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राज्यों और केंद्र के बीच ‘शुद्ध उधार सीमा’ को लेकर विवाद

Lokesh Pal November 12, 2024 03:53 39 0

संदर्भ

केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2023-24 के लिए केरल के अनुमानित सकल राज्य घरेलू उत्पाद (Gross State Domestic Product- GSDP) के 3% की शुद्ध उधार सीमा (Net Borrowing Ceiling- NBC) लगाई है।

सकल राज्य घरेलू उत्पाद (Gross State Domestic Product-GSDP)

  • यह एक मौद्रिक माप है, जो किसी निश्चित समयावधि में उत्पादित सभी तैयार वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य को दर्शाता है।
    • इसमें आमतौर पर किसी राज्य या देश की भौगोलिक सीमाओं को ध्यान में रखा जाता है।
  • इसकी गणना प्रत्येक गतिविधि को केवल एक बार गिनकर बिना दोहराव के की जाती है।

संबंधित तथ्य

  • विस्तारित कवरेज: राज्यों को राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों के माध्यम से इस सीमा को पार करने से रोकने के लिए, अब इस सीमा में इन संस्थाओं द्वारा लिए गए कुछ उधार भी शामिल हैं।

शुद्ध उधार सीमा (Net Borrowing Ceiling-NBC) के बारे में

  • यह शुद्ध उधार सीमा (NBC) केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की गई सीमा है कि प्रत्येक राज्य विभिन्न स्रोतों, जैसे खुले बाजार और वित्तीय संस्थानों से कितना उधार ले सकता है।
    • इसमें खुले बाजार ऋण, वित्तीय संस्थाओं से ऋण तथा राज्य के सार्वजनिक खाते के अंतर्गत देयताएँ जैसे सभी उधार चैनल शामिल हैं।
  • NBC का निर्धारण राज्य की मौजूदा देनदारियों को, जिसमें सार्वजनिक खातों की देनदारियाँ भी शामिल हैं, राज्य को दी गई समग्र उधार सीमा से घटाकर किया जाता है।
  • NBC का उद्देश्य
    • राजकोषीय अनुशासन सुनिश्चित करना: NBC का उद्देश्य राज्य उधारी को विनियमित करना है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ऋण का स्तर प्रबंधनीय बना रहे।
    • अत्यधिक ऋण को रोकना: उधारी को सीमित करके, NBC राज्यों को अस्थिर ऋण स्तरों को जमा करने से रोकने में मदद करता है, जिससे वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा मिलता है।

केरल पर प्रभाव 

  • वित्तीय संकट: उधार सीमा ने केरल की वित्तीय स्थिति को गंभीर रूप से प्रभावित किया है, जिससे व्यय को पूरा करना तथा विकासात्मक और कल्याणकारी गतिविधियों में निवेश करना कठिन हो गया है।
    • केरल का मामला राजकोषीय विकेंद्रीकरण, राज्य की राजकोषीय स्वायत्तता तथा भारतीय रिजर्व बैंक के राजकोषीय नियंत्रण पर केंद्रीय विनियमनों के प्रभाव के बारे में प्रश्न उठाता है।
  • राजनीतिक और कानूनी विवाद: राज्य ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है और आरोप लगाया है कि NBC संविधान के अनुच्छेद-293 के तहत उसकी वित्तीय स्वायत्तता में कटौती कर रहा है।
    • यह पहला मामला है, जब इस अनुच्छेद की व्याख्या न्यायालय द्वारा की गई है।

उधार लेने की शक्तियों पर संवैधानिक ढाँचा

  • केंद्र और राज्य की उधार लेने की शक्तियाँ
    • अनुच्छेद-292: केंद्र सरकार को भारत की संचित निधि से उधार लेने की अनुमति देता है।
    • अनुच्छेद-293: राज्यों को भारत के भीतर उधार लेने का अधिकार देता है, जो राज्य की संचित निधि के विरुद्ध सुरक्षित है, यदि बकाया ऋण या गारंटी मौजूद है तो केंद्र सरकार द्वारा लगाई गई शर्तों के अधीन।
    •  प्रतिबंध और शर्तें
      • यदि केंद्र द्वारा पिछले ऋण/गारंटियाँ चुकता नहीं की जाती हैं तो केंद्र सरकार राज्य की उधारी पर शर्तें लगा सकती है। [अनुच्छेद-293(3)]
      • ये शर्तें केंद्र को राज्य के उधारों को विनियमित करने में व्यापक विवेकाधिकार प्रदान करती हैं।
  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 
    • अनुच्छेद-293 भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 163 पर आधारित है।
    • केंद्र द्वारा अनुचित इनकार या देरी को रोकने वाला एक खंड स्वतंत्रता के बाद हटा दिया गया था, क्योंकि राज्यों से वित्तीय स्वायत्तता की अपेक्षा की गई थी।

