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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal November 08, 2024 02:22 59 0

विश्व का पहला ‘वुडेन सेटेलाइट’

विश्व का पहला ‘वुडेन सेटेलाइट’ जापान द्वारा चंद्र एवं मंगल ग्रह की खोज में लकड़ी के उपयोग के प्रारंभिक परीक्षण हेतु अंतरिक्ष में लॉन्च किया गया था।

उपग्रह

  • नाम: उपग्रह का नाम लैटिन शब्द ‘वुड’ (Wood) के आधार पर ‘लिग्नोसैट’ (LignoSat) रखा गया है।
  • निर्मित: इसे ‘क्योटो विश्वविद्यालय’ (Kyoto University) एवं ‘होमबिल्डर सुमितोमो फॉरेस्ट्री’ (Homebuilder Sumitomo Forestry) (1911.T) द्वारा विकसित किया गया था।
  • प्रयुक्त सामग्री: लिग्नोसैट (LignoSat) बिना ‘स्क्रू’ या गोंद के पारंपरिक जापानी शिल्प तकनीक का उपयोग करके होनोकी (Honoki) से निर्मित किया गया है।
    • होनोकी एक प्रकार का मैगनोलिया पेड़ (Magnolia Tree) है, जो जापान की मूल प्रजाति है एवं पारंपरिक रूप से तलवार की म्यान के लिए उपयोग किया जाता है। 
  • मिशन: उपग्रह को स्पेसएक्स मिशन पर अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन ले जाया जाएगा एवं बाद में पृथ्वी से लगभग 400 किमी. ऊपर कक्षा में छोड़ा जाएगा। लिग्नोसैट छह महीने तक कक्षा में रहेगा।
  • उद्देश्य: ‘लिग्नोसैट’ अंतरिक्ष-ग्रेड सामग्री के रूप में लकड़ी की ब्रह्मांडीय क्षमता का प्रदर्शन करेगा, क्योंकि मनुष्य अंतरिक्ष में रहने का पता लगाते हैं।
    • यह उपग्रह NASA द्वारा प्रमाणित लकड़ी का उपग्रह है।

मिशन के उद्देश्य 

  • सहनशक्ति: प्रत्येक 45 मिनट में -100 से 100 डिग्री सेल्सियस के तापमान में उतार-चढ़ाव के साथ अंतरिक्ष के चरम वातावरण को सहन करने की ‘वुड’ की क्षमता को मापने के लिए।
  • विकिरण का प्रभाव: यह अर्द्धचालकों पर अंतरिक्ष विकिरण के प्रभाव को कम करने की लकड़ी की क्षमता को भी मापेगा, जिससे यह डेटा सेंटर निर्माण जैसे अनुप्रयोगों के लिए उपयोगी हो जाएगा।

अंतरिक्ष सामग्री के रूप में लकड़ी के लाभ

  • अंतरिक्ष मलबा: पारंपरिक धातु उपग्रह पुन: प्रवेश के दौरान एल्यूमीनियम ऑक्साइड कण बनाते हैं, लेकिन लकड़ी के उपग्रह कम प्रदूषण के साथ जल जाएंगे।
  • स्थायित्व: पृथ्वी की तुलना में अंतरिक्ष में लकड़ी अधिक टिकाऊ होती है क्योंकि वहाँ कोई जल या ऑक्सीजन नहीं होता है, जो इसे सड़ाए या जला दे।
  • एक लकड़ी का उपग्रह अपने जीवन के अंत में ‘डीकमीशनिंग’ के दौरान पर्यावरणीय प्रभाव को भी कम करता है।

प्रोटेक्टेड प्लैनेट रिपोर्ट 2024

हाल ही में COP16 में ‘प्रोटेक्टेड प्लैनेट रिपोर्ट 2024’ लॉन्च की गई। 

संबंधित तथ्य 

  • लॉन्च किया गया: संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, विश्व संरक्षण निगरानी केंद्र (UNEP-WCMC) एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN)

