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कासरगोड में पहली बार देखा गया लाल सिर वाला गिद्ध

Lokesh Pal November 19, 2024 02:14 33 0

संदर्भ 

हाल ही में केरल के कासरगोड (Kasaragod) में गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically Endangered)रेड हेडेड वल्चर’ या लाल सिर वाला गिद्ध (Red-Headed Vulture) देखा गया है, जो इस क्षेत्र की पक्षी जैव विविधता (Avian Biodiversity) में एक महत्त्वपूर्ण वृद्धि को दर्शाता है।

रेड हेडेड वल्चर’ या लाल सिर वाला गिद्ध (Red-Headed Vulture) के बारे में

  • इन्हें ‘एशियन किंग वल्चर’ (Asian King Vulture) या ‘पांडिचेरी वल्चर’ (Pondicherry Vulture) के नाम से भी जाना जाता है।
  • यह भारत में पाई जाने वाली 9 गिद्ध प्रजातियों में से एक है।
  • उपस्थिति
    • गहरे रंग का, मध्यम आकार का गिद्ध जिसका सिर एवं गर्दन लाल रंग की होती है।
    • वजन लगभग 5 किलोग्राम, औसत लंबाई 80 सेमी. से अधिक होती है।
    • मुख्य रूप से एकाकी; अकेले या अपने किसी अन्य साथी प्रजाति के साथ देखा जाता है।
    • काले पंख और पेट पर एक विशिष्ट सफेद धब्बा, जो उड़ान के दौरान दिखाई देता है।
  • वितरण: वे मध्य भारत, नेपाल, म्याँमार, थाईलैंड, वियतनाम और केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं।
  • प्रजनन: यह प्रजाति नवंबर और जनवरी के बीच प्रजनन करती है।
  • संरक्षण स्थिति
    • IUCN की रेड लिस्ट में: गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically Endangered)।
    • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची 1 के अंतर्गत सूचीबद्ध।
    • CITES स्थिति: परिशिष्ट II (Appendix II)।

भारत में गिद्धों के बारे में

  • भारतीय गिद्धों की 9 प्रजातियाँ पाई जाती है, जिन्हें स्थानीय या प्रवासी के रूप में वर्गीकृत किया गया है:
    • निवासी प्रजातियाँ (Resident species): सफेद-पूँछ वाला गिद्ध (White-Rumped Vulture), भारतीय गिद्ध (Indian Vulture), पतली-चोंच वाला गिद्ध (Slender-Billed Vulture), लाल सिर वाला गिद्ध (Red-Headed Vulture), बियर्डेड वल्चर (Bearded Vulture) और इजिप्टियन वल्चर (Egyptian Vulture)।
    • प्रवासी प्रजातियाँ (Migratory species): सिनेरियस गिद्ध (Cinereous Vulture), ग्रिफॉन गिद्ध (Griffon Vulture) और हिमालयी गिद्ध (Himalayan Vulture)।
  • इन प्रजातियों की संरक्षण स्थिति अलग-अलग है, जिनमें से कुछ गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं और अन्य लगभग संकटग्रस्त हैं:
    • गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically Endangered): सफेद-पूँछ वाला गिद्ध, पतली-चोंच वाला गिद्ध, लंबी-चोंच वाला गिद्ध और लाल-सिर वाला गिद्ध।
    • संकटग्रस्त (Endangered): इजिप्टियन वल्चर (Egyptian Vulture)।
    • निकट संकटग्रस्त (Near Threatened): हिमालयन ग्रिफ़ॉन (Himalayan Griffon), सिनेरियस वल्चर (Cinereous Vulture) और बियर्डेड वल्चर (Bearded Vulture)।
  • आबादी में गिरावट: दक्षिण एशिया में गिद्धों की आबादी में भारी गिरावट देखी गई है, विशेषकर भारत, पाकिस्तान और नेपाल में।
    • 1990 के दशक के अंत और 2000 के दशक की शुरुआत में हुई इस गिरावट का मुख्य कारण पशु चिकित्सा दवा डाइक्लोफेनाक (Diclofenac) का व्यापक उपयोग था, जो गिद्धों के लिए जहरीली है।

