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दिव्यांग व्यक्तियों के लिए सुलभता एक मानवीय और मौलिक अधिकार है: सर्वोच्च न्यायालय

Lokesh Pal November 13, 2024 03:28 15 0

संदर्भ 

राजीव रतूड़ी बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने पुष्टि की कि पर्यावरण, सेवाओं एवं अवसरों तक पहुँच का अधिकार दिव्यांग व्यक्तियों (PWDs) के लिए एक मौलिक मानव अधिकार है। 

संबंधित तथ्य

  • निर्णय का आधार: यह निर्णय नालसर (NALSAR) यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ के दिव्यांगता अध्ययन केंद्र (Centre for Disability Studies- CDS) द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पर आधारित है।
  • NALSAR के विकलांगता अध्ययन केंद्र के अनुसार, दिव्यांगजनों के समक्ष आने वाली समस्याएँ:
    • सुगम्यता संबंधी बाधाएँ: न्यायालयों, जेलों, स्कूलों, सार्वजनिक परिवहन और अन्य सार्वजनिक स्थानों में सुगम्यता उपायों में अंतराल हैं।
    • बढ़ता भेदभाव: रिपोर्ट में बताया गया है कि दुर्गमता अक्सर बढ़ते भेदभाव की ओर ले जाती है, जिससे दिव्यांग व्यक्तियों के लिए अतिरिक्त असुविधाएँ उत्पन्न होती हैं, विशेषकर तब जब ये व्यक्ति अन्य प्रकार के हाशिए पर भी होते हैं।
    • मौजूदा कानूनी ढाँचे में असंगतियाँ: रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि दिव्यांग व्यक्तियों के लिए अनिवार्य सुगम्यता नियम निर्धारित किए गए हैं, जबकि दिव्यांग व्यक्तियों के लिए नियम (वर्ष 2017) केवल स्व-नियामक दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं।
      • RPWD नियमों का नियम 15, जिसमें सुगम्यता संबंधी मानक शामिल हैं, RPWD अधिनियम के विरुद्ध है।

भारत में दिव्यांगजनों की सहायता के लिए संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद-21: किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित किया जाएगा।
  • राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत: अनुच्छेद-41 में कहा गया है कि राज्य को कार्य, शिक्षा और बेरोजगारी, बुढ़ापे, बीमारी और दिव्यांगता के मामले में सार्वजनिक सहायता के अधिकार को सुरक्षित करने के लिए प्रभावी प्रावधान करना चाहिए।
  • सातवीं अनुसूची: इसके तहत, विकलांगों की सहायता राज्य का विषय है। (सूची II में प्रविष्टि 9)
  • 11वीं और 12वीं अनुसूची: दिव्यांगों और मानसिक मंदित लोगों का कल्याण 11वीं अनुसूची में 26 मद और 12वीं अनुसूची में 09 मद के रूप में सूचीबद्ध है।

