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भारतीय संघवाद : सहकारी मॉडल या प्रतिस्पर्द्धी वास्तविकता?

Lokesh Pal November 18, 2024 05:30 24 0

संदर्भ :

हाल ही में पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने इस बात पर बल दिया कि सहकारी संघवाद, जो भारतीय लोकतंत्र की आधारशिला है, के लिए राज्यों को संघ की नीतियों के साथ तालमेल बिठाने की आवश्यकता नहीं है | उन्होंने इस सिद्धांत को पुष्ट करने के लिए वर्ष 1977 के सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्णय का हवाला दिया।

संघवाद

  • अर्थ : संघवाद सरकार की एक प्रणाली है, जिसमें सत्ता एक केंद्रीय प्राधिकरण और देश की विभिन्न  इकाइयों के मध्य विभाजित होती है।
  • संवैधानिक विभाजन : भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में उन विषयों का स्पष्ट सीमांकन किया गया है, जो विशेष रूप से संघ के अधिकार क्षेत्र में आते हैं तथा जो राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
    • संघ सूची : संघ सूची में राष्ट्रीय महत्त्व के विषय शामिल हैं, जैसे- रक्षा, विदेशी मामले, बैंकिंग और मुद्रा।
    • राज्य सूची : राज्य सूची में पुलिस, व्यापार, वाणिज्य, कृषि और सिंचाई  जैसे राज्य और स्थानीय महत्त्व के विषय शामिल हैं ।
    • समवर्ती सूची : समवर्ती सूची में संघ और राज्य सरकारों दोनों के साझा हित के विषय शामिल हैं, जैसे- शिक्षा, वन, ट्रेड यूनियन, विवाह, गोद लेना और उत्तराधिकार।

सहकारी संघवाद

  • सहकारी संघवाद से तात्पर्य केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सहयोगात्मक संबंध से है, जहाँ सरकार के दोनों स्तर निर्णय लेने की प्रक्रिया में एक साथ कार्य करते हैं और राष्ट्रीय विकास के लिए उत्तरदायित्व साझा करते हैं।

प्रतिस्पर्द्धी संघवाद

  • प्रतिस्पर्द्धी संघवाद में राज्य बुनियादी ढाँचे, सार्वजनिक सेवाओं और नियामक ढाँचे में सुधार करके निवेश और प्रतिभा को आकर्षित करने के लिए एक दूसरे के साथ  क्षैतिज प्रतिस्पर्द्धा में संलग्न होते हैं । उदाहरण : क्षैतिज प्रतिस्पर्द्धा का एक उदाहरण सेमीकंडक्टर कंपनियों या टेस्ला जैसी कंपनियों को आकर्षित करने के लिए राज्यों के बीच व्याप्त संघर्ष है।
  • ऊर्ध्वाधर प्रतिस्पर्द्धा : यह प्रतिस्पर्द्धा ऊर्ध्वाधर प्रतिस्पर्द्धा तक भी विस्तारित हो सकती है, जहाँ राज्य नीतिगत पहलों और संसाधन आवंटन पर केंद्र के साथ प्रतिस्पर्द्धा करते हैं। 
  • 1947 के बाद प्रतिस्पर्द्धी संघवाद : स्वतंत्रता के बाद भारत में एक-दलीय प्रभुत्व का अनुभव हुआ, जिसका नेतृत्व मुख्य रूप से कांग्रेस पार्टी ने किया तथा केंद्र द्वारा नियोजित पंचवर्षीय योजनाओं का कार्यान्वयन हुआ। 
    • परिणामस्वरूप इस अवधि के दौरान भारत में प्रतिस्पर्द्धी संघवाद काफी हद तक अनुपस्थित था तथा केंद्र का राज्य की नीतियों और विकास पर महत्त्वपूर्ण नियंत्रण था।
  • क्षेत्रीय दल और एल.पी.जी. सुधार : बाद में क्षेत्रीय दलों के उदय और 1990 के दशक में एल.पी.जी. (उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण) सुधारों के माध्यम से अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के साथ , प्रतिस्पर्द्धी संघवाद को गति मिली।

कुशल सहकारी संघवाद के लिए शर्तें :

सहकारी संघवाद उन स्थितियों में कार्य करता है, जहाँ सभी संबंधित पक्षों को लाभ मिलता है तथा केंद्र और राज्य लोगों के कल्याण के लिए कार्य करते हैं।

  • असमान लाभ : जब लाभ असमान रूप से वितरित हो तो सहयोग चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
    • यह तभी संभव है जब अधिक लाभ पाने वाले लोग नुकसान उठाने वालों को क्षतिपूर्ति करें तथा निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए वार्ता और संघर्ष समाधान के लिए पारदर्शी तंत्र की आवश्यकता होगी।
  • जमीनी वास्तविकता : व्यवहार में, राजनीतिक दल अक्सर वास्तविक सहयोग की अपेक्षा चुनावी लाभ को प्राथमिकता देते हैं तथा दीर्घकालिक सहयोग के बजाय अल्पकालिक सफलता पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जो सहकारी संघवाद को कमजोर करता है।

केस स्टडी : वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी)