राज्यों द्वारा राजकोषीय स्वास्थ्य को सुदृढ़ करने के लिए उठाए जाने वाले कदम

दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए, राज्य विभिन्न रणनीतियों को अपना सकते हैं। ये उपाय घाटे को कम करने, राजस्व बढ़ाने, ऋण प्रबंधन और विकास को बढ़ावा देने पर केंद्रित हैं।

  • राजकोषीय घाटा कम करना 
    • व्यय नियंत्रण: अनावश्यक व्यय को सीमित करना और संसाधनों का कुशल उपयोग सुनिश्चित करना।
    • कुशल बजट बनाना: आवश्यक व्यय को प्राथमिकता देना और गैर-आवश्यक व्यय को कम करना।
  • सब्सिडी को तर्कसंगत बनाना
    • लक्षित सब्सिडी: समाज के सबसे कमजोर वर्गों पर सब्सिडी पर ध्यान केंद्रित करना। 
    • सब्सिडी का बोझ कम करना: धीरे-धीरे उन सब्सिडी को समाप्त करना, जो प्रभावी रूप से इच्छित प्राप्तकर्ताओं तक नहीं पहुँचती हैं।
  • ऋण प्रबंधन को मजबूत करना 
    • ऋण पुनर्गठन: ब्याज भुगतान को कम करने और स्थिरता में सुधार करने के लिए मौजूदा ऋण को पुनर्गठित करना।
    • ऋण में कमी: वित्तीय तनाव को कम करने के लिए कुल ऋण के स्तर में धीरे-धीरे कमी लाने का लक्ष्य रखना।
  • आर्थिक विकास को बढ़ावा देना
    • बुनियादी ढाँचे में निवेश: आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए बुनियादी ढाँचे के विकास पर ध्यान केंद्रित करना।
    • MSME का समर्थन करना: अर्थव्यवस्था में अपनी भूमिका को मजबूत करने के लिए सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को सहायता प्रदान करना।
  • संघीय समन्वय को बढ़ावा देना 
    • संघ-राज्य समन्वय: बेहतर वित्तीय प्रबंधन के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय में सुधार करना।
    • साझा संसाधन: संघ और राज्य के बीच संसाधनों और जिम्मेदारियों का उचित वितरण सुनिश्चित करना।

राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम के बारे में

  • FRBM भारतीय संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है, जिसका उद्देश्य राजकोषीय अनुशासन स्थापित करना तथा देश के वित्त को अधिक जिम्मेदारी से प्रबंधित करने में सहायता करना है।
  • FRBMA के मुख्य उद्देश्य
    • पारदर्शी राजकोषीय प्रबंधन: भारत में पारदर्शी और जवाबदेह राजकोषीय प्रबंधन प्रणाली स्थापित करना।
    • समान ऋण प्रबंधन: समय के साथ देश के ऋण का उचित और प्रबंधनीय वितरण सुनिश्चित करना।
    • दीर्घकालिक राजकोषीय स्थिरता: भारत में स्थायी वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा देना।
  • मुद्रास्फीति प्रबंधन के लिए लचीलापन
    • RBI के लिए समर्थन: इस अधिनियम ने भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को मुद्रास्फीति को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए अधिक लचीलापन प्रदान किया।
  • संशोधन: FRBM संशोधन अधिनियम, 2018 के तहत केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 3% से अधिक न हो और सार्वजनिक ऋण सकल घरेलू उत्पाद के 60% से अधिक न हो, साथ ही वर्ष 2025-26 तक राजकोषीय घाटे को 4.5% से नीचे लाने का लक्ष्य रखा गया है।

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