भारत में गिद्धों के समक्ष खतरा

  • विषाक्तता
    • पशु चिकित्सा दवाओं का उपयोग: 20वीं सदी के उत्तरार्द्ध में डाइक्लोफेनाक (Diclofenac), कीटोप्रोफेन (Ketoprofen) और एसेक्लोफेनाक (Aceclofenac) जैसी पशु चिकित्सा दवाओं के व्यापक उपयोग ने गिद्धों की आबादी को बुरी तरह प्रभावित किया है।
    • विषाक्त प्रभाव (Toxic Effects): पशुओं के दर्द और सूजन के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली ये दवाएँ, उपचारित पशुओं के शवों को खाने वाले गिद्धों के लिए घातक हैं।
    • डाइक्लोफेनाक का प्रभाव (Diclofenac Impact): डाइक्लोफेनाक विशेष रूप से गिद्धों में घातक गुर्दे की विफलता का कारण बनता है; कीटोप्रोफेन और एसेक्लोफेनाक के साथ भी इसी तरह के प्रभाव देखे गए हैं।
    • कीटनाशक संदूषण (Pesticide Contamination): गिद्ध अक्सर कीटनाशकों या अन्य विषाक्त पदार्थों से दूषित शवों का उपभोग करते हैं।
    • सीसा विषाक्तता (Lead Poisoning): सीसा बारूद से मारे गए जानवरों को खाने वाले गिद्ध घातक सीसा विषाक्तता से पीड़ित हो सकते हैं, जिससे आबादी में और गिरावट आती है।
  • आवास का ह्रास
    • शहरीकरण और वनों की कटाई: शहरी क्षेत्रों के विस्तार, वनों की कटाई और कृषि विकास के कारण आवासों का अत्यधिक नुकसान हुआ है।
    • घोंसले के शिकार स्थलों पर प्रभाव: घोंसले एवं बसेरा स्थलों के साथ-साथ खाद्य के स्रोतों का विनाश गिद्धों के अस्तित्व के लिए चुनौती बन गया है।
  • बुनियादी ढाँचे के साथ टकराव 
    • भेद्यता: गिद्धों को विद्युत की लाइनों, पवन टर्बाइनों और अन्य मानव निर्मित संरचनाओं से टकराने का खतरा रहता है।
    • जिसके परिणामस्वरूप चोट एवं मृत्यु होती है: ऐसी घटनाओं से चोट या मृत्यु होती है, जिससे उनकी संख्या और कम हो जाती है।
  • अवैध शिकार एवं शिकार (Poaching and Hunting)
    • सांस्कृतिक मान्यताएँ एवं वन्यजीव व्यापार (Cultural Beliefs and Wildlife Trade): कुछ क्षेत्रों में सांस्कृतिक प्रथाओं या अवैध वन्यजीव व्यापार के कारण गिद्धों का शिकार किया जाता है, जिससे उनकी संख्या में कमी आ रही है।
  • रोग
    • एवियन डिजीज (Avian Diseases): एवियन पॉक्स और एवियन फ्लू जैसी बीमारियों के प्रकोप से गिद्धों की आबादी पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है, जिससे उनकी संख्या में कमी आ सकती है।

भारत में गिद्ध संरक्षण के प्रयास 

  • नशीली दवाओं के खतरों से निपटना
    • डिक्लोफेनाक प्रतिबंध (Diclofenac Ban): भारत ने दूषित शवों के कारण गुर्दे की विफलता से गिद्धों की मृत्यु को रोकने के लिए वर्ष 2006 में डिक्लोफेनाक के पशु चिकित्सा उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था।
    • गिद्ध कार्य योजना 2020-25 (Vulture Action Plan 2020-25): डिक्लोफेनाक के उपयोग को कम करने और गिद्धों के भोजन स्रोतों के संदूषण को रोकने के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (भारत सरकार) द्वारा शुरू की गई।
    • विस्तारित प्रतिबंध: अगस्त 2023 में, गिद्धों की सुरक्षा के लिए पशु चिकित्सा उद्देश्यों के लिए कीटोप्रोफेन (Ketoprofen) और एसिक्लोफेनाक (Aceclofenac) के उपयोग पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया।