‘प्रोटेक्टेड प्लैनेट रिपोर्ट’ 

  • यह कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क के लक्ष्य 3 के अनुरूप, दुनिया भर में संरक्षित एवं संरक्षित क्षेत्रों की स्थिति का गहन मूल्यांकन करने वाली पहली रिपोर्ट है। 
    • यह रिपोर्ट ‘प्रोटेक्टेड प्लैनेट’ पहल के माध्यम से सरकारों एवं अन्य भागीदारों से नवीनतम डेटा संकलित करती है।
  • उद्देश्य: रिपोर्ट KMGBF की स्थापना के बाद से जैव विविधता संरक्षण के प्रति वैश्विक प्रतिबद्धता का मूल्यांकन करती है तथा लक्ष्यों एवं चुनौतियों पर नजर रखती है।
    • 30×30 लक्ष्य: यह लक्ष्य पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने एवं जैव विविधता का समर्थन करने के लिए वर्ष 2030 तक दुनिया के कम-से-कम 30% स्थलीय तथा समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा को प्राथमिकता देता है।
    • 30×30 लक्ष्य का महत्व।
      • पारिस्थितिकी तंत्र स्थिरता: स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र एवं जैव विविधता को बनाए रखने के लिए 30% भूमि एवं समुद्री क्षेत्रों का संरक्षण महत्त्वपूर्ण है।
      • जलवायु परिवर्तन शमन: संरक्षित क्षेत्र, कार्बन सिंक के रूप में कार्य कर सकते हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन के खिलाफ संघर्ष में मदद मिल सकती है।
      • सतत विकास: जैव विविधता संरक्षण, स्थायी आजीविका एवं प्राकृतिक संसाधनों का समर्थन करता है, जो भावी पीढ़ियों के लिए महत्त्वपूर्ण है।

‘प्रोटेक्टेड प्लैनेट रिपोर्ट’ 2024 के मुख्य निष्कर्ष

  • कवरेज प्रगति: वर्तमान में, 17.6% भूमि एवं 8.4% समुद्री क्षेत्र संरक्षित हैं। वर्ष 2030 तक 30×30 लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, संरक्षित क्षेत्रों में पर्याप्त तीव्रता लाने एवं गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता है।
  • क्षेत्र विस्तार: वर्ष 2020 के बाद से, अतिरिक्त 629,000 वर्ग किमी. भूमि एवं 1.77 मिलियन वर्ग किमी. समुद्री क्षेत्रों को संरक्षित किया गया है। हालाँकि 12.4% अधिक भूमि तथा 21.6% अधिक समुद्री क्षेत्र अभी भी सुरक्षित किए जाने चाहिए।
  • जैव विविधता संरक्षण: हालाँकि 68% प्रमुख जैव विविधता क्षेत्र (KBAs) संरक्षित और 32% असुरक्षित हैं। महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्रों को शामिल करने एवं पारिस्थितिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के प्रयासों की आवश्यकता है।
  • कनेक्टिविटी: केवल 8.52% भूमि संरक्षित एवं पारिस्थितिक रूप से आपस में संबंधित है, जो जैव विविधता संरक्षण के लिए आवश्यक कनेक्टिविटी में अंतर दर्शाती है।
  • संरक्षण की प्रभावशीलता: हालाँकि 177 देश प्रबंधन संबंधी डेटा की रिपोर्ट करते हैं, संरक्षण प्रभाव को मापने के लिए अधिक व्यापक शासन मूल्यांकन आवश्यक हैं।
  • समतामूलक शासन: स्वदेशी प्रबंधन संरक्षित क्षेत्रों के 3.95% तक सीमित हैं। स्वदेशी एवं सामुदायिक अधिकारों का सम्मान करने के लिए व्यापक शासन समावेशन की आवश्यकता है।
  • एकीकृत संरक्षण: संरक्षित क्षेत्रों को बड़े परिदृश्यों एवं समुद्री दृश्यों में शामिल किया जाना चाहिए, जिससे सतत उपयोग तथा स्थानीय आजीविका के साथ जैव विविधता लक्ष्यों को संतुलित किया जा सके।

