार्यकाल के मुख्य पहलू (2017–2021)

  • वीजा संबंधी मुद्दे: अपने पहले कार्यकाल के दौरान, ट्रंप ने ‘अमेरिकी खरीदें और अमेरिकी को कार्य पर रखें’ शीर्षक वाले अपने कार्यकारी आदेश के तहत H-1B और L-1 वीजा कार्यक्रमों पर कड़े नियम लागू किए थे।
    • H-1B और L-1 वीजा दोनों के लिए अस्वीकृति दर में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई।
    • H-1B अस्वीकृति दर 4% से बढ़कर 17% हो गई, तथा L-1 अस्वीकृति दर 12% से बढ़कर 28% हो गई। 
    • इसका प्रभाव भारत की आईटी सेवा कंपनियों पर पड़ा, जो उस समय विशेष रूप से इन वीजा पर निर्भर थीं।
      • H-1B वीजा: यह विधेयक अमेरिकी नियोक्ताओं को ‘विशिष्ट व्यवसायों’ में विदेशी पेशेवरों को नियुक्त करने की अनुमति देता है, जिनके लिए विशिष्ट ज्ञान और कम-से-कम स्नातक की डिग्री या समकक्ष अनुभव की आवश्यकता होती है।
      • L-1 वीजा: यह वीजा अंतर-कंपनी स्थानांतरण के लिए है, जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपने विदेशी कार्यालयों से कर्मचारियों को अमेरिकी कार्यालयों में स्थानांतरित करने की अनुमति देता है।
  • अंतरराष्ट्रीय समझौतों से पीछे हटना और वित्तपोषण में कमी
    • पेरिस जलवायु समझौता: ट्रंप ने पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका को यह तर्क देते हुए हटा लिया कि यह अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए अनुचित है।

ट्रंप प्रशासन की प्रथम अवधि की उपलब्धियाँ

  • अब्राहम समझौते (Abraham Accords): ट्रंप ने अब्राहम समझौते की मध्यस्थता की, जिसके परिणामस्वरूप इजरायल और कई अरब देशों (यूएई, बहरीन, सूडान और मोरक्को) के बीच संबंध सामान्य हो गए।
  • ऑपरेशन वार्प सीड (Operation Warp Seed) शुरू किया गया: यह संयुक्त राज्य अमेरिका सरकार द्वारा कोविड-19 टीकों, चिकित्सा और निदान के विकास, विनिर्माण तथा वितरण को सुविधाजनक बनाने एवं तेज करने के लिए शुरू की गई एक सार्वजनिक-निजी भागीदारी थी।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका-मेक्सिको-कनाडा समझौता (USMCA): उत्तरी अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौते (North American Free Trade Agreement- NAFTA) को समाप्त कर दिया गया, तथा इसके स्थान पर एकदम नया संयुक्त राज्य अमेरिका-मेक्सिको-कनाडा समझौता (United States-Mexico-Canada Agreement- USMCA) लागू किया गया।
    • USMCA में अमेरिकी निर्माताओं, ऑटो निर्माताओं, किसानों, डेयरी उत्पादकों और श्रमिकों के लिए कड़े संरक्षण प्रावधान हैं।
  • तेल की कीमतों को स्थिर करना: कोविड-19 के दौरान OPEC (पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन) तेल संकट का समाधान किया गया, जिसके लिए ओपेक (OPEC), रूस और अन्य देशों से प्रतिदिन लगभग 10 मिलियन बैरल उत्पादन में कटौती करने को कहा गया, जिससे वैश्विक तेल की कीमतें स्थिर हो गईं।

