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सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार की आवश्यकता

Lokesh Pal November 20, 2024 05:21 278 0

संदर्भ

भारतीय अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद (ICRIER) के अध्ययन के अनुसार, मुफ्त राशन योजना के तहत 800 मिलियन से अधिक लाभार्थियों को खाद्यान्न वितरण में रिसाव की वार्षिक राजकोषीय लागत 69,000 करोड़ रुपये होने का अनुमान है।

भारतीय अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद (Indian Council for Research on International Economic Relations- ICRIER)

  • स्थापना: वर्ष 1981 में स्थापित, भारतीय अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद (ICRIER) एक स्वतंत्र सार्वजनिक नीति संगठन है।
  • आदर्श वाक्य: इसका मार्गदर्शक आदर्श वाक्य ‘भारत को विश्व से जोड़ना’ है।
  • फोकस क्षेत्र: ICRIER कृषि, जलवायु परिवर्तन, डिजिटल अर्थव्यवस्था, आर्थिक विकास, नौकरी, व्यापार, उद्योग और निवेश जैसे प्रमुख क्षेत्रों में अनुसंधान करता है।
  • भूमिका तथा योगदान: यह भारत के समावेशी विकास को गति देने के लिए व्यावहारिक विचार प्रदान करता है और शिक्षा और नीति-निर्माण के बीच एक सेतु का कार्य करता है।
  • सलाहकार भूमिका: ICRIER सरकारों, कॉरपोरेट्स, बहुपक्षीय संगठनों तथा फाउंडेशनों के लिए एक विश्वसनीय सलाहकार के रूप में कार्य करता है।

ICRIER अध्ययन में चर्चा किए गए प्रमुख मुद्दे

  • अत्यधिक कवरेज तथा आर्थिक बोझ
    • NSFA तथा PMGKAY के तहत वर्तमान कवरेज: यह 57% आबादी (वर्ष 2024 में लगभग 1.43 बिलियन की आबादी में से 813.5 मिलियन लोग) तक फैला हुआ है।
    • आलोचना: आलोचकों का तर्क है कि 800 मिलियन से अधिक लोगों को मुफ्त भोजन उपलब्ध कराना आर्थिक रूप से असंतुलित है।
  • PDS में रिसाव
    • सार्वजनिक वितरण प्रणाली में एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा खाद्यान्नों का रिसाव है, जो उन्हें लक्षित लाभार्थियों तक पहुँचने से रोकता है।
    • रिसाव की सीमा: PDS के तहत वितरित चावल तथा गेहूँ का लगभग 28% लाभार्थियों तक नहीं पहुँचता है, जिसके परिणामस्वरूप प्रत्येक वर्ष (2022-23) 19.69 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) अनाज की हानि होती है।
      • इससे प्रति वर्ष ₹69,108 करोड़ का वित्तीय घाटा होता है।

    • राज्य संबंधी भिन्नताएँ: अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड तथा गुजरात जैसे राज्यों ने रिसाव की कुछ उच्चतम दरों की सूचना दी है।
    • सुधार एवं चुनौतियाँ: उचित मूल्य की दुकानों पर पॉइंट-ऑफ-सेल (PoS) मशीनों की शुरुआत ने वर्ष 2011-12 में रिसाव को 46% से घटाकर वर्ष 2022-23 में 28% कर दिया है।
  • पोषण सुरक्षा की कमी
    • वर्तमान अनाज केंद्रित खाद्य सब्सिडी प्रणाली भारत की पोषण संबंधी चुनौतियों का पर्याप्त रूप से समाधान नहीं करती है।
    • कुपोषण संकेतक: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS), 2019-2021 के अनुसार,
      • पाँच वर्ष से कम आयु के 35.5% बच्चे अविकसित हैं।
      • 19.3% बच्चे कमजोर हैं।
      • 32.1% बच्चे कम वजन वाले हैं।
    • अनाज केंद्रित सब्सिडी: मौजूदा सब्सिडी में अनाज को प्राथमिकता दी जाती है, जबकि दालों, सब्जियों और फलों जैसे पोषक तत्त्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों पर सीमित ध्यान दिया जाता है, जो कुपोषण पर नियंत्रण पाने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
  • राजकोषीय प्रभाव
    • वित्त वर्ष 2023 में खाद्य सब्सिडी व्यय 2.72 लाख करोड़ रुपये था, जो वित्त वर्ष 2024 (संशोधित अनुमान) में घटकर 2.12 लाख करोड़ रुपये रह गया।
    • कम रिसाव से होने वाली बचत को कृषि निवेश तथा ग्रामीण विकास की ओर पुनर्निर्देशित किया जा सकता है।

भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली से संबंधित अन्य मुद्दे

  • फर्जी लाभार्थी एवं धोखाधड़ी: आधार लिंकेज की शुरुआत के बावजूद, डुप्लिकेट तथा अयोग्य लाभार्थी एक चुनौती बने हुए हैं।
    • वर्ष 2013-2021 के बीच 47 मिलियन फर्जी राशन कार्ड रद्द किए गए है।
  • लक्ष्य निर्धारण में त्रुटियाँ: लाभार्थियों की पहचान करने में त्रुटि के कारण पात्र परिवारों शामिल नहीं हो पाते हैं और संपन्न परिवारों को शामिल कर लिया जाता है।
  • भंडारण हानियाँ: पर्याप्त बुनियादी ढाँचे की कमी के कारण प्रत्येक वर्ष 10% खाद्यान्न खराब हो जाता है।
  • भ्रष्टाचार: उचित मूल्य की दुकानों (FPS) के स्तर पर भ्रष्टाचार के कारण कम तौल तथा अधिक कीमत वसूलने जैसी प्रथाएँ होती हैं, जो PDS की प्रभावशीलता को कम करती हैं।

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) 

  • PMGKAY भारत सरकार द्वारा भारत में कोविड-19 महामारी के दौरान घोषित एक खाद्य सुरक्षा कल्याण योजना है।
  • योजना की शुरुआत: इस योजना की घोषणा वर्ष 2020 में मौजूदा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (PMGKAY) के हिस्से के रूप में की गई थी। शुरुआत में इसे अप्रैल से जून 2020 के बीच की अवधि के लिए चलाया जाना था।
  • PMGKAY के लिए नोडल मंत्रालय: यह योजना उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के अंतर्गत खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग द्वारा संचालित की जाती है। केंद्रीय वित्त मंत्रालय इसका नोडल मंत्रालय है।
  • PMGKAY की कार्यप्रणाली: यह योजना सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से सबसे गरीब नागरिकों को, सभी प्राथमिकता वाले परिवारों (राशन कार्ड धारकों और अंत्योदय अन्न योजना के तहत चिह्नित लोगों) को खाद्यान्न उपलब्ध कराएगी।
  • इस योजना के तहत, प्रत्येक व्यक्ति को 5 किलो चावल या गेहूँ तथा प्रत्येक राशन कार्ड धारक परिवार को 1 किलो दाल दी जाएगी। यह NFSA के तहत मासिक पात्रता से अलग है।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के बारे में

  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) को प्रारंभ में कम कीमतों पर आवश्यक खाद्यान्न वितरित करके खाद्यान्न की कमी का प्रबंधन करने के लिए डिजाइन किया गया था।
  • समय के साथ, यह भारत की खाद्य सुरक्षा रणनीति का एक महत्त्वपूर्ण घटक बन गया है, जो खाद्यान्नों की घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति तो करता है, लेकिन संपूर्ण आवश्यकता को पूरा नहीं करता है।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली का प्रबंधन

  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली केंद्र तथा राज्य/संघ राज्य क्षेत्र सरकारों की संयुक्त जिम्मेदारी के तहत संचालित होती है।
    • केंद्र सरकार: भारतीय खाद्य निगम (FCI) के माध्यम से खाद्यान्नों की खरीद, भंडारण, परिवहन और थोक आवंटन का कार्य सँभालती है।
    • राज्य सरकारें: वितरण, पात्र परिवारों की पहचान, राशन कार्ड जारी करना तथा उचित मूल्य की दुकानों (FPS) की देखरेख करती हैं।
  • इस प्रणाली के तहत मुख्य रूप से गेहूँ, चावल, चीनी तथा केरोसिन वितरित किया जाता है, हालाँकि कुछ राज्य दालें, खाद्य तेल और नमक जैसी अतिरिक्त वस्तुएँ भी इसमें शामिल करते हैं।