सर्वोच्च न्यायालय की मुख्य टिप्पणियाँ

  • दिव्यांगता एक सामाजिक जिम्मेदारी है, व्यक्तिगत त्रासदी नहीं: मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने इस बात पर जोर दिया कि दिव्यांगता तभी त्रासदी बन जाती है, जब समाज दिव्यांगों को जीवन जीने के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराने में विफल हो जाता है।
  • समानता, स्वतंत्रता और गरिमा के लिए सुलभता आवश्यक: सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि समानता, स्वतंत्रता और मानवीय गरिमा के लिए सुलभता एक शर्त है, जो दिव्यांगों को अन्य अधिकारों का सार्थक उपयोग करने में सक्षम बनाती है।
  • क्षेत्रों में सुलभता के बुनियादी ढाँचे में असमानता: न्यायालय ने सुलभता मानकों में क्षेत्रीय असमानताओं पर ध्यान दिया।
    • उदाहरण के लिए, दिल्ली में व्हीलचेयर-सुलभ 3,775 बसें हैं, जबकि तमिलनाडु में केवल 1,917 हैं।
    • बॉम्बे आर्ट गैलरी जैसी कई पुरानी इमारतों में दिव्यांगों के लिए शौचालय सहित बुनियादी सुलभ सुविधाओं का अभाव है।
  • संबंधों और भावनात्मक कल्याण के अधिकारों की अनदेखी
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि समाज अक्सर दिव्यांग व्यक्तियों के लिए ‘संबंधों के अधिकार’ की अनदेखी करता है, जिसमें गोपनीयता, अंतरंगता और आत्म-अभिव्यक्ति की उनकी भावनात्मक आवश्यकताएँ शामिल हैं।
    • परिवार के साथ रहने वाले दिव्यांग व्यक्तियों को अक्सर आत्म-देखभाल और व्यक्तिगत अभिव्यक्ति के लिए निजी स्थानों से वंचित रखा जाता है।
  • अनिवार्य सुलभता मानकों की आवश्यकता
    • न्यायालय ने पाया कि मौजूदा सुगम्यता नियम अनिवार्य नहीं थे, जिसके कारण उनका अनुपालन कम हुआ।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार (RPwD) अधिनियम, 2016 की धारा 40 के तहत अनिवार्य नियम बनाने का निर्देश दिया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सार्वजनिक स्थान और सेवाएँ दिव्यांग व्यक्तियों के लिए सुलभ हों।
  • दिव्यांगता के सामाजिक मॉडल पर जोर: निर्णय में सरकार से कहा गया कि वह व्यक्तियों को ‘ठीक’ करने की कोशिश करने के बजाय, शारीरिक, संगठनात्मक और मनोवृत्ति संबंधी बाधाओं जैसे सामाजिक अवरोधों को दूर करने पर ध्यान केंद्रित करे।
  • सार्वजनिक और निजी स्थानों में सार्वभौमिक डिजाइन का आह्वान
    • न्यायालय ने ‘सार्वभौमिक डिजाइन’ सिद्धांतों की सिफारिश की, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि सार्वजनिक और निजी स्थान, सेवाएँ और उत्पाद शुरू से ही सभी के लिए सुलभ हों।
    • मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने जोर देकर कहा कि सुलभता को शुरू से ही नई सेवाओं और उत्पादों के डिजाइन में एकीकृत किया जाना चाहिए, क्योंकि यह बाद में समायोजन करने की तुलना में अधिक कुशल है।

दिव्यांगता अधिकारों के मॉडल

  • चिकित्सा मॉडल: यह मॉडल दिव्यांगता को व्यक्ति के भीतर एक स्वास्थ्य स्थिति या दुर्बलता के रूप में देखता है। यह चिकित्सा हस्तक्षेप के माध्यम से दिव्यांगता को ‘ठीक’ करने या उसका इलाज करने पर जोर देता है।
  • दान मॉडल (Charity Model): यह दिव्यांग व्यक्तियों को पीड़ित के रूप में देखता है। उन्हें सेवाओं के प्राप्तकर्ता और लाभार्थी के रूप में देखा जाता है।
  • सामाजिक मॉडल: इसे दान और चिकित्सा मॉडल के व्यक्तिवादी दृष्टिकोण के खिलाफ प्रतिक्रिया के रूप में विकसित किया गया था। यह मानता है कि दिव्यांगता शारीरिक, संगठनात्मक और मनोवृत्ति संबंधी बाधाओं के कारण होती है, न कि दिव्यांगता के कारण।
  • मानव अधिकार मॉडल: समानता, गरिमा और गैर-भेदभाव पर ध्यान केंद्रित करते हुए दिव्यांगता को मानवाधिकारों के मामले के रूप में प्रस्तुत करता है।
    • समान अवसरों, पहुँच और समाज के सभी पहलुओं में भाग लेने के अधिकार को बढ़ावा देता है।
  • आर्थिक मॉडल: अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव के संदर्भ में दिव्यांगता पर विचार करता है, संभावित लागत और खोई हुई उत्पादकता दोनों के संदर्भ में।

