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Lokesh Pal November 15, 2024 05:15 35 0
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा “बुलडोजर न्याय” के विरोध में एक निर्णय दिया गया, जिसमें बिना उचित प्रक्रिया के संपत्तियों को हानि पहुँचाने की निंदा की गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी “बुलडोजर न्याय” के खिलाफ़ कड़ा रुख अपनाया था। 6 नवंबर 2024 को दिए गए फ़ैसले में पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ, जिसमें जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा शामिल थे, ने इस प्रथा का कड़ा विरोध किया। |
अनुच्छेद 142सर्वोच्च न्यायालय अपने अधीन आने वाले मामलों में निष्पक्ष न्याय सुनिश्चित करने के लिए आदेश या फैसले जारी कर सकता है, और ये आदेश पूरे भारत में लागू होते हैं। |
प्राकृतिक न्याय से तात्पर्य : किसी विशेष मुद्दे पर समझदारीपूर्ण एवं उचित निर्णय लेने की प्रक्रिया सुनिश्चित करने के सिद्धांत से है, जिसमें दोनों पक्षों की दलीलें सुनना शामिल है। |
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बुलडोजर न्याय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाया गया हालिया फैसला महत्वपूर्ण है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। केवल राजनीतिक जवाबदेही, इच्छाशक्ति और स्थानीय शासन में बदलाव के माध्यम से ही वास्तविक न्याय सुनिश्चित किया जा सकता है।
मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्नप्रश्न: “बुलडोजर न्याय प्रशासनिक दक्षता और संवैधानिक अधिकारों के बीच टकराव को दर्शाता है।” भारत में हाल की घटनाओं के आलोक में इस कथन का आलोचनात्मक विश्लेषण करें। (15 मिनट, 250 शब्द) |
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