हाल ही में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में अंतर-राज्यीय परिषद (Inter-State Council- ISC) का पुनर्गठन किया गया है।
अंतर-राज्यीय परिषद (ISC) की स्थायी समिति का भी पुनर्गठन किया गया एवं केंद्रीय गृह मंत्री को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
पुनर्गठित परिषद की संरचना
अध्यक्ष: प्रधानमंत्री
सदस्य: विधानसभा वाले सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री तथा विधानसभा नहीं रखने वाले केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासक।
9 केंद्रीय मंत्री भी परिषद के सदस्य के रूप में कार्य करेंगे।
स्थायी आमंत्रित सदस्य: 13 केंद्रीय मंत्री स्थायी आमंत्रित सदस्य हैं।
अंतर-राज्यीय परिषद (Inter-State Council- ISC) की स्थायी समिति के बारे में
सदस्य: इसमें 12 अन्य सदस्य शामिल होंगे, जिनमें वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री एवं महाराष्ट्र, ओडिशा तथा आंध्र प्रदेश सहित सात राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल हैं।
कार्य
व्यापक अंतर-राज्यीय परिषद द्वारा विचार किए गए मुद्दों पर निरंतर परामर्श की सुविधा प्रदान करना।
यह ISC के समक्ष प्रस्तुत किए जाने से पहले केंद्र-राज्य संबंधों से संबंधित मुद्दों की समीक्षा एवं प्रसंस्करण के लिए जिम्मेदार है।
समिति ISC सिफारिशों के कार्यान्वयन की निगरानी भी करती है।
अंतर-राज्यीय परिषद (ISC) के बारे में
अंतर-राज्यीय परिषद भारत के संविधान के अनुच्छेद-263 के तहत स्थापित एक गैर-स्थायी संवैधानिक निकाय है।
स्थापना: ISC की स्थापना पहली बार 28 मई, 1990 को सरकारिया आयोग की सिफारिश पर राष्ट्रपति के आदेश द्वारा की गई थी।
उद्देश्य: इस निकाय का गठन संवाद को प्रोत्साहित करने, विवादों को सुलझाने तथा संघीय शासन एवं अंतर-राज्यीय सहयोग से संबंधित चिंताओं का समाधान करने के लिए किया गया है।
जिम्मेदारियाँ
केंद्र-राज्यों के बीच विवाद समाधान: ISC चर्चा की सुविधा प्रदान करके राज्यों के बीच विवादों को सुलझाने में मध्यस्थ के रूप में कार्य करता है एवं सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए सिफारिशें प्रदान करता है।
सहयोगात्मक नीति निर्धारण: परिषद कई राज्यों या संघ या एक अथवा अधिक राज्यों के सामान्य हित के विषयों पर चर्चा एवं जाँच करने के लिए एक मंच के रूप में कार्य करती है, जिससे समन्वित नीतिगत निर्णय लिए जाते हैं।
नीति समन्वय एवं सिफारिशें: ISC विभिन्न विषयों एवं मुद्दों पर सिफारिशें करता है, जो देश भर में नीतियों के सुसंगत तथा प्रभावी कार्यान्वयन को बढ़ावा देता है।
सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने में भूमिका
नीति समन्वय को सुविधाजनक बनाना: ISC राज्यों एवं केंद्र सरकार के बीच संवाद, नीतियों पर चर्चा तथा विवादों को सुलझाने के लिए एक प्रभावी मंच प्रदान करता है।
उदाहरण: ISC राज्यों में वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax- GST) के कार्यान्वयन के समन्वय में शामिल था।
विधान में एकरूपता: ISC राज्यों में कानूनों में एकरूपता सुनिश्चित करता है क्योंकि यह विभिन्न सरकारों को एक साथ आने के लिए एक मंच प्रदान करता है।
उदाहरण: ISC चर्चाओं से राज्य कानूनों को केंद्र सरकार की कृषि उपज बाजार समिति (Agricultural Produce Market Committee- APMC) अधिनियम सुधारों के साथ संरेखित किया गया।
संघर्ष समाधान: ISC अंतर-राज्य विवादों को संबोधित करता है एवं सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए उपायों की सिफारिश करता है।
उदाहरण: कर्नाटक एवं तमिलनाडु के बीच कावेरी जल विवाद की मध्यस्थता में ISC की भूमिका।
संघीय ढाँचे को मजबूत बनाना: मंच कुछ क्षेत्रों में अधिक राज्य स्वायत्तता की सिफारिश करके विकेंद्रीकरण को बढ़ावा देता है।
उदाहरण: पुंछी आयोग द्वारा सुझाई गई सिफारिशों के अनुसार, राज्यों को समवर्ती सूची के तहत विषयों को विकेंद्रीकृत करने की सिफारिशें।
सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करना: ISC एक ऐसा मंच भी है, जहाँ राज्य अन्य राज्यों में सर्वोत्तम प्रथाओं के कार्यान्वयन पर विचार-विमर्श कर सकते हैं।
कार्यान्वयन की निगरानी: ISC अपनी सिफारिशों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए एक प्रणाली विकसित करता है।
चुनौतियाँ
स्थायी निकाय नहीं है: ISC एक स्थायी निकाय नहीं होने के कारण नियमित समय अंतराल पर बैठक करने के लिए बाध्य नहीं है, जिससे इसकी प्रभावशीलता कम हो जाती है।
उदाहरण: वर्ष 1990 में अपनी स्थापना के बावजूद, ISC की केवल कुछ ही बैठकें हुई हैं, जिससे चल रहे मुद्दों को संबोधित करने की इसकी क्षमता प्रभावित हुई है।
सलाहकार की भूमिका: ISC के पास सीमित अधिकार हैं क्योंकि इसका केवल एक सलाहकार कार्य है एवं इसकी सिफारिशें बाध्यकारी नहीं हैं, जिससे इसका प्रभाव सीमित हो जाता है।
उदाहरण: पुलिस सुधारों एवं सार्वजनिक व्यवस्था पर कई सिफारिशें उनकी गैर-बाध्यकारी प्रकृति के कारण लागू नहीं की गई हैं।
संसाधन की कमी: ISC के पास विस्तृत अध्ययन एवं अनुवर्ती कार्रवाई तथा प्रशासनिक सहायता करने के लिए आवश्यक कर्मचारी एवं वित्तीय संसाधन जैसे पर्याप्त संसाधन नहीं हैं, जो इसके प्रभावी कामकाज में बाधा डालते हैं।
राजनीतिक इच्छाशक्ति: राजनीतिक मतभेद एवं राज्यों तथा केंद्र से प्रतिबद्धता की कमी ISC की क्षमता में बाधा डालती है।
उदाहरण: राजनीतिक असहमति अक्सर राजकोषीय संघवाद एवं शक्तियों के हस्तांतरण जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर आम सहमति में देरी करती है।
कार्यात्मक दोहराव: ISC की भूमिका कभी-कभी अन्य अंतर-सरकारी निकायों के साथ ओवरलैप हो जाती है, जिससे कार्यात्मक दोहराव होता है।
उदाहरण: राष्ट्रीय विकास परिषद (National Development Council- NDC) एवं वित्त आयोग के साथ ओवरलैप होने से ISC की विशिष्ट उपयोगिता कम हो जाती है।
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