    • ईरान परमाणु समझौता: अमेरिका ने ईरान के साथ वर्ष 2015 के परमाणु समझौते को रद्द कर दिया तथा पुनः प्रतिबंध लगा दिए, जिससे मध्य पूर्व में तनाव बढ़ गया।
    • ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (TPP): ट्रंप ने TPP में शामिल होने से मना कर दिया, जो एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ एक व्यापार समझौता था, जिसके बारे में उनका तर्क था कि यह अमेरिका के लिए हानिकारक था।
    • उन्होंने कई संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों की फंडिंग बंद कर दी तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन से अमेरिका हट गया।
  • आर्थिक संरक्षणवाद और व्यापार युद्ध: ट्रंप ने अमेरिकी उद्योगों और नौकरियों को मजबूत करने पर केंद्रित ‘अमेरिका फर्स्ट’ व्यापार नीति एजेंडा अपनाया।
    • अमेरिका ने चीन, यूरोपीय संघ और अन्य देशों पर टैरिफ लगाया।
    • इसका लक्ष्य अमेरिकी व्यापार घाटे को कम करना और अमेरिकी नौकरियों की रक्षा करना था, हालाँकि इससे तनाव एवं व्यापार युद्ध शुरू हुए।
    • अमेरिकी नौकरियों और वेतन की रक्षा के लिए निष्पक्ष व्यापार, सीमित आव्रजन तथा रोजगार संबंधी प्रशिक्षण पर जोर दिया गया।
  • कर कटौती: ट्रंप की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक वर्ष 2017 का टैक्स कट्स एंड जॉब्स एक्ट था, जिसने कॉरपोरेट टैक्स की दरों को 35% से घटाकर 21% कर दिया और व्यक्तियों को कर में कटौती प्रदान की।
    • वर्ष 2024 के राष्ट्रपति अभियान के दौरान, ट्रंप ने अमेरिका-आधारित विनिर्माण के लिए कॉरपोरेट कर की दर में अतिरिक्त कटौती का प्रस्ताव रखा, जिसका लक्ष्य इसे 21% से घटाकर 15% करना था।
  • आप्रवासन: उनके प्रशासन ने अवैध आव्रजन पर भी कड़ा रुख अपनाया, जिसमें शामिल है:-
    • सीमा पर परिवारों को अलग करना।
    • DACA (डेफर्ड एक्शन फॉर चाइल्डहुड अराइवल्स) जैसे कार्यक्रमों को समाप्त करना, जो बच्चों के रूप में अमेरिका आए अनिर्दिष्ट आप्रवासियों की रक्षा करते थे।
    • अमेरिका-मेक्सिको सीमा पर दीवार बनाने के लिए दबाव डाला।
  • भू-राजनीतिक रुख
    • पश्चिम एशिया 
      • इजरायली नीतियों ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान अपनी पश्चिम एशिया नीति को परिभाषित किया।
      • उन्होंने अमेरिका के दूतावास को यरुशलम में स्थानांतरित कर दिया।
      • उन्होंने सीरिया के गोलान हाइट्स पर इजरायल के अवैध कब्जे को भी मान्यता दी थी।
      • उन्होंने वर्ष 2020 में इजरायल-फिलिस्तीन के लिए एक ‘शांति योजना’ का अनावरण किया, लेकिन इसे इजरायल के पक्ष में होने के कारण पूरी तरह से खारिज कर दिया गया।
    • चीन: उन्होंने चीन के प्रति टकरावपूर्ण रुख अपनाया। 
      • उदाहरण: अमेरिका ने वर्ष 2018 में हुआवेई के 5G मोबाइल उपकरणों पर प्रतिबंध लगा दिया था।
    • उत्तर कोरिया: उन्होंने उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग-उन के साथ अभूतपूर्व शिखर सम्मेलन में भाग लेने के कारण सुर्खियाँ बटोरीं, जिसका उद्देश्य परमाणु निरस्त्रीकरण करना था, हालाँकि इन प्रयासों से स्थायी परिणाम नहीं मिले।