दिव्यांग व्यक्तियों (PwDs) के बारे में

  • दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार (RPwD) अधिनियम, 2016 के तहत, ‘दिव्यांग व्यक्तियों’ को ऐसे व्यक्तियों के रूप में परिभाषित किया गया है, जिनमें दीर्घकालिक शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक या संवेदी दिव्यांगता है, जो कई प्रकार की बाधाओं के साथ मिलकर, दूसरों के साथ समान आधार पर समाज में उनकी पूर्ण और प्रभावी भागीदारी में बाधा डाल सकती है। 
    • RPwD अधिनियम, 2016 के अनुसार, 21 प्रकार की दिव्यांगताएँ हैं जिनमें लोकोमोटर दिव्यांगता, दृश्य हानि, श्रवण हानि, भाषण और भाषा दिव्यांगता, बौद्धिक दिव्यांगता, एकाधिक दिव्यांगता, मस्तिष्क पक्षाघात, बौनापन आदि शामिल हैं। 
  • जनगणना दिव्यांगता श्रेणियाँ: जनगणना प्रश्नावली में वर्ष 2011 की जनगणना तक सात प्रकार की दिव्यांगताओं पर प्रश्न शामिल थे।
  • राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistics Office) की वर्ष 2019 की रिपोर्ट में दिव्यांग लोगों के अधिकारों को वर्ष 2016 में लागू किए जाने पर दिव्यांगताओं की सूची को बढ़ाकर 21 कर दिया गया। 
  • दिव्यांग व्यक्तियों (PwDs) की स्थिति 
    • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 2.68 करोड़ दिव्यांग व्यक्ति हैं, जो देश की कुल जनसंख्या का 2.21% है।

सहायक प्रौद्योगिकियों का उदाहरण

  • स्पीच रिकग्निशन सॉफ्टवेयर (Speech Recognition Software): मोटर दिव्यांगता वाले व्यक्तियों के लिए वॉयस-कंट्रोल सॉफ्टवेयर।
  • ब्रेल डिस्प्ले: ऐसे उपकरण, जो नेत्रहीन उपयोगकर्ताओं के लिए टेक्स्ट को ब्रेल में बदलते हैं।
  • आई-ट्रैकिंग डिवाइस: ऐसी तकनीक जो आँखों के निर्देशों का उपयोग करके नियंत्रण को सक्षम बनाती है।
  • एडेप्टिव कीबोर्ड: मोटर दिव्यांगता वाले उपयोगकर्ताओं के लिए कस्टमाइज करने योग्य कीबोर्ड।
  • टेक्स्ट-टू-स्पीच सॉफ्टवेयर: लिखित टेक्स्ट को बोले गए शब्दों में बदलता है।

