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सार्वजनिक नियुक्तियों में पात्रता नियमों को बीच में नहीं बदला जा सकता: सर्वोच्च न्यायालय

Lokesh Pal November 11, 2024 02:40 37 0

संदर्भ

हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पाँच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने कहा कि सार्वजनिक सेवाओं में उम्मीदवारों के चयन के लिए पात्रता मानदंड या ‘रूल ऑफ द गेम’ को भर्ती शुरू होने के बाद बीच में नहीं बदला जा सकता है।

संवैधानिक पीठ

भारत के सर्वोच्च न्यायालय में संवैधानिक पीठ कम-से-कम पाँच न्यायाधीशों वाली एक विशेष पीठ होती है। इसका गठन संविधान की व्याख्या से संबंधित कानून के महत्त्वपूर्ण प्रश्नों से जुड़े मामलों की सुनवाई एवं निर्णय के लिए किया जाता है।

शक्तियाँ

  • आधिकारिक निर्णय: बड़ी पीठ द्वारा लिए गए निर्णय अधिक आधिकारिक और बाध्यकारी माने जाते हैं।
  • विविध दृष्टिकोण: बड़ी पीठ कानूनी राय और दृष्टिकोण की व्यापक शृंखला की अनुमति देती है।
  • निष्पक्षता: न्यायाधीशों की बड़ी संख्या पक्षपात या प्रभाव की संभावना को कम करती है।

आकार

  • न्यूनतम: 5 न्यायाधीश
  • अधिकतम: कोई निश्चित अधिकतम सीमा नहीं है, लेकिन महत्त्वपूर्ण संवैधानिक मामलों के लिए अतीत में 7, 9, 11 और 17 न्यायाधीशों की पीठें गठित की गई हैं।

निर्णय के मुख्य बिंदु

  • समानता तथा गैर-भेदभाव के सिद्धांत: सभी भर्ती प्रक्रियाओं को मौलिक अधिकारों, विशेषकर अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद-16 (सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर) के अनुरूप होना चाहिए, ताकि मनमानी न हो और निष्पक्ष व्यवहार सुनिश्चित हो।
  • नियुक्ति का कोई गारंटीकृत अधिकार नहीं: चयनित सूची में शामिल अभ्यर्थियों को नियुक्ति का पूर्ण अधिकार नहीं है, भले ही रिक्तियाँ मौजूद हों।
  • राज्य पर साक्ष्य का बोझ: राज्य मनमाने ढंग से नियुक्तियों से इनकार नहीं कर सकता है और यदि वह किसी चयनित उम्मीदवार को नियुक्त करने से इनकार करता है तो उसे इसका औचित्य बताना होगा।
  • नियमों की बाध्यकारी प्रकृति: भर्ती नियमों में प्रक्रियागत और पात्रता संबंधी दोनों आवश्यकताएँ भर्ती निकाय के लिए बाध्यकारी हैं, जिन्हें प्रक्रिया के दौरान इन नियमों का कठोरता से पालन करना होगा।

कानून के समक्ष समानता और कानून का समान संरक्षण

  • भारत के संविधान के अनुच्छेद-14 में कहा गया है कि सरकार भारत में किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या कानूनों के समान संरक्षण से इनकार नहीं कर सकती है।
  • इसका अर्थ यह है कि कानून की नजर में सभी लोगों के साथ समान व्यवहार किया जाता है, चाहे उनकी स्थिति, जाति, नस्ल, धर्म, जन्म स्थान या लिंग कुछ भी हो।
  • इसे ‘कानून का शासन’ भी कहा जाता है।
  • अनुच्छेद-14 के दो भाग हैं:
    • कानून के समक्ष समानता: एक नकारात्मक अवधारणा जो किसी भी व्यक्ति के पक्ष में किसी भी विशेषाधिकार की अनुपस्थिति को दर्शाती है।
    • कानूनों का समान संरक्षण: एक सकारात्मक अवधारणा जो राज्य से सकारात्मक कार्रवाई की अपेक्षा करती है।

सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर एवं भेदभाव का निषेध

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद-16 सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर की गारंटी देता है और कुछ कारकों के आधार पर भेदभाव को रोकता है।
  • समान अवसर: सभी नागरिकों को सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करने और उन्हें हासिल करने का समान अवसर मिलता है।
  • कोई भेदभाव नहीं: नागरिकों के साथ धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, वंश, जन्म स्थान या निवास के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है।
  • आरक्षण: सरकार किसी भी पिछड़े वर्ग के नागरिकों, जैसे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के नागरिकों के लिए आरक्षण कर सकती है।
  • निवास संबंधी आवश्यकताएँ: संसद ऐसे कानून बना सकती है, जिसके तहत किसी सरकारी कार्यालय में रोजगार या नियुक्ति के लिए किसी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश में एक निश्चित निवास की आवश्यकता होती है।
  • अपवाद: कुछ पदों को केवल निवासियों के लिए आरक्षित करने के लिए बाध्यकारी कारण हो सकते हैं।

‘रूल ऑफ द गेम’ के बारे में

  • ‘रूल ऑफ द गेम’ की परिभाषा: यह शब्द चयन और नियुक्ति प्रक्रिया को संदर्भित करता है, जिसमें स्पष्ट सिद्धांत है कि भर्ती के बीच में नियमों को नहीं बदला जाना चाहिए।
    • यह भर्ती शुरू होने के बाद ‘रूल ऑफ द गेम’ को बदलने के खिलाफ दीर्घकालिक कानूनी मानक पर आधारित है।
  • इन नियमों की दो श्रेणियाँ हैं:-
    • पात्रता मानदंड: आवेदन करने के लिए आवश्यक योग्यताएँ।
    • चयन प्रक्रिया: पात्र पूल से उम्मीदवारों का चयन करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली विधि एवं तरीका।

भर्ती प्रक्रिया दिशा-निर्देश

  • भर्ती रिक्त पदों को भरने की पूरी प्रक्रिया है, जो विज्ञापन से लेकर रिक्त पद पर चयनित व्यक्तियों की नियुक्ति तक होती है।
  • प्रक्रिया जनादेश: मौजूदा नियमों के अनुरूप होना चाहिए, तर्कसंगत, पारदर्शी और गैर-भेदभावपूर्ण होना चाहिए।
  • नियमों के भीतर लचीलापन: भर्ती निकाय प्रक्रियाएँ तैयार कर सकते हैं बशर्ते कि वे:-
    • वैधानिक नियमों के अनुरूप हो।
    • पारदर्शी, गैर-भेदभावपूर्ण और गैर-मनमाना हो।
    • भर्ती उद्देश्यों के साथ तर्कसंगत संबंध बनाए रखे।

भारत में सिविल सेवा भर्ती

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद-309 केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को उचित विधानमंडल के अधिनियम के माध्यम से सार्वजनिक सेवाओं और पदों पर नियुक्त व्यक्तियों की भर्ती तथा सेवा की शर्तों को विनियमित करने का अधिकार देता है।
  • संसद ने वर्ष 1951 में ‘अखिल भारतीय स्टाफिंग पैटर्न सेवा अधिनियम’ बनाया, जो अखिल भारतीय सेवा अधिकारियों की सेवा की शर्तों को नियंत्रित करता है।
  • लोक सेवकों की भर्ती और रोजगार संविधान के प्रावधानों के तहत संबंधित सरकारों द्वारा बनाए गए नियमों द्वारा विनियमित होते है।

निर्णय का निहितार्थ

  • उम्मीदवारों के लिए: उम्मीदवारों को आश्वस्त करता है कि भर्ती शुरू होने के बाद पात्रता एवं चयन पद्धतियाँ स्थिर रहेंगी।
  • भर्ती निकायों के लिए: प्रक्रियात्मक निष्पक्षता और संवैधानिक रूप से आधारित गैर-मनमानी के पालन को सुदृढ़ करता है।
  • नियमों की बाध्यकारी प्रकृति: वैधानिक नियम भर्ती निकायों पर बाध्यकारी होते हैं।
  • प्रशासनिक निर्देश: ये निर्देश भर्ती का मार्गदर्शन कर सकते हैं, जहाँ औपचारिक नियम अनुपस्थित हैं।
  • नियुक्ति का कोई गारंटीकृत अधिकार नही: चयन सूची में स्थान मिलना नियुक्ति की गारंटी नहीं देता है।

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