सार्वजनिक वितरण की पृष्ठभूमि

  • 1960 के दशक में सार्वजनिक वितरण
    • PDS की शुरुआत युद्ध के बीच की अवधि में हुई, लेकिन 1960 के दशक में खाद्यान्न की कमी के कारण इसे प्रमुखता मिली।
    • शुरू में इसका ध्यान शहरी क्षेत्रों पर था, लेकिन हरित क्रांति के बाद इसका दायरा आदिवासी और गरीबी से त्रस्त क्षेत्रों तक फैल गया।
  • पुनर्गठित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Revamped Public Distribution System- RPDS)
    • वर्ष 1992 में शुरू की गई RPDS का उद्देश्य दूरदराज तथा गरीबी से त्रस्त क्षेत्रों में PDS की पहुँच में सुधार करना था।
    • सूखा प्रवण क्षेत्र कार्यक्रम (Drought Prone Area Programme- DPAP), एकीकृत जनजातीय विकास परियोजनाओं (Integrated Tribal Development Projects- ITDP) तथा रेगिस्तान विकास कार्यक्रम (Desert Development Programme- DDP) के तहत क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए 1,775 ब्लॉकों को कवर किया गया।
    • चाय, दालें तथा साबुन जैसी आवश्यक वस्तुओं का वितरण करते हुए अतिरिक्त राशन कार्ड, उचित मूल्य की दुकानें एवं भंडारण सुविधाएँ प्रदान की गईं।
  • लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Targeted Public Distribution System- TPDS)
    • वर्ष 1997 में शुरू की गई TPDS योजना का ध्यान गरीबों पर केंद्रित हो गया। राज्यों ने गरीबी रेखा से नीचे (BPL) रहने वाले परिवारों को लक्षित करते हुए गरीबी अनुमानों के आधार पर लाभार्थियों की पहचान की।
    • शुरुआत में 6 करोड़ गरीब परिवारों के लिए प्रत्येक वर्ष 72 लाख टन खाद्यान्न आवंटित किया गया था।
    • प्रमुख विकास
      • वर्ष 2000 में गरीबी रेखा से नीचे (BPL) के परिवारों के लिए खाद्यान्न आवंटन आर्थिक लागत के 50% पर 10 किलोग्राम से बढ़ाकर 20 किलोग्राम प्रति माह कर दिया गया।
      • गरीबी रेखा से ऊपर (APL) परिवारों के लिए आवंटन को आर्थिक लागत पर बरकरार रखा गया, लेकिन BPL तथा अंत्योदय अन्न योजना (Antyodaya Anna Yojana- AAY) लाभार्थियों के लिए केंद्रीय निर्गम मूल्य (Central Issue Prices- CIP) को सब्सिडीयुक्त रखा गया है।
      • अद्यतन जनसंख्या अनुमानों के आधार पर, वर्ष 2000 में BPL परिवारों की संख्या बढ़कर 652 लाख हो गई।

अंत्योदय अन्न योजना (AAY)

  • वर्ष 2000 में अत्यधिक गरीब लोगों को लक्षित करने के लिए शुरू की गई इस योजना में शुरुआत में 1 करोड़ परिवारों को शामिल किया गया।
  • अत्यधिक रियायती दरों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराया गया: गेहूँ के लिए 2 रुपये प्रति किलोग्राम तथा चावल के लिए 3 रुपये प्रति किलोग्राम।
  • वर्ष 2002 में आवंटन 25 किलोग्राम से बढ़कर 35 किलोग्राम प्रति परिवार प्रति माह कर दिया गया था।

भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली की प्रासंगिकता तथा आवश्यकता

