5 नवंबर, 2024 को लोकसभा अध्यक्ष ने देशबंधु चितरंजन दास की जयंती पर संविधान सदन के सेंट्रल हॉल में उनके चित्र पर श्रद्धांजलि अर्पित की।
देशबंधु चितरंजन दास के बारे में
जन्म: चितरंजन दास का जन्म 5 नवंबर, 1870 को कलकत्ता (अब कोलकाता) में बंगाली वैद्य परिवार में हुआ था।
शिक्षा: उन्होंने भवानीपुर में लंदन मिशनरी सोसायटी के संस्थान में शिक्षा प्राप्त की तथा वर्ष 1890 में कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की।
कानून की पढ़ाई: दास ने इंग्लैंड के मिडिल टेम्पल में कानून की पढ़ाई की, तथा वर्ष 1894 में बैरिस्टर बन गए।
स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका एवं योगदान
प्रमुख नेता: ‘देशबंधु’ (राष्ट्र के मित्र) के रूप में जाने जाने वाले दास ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मार्गदर्शन: वे सुभाष चंद्र बोस जैसे नेताओं के मार्गदर्शक थे।
वे महात्मा गांधी और मोतीलाल नेहरू के साथ जलियाँवाला बाग हत्याकांड की जाँच करने वाली एक गैर-आधिकारिक समिति का हिस्सा थे।
कांग्रेस नेतृत्व: उन्होंने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन का सक्रिय रूप से समर्थन किया और वर्ष 1922 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
स्वराज पार्टी की स्थापना: परिषद में प्रवेश पर कांग्रेस के रुख से असहमत होकर, उन्होंने स्वशासन के लिए दबाव बनाने हेतु वर्ष 1923 में मोतीलाल नेहरू के साथ स्वराज पार्टी की स्थापना की।
अलीपुर बम कांड (वर्ष 1909): दास ने राष्ट्रवादी नेता अरबिंदो घोष का सफलतापूर्वक बचाव करके प्रसिद्धि प्राप्त की, अपनी कानूनी क्षमता और स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया
चितरंजन दास ढाका षडयंत्र मामले (वर्ष 1910-11) में बचाव पक्ष के वकील भी थे।
बंगाल समझौता (वर्ष 1923): दास ने आर्थिक असंतुलन को दूर करने और विधायी निकायों तथा सरकारी नौकरियों में आनुपातिक प्रतिनिधित्व का प्रस्ताव देकर हिंदू एवं मुस्लिम समुदायों के बीच एकता को बढ़ावा देने के लिए बंगाल समझौते की शुरुआत की।
चित्तरंजन दास का साहित्यिक योगदान
कविता: वे एक प्रशंसित बंगाली कवि थे, जिनकी मलंचा, माला और सागर संगीत जैसी रचनाएँ बंगाली संस्कृति और साहित्यिक प्रतिभा के प्रति उनके जुनून को दर्शाती हैं।
सागर-संगीत (समुद्र के गीत): वर्ष1913 में प्रकाशित, कविताओं के इस संग्रह ने उनकी प्रारंभिक काव्य प्रतिभा को प्रदर्शित किया।
अंतर्यामी (सर्वज्ञ): वर्ष1914 में प्रकाशित, यह कृति दार्शनिक और आध्यात्मिक विषयों पर आधारित थी।
किशोर-किशोरी (युवा): वर्ष 1915 में प्रकाशित, इस संग्रह ने युवाओं की आकांक्षाओं और चुनौतियों का पता लगाया।
साहित्यिक पत्रिका नारायण: उन्होंने पाँच वर्षों तक इस उच्च-गुणवत्ता वाली साहित्यिक पत्रिका की स्थापना की और उसका संपादन किया, जो उभरते लेखकों के लिए एक मंच प्रदान करती है तथा अपनी खुद की काव्य रचनाओं को प्रदर्शित करती है।
वैष्णव प्रभाव: उनकी कविताएँ अक्सर वैष्णव साहित्य की समृद्ध परंपरा से प्रेरणा लेती थीं, जो उनके कार्य पर गहरे आध्यात्मिक और दार्शनिक प्रभावों को दर्शाती हैं।
सामाजिक टिप्पणी: उनकी कुछ कविताओं ने समकालीन सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को संबोधित किया, जो सामाजिक न्याय और राष्ट्रीय मुक्ति के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।
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