11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस (National Education Day) के रूप में मनाया जाता है।
संबंधित तथ्य
उद्देश्य: इस दिवस का उद्देश्य भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद की जयंती को चिह्नित करना।
भारत में यह दिन वर्ष 2008 से प्रतिवर्ष मनाया जाता है।
वर्ष 2024 की थीम: राष्ट्रीय शिक्षा दिवस 2024 की थीम ‘समावेशी, उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा का विषय’ (Topic of Inclusive, High-quality Education) है।
यह थीम उत्कृष्ट शिक्षा को बढ़ावा देती है एवं इसका उद्देश्य छात्रों को प्रासंगिक कौशल तथा ज्ञान प्रदान करना है।
मौलाना आजाद के बारे में
भूमिकाएँ: आजाद एक प्रमुख पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी एवं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे।
एकता की वकालत: देश केविभाजन से पहले बढ़ते सांप्रदायिक तनाव के बावजूद, आजाद हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए प्रतिबद्ध रहे।
विभाजन का विरोध: आजाद का मानना था कि मुस्लिम लीग की विभाजनकारी बयानबाजी का विरोध करते हुए भारतीय मुसलमान अपनी भारतीय एवं मुस्लिम दोनों पहचानों को अपना सकते हैं।
जिन्ना के साथ संघर्ष: आजाद के इस रुख के कारण मुहम्मद अली जिन्ना के साथ उनका टकराव हुआ, जिन्होंने उन्हें कांग्रेस का ‘मुस्लिम शोबॉय’ (Muslim Showboy) करार दिया तथा मुसलमानों के उनके प्रतिनिधित्व पर सवाल उठाया।
भारत की शिक्षा प्रणाली में योगदान
संस्थान निर्माण: स्वतंत्रता के बाद वे पहले शिक्षा मंत्री बने। उन्होंने प्रमुख संस्थानों की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जैसे:-
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IITs): पहला IIT वर्ष 1951 में खड़गपुर में स्थापित किया गया था।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC): उच्च शिक्षा की देखरेख एवं विनियमन के लिए वर्ष 1953 में स्थापित किया गया।
जामिया मिलिया इस्लामिया: जामिया मिलिया इस्लामियाकी सह-स्थापना की एवं इसे नई दिल्ली में स्थानांतरित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
भारतीय विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Science- IISc), बंगलूरू।
शिक्षा बजट पर फोकस: आजाद ने अपने कार्यकाल के दौरान शैक्षिक व्यय में उल्लेखनीय वृद्धि (₹1 करोड़ से ₹30 करोड़) की।
वयस्क साक्षरता पर जोर: उन्होंने शैक्षिक सुधार के लिए वयस्क साक्षरता को एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में पहचाना।
सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक संगठन: आजाद को कई प्रमुख संस्थानों की स्थापना का श्रेय भी दिया जाता है।
भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (Indian Council for Cultural Relations- ICCR): भारत एवं अन्य देशों के बीच सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देती है।
साहित्य अकादमी: भारत की विभिन्न भाषाओं में साहित्य को बढ़ावा देती है।
ललित कला अकादमी: भारत में ललित कला को बढ़ावा देती है।
संगीत नाटक अकादमी: भारत में प्रदर्शन कला को बढ़ावा देती है।
वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR): वैज्ञानिक अनुसंधान एवं औद्योगिक विकास को बढ़ावा देता है।
स्वतंत्रता आंदोलन में क्रांतिकारी गतिविधियाँ एवं भूमिका
भारतीय क्रांतिकारियों के साथ भागीदारी: भारत लौटने के बाद, वह अरबिंदो घोष एवं श्याम सुंदर चक्रवर्ती जैसे बंगाल के क्रांतिकारियों के साथ जुड़े, जिससे उत्तर भारत तथा बॉम्बे में क्रांतिकारी केंद्र स्थापित करने में मदद मिली।
हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रयास: कुछ क्रांतिकारियों के बीच मुस्लिम विरोधी भावनाओं के बावजूद, आजाद ने स्वतंत्रता आंदोलन के भीतर हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया।
अल-हिलाल (Al-Hilal) एवं अल-बालाघ (Al-Balagh) जर्नल: वर्ष 1912 में, उन्होंने मुसलमानों के बीच क्रांतिकारी विचारों को फैलाने, हिंदुओं एवं मुसलमानों के बीच एकता को बढ़ावा देने के लिए उर्दू साप्ताहिक अल-हिलाल की शुरुआत की।
अल-हिलाल पर प्रतिबंध लगने के बाद, उन्होंने समान उद्देश्यों के साथ अल-बालाघ की शुरुआत की, जिस पर भी वर्ष 1916 में प्रतिबंध लगा दिया गया था।
बाद में उन्हें राँची निर्वासित कर दिया गया एवं वर्ष 1920 में रिहा कर दिया गया।
खिलाफत एवं असहयोग आंदोलनों में भूमिका
खिलाफत आंदोलन: आजाद ने खिलाफत आंदोलन के माध्यम से मुस्लिम समुदाय को एकजुट किया, जिसने तुर्की में खलीफा को बहाल करने की माँग की।
असहयोग आंदोलन: उन्होंने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन का भी समर्थन किया एवं वर्ष 1920 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए।
कांग्रेस नेतृत्व: वर्ष 1923 में, उन्हें दिल्ली में एक विशेष कांग्रेस सत्र का अध्यक्ष चुना गया एवं वर्ष 1940 में, उन्होंने फिर से नेतृत्व सँभाला तथा वर्ष 1946 तक कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
भाषा नीति एवं अंग्रेजी की भूमिका
प्रारंभिक दौर: आजाद ने शुरू में स्वतंत्रता के बाद के भारत में अंग्रेजी भाषा के प्रभाव को कम करने का समर्थन किया था।
संशोधित परिप्रेक्ष्य: संविधान सभा में अपने भाषण (14 सितंबर, 1949) में उन्होंने तर्क दिया कि भारत निम्नलिखित कारणों से तु्रंत अंग्रेजी भाषा को हटा नहीं सकता है:
एक राष्ट्रीय भाषा का अभाव: किसी भी एक भाषा को पूरे देश में व्यापक स्वीकृति या उपयोग नहीं मिला।
शैक्षिक मानक: अंग्रेजी को न अपनाने से शैक्षिक गुणवत्ता और छात्र क्षमता से समझौता होने का खतरा था।
संतुलित दृष्टिकोण: आजाद ने शिक्षा में भाषा नीति के लिए क्रमिक, विचारशील दृष्टिकोण की वकालत करते हुए भावनाओं से अधिक व्यावहारिकता की आवश्यकता पर बल दिया।
मान्यता एवं विरासत
मृत्यु एवं मरणोपरांत सम्मान: राष्ट्र के प्रति उनके अमूल्य योगदान को देखते हुए वर्ष 1992 में उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
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