  • खाद्य सुरक्षा एवं गरीबी उन्मूलन
    • PDS भारत की सुभेद्य आबादी के लिए भोजन तक पहुँच सुनिश्चित करता है, विशेष रूप से इसलिए क्योंकि 129 मिलियन भारतीय अत्यधिक गरीबी में रहते हैं (विश्व बैंक, 2024)। कोविड-19 महामारी जैसे संकटों के दौरान यह सुरक्षा जाल के रूप में कार्य करता है, जहाँ प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) जैसी योजनाओं ने 800 मिलियन लोगों को मुफ्त खाद्यान्न प्रदान किया।
  • मूल्य स्थिरीकरण तथा बाजार विनियमन
    • PDS बफर स्टॉक बनाए रखकर तथा बाजार में उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करके मूल्य अस्थिरता को कम करता है। 
      • उदाहरण के लिए, वर्ष 2022-23 में FCI ने बाजार मूल्यों को स्थिर करने के लिए 34.82 लाख टन गेहूँ आवंटित किया।
  • कृषि सहायता
    • यह सुनिश्चित बाजार तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रदान करता है, जिससे कृषि आय एवं ग्रामीण आजीविका को समर्थन मिलता है।
  • पोषण सुरक्षा
    • कुछ राज्य अब कुपोषण से निपटने के लिए फोर्टिफाइड चावल, दालें तथा बाजरा वितरित कर रहे हैं।
      • उदाहरण के लिए, तमिलनाडु फोर्टिफाइड चावल प्रदान करता है, जबकि ओडिशा अपने बाजरा मिशन के माध्यम से बाजरा वितरण को बढ़ावा देता है।
  • सामाजिक समानता तथा क्षेत्रीय संतुलन
    • PDS हाशिए पर पड़े समुदायों, विशेषकर दूरदराज और आदिवासी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की मदद करता है।
    • एक राष्ट्र एक राशन कार्ड (ONORC) जैसी पहल प्रवासी श्रमिकों के लिए पोर्टेबिलिटी को बढ़ाती है।

एक राष्ट्र एक राशन कार्ड (ONORC) योजना

  • एक राष्ट्र एक राशन कार्ड (ONORC) योजना एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है, जो राशन कार्ड धारकों को पूरे भारत में किसी भी उचित मूल्य की दुकान (FPS) से खाद्य सुरक्षा लाभ प्राप्त करने की अनुमति देता है।

  • यह योजना वर्ष 2018 में खाद्य एवं आपूर्ति तथा उपभोक्ता मामले विभाग, उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय द्वारा शुरू की गई थी।
  • पोर्टेबिलिटी: ONORC राशन कार्ड धारकों को राज्य तथा जिला सीमाओं के पार लाभ प्राप्त करने की अनुमति देता है।
  • खाद्य सुरक्षा: यह योजना प्रवासी श्रमिकों तथा उनके परिवारों सहित सभी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद करती है।
  • मोबाइल ऐप: सरकार ने लोगों को ONORC योजना का अधिकतम लाभ उठाने में मदद करने के लिए ‘मेरा राशन’ (MERA RATION) नामक एक मोबाइल ऐप लॉन्च किया है।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम

  • प्रौद्योगिकी-संचालित सुधार
    • एंड-टू-एंड कंप्यूटरीकरण: सरकार ने डुप्लिकेट और फर्जी कार्डों को समाप्त करने के लिए राशन कार्ड तथा लाभार्थी डेटाबेस का डिजिटलीकरण किया है।
    • आधार एकीकरण: अदृश्य लाभार्थियों पर नियंत्रण लगाने तथा सिस्टम में रिसाव को रोकने के लिए राशन कार्डों के लिए आधार सीडिंग को अनिवार्य कर दिया गया है।
    • इलेक्ट्रॉनिक पॉइंट ऑफ सेल (ePoS) डिवाइस: खाद्यान्न वितरण के दौरान लाभार्थियों के बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण के लिए उचित मूल्य की दुकानों (FPS) पर ePoS उपकरण शुरू किए गए हैं।
    • आपूर्ति शृंखला स्वचालन: खरीद केंद्रों से FPS तक खाद्यान्नों की आवाजाही पर नजर रखने के लिए ऑनलाइन सिस्टम लागू किए गए हैं।
  • राशन कार्ड की पोर्टेबिलिटी
    • एक राष्ट्र एक राशन कार्ड (ONORC): वर्ष 2019 में शुरू की गई यह पहल लाभार्थियों, विशेष रूप से प्रवासी श्रमिकों को भारत में कहीं भी अपने PDS अधिकारों का उपयोग करने की अनुमति देती है।
    • ONORC को सभी राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों में लागू किया गया है, जिससे पहुँच और पोर्टेबिलिटी में सुधार हुआ है।
  • बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना
    • भंडारण सुविधाओं का आधुनिकीकरण: सरकार ने भंडारण घाटे को कम करने तथा खाद्यान्न की बेहतर गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए आधुनिक साइलो, कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं तथा गोदामों के निर्माण में निवेश किया है।
    • घर-घर डिलीवरी: कई राज्यों ने उचित मूल्य की दुकानों तक खाद्यान्न की घर-घर डिलीवरी लागू की है, जिससे स्टॉक की समय पर उपलब्धता सुनिश्चित हुई है।
      • दिल्ली सरकार ने वर्ष 2018 में सार्वजनिक वितरण प्रणाली राशन की घर-घर डिलीवरी की योजना की घोषणा की थी।
  • पोषण सुधारों का परिचय
    • खाद्यान्नों का सुदृढ़ीकरण: सरकार ने सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी को दूर करने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली में फोर्टिफाइड चावल की शुरुआत की है। 
      • भारत सरकार ने एनीमिया तथा कुपोषण की व्यापकता को कम करने के लिए राष्ट्रीय पोषण मिशन-पोषण अभियान (National Nutrition Mission- POSHAN) में खाद्य सुदृढ़ीकरण को शामिल किया है।
      • भारत सरकार ने एनीमिया तथा कुपोषण की व्यापकता को कम करने के लिए राष्ट्रीय पोषण मिशन-पोषण अभियान में खाद्य फोर्टिफिकेशन को शामिल किया है।
  • शिकायत निवारण प्रणाली 
    • टोल-फ्री हेल्पलाइन: राज्यों ने PDS संचालन से संबंधित शिकायतों के समाधान के लिए टोल-फ्री हेल्पलाइन स्थापित की हैं।
    • सामाजिक ऑडिट: सरकार उचित मूल्य की दुकानों के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही को बेहतर बनाने के लिए सामाजिक ऑडिट को प्रोत्साहित करती है।
    • FPS डीलरों के लिए वित्तीय प्रोत्साहन: उचित मूल्य की दुकानों के कामकाज को बेहतर बनाने के लिए, डीलरों को उच्च मार्जिन के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है, जो उन्हें परिचालन दक्षता बनाए रखने में मदद करती है।
  • आपातकालीन प्रतिक्रिया तंत्र
    • मोबाइल PDS इकाइयाँ: कुछ राज्यों ने दूरदराज तथा आपदा प्रभावित क्षेत्रों में लाभार्थियों की सेवा के लिए मोबाइल इकाइयाँ शुरू की हैं।

ICRIER द्वारा प्रस्तावित सुधार

  • लक्षित निःशुल्क खाद्य कवरेज: निःशुल्क खाद्य लाभ को जनसंख्या के सबसे गरीब 15% लोगों तक सीमित रखा जाना चाहिए।
    • अत्यधिक गरीबी रेखा से ऊपर के लाभार्थियों को अनाज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का कम-से-कम 50% भुगतान करना चाहिए, जिससे सब्सिडी लागत कम हो जाएगी और प्रणाली अधिक टिकाऊ बन जाएगी।
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली में रिसाव को रोकना: रिसाव को दूर करने के लिए, सभी उचित मूल्य की दुकानों में PoS मशीनों के उपयोग का विस्तार किया जाना चाहिए।
    • इसके अतिरिक्त, DBT को लागू करने से यह सुनिश्चित होगा कि खाद्य सब्सिडी सीधे लाभार्थियों के खातों में स्थानांतरित की जाए, जिससे भ्रष्टाचार तथा अकुशलता कम होगी।
    • बिहार तथा पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने पिछले एक दशक में PDS रिसाव में महत्त्वपूर्ण कमी हासिल की है।
      • बिहार में, रिसाव वर्ष 2011-12 में 68.7% से घटकर वर्ष 2022-23 में केवल 19.2% रह गया। इन्हीं वर्षो में पश्चिम बंगाल में 69.4% से घटकर 9% रह गया।
  • पोषण-उन्मुख सार्वजनिक वितरण प्रणाली: सुधारों का ध्यान सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अधिक पोषण-उन्मुख बनाने पर होना चाहिए।
    • उचित मूल्य की दुकानों का रूपांतरण: चयनित उचित मूल्य की दुकानों को ‘पोषण केंद्रों’ में परिवर्तित किया जाना चाहिए, जहाँ अनाज के साथ-साथ अंडे, दालें, बाजरा और फल सहित विविध प्रकार के खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराए जाएँ।
    • डिजिटल खाद्य कूपन: लाभार्थियों को डिजिटल खाद्य कूपन प्राप्त होने चाहिए, जिन्हें इन पोषण केंद्रों पर भुनाया जा सकता है, जिससे आहार विविधता को बढ़ावा मिलेगा।

आगे की राह

  • डिजिटल परिवर्तन: वास्तविक समय की निगरानी के लिए ब्लॉकचेन तथा IoT जैसी तकनीकों का उपयोग करके और चोरी का पता लगाने के लिए AI आधारित विश्लेषण के माध्यम से सिस्टम को ‘एंड-टू-एंड डिजिटलीकरण’ के माध्यम से बेहतर बनाया जा सकता है।
  • आधुनिकीकृत बुनियादी ढाँचा: सरकार को भंडारण घाटे को कम करने के लिए तापमान नियंत्रित साइलो तथा स्वचालित गुणवत्ता नियंत्रण प्रणालियों में निवेश करना चाहिए।
  • ONORC को मजबूत बनाना: बेहतर अंतरराज्यीय समन्वय तथा प्रवासी आबादी की वास्तविक समय पर ट्रैकिंग से राशन कार्डों की बेहतर पोर्टेबिलिटी सुनिश्चित हो सकती है।
  • पोषण सुरक्षा पर ध्यान: PDS में बाजरा, दालें तथा फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थों को शामिल करने से भारत की पोषण संबंधी चुनौतियों का समाधान हो सकता है। कमजोर समूहों के लिए पोषण के लिए ई-रुपी वाउचर  (E-Rupee vouchers) भी शुरू किए जा सकते हैं।
  • संकटकाल में तैयारी: प्राकृतिक आपदाओं या महामारी से प्रभावित आबादी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आपातकालीन मोबाइल PDS इकाइयाँ स्थापित की जानी चाहिए।
  • कृषि और पोषण में बचत का निवेश: सब्सिडी युक्तिकरण से होने वाली बचत को निम्नलिखित दिशा में पुनर्निर्देशित किया जाना चाहिए।
    • कृषि अनुसंधान एवं विकास: निवेश का ध्यान उच्च उपज, जलवायु-अनुकूल तथा  पोषक तत्त्वों से भरपूर फसल किस्मों के विकास पर होना चाहिए।
    • जलवायु-अनुकूल कृषि पद्धतियाँ: जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए सतत् कृषि पद्धतियों पर जोर दिया जाना चाहिए।
    • किसान कौशल संवर्द्धन कार्यक्रम: कृषि दक्षता और आय में सुधार के लिए किसानों के लिए कौशल कार्यक्रमों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

निष्कर्ष

गरीबी तथा कुपोषण को प्रभावी ढंग से दूर करने के लिए लक्षित मुफ्त भोजन, रिसाव के लिए DBT तथा विविध पोषण विकल्पों के साथ पुनर्गठित PDS महत्त्वपूर्ण है। खाद्य सब्सिडी बचत को ऐसे निवेशों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जो दीर्घकालिक रिटर्न प्रदान करते हैं और समग्र खाद्य और पोषण सुरक्षा में सुधार करते हैं।

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