दिव्यांग व्यक्तियों (PwDs) के लिए सुगम्यता में बाधाएँ

  • वास्तविक बाधाएँ: रैंप, लिफ्ट या चौड़े दरवाजों की कमी के कारण दुर्गम इमारतें, परिवहन प्रणालियाँ और सार्वजनिक स्थान।
    • पुरानी संरचनाओं में प्रायः इन विशेषताओं का अभाव होता है, जबकि नवीन संरचनाओं में कभी-कभी सार्वभौमिक डिजाइन सिद्धांतों की अनदेखी की जाती है, जिससे दिव्यांगजनों के लिए चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
    • दिव्यांग लोगों के लिए रोजगार संवर्द्धन हेतु राष्ट्रीय केंद्र के आँकड़ों से पता चलता है कि:
      • 1% से भी कम शैक्षणिक संस्थान दिव्यांगों के अनुकूल हैं।
      • 40% से भी कम स्कूल भवनों में रैंप हैं।
      • लगभग 17% में सुलभ शौचालय हैं।
  • तकनीकी बाधाएँ: दिव्यांगजनों, विशेष रूप से दृश्य, श्रवण या संज्ञानात्मक दिव्यांगता वाले लोगों के लिए सुलभ डिजिटल प्लेटफॉर्म, वेबसाइट और सहायक तकनीकों की कमी।
  • सहायक तकनीकों में अंतर: WHO और यूनिसेफ (UNICEF) की सहायक तकनीक पर वैश्विक रिपोर्ट (वर्ष 2022) में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि कम आय वाले देशों में केवल 3% लोगों के पास आवश्यक सहायक उत्पादों तक पहुँच है, जबकि उच्च आय वाले देशों में यह 90% है।
  • मनोवृत्ति संबंधी बाधाएँ: दिव्यांगों की क्षमताओं के बारे में सामाजिक भेदभाव, कलंक और गलत धारणाएँ, जो समावेशन और समान भागीदारी में बाधा डालती हैं।
  • आर्थिक बाधाएँ
    • संसाधनों की उच्च लागत: दिव्यांगों को सहायक उपकरणों, परिवहन और विशेष चिकित्सा देखभाल के लिए उच्च व्यय का सामना करना पड़ता है, जिससे आवश्यक संसाधनों तक उनकी पहुँच सीमित हो जाती है।
    • रोजगार संबंधी चुनौतियाँ: भेदभाव, दुर्गम कार्यस्थल और आवास की कमी दिव्यांगों के लिए रोजगार के अवसरों को सीमित करती है।
    • कम श्रम बल भागीदारी: दिव्यांगों की श्रम बल भागीदारी दर कम होती है, जिससे गरीबी का स्तर बढ़ता है।
      • दिव्यांग व्यक्तियों (PWD) पर अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की वर्ष 2011 की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 73.6% दिव्यांग लोग अभी भी श्रम बल से बाहर हैं।
  • कानूनी और नीतिगत बाधाएँ: पहुँच संबंधी कानूनों और नीतियों का अपर्याप्त प्रवर्तन या कुछ क्षेत्रों में ऐसे कानूनों का अभाव, दिव्यांगों के अधिकारों और सेवाओं तक पहुँच को सीमित करता है।
  • संचार बाधाएँ: ब्रेल, सांकेतिक भाषा या ऑडियो जैसे सुलभ प्रारूपों में सूचना तक सीमित पहुँच, दिव्यांगों को शिक्षा, कार्य और सामाजिक गतिविधियों में शामिल होने से रोकती है।
  • सांस्कृतिक और सामाजिक बाधाएँ: सांस्कृतिक मानदंड जो गहरी जड़ें जमाए हुए पूर्वाग्रह या जागरूकता की कमी के कारण दिव्यांगों को सामाजिक, शैक्षिक और व्यावसायिक अवसरों से अलग या बहिष्कृत करते हैं।
  • स्वास्थ्य सेवा बाधाएँ: दिव्यांग लोगों के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच से समझौता किया जा सकता है।
    • दिव्यांग व्यक्तियों में अवसाद, अस्थमा, मधुमेह, स्ट्रोक, मोटापा या खराब मौखिक स्वास्थ्य जैसी बीमारियाँ विकसित होने का जोखिम दोगुना होता है।

  • विशिष्ट विकलांगता पहचान (Unique Disability Identity- UDID) का उद्देश्य दिव्यांग व्यक्तियों (PwDs) के लिए एक राष्ट्रीय डेटाबेस बनाना और प्रत्येक दिव्यांग व्यक्ति को एक विशिष्ट दिव्यांगता पहचान-पत्र जारी करना है।
  • UDID ​​पोर्टल दिव्यांगता प्रमाण-पत्र और दस्तावेजीकरण की प्रक्रिया को सरल बनाता है।

दिव्यांगजनों की सहायता के लिए भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम

  • दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016: यह भारतीय संसद द्वारा दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के प्रति अपने दायित्व को पूरा करने के लिए पारित दिव्यांगता कानून है, जिसे भारत ने वर्ष 2007 में अनुमोदित किया था।
  • दिव्यांगजन अधिकार (RPwD) नए नियम, 2024
    • सरलीकृत आवेदन प्रक्रिया: संशोधनों का उद्देश्य दिव्यांग व्यक्तियों के लिए दिव्यांगता प्रमाण-पत्र और विशिष्ट दिव्यांगता पहचान (UDID) कार्ड प्राप्त करने की प्रक्रिया को सरल बनाना है।
    • रंग कोडित UDID ​​कार्ड: अद्यतन नियमों में दिव्यांगता के विभिन्न स्तरों को दर्शाने के लिए रंग-कोडित UDID ​​कार्ड पेश किए गए हैं:
      • सफेद: 40% से कम विकलांगता के लिए
      • पीला: 40% से 79% के बीच विकलांगता के लिए
      • नीला: 80% या उससे अधिक विकलांगता के लिए।
  • राष्ट्रीय न्यास अधिनियम (1999): यह अधिनियम दिव्यांग व्यक्तियों को उनकी सुरक्षा के उपायों को बढ़ावा देने, अभिभावकों की नियुक्ति करने और समाज में समान अवसर प्रदान करके स्वतंत्र रूप से जीवन जीने में सक्षम बनाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय ट्रस्ट की स्थापना करता है।
    • राष्ट्रीय न्यास (National Trust) भारत सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय का एक सांविधिक निकाय है।
  • भारतीय पुनर्वास परिषद अधिनियम (वर्ष 1992): यह दिव्यांगता पुनर्वास के क्षेत्र में कार्य करने वाले पेशेवरों के प्रशिक्षण और पंजीकरण को नियंत्रित करता है।
  • दिव्यांग व्यक्तियों को सहायक उपकरण खरीदने/लगाने के लिए सहायता (ADIP) योजना 
    • यह योजना दिव्यांग व्यक्तियों को आधुनिक सहायक उपकरण प्राप्त करने में सहायता करती है, ताकि उनके शारीरिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पुनर्वास को बढ़ावा मिले तथा उनकी आर्थिक क्षमता में वृद्धि हो।
  • सुगम्य भारत अभियान (Accessible India Campaign): सार्वजनिक स्थानों, परिवहन और सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) को दिव्यांगजनों के लिए सुलभ बनाना।
  • दिव्यांग सारथी ऐप: यह मोबाइल एप्लिकेशन दिव्यांग व्यक्तियों के लिए उपलब्ध नीतियों, योजनाओं और दिशा-निर्देशों के बारे में जानकारी प्रदान करता है, जिससे जागरूकता बढ़ाने तथा सरकारी संसाधनों तक पहुँच बनाने में मदद मिलती है।
  • अन्य
    • पीएम-दक्ष (दिव्यांग कौशल विकास एवं पुनर्वास योजना)
    • दीन-दयाल विकलांग पुनर्वास योजना।
    • दिव्यांग छात्रों के लिए राष्ट्रीय फेलोशिप।
    • भारतीय सांकेतिक भाषा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र, आदि।

दिव्यांगजनों की सहायता के लिए वैश्विक कार्यवाहियाँ

  • सतत् विकास लक्ष्य (SDGs): SDGs में दिव्यांगता और दिव्यांग व्यक्तियों को भी 11 बार स्पष्ट रूप से शामिल किया गया है।
  • दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन: दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (Convention on the Rights of Persons with Disabilities- CRPD) दिसंबर 2006 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाई गई एक अंतरराष्ट्रीय संधि है।
    • इसका उद्देश्य दिव्यांग व्यक्तियों (PwDs) के अधिकारों एवं सम्मान की रक्षा करना है, ताकि समाज में उनकी पूरी भागीदारी सुनिश्चित की जा सके, दूसरों के साथ समान आधार पर।
  • विकलांग व्यक्तियों का अंतरराष्ट्रीय दिवस (International Day of Persons with Disabilities- IDPD): एक संयुक्त राष्ट्र दिवस जो प्रत्येक वर्ष 3 दिसंबर को मनाया जाता है।