संयुक्त राज्य अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव 

  • अप्रत्यक्ष चुनाव: अमेरिका में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से होता है। 
    • नागरिक सीधे राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के लिए नहीं, बल्कि निर्वाचक मंडल के सदस्यों के लिए वोट देते हैं।
  • इलेक्टोरल कॉलेज वोट: ये इलेक्टर फिर राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिए वोट डालते हैं।
  • बहुमत की आवश्यकता: विजेता घोषित होने के लिए उम्मीदवार को 538 इलेक्टोरल कॉलेज वोटों में से 270 जीतने की आवश्यकता होती है।
    • प्रत्येक राज्य को सीनेट और प्रतिनिधि सभा में उनके प्रतिनिधित्व के बराबर संख्या में निर्वाचक दिए गए।
    • यदि किसी भी उम्मीदवार को बहुमत नहीं मिलता है, तो प्रतिनिधि सभा राष्ट्रपति का चुनाव करती है और सीनेट उपराष्ट्रपति का चुनाव करती है।
  • अमेरिकी संविधान में 22वाँ संशोधन: फ्रेंकलिन डी. रूजवेल्ट के चार कार्यकालों के बाद वर्ष 1951 में 22वें संशोधन की पुष्टि की गई।
    • इसमें कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति दो बार से अधिक राष्ट्रपति पद के लिए नहीं चुना जा सकता।
    • यह किसी ऐसे व्यक्ति को भी एक से अधिक बार निर्वाचित होने से रोकता है, जिसने किसी अन्य राष्ट्रपति के कार्यकाल के दो वर्ष से अधिक समय तक सेवा की हो।
  • यद्यपि ट्रंप वर्ष 2025 में दूसरे कार्यकाल के लिए चुने जा रहे हैं, लेकिन 22वाँ संशोधन उन्हें वर्ष 2028 में फिर से चुनाव लड़ने से रोकता है।
    • तकनीकी रूप से, संशोधन को निरस्त या संशोधित किया जा सकता है।
      • प्रस्तावित संशोधन को अमेरिकी सदन और सीनेट दोनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित होना चाहिए।
      • इसके बाद इसे 50 राज्यों में से तीन-चौथाई (38) राज्यों द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए।
    • इस प्रक्रिया की जटिलता और कठिनाई को देखते हुए, निकट भविष्य में संशोधन में बदलाव की संभावना नहीं है।

वर्तमान भारत और अमेरिका संबंध

  • अमेरिका के साथ भारत का व्यापार अधिशेष: भारत अमेरिका के शीर्ष पाँच व्यापारिक साझेदारों में एकमात्र ऐसा देश है, जिसके साथ अमेरिका का व्यापार अधिशेष है, जो 36.74 बिलियन डॉलर है।
    • अमेरिका भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जिसका व्यापार 118.3 बिलियन डॉलर है।
  • सीमित अमेरिकी निर्यात हिस्सा: भारत के शीर्ष 10 व्यापारिक साझेदारों में से एक होने के बावजूद, अमेरिका का भारत के कुल निर्यात में 3% से भी कम हिस्सा है।
  • FDI का प्रमुख स्रोत: अमेरिका भारत के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का सबसे बड़ा स्रोत बना हुआ है, जिसने पिछले वित्त वर्ष में 103 बिलियन डॉलर का योगदान दिया।

डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भारत-अमेरिका संबंधों के सकारात्मक दृष्टिकोण के कारण