  • बंदी प्रजनन और पुनःप्रवेश (Captive Breeding and Reintroduction)
    • गिद्ध संरक्षण प्रजनन केंद्र (Vulture Conservation Breeding Centres- VCBC): भारत ने प्रजनन केंद्रों का एक नेटवर्क स्थापित किया, जिनमें से पहला वर्ष 2001 में हरियाणा के पिंजौर (Pinjore) में स्थापित किया गया था।
    • सेंटर नेटवर्क (Centre Network): वर्तमान में, 9 गिद्ध संरक्षण प्रजनन केंद्र (VCBC) हैं, जिनमें से तीन बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी (Bombay Natural History Society- BNHS) द्वारा प्रबंधित हैं, जो जंगल में छोड़ने के लिए गिद्धों की आबादी बढ़ाने पर केंद्रित हैं।
    • जटायु संरक्षण और प्रजनन केंद्र (Jatayu Conservation and Breeding Centre): जटायु संरक्षण और प्रजनन केंद्र का उद्घाटन सितंबर 2024 में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर वन प्रभाग के भारीवैसी (Bharivaisi) में किया गया था।
  • अभयारण्य 
    • भारत का एकमात्र गिद्ध अभयारण्य कर्नाटक के रामनगर में स्थित है और इसे रामदेवरा बेट्टा गिद्ध अभयारण्य (Ramadevara Betta Vulture Sanctuary) कहा जाता है।
  • ‘वल्चर रेस्टोरेंट’ पहल (Vulture Restaurant Initiative)
    • सुरक्षित आहार स्थल (Safe Feeding Sites): झारखंड के कोडरमा जिले में एक ‘वल्चर रेस्टोरेंट’ की स्थापना की गई, ताकि दूषित खाद्य स्रोत उपलब्ध कराए जा सकें और जहरीली पशुधन दवाओं के प्रभाव को कम किया जा सके।
  • अन्य संरक्षण उपाय
    • वन्यजीव आवासों का एकीकृत विकास (Integrated Development of Wildlife Habitats- IDWH): IDWH के तहत ‘प्रजाति पुनर्प्राप्ति कार्यक्रम’ (Species Recovery Programme) में गिद्ध संरक्षण प्रयास शामिल हैं।
    • गिद्ध सुरक्षित क्षेत्र (Vulture Safe Zones): ये कार्यक्रम पूरे भारत में आठ स्थानों पर सक्रिय हैं, जिनमें उत्तर प्रदेश में दो स्थल शामिल हैं।
    • कानूनी संरक्षण: बियर्डेड वल्चर (Bearded Vulture), लंबी चोंच वाले, पतली चोंच वाले और ओरिएंटल सफेद पीठ वाले गिद्ध जैसी प्रजातियों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के तहत संरक्षित किया गया है, जबकि अन्य अनुसूची IV के अंतर्गत आते हैं।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग 
    • एशिया के गिद्धों को विलुप्त होने से बचाना (Saving Asia’s Vultures from Extinction- SAVE): क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों का एक संघ जो दक्षिण एशिया में गिद्धों के पुनरुद्धार के लिए संरक्षण, जागरूकता अभियान और धन उगाही के लिए समर्पित है।

गिद्ध संरक्षण के लिए आगे की राह

  • हानिकारक दवाओं का विनियमन: हानिकारक पशु चिकित्सा दवाओं के विनियमन को मजबूत करना और सुरक्षित विकल्पों के उपयोग को बढ़ावा देना। निमेसुलाइड (Nimesulide) जैसी दवाओं पर व्यापक प्रतिबंध लगाने पर विचार करना।
  • शिक्षा और सुरक्षित शव निपटान: सुरक्षित शव निपटान के बारे में जागरूकता बढ़ाना और सुरक्षित भोजन के साथ गिद्धों के लिए भोजन केंद्र स्थापित करना।
  • घोंसले के शिकार स्थल की सुरक्षा: गिद्धों के घोंसलों और बसेरा क्षेत्रों की पहचान करना और उनकी सुरक्षा करना तथा भोजन एवं घोंसलों के शिकार स्थलों को जोड़ने वाले गलियारे बनाना।
  • निरंतर निगरानी: पशु चिकित्सा पद्धतियों में डाइक्लोफेनाक के उपयोग को समाप्त करने के लिए सख्त निगरानी सुनिश्चित करना।
  • व्यापक रणनीति: प्रभावी गिद्ध संरक्षण के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है और भारत के चल रहे प्रयास समान चुनौतियों का सामना कर रहे अन्य देशों के लिए एक मॉडल के रूप में कार्य कर सकते हैं।

निष्कर्ष

गिद्धों के प्रभावी संरक्षण के लिए निरंतर प्रयास, सहयोग और हानिकारक प्रथाओं के सख्त विनियमन की आवश्यकता है। भारत की बहुआयामी पहल, इन महत्त्वपूर्ण अपमार्जक पक्षियों की संख्या में कमी को रोकने और पारिस्थितिकी संतुलन के लिए उनकी सुरक्षा हेतु एक आशाजनक फ्रेमवर्क प्रस्तुत करती है।

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