  • जीएसटी का कार्यान्वयन भारत की संघीय व्यवस्था में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सहयोग का एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है। 
  • एकीकृत कर प्रणाली बनाकर दोनों स्तरों की सरकारों का उद्देश्य आर्थिक विकास को बढ़ाना, एक साझा बाजार स्थापित करना और राजस्व सृजन में सुधार करना था। 
  • राज्यों को आधार वर्ष 2015-16 के आधार पर 14% वार्षिक राजस्व गारंटी का वादा किया गया था और नई कर प्रणाली के कारण राज्य के राजस्व में किसी भी कमी को पूरा करने के लिए जीएसटी क्षतिपूर्ति उपकर की शुरुआत की गई थी।
  • हालाँकि यह सुधार सहकारी संघवाद को दर्शाता है, लेकिन कोविड-19 महामारी के दौरान चुनौतियाँ उत्पन्न हुईं, जब केंद्र ने दावा किया कि वह आर्थिक कठिनाई को “ईश्वरीय कृत्य” बताते हुए अपने मुआवजे के दायित्वों को पूरा नहीं कर सकता।
  • इससे केंद्र और राज्यों के बीच संघर्ष पैदा हुआ , जिससे संकट के समय सहयोग में अंतर उजागर हुआ। 
  • यद्यपि जीएसटी संघीय सहयोग का एक सफल उदाहरण है, फिर भी वित्तीय बाधाओं और समय पर मुआवजे की कमी के कारण इसके कार्यान्वयन में बाधाएँ आईं। 

सहकारी संघवाद के कार्यान्वयन में चुनौतियाँ 

  • केंद्र-राज्य संघर्ष : 
    • दिल्ली-केंद्र विवाद : राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रशासनिक शक्तियों को लेकर अक्सर टकराव की स्थिति उत्पन्न होती रहती है।
    • केरल का विवाद : वित्तीय स्वायत्तता को लेकर केरल सरकार का संघ के साथ टकराव, चल रहे तनाव को उजागर करता है।
  • राजकोषीय संघवाद की चुनौतियाँ
    • निधियों का विभाजन : राज्यों का तर्क है कि वित्त आयोग केंद्र को धन का असंगत हिस्सा आवंटित करता है, जिससे उनके पास अपर्याप्त संसाधन बचते हैं।
    • जीएसटी मुआवज़ा : वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) मुआवजे में देरी और विवाद ने केंद्र-राज्य संबंधों को और अधिक तनावपूर्ण बना दिया है। केंद्र का तर्क है कि उसके वित्तीय संसाधन सीमित हैं, जिससे सभी राज्यों की मांगों को पूरा कर पाना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • सुनिश्चित तंत्र का अभाव 
    • अंतर-राज्यीय परिषद का कम उपयोग : केंद्र-राज्य विचार-विमर्श को बढ़ावा देने के लिए 1990 में स्थापित इसकी बैठकें कभी-कभार ही होती हैं, जिससे इसकी प्रभावशीलता कम हो जाती है।
    • नीति आयोग की चुनौतियाँ : यद्यपि इसे राज्यों को सशक्त करने के लिए बनाया गया है, लेकिन राज्य प्रतिनिधियों द्वारा बैठकों से बाहर चले जाने की घटनाएँ एक रचनात्मक मंच के रूप में इसकी भूमिका को कमजोर करती हैं।

आगे की राह

  • दीर्घकालिक समाधान
    • एक स्वतंत्र समन्वय निकाय की स्थापना : उधार सीमा और राजकोषीय नीतियों जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों को हल करने के लिए एक निष्पक्ष, पारदर्शी निकाय की स्थापना की जानी चाहिए। 
    • राज्य की स्वायत्तता को बढ़ावा देना : भारतीय संघवाद के विकास के लिए केंद्र को राज्यों की स्वायत्तता का सम्मान करना चाहिए और उसे बनाए रखना चाहिए। 
    • विद्यमान तंत्र को सुदृढ़ बनाना : अंतर-राज्यीय परिषद और नीति आयोग जैसे विद्यमान मंचों को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए, जिससे सहयोगात्मक निर्णय लेने में सक्षम बनाया जा सके और केंद्रीय स्तर पर शक्तियों को केन्द्रित किए बिना शिकायतों का समाधान किया जा सके।
  • तात्कालिक उपाय :
    • नियमित जुड़ाव : केन्द्र और राज्यों के मध्य लगातार और संरचित बैठकें विश्वास को बढ़ावा देने तथा विवादों को प्रभावी ढंग से सुलझाने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
    • पारदर्शिता सुनिश्चित करना : केंद्र और राज्यों के मध्य सूचना और आँकड़ों का पारदर्शी आदान-प्रदान आपसी विश्वास पैदा कर सकता है तथा विवादास्पद मुद्दों का त्वरित समाधान संभव हो सकता है।
    • लंबित विवादों का समाधान : परिसीमन विवाद जैसे दीर्घकालिक मुद्दों के समाधान को प्राथमिकता देने से तनाव कम करने और प्रशासनिक दक्षता को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।

निष्कर्ष

भारतीय संघवाद का भविष्य “सहकारी संघवाद” से आगे बढ़कर सहयोग और प्रतिस्पर्द्धा दोनों को शामिल करना होना चाहिए। इस गतिशील मॉडल को अपनाने से भारत को विविध और विकसित होते राजनीतिक परिदृश्य में शासन की जटिल चुनौतियों से निपटने में सहायता मिलेगी और एक बेहतर भारतीय संघवाद विकसित हो सकेगा ।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

भारत के संघीय ढाँचे के समक्ष उपस्थित प्रमुख चुनौतियाँ कौन-कौन सी हैं? संघ-राज्य विवादों को हल करने के लिए मौजूदा संस्थागत तंत्र की प्रभावशीलता का विश्लेषण कीजिए तथा सहकारी संघवाद को मजबूत करने के लिए उपयुक्त सुधार सुझाइए ।

(15 अंक, 250 शब्द)

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