  • रक्षा एवं सामरिक संबंध
    • अमेरिका और भारत के लिए चीन की चुनौती: ट्रंप का प्रशासन चीन को ‘रणनीतिक खतरे’ के रूप में लेबल करने वाला पहला प्रशासन था, जिसने बीजिंग के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए गठबंधन को प्रोत्साहित किया, जिसमें वर्ष 2017 में क्वाड (Quad) का गठन भी शामिल था।
      • भारत, जो चीन के साथ लगभग 3,488 किलोमीटर लंबी विवादित सीमा साझा करता है, इस रुख पर बारीकी से नजर रखता है।
    • अमेरिकी सैन्य हार्डवेयर का विस्तार: ट्रंप प्रशासन भारत को और अधिक अमेरिकी सैन्य हार्डवेयर उपलब्ध कराएगा, जिससे दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग को बढ़ावा मिलेगा।
    • खालिस्तानी समूहों पर समर्थन: ट्रंप खालिस्तानी समूहों के खिलाफ कड़ा रुख अपना सकते हैं, जिससे संभावित रूप से ऐसे संगठनों पर कार्रवाई हो सकती है।
  • व्यापार और आर्थिक संबंध
    • व्यापार संबंधों को मजबूत करना: ट्रंप से भारत के साथ अपने सकारात्मक संबंधों को आगे बढ़ाने, व्यापार संबंधों को बढ़ाने और भारतीय कंपनियों के लिए अवसरों को बढ़ाने की उम्मीद है, विशेषकर प्रौद्योगिकी और रक्षा क्षेत्र में।
      • उदाहरण: इस बात की संभावना है कि भारत अमेरिकी बाजार में चीनी आयात का स्थान ले लेगा, क्योंकि वर्ष 2024 के राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान उन्होंने चीन से आयातित वस्तुओं पर 60% टैरिफ लगाने का प्रस्ताव रखा था।
    • मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर नवीनीकृत वार्ता: ट्रंप, एक मुक्त व्यापार समझौते पर वार्ता शुरू करने की योजना बना रहे हैं, जो वर्ष 2019-2020 में सक्रिय थी, लेकिन उनके राष्ट्रपति पद की समाप्ति के बाद रुक गई और जिसे आगे बढ़ाने में बाइडेन ने बहुत कम रुचि दिखाई।
    • ऊर्जा सहयोग: कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लिए भारत पर दबाव डालने के बजाय, ट्रंप भारत को अमेरिकी तेल और LNG में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं।
      • इसमें लुइसियाना में ड्रिफ्टवुड एलएनजी संयंत्र के लिए समझौता ज्ञापन (MOU) पर पुनर्विचार करना शामिल है, जिससे भारत से महत्त्वपूर्ण निवेश आ सकता है।
  • भारत में FPI निवेश में सुधार: चीन के विरुद्ध रणनीतिक अमेरिकी साझेदार के रूप में भारत की स्थिति विदेशी निवेशकों के लिए उसकी सुगमता को बढ़ा सकती है।
    • कुछ विश्लेषकों के अनुसार, भारत की अनुकूल जनसांख्यिकी और संरचनात्मक स्थिरता इसे चीन की धीमी वृद्धि और आर्थिक चुनौतियों की तुलना में एक सुरक्षित निवेश गंतव्य के रूप में पेश करती है।
  • मानवाधिकार और कूटनीति
    • मानवाधिकारों पर कम जाँच: ट्रंप भारत में मानवाधिकार रिकॉर्ड के बारे में कोई टिप्पणी नहीं करते रहे हैं।
      • उदाहरण: जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 को हटाए जाने या पुलवामा आतंकी हमलों के बाद, ट्रंप ने भारत के ‘आत्मरक्षा के अधिकार’ का समर्थन किया था। 
    • NGO और विदेशी योगदान पर कम चिंता: अमेरिका संभवतः विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 से प्रभावित जलवायु और मानवाधिकार NGO के उपचार के संबंध में चिंता नहीं जताएगा, हालाँकि रिपब्लिकन कांग्रेस के सदस्य भारत में संचालित अमेरिकी ईसाई NGO के बारे में पूछताछ कर सकते हैं।
    • कनाडा के साथ कोई कूटनीतिक चिंता नहीं: कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के साथ ट्रंप के पिछले तनावपूर्ण संबंधों को देखते हुए, भारत को ओटावा के साथ चल रहे तनाव, विशेष रूप से निज्जर हत्याकांड के संबंध में वाशिंगटन से किसी भी कूटनीतिक दबाव का सामना नहीं करना पड़ेगा।
      • कनाडा का आरोप: कनाडा ने संसद में घोषणा की कि जून में ब्रिटिश कोलंबिया में सिख अलगाववादी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के पीछे भारत की संलिप्तता के ‘विश्वसनीय आरोप’ हैं।
      • भारत की प्रतिक्रिया: भारत ने इन आरोपों को ‘बेतुका’ बताकर खारिज कर दिया और कनाडा से अपनी सीमाओं के भीतर भारत विरोधी गतिविधियों, विशेष रूप से खालिस्तान समर्थक समूहों को निशाना बनाने पर रोक लगाने का आग्रह किया।
  • अन्य
    • ट्रंप का ग्रीन कार्ड प्रस्ताव: अमेरिकी कॉलेजों के विदेशी स्नातकों को स्वचालित ग्रीन कार्ड प्रदान करने की ट्रंप की योजना भारतीय छात्रों के लिए नए अवसर उत्पन्न कर सकती है, जिससे अमेरिका में रहना और कार्य करना आसान हो जाएगा।
    • फार्मास्यूटिकल्स: भारतीय जेनेरिक फर्मों के लिए मूल्य निर्धारण में सुधार हो सकता है।
      • विनियमन हटाने से अमेरिकी बाजार में भारतीय जेनेरिक दवाओं की पहुँच बढ़ सकती है।
    • स्टॉक और बिटकॉइन: ट्रंप की जीत का दुनिया भर के निवेशकों ने उत्साहपूर्वक स्वागत किया।
      • S&P 500 में 2.5% से अधिक की वृद्धि हुई, जो दो वर्षों में इसकी सबसे बड़ी इंट्राडे बढ़त है। इस आशावादी गति ने भारतीय बाजारों को भी ऊपर उठाया, जिसमें निफ्टी 50 और सेंसेक्स में 1% से अधिक की वृद्धि हुई। 
      • बिटकॉइन 75,000 डॉलर से अधिक के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुँच गया, क्योंकि क्रिप्टो निवेशकों ने ट्रंप की वापसी का जश्न मनाया, जिन्होंने पहले अमेरिका को ‘दुनिया की बिटकॉइन महाशक्ति’ बनाने का संकल्प लिया था।

ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भारत-अमेरिका संबंधों के लिए संभावित चुनौतीपूर्ण मुद्दे

  • व्यापार शुल्क कम करने पर ध्यान केंद्रित करना: ट्रंप 2.0 प्रशासन से ‘अमेरिका-प्रथम रणनीति’ पर जोर देने की उम्मीद है, जिसके तहत उन देशों को दंडित किया जाएगा, जो अमेरिकी उत्पादों एवं सेवाओं पर उच्च कर लगाते हैं।
    • भारत के लिए, टैरिफ में वृद्धि आईटी, फार्मास्यूटिकल्स और टेक्सटाइल जैसे उद्योगों के लिए चुनौती बन सकती है, जो अमेरिकी बाजार पर निर्भर हैं।
    • ट्रंप भारत द्वारा अमेरिकी उत्पादों पर उच्च टैरिफ के विरुद्ध काफी मुखर रहे हैं।
    • उदाहरण
      • अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने खुले तौर पर भारत से हार्ले डेविडसन बाइक पर टैरिफ कम करने को कहा था।
      • उन्होंने भारत से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के निर्यात पर प्रतिबंध हटाने के लिए कहा था।
  • विश्व व्यापार संगठन (WTO) शिकायतें: ट्रंप प्रशासन की WTO में शिकायत दर्ज कराने की प्रवृत्ति, यदि भारत की व्यापार नीतियों या प्रथाओं को उनके प्रशासन के तहत निशाना बनाया जाता है, तो तनाव उत्पन्न कर सकती है।
    • ट्रंप ने इससे पहले भारत पर व्यापार संबंधों में ‘बड़ा उल्लंघनकर्ता’ (Major Abuser) होने का आरोप लगाया था तथा टैरिफ और व्यापार असंतुलन पर प्रकाश डाला था।
  • GSP दर्जा रद्द करना: ट्रंप प्रशासन के पहले कार्यकाल के दौरान, भारत ने सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली (Generalised System of Preferences- GSP) के तहत अपना तरजीही व्यापार दर्जा खो दिया, जिससे उसके लगभग 12% निर्यात पर असर पड़ा है।
    • यह विवाद का विषय बना रह सकता है, जिससे अमेरिकी बाजारों तक भारत की तरजीही पहुँच प्रभावित हो सकती है।

सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली (Generalised System of Preferences- GSP) 

  • यह विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को दी जाने वाली एक तरजीही व्यापार व्यवस्था है। 
  • वर्ष 2019 में, अमेरिकी सरकार ने भारत को 50 से अधिक वस्तुओं पर 70 मिलियन डॉलर मूल्य के अपने GSP (सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली) लाभ वापस ले लिए हैं, जो ज्यादातर हथकरघा और कृषि क्षेत्रों से हैं।

