इतिहास हमसे संबद्ध नहीं है बल्कि हम उससे संबद्ध हैं।
History does not belong to us; we belong to it.
— हंस-जॉर्ज गादामर
व्याख्या :
इस उद्धरण का तात्पर्य यह है कि हम उन घटनाओं और निर्णयों से अलग नहीं हैं जो हमारे समक्ष घटित होते हैं; इससे इतर हम एक बड़े ऐतिहासिक युग प्रवाह का हिस्सा हैं,
यह तथ्य उक्त उद्धरण से बहुत गहराई से प्रभावित है।
ध्यातव्य है कि इतिहास एक नदी की भांति है जो कि निरंतर बदलता रहता है और प्रवाहमय रहता है, जिसमें प्रत्येक पीढ़ी अपने से पहले आए लोगों के निर्णयों, कार्यों और घटनाओं के साथ-साथ आगे बढ़ती रहती है।
उदाहरण: यदि शीत युद्ध जारी रहता, तो आज हम जिस वर्तमान विश्व में गुजर-बसर कर रहे हैं, वह वर्तमान की अपेक्षा बहुत भिन्न होता।
भारत में वर्ष 1991 के दौरान शुरू किए गए एलपीजी सुधारों (उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण) ने नाटकीय रूप से देश की अर्थव्यवस्था और वैश्विक स्तर पर इसकी भूमिका को नया रूप प्रदान किया।
यदि एलपीजी सुधार नहीं हुए होते, तो भारत की विकास गति, इसका मध्यम वर्ग और इसकी वैश्विक स्थिति वर्तमान समय में विश्व अर्थव्यवस्था के समक्ष भिन्न दिखाई देती।
चंद्रगुप्त मौर्य के अधीन मौर्य साम्राज्य के उदय और अशोक के अधीन इस भूभाग के शिखर ने प्राचीन भारत के राजनीतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य को मौलिक रूप से बदल दिया।
दूसरा पहलू: जिस तरह अतीत हमारी वास्तविकता को आकार देता है, उसी तरह हमारे कार्य और विकल्प समय के साथ प्रतिध्वनित हो सकते हैं, जो भविष्य की पीढ़ियों के लिए इतिहास के पाठ्यक्रम को बदल सकते हैं।
उदाहरण के लिए: इसका एक उल्लेखनीय उदाहरण ब्रिटिश राज के दौरान महात्मा गांधी का नेतृत्व है।
औपनिवेशिक उत्पीड़न के सामने गांधीजी ने अहिंसा और शांतिपूर्ण प्रतिरोध का रास्ता चुना।
इस प्रकार, हमें इतिहास में अपना स्थान स्वीकार करना होगा, उन शक्तियों को समझना होगा जिन्होंने हमें आकार दिया है। हमें यह पहचानना होगा कि हम भी समाज में अपने बड़े या छोटे कार्यों के माध्यम से छाप छोड़ सकते हैं।
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