आगे की राह

  • दिव्यांगताओं की प्रारंभिक पहचान: प्रभावी हस्तक्षेप, पुनर्वास और सहायता के लिए यह महत्त्वपूर्ण है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि दिव्यांग व्यक्तियों को पूर्ण जीवन जीने का अवसर मिले।
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (National Health Mission- NMM) के तहत नवजात शिशुओं में दिखाई देने वाले दोषों की जाँच के लिए व्यापक नवजात स्क्रीनिंग (Comprehensive Newborn Screening- CNS) पुस्तिका को सभी प्रसव केंद्रों पर स्टाफ नर्सों और NMM की सहायता के लिए एक उपकरण के रूप में विकसित किया गया है।
  • प्रारंभिक हस्तक्षेप: उदाहरण
    • व्यावसायिक चिकित्सा से सूक्ष्म मोटर कौशल, खेल और ड्रेसिंग तथा शौचालय प्रशिक्षण जैसे स्व-सहायता कौशल में मदद मिल सकती है।
    • फिजियोथेरेपी से संतुलन, बैठना, रेंगना और चलना जैसे मोटर कौशल में मदद मिल सकती है।
    • वाक् चिकित्सा से भाषण, भाषा, खाने और पीने के कौशल में मदद मिल सकती है।
  • सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव: दिव्यांगों को आश्रित व्यक्तियों के बजाय समाज में समान भागीदार के रूप में देखने की दिशा में सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव लाना समावेश को बढ़ावा देने के लिए महत्त्वपूर्ण है। उदाहरण:
    • ‘विकलांग’ के स्थान पर ‘दिव्यांग’ जैसे सशक्तीकरण शब्दों के उपयोग को बढ़ावा देना।
    • बेहतर संवेदनशीलता और जागरूकता के लिए दिव्यांग व्यक्तियों पर सर्वोच्च न्यायालय की पुस्तिका को सभी के लिए सुलभ बनाया जा सकता है।
  • सहायक प्रौद्योगिकियों में निवेश: जैसे कि दृष्टिबाधित व्यक्तियों के लिए वाक् पहचान सॉफ्टवेयर और स्क्रीन रीडर से लेकर श्रवण यंत्र तथा गतिशीलता उपकरण के लिए निवेश किया जाना चाहिए।
    • ये प्रौद्योगिकियाँ दिव्यांग व्यक्तियों को दैनिक गतिविधियों को अधिक स्वतंत्र रूप से करने में सहायता करती हैं।
  • अवसरों और प्रोत्साहनों में वृद्धि: दिव्यांग व्यक्तियों के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण, कौशल विकास, स्वरोजगार और औपचारिक रोजगार के लिए, तथा श्रम बाजार में गैर-भेदभाव एवं समान वेतन सुनिश्चित करना।
  • डिजिटल रूप से सुलभ शिक्षाशास्त्र (Digitally Accessible Pedagogy-DAP) को अपनाना: विकलांग छात्रों को सशक्त बनाने के लिए DAP को अपनाना, भारत में समावेशी शिक्षा को सुलभता और समान सीखने के अवसरों के लिए एक मॉडल के रूप में स्थापित करना।

निष्कर्ष

दिव्यांग व्यक्तियों के लिए सुगम्यता सुनिश्चित करना न केवल मौलिक अधिकार है, बल्कि एक सामाजिक जिम्मेदारी भी है, जिसके लिए समाज में उनकी पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए व्यापक कानूनी, सामाजिक और ढाँचागत सुधारों की आवश्यकता है।

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