5G ग्रामीण कनेक्टिविटी के लिए मिलीमीटर वेव ट्रांसीवर

भारत के दूरसंचार विभाग (DoT) के तहत एक प्रमुख दूरसंचार अनुसंधान एवं विकास निकाय, ‘सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स’ (C-DOT) ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रूड़की के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।

संबंधित तथ्य

  • इस सहयोग का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में दूरसंचार संबंधी बुनियादी ढाँचे के विकास हेतु 5G ग्रामीण कनेक्टिविटी के लिए एक ‘मिलीमीटर वेव ट्रांसीवर’ विकसित करना है।
  • इस समझौते पर भारत सरकार के दूरसंचार विभाग की दूरसंचार प्रौद्योगिकी विकास निधि (TTDF) योजना के तहत हस्ताक्षर किए गए हैं। 
    • TTDF का लक्ष्य भारत के डिजिटल विभाजन को संबोधित करते हुए वहनीय ब्रॉडबैंड एवं मोबाइल सेवाएँ प्रदान करने के लिए दूरसंचार उत्पाद संबंधी नवाचार को वित्तपोषित करना है।

भारत का स्वायत्त समुद्री लक्ष्य: सागरमाला परिक्रमा

सागर डिफेंस इंजीनियरिंग द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित एक स्वायत्त सतह जहाज ने मुंबई से थूथुकुडी तक 1,500 किमी की यात्रा सफलतापूर्वक पूरी की।

संबंधित तथ्य 

  • यह स्वायत्त जहाज भारत में अपनी तरह की पहली उपलब्धि है।

सागरमाला परिक्रमा 

  • यह भारतीय नौसेना एवं सागर रक्षा इंजीनियरिंग की एक पहल है।
  • उद्देश्य: समुद्री प्रौद्योगिकी में भारत की विशेषज्ञता का प्रदर्शन करना। 
  • प्रमुख विशेषता: इस परियोजना में ‘मातंगी’ नामक एक स्वायत्त पोत है। 

मुख्य विशेषताएँ

  • मानव-मुक्त नेविगेशन: जहाज ने स्वायत्त समुद्री प्रणालियों में भारत की तकनीकी शक्ति का प्रदर्शन करते हुए बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के यह उपलब्धि हासिल की।
  • सरकारी समर्थन: भारतीय नौसेना का समर्थन, अपने नवाचार एवं स्वदेशीकरण पहल के माध्यम से, परियोजना की सफलता में सहायक था।
  • सामरिक महत्त्व: इस उपलब्धि का भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव है, जो विभिन्न समुद्री अभियानों के लिए मानवरहित प्रणालियों के प्रयोग को सक्षम बनाता है।

भारत की समुद्री सुरक्षा पर प्रभाव

  • उन्नत निगरानी: समुद्री सुरक्षा में सुधार के लिए भारत की विशाल तटरेखा की निरंतर निगरानी के लिए स्वायत्त जहाजों को तैनात किया जा सकता है।
  • कुशल संचालन: मानवरहित प्रणालियाँ नियमित कार्य कर सकती हैं, एवं अधिक जटिल मिशनों के लिए मानव संसाधनों को मुक्त कर सकती हैं।
  • कर्मियों के लिए जोखिम कम करना: खतरनाक समुद्री संचालन में मानव भागीदारी को कम करके, स्वायत्त जहाज कर्मियों के लिए जोखिम को कम कर सकते हैं।
  • तकनीकी उन्नति: यह उपलब्धि रक्षा क्षेत्र में तकनीकी उन्नति के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है, जिससे देश स्वायत्त समुद्री प्रणालियों में एक वैश्विक नेतृत्त्वकर्त्ता के रूप में स्थापित हो गया है।

पर्माफ्रॉस्ट कार्बन

(Permafrost Carbon)

उत्तरी पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्र के लिए स्रोतों एवं सिंक का अध्ययन करके वर्ष 2000-20 की अवधि के लिए पहला पूर्ण ग्रीनहाउस गैस बजट (CO2, मीथेन तथा नाइट्रस ऑक्साइड के लिए) ‘ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट’ के हिस्से के रूप में प्रकाशित किया जा रहा है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • यह पाया गया कि पर्माफ्रॉस्ट एक लघु, मध्यम CO₂ सिंक था,  जो प्रति वर्ष 29 मिलियन से 500 मिलियन टन कार्बन संग्रहीत करता था।
  • नकारात्मक कार्बन-जलवायु प्रतिक्रिया: पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से ग्लोबल वार्मिंग परिदृश्य पर बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा एवं शीतलन प्रभाव उत्पन्न होगा।
    • लंबे समय तक बढ़ते मौसम (ग्लोबल वार्मिंग के कारण), मृदा में उपलब्ध नाइट्रोजन में वृद्धि एवं उच्च CO₂ सांद्रता से पौधों को लंबे समय तक बढ़ने तथा अधिक कार्बन संग्रहण करने में मदद मिलेगी।
  • तटस्थ क्षमता: तीनों ग्रीनहाउस गैसों का ग्लोबल वार्मिंग में संयुक्त योगदान,  तटस्थता के निकट है क्योंकि CO₂ सिंक 100 वर्ष के चक्र में मीथेन एवं नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन से वार्मिंग को संतुलित करने में मदद करेगा।
  • ग्रीनहाउस गैसों के स्रोत:
    • CO₂: झीलें, नदियाँ एवं वनाग्नि CO₂ के स्रोत थे।
    • मीथेन: जैसे-जैसे पर्माफ्रॉस्ट पिघलता है, आर्द्रभूमि (ऑक्सीजन का निम्न स्तर) में वृद्धि होती है, जिससे अधिक परिदृश्यजल संतृप्त हो जाते हैं।
    • नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन: यह विघटित मिट्टी के कार्बनिक पदार्थों से आया है जिसमें शुष्क टुंड्रा एवं बोरियल जंगलों से नाइट्रोजन भी शामिल है।
  • सिंक के रूप में 
    • कनाडा एवं रूस तथा अन्य छोटे क्षेत्रों के बोरियल वन, मुख्य रूप से CO₂ के अवशोषण के लिए जिम्मेदार थे।

पर्माफ्रॉस्ट 

  • पर्माफ्रॉस्ट ऐसी भूमि होती है जिसमें मिट्टी, रेत, बजरी या चट्टान की परतें होती हैं जो बर्फ से एक साथ जुड़ी होती हैं जो कम-से-कम दो वर्षों तक जमी रहती हैं एवं जलवायु की एक भूगर्भिक अभिव्यक्ति है जो तापमान से परिभाषित होती है, न कि मिट्टी की नमी या बर्फ के आवरण से।
  • क्षेत्र: पर्माफ्रॉस्ट आर्कटिक, अंटार्कटिक, ऊँचे पहाड़ों, उपसमुद्री आर्कटिक महाद्वीपीय स्थानों, यूरेशिया, उत्तरी अमेरिका एवं ग्रीनलैंड में पाया जाता है।
  • पर्माफ्रॉस्ट कार्बन: यह मुख्य रूप से सतह के पास पाए जाने वाले कार्बन (मृत पौधों का बचा हुआ पदार्थ, जो ठंड के कारण विघटित या सड़ नहीं पाता) का स्रोत है।
    • जैसे ही पर्माफ्रॉस्ट पिघलता है, सूक्ष्म जीव इन कार्बनिक पदार्थों पर कार्य करेंगे एवं उन्हें विघटित करेंगे, जिससे कार्बन डाइऑक्साइड तथा मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसें वायुमंडल में मुक्त होंगी।

भारत का 55वाँ अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव

पणजी, गोवा 55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (International Film Festival of India – IFFI) की मेजबानी करेगा।

55वें IFFI की मुख्य विशेषताएँ

  • वर्ष 2024 संस्करण में 16 ‘क्यूरेटेड सेगमेंट’ की फिल्में शामिल हैं।
    • उदाहरण: ‘क्रिएटिव माइंड्स ऑफ टुमॉरो’, ‘फिल्म बाजार’ एवं ‘सिने मेला’ आदि जैसे लोकप्रिय खंड।
  • फोकस का देश: ऑस्ट्रेलिया ‘फोकस’ (केंद्रीय) देश होगा एवं इसमें विभिन्न शैलियों की सात ऑस्ट्रेलियाई फिल्में प्रदर्शित होंगी।
    • भारत एवं ऑस्ट्रेलिया ने दोनों देशों के बीच गहरे सिनेमाई सहयोग का समर्थन करते हुए एक ‘ऑडियो-विजुअल सह-उत्पादन संधि’ को औपचारिक रूप दिया है।
  • अनुभाग
    • IFFI का अंतर्राष्ट्रीय सिनेमा अनुभाग: यह दुनिया भर की असाधारण फिल्मों का प्रदर्शन करेगा।
    • भारतीय पैनोरमा अनुभाग: यह अपने 55वें संस्करण के दौरान 25 फीचर फिल्में एवं 20 गैर-फीचर फिल्में प्रदर्शित करेगा।
    • प्रारंभिक फिल्म 
      • फीचर फिल्म श्रेणी की शुरुआत रणदीप हुडा की ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ (हिंदी) से होगी।
      • गैर-फीचर श्रेणी की शुरुआत ‘हर्ष संगानी’ द्वारा निर्देशित घर जैसा कुछ (लद्दाखी) से होगी।
  • भारतीय फीचर फिल्म का सर्वश्रेष्ठ नवोदित निर्देशक: भारतीय सिनेमा में उभरते कलाकारों को समर्पित एक नई पुरस्कार श्रेणी बनाई गई।
    • सम्मानित नवोदित निर्देशक फ़िल्में: लक्ष्मीप्रिया देवी द्वारा बूंग (मणिपुरी); घराट गणपति (मराठी) नवज्योत बांदीवाडेकर द्वारा; मनोहर के द्वारा मिक्का बन्नदा हक्की (एक अलग पंख वाला पक्षी- कन्नड़);  रजाकर (हैदराबाद का मूक नरसंहार- तेलुगु) यता सत्यनारायण द्वारा; थानुप्प (द कोल्ड- मलयालम) रागेश नारायणन द्वारा।
  • शताब्दी श्रद्धांजलि: IFFI 2024 भारतीय सिनेमा के चार दिग्गजों को शताब्दी की श्रद्धांजलि अर्पित करेगा। अभिनेता राज कपूर, निर्देशक तपन सिन्हा, तेलुगु फिल्म आइकन अक्किनेनी नागेश्वर राव (ANR), एवं गायक मोहम्मद रफ़ी।

भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (IFFI) 

  • भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (IFFI) एशिया के प्रमुख फिल्म महोत्सवों में से एक है, जिसे ‘इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ फिल्म प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन’ (FIAPF) से भी मान्यता प्राप्त है।
  • फाउंडेशन: इसकी स्थापना वर्ष 1952 में हुई थी।
  • आयोजित: गोवा, वर्ष 2004 से प्रतिवर्ष इस उत्सव की मेजबानी कर रहा है।
  • आयोजनकर्त्ता: सूचना प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार (राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम) तथा एंटरटेनमेंट सोसाइटी ऑफ गोवा, गोवा सरकार के सहयोग से।
  • महत्त्व: यह आयोजन एक सांस्कृतिक मध्यस्थ के रूप में कार्य करता है, जो फिल्म निर्माण की कला के लिए वैश्विक सराहना को बढ़ावा देते हुए दुनिया भर के दर्शकों, फिल्म निर्माताओं एवं सिनेप्रेमियों को जोड़ता है।

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