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भारत द्वारा कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) की आलोचना और उसके निहितार्थ

Lokesh Pal November 20, 2024 05:15 28 0

संदर्भ :

भारत यूरोपीय संघ के कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) की आलोचना करता है क्योंकि यह भेदभावपूर्ण है | भारत के अनुसार यह विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर असंगत रूप से प्रभाव डालता है। भारत संतुलित जलवायु कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं और न्यायसंगत उत्सर्जन लेखांकन का आह्वान करता है।

संरक्षणवाद

  • संरक्षणवाद जलवायु मुद्दों के समाधान में विकसित और विकासशील देशों के मध्य आवश्यक सहयोग के लिए एक खतरा है।
  • यूरोपीय संघ द्वारा अपनाई गई संरक्षणवादी प्रणाली

1. यूरोपीय संघ का कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (EU-CBAM)

    • यूरोपीय संघ का CBAM कुछ आयातों पर कार्बन मूल्य लगाता है, जो 1 जनवरी, 2026 से पूर्ण रूप से लागू होने वाला है।
    • यह आयात की कार्बन लागत को घरेलू उत्पादन के साथ जोड़कर समान अवसर सुनिश्चित करता है।
    • सीमेंट, स्टील, एल्युमीनियम, उर्वरक और बिजली जैसे कार्बन-गहन सामानों को लक्षित करते हुए, CBAM भारत के निर्यात को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है, क्योंकि ये वस्तुएँ यूरोपीय संघ के साथ इसके व्यापार का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं।

2. कॉर्पोरेट स्थिरता उचित परिश्रम निर्देश (CSDDD)

    • यूरोपीय संघ का CSDDD बड़ी कंपनियों को वैश्विक स्तर पर अपने संचालन के मानवाधिकारों और पर्यावरणीय प्रभावों को संबोधित करने का आदेश देता है। 
      • उदाहरण के लिए, जिस कंपनी में बाल श्रम नियोजित है, यह निर्देश कंपनियों को मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाली ऐसी संस्थाओं के साथ व्यापार में शामिल नहीं होने के लिए कहता है।

3. यूरोपीय संघ निर्वनीकरण विनियमन (EUDR)

    • EUDR के अनुसार कंपनियों को यह सुनिश्चित करना होगा, कि उनकी आपूर्ति शृंखला वनों की कटाई से मुक्त हो।
    • उन्हें उत्पाद की उत्पत्ति का पता लगाना होगा, वनों की कटाई के जोखिमों का आकलन करना होगा और उन्हें कम करना होगा।
    • उदाहरण के लिए, कंपनियों को वनों की कटाई वाली भूमि पर उगाई गई कॉफी खरीदने से बचना चाहिए।

CBAM से संबंधित मुख्य मुद्दे

  • भेदभावपूर्ण प्रकृति
    • एकतरफा डिजाइन : CBAM को भारत जैसे विकासशील देशों के साथ पर्याप्त परामर्श के बिना यूरोपीय संघ द्वारा प्रस्तुत किया गया था, जिससे जलवायु कार्रवाई पर वैश्विक सहयोग कमज़ोर हो गया।
    • असमान बोझ : यह कार्बन लागत को भारत जैसे निर्यातकों पर डालता है, विकसित देशों के उत्सर्जन और उच्च खपत को नज़रअंदाज़ करता है, जो CBDR सिद्धांत का उल्लंघन है।
  • भारत के व्यापार पर प्रभाव
    • भारत के निर्यात में यूरोपीय संघ