  • आव्रजन (Immigration): ट्रंप 2.0 प्रशासन संभवतः अवैध आव्रजन के खिलाफ सख्त कदम उठाएगा, जिससे अवैध भारतीय प्रवासियों की वापसी प्रभावित होगी।
    • भारत ने कहा है कि वह अवैध आव्रजन का समर्थन नहीं करता है।
    • हालाँकि, अगर कई भारतीय नागरिक वापस लौटते हैं तो सामूहिक निर्वासन भारत के लिए चुनौती बन सकता है।
  • भू-राजनीतिक सहायता (Geopolitical Help): भारत, गाजा तथा लेबनान में इजरायल के युद्ध को समाप्त करने तथा खाड़ी देशों के साथ वार्ता को पुनः प्रारंभ करने में अमेरिकी हस्तक्षेप की भी माँग करेगा, ताकि भारत को ‘मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारे’ के लिए अपनी योजनाओं को पुनर्जीवित करने में मदद मिल सके।

संभावित आर्थिक निहितार्थ (Potential Economic Implications)

  • अमेरिका में उच्च मुद्रास्फीति
  • टैरिफ में वृद्धि और व्यापार युद्ध से संभवतः अमेरिका में मुद्रास्फीति बढ़ेगी, जिससे उपभोक्ताओं के लिए वस्तुएँ अधिक महंगी हो जाएँगी।
  • अमेरिकी डॉलर कमजोर हो सकता है।
  • उच्च मुद्रास्फीति और बढ़ते सरकारी ऋण के कारण निवेशकों का अमेरिका में भरोसा कम हो सकता है। इससे निम्नलिखित परिणाम हो सकते हैं:
    • विदेशी निवेशक अमेरिकी ट्रेजरी बॉण्ड में अपने निरंतर निवेश पर सवाल उठा रहे है।
    • जिससे अमेरिकी डॉलर कमजोर हो रहा है।
    • अमेरिकी केंद्रीय बैंक (फेड) उम्मीद से पहले ही ब्याज दरों में कटौती बंद कर सकता है।
  • बाजार में अस्थिरता में वृद्धि
  • कमजोर डॉलर तथा उच्च मुद्रास्फीति के कारण वैश्विक वित्तीय बाजारों में अधिक अस्थिरता हो सकती है।
  • भारत के RBI के लिए कठिन निर्णय
  • यदि वैश्विक वित्तीय अस्थिरता बहुत अधिक है, तो भारत के केंद्रीय बैंक को ब्याज दरों में कटौती करना कठिन लग सकता है।
  • भारत में अमेरिकी फेड की कार्रवाइयों की तुलना में दरों में कटौती का चक्र धीमा हो सकता है।
  • नतीजतन, भारत जैसे देशों को आभासी सोने के निवेश पर निर्भर रहने के बजाय भौतिक स्वर्ण खरीदना शुरू करना होगा (वर्ष 2022 में स्थिति के समान जब दुनिया ने रूसी विदेशी संपत्तियों को फ्रीज कर दिया था)।

संभावित भू-राजनीतिक निहितार्थ

  • मध्य पूर्व संघर्षों में इजरायल के प्रति समर्थन: ट्रंप ने इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू के प्रति मजबूत समर्थन दिखाया है, विशेष रूप से चल रहे इजरायल-गाजा संघर्ष में।
    • उन्होंने निजी तौर पर हमास और हिजबुल्लाह के खिलाफ इजरायल की आक्रामक कार्रवाइयों का समर्थन किया है और इस क्षेत्र में इजरायल की नीतियों के अधिक विस्तार को प्रोत्साहित कर सकते है।
    • लेकिन वे पश्चिम एशिया में युद्ध का विस्तार नहीं चाहते हैं क्योंकि:
      • ईरान के साथ बड़ा युद्ध होर्मुज जलडमरूमध्य के माध्यम से ऊर्जा आपूर्ति को प्रभावित कर सकता है, जो फारस की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ता है।
      • इससे मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ सकता है।
      • राजनीतिक, रणनीतिक तथा आर्थिक कारणों से व्यापक युद्ध ट्रंप प्रशासन के हित में नहीं है।
  • चीन: ट्रंप ने चीनी आयात पर टैरिफ को 60% तक बढ़ाने की धमकी दी है, जिससे एक बड़ा व्यापार युद्ध छिड़ सकता है।
    • विश्लेषकों के अनुसार, इससे पहले वर्ष चीन की आर्थिक वृद्धि में 2% से अधिक की कमी आ सकती है।
    • इसका मुकाबला करने के लिए, चीन अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए अगले कुछ वर्षों में संभवतः अपने सकल घरेलू उत्पाद के 2-3% के बराबर एक बड़ा राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज पेश कर सकता है।
  • पाकिस्तान: अपने पिछले कार्यकाल के दौरान ट्रंप ने पाकिस्तान को दी जाने वाली अधिकांश अमेरिकी सहायता रद्द कर दी थी।
    • पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) तथा विश्व बैंक से ऋण के मामले में अमेरिकी समर्थन न मिलने की भी चिंता है।
  • नेपाल, भूटान और मालदीव: बाइडेन सरकार ने इन देशों तक अपनी पहुँच बढ़ाई थी।
  • बांग्लादेश: ट्रंप ने बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर टिप्पणी की थी।
  • आव्रजन नीतियों पर चिंता: ट्रंप आक्रामक आव्रजन नीतियों की योजना बना रहे हैं, जिसमें लाखों आप्रवासियों को निर्वासित करना भी शामिल है।
    • उन्होंने मेक्सिको पर टैरिफ लगाने की धमकी भी दी है, जब तक कि देश प्रवासन को रोकने के लिए और अधिक कदम नहीं उठाता।
    • इससे अमेरिका-मेक्सिको संबंधों में तनाव आ सकता है तथा व्यापार एवं प्रवासन के परस्पर संबंध के कारण दोनों अर्थव्यवस्थाओं पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है।
  • जलवायु और बहुपक्षीय समझौते: जलवायु परिवर्तन पर वर्ष 2015 के पेरिस समझौते का भविष्य, जिसमें अमेरिका,  राष्ट्रपति जो बाइडेन के नेतृत्व में फिर से शामिल हुआ था, खतरे में आ जाएगा।
    • जलवायु परिवर्तन के बारे में ट्रंप का संदेह पर्यावरणीय मुद्दों पर वैश्विक सहयोग में बाधा उत्पन्न कर सकता है।

आगे की राह

  • इंडो-पैसिफिक में रणनीतिक संरेखण: ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में, क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) पहल पर और अधिक जोर देने से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने में एक प्रमुख हितधारक के रूप में भारत की भूमिका मजबूत हो सकती है।
    • सैन्य सहयोग बढ़ाकर, अमेरिका तथा भारत संयुक्त रूप से चीन की आक्रामक नीतियों का समाधान कर सकते हैं तथा स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को रेखांकित कर सकते हैं।
  • आतंकवाद विरोध करना: यह भारत और अमेरिका के लिए साझा हित का क्षेत्र रहा है।
    • ट्रंप के पहले प्रशासन के दौरान, उनका ‘शक्ति के माध्यम से शांति’ सिद्धांत भारत की सुरक्षा प्राथमिकताओं, विशेष रूप से पाकिस्तान के संबंध में, के साथ अच्छी तरह से मेल खाता था।
    • भारत तथा अमेरिका की साझेदारी आतंकवादी खतरों का मुकाबला करने और उग्रवाद से निपटने के लिए संयुक्त प्रयासों को मजबूत कर सकती है।
  • लोगों के बीच संबंधों को मजबूत करना: अमेरिका में भारतीय प्रवासियों और पेशेवरों को समर्थन देने के लिए वीजा और आव्रजन सुधारों को सुगम बनाना, अमेरिकी अर्थव्यवस्था में भारतीय प्रतिभाओं के योगदान पर जोर देना।
  • रक्षा खरीद और संयुक्त उद्यम: अमेरिका से रक्षा खरीद में तेजी लाना तथा भारत की मेक इन इंडिया पहल के तहत संयुक्त उत्पादन उद्यमों की संभावना तलाशना।
  • व्यापार पैकेज पर बातचीत: अमेरिका के हित के क्षेत्रों, जैसे फार्मास्यूटिकल्स और कृषि, में रियायतें देकर व्यापार विवादों को हल करने की दिशा में कार्य करना, साथ ही भारतीय निर्यात पर शुल्क में कटौती की माँग करना।

निष्कर्ष

भारत तथा अमेरिका में तेजी से जटिल होते वैश्विक परिदृश्य में पारस्परिक आर्थिक विकास, सुरक्षा और रणनीतिक हितों के आधार पर द्विपक्षीय संबंधों को पुनः परिभाषित करने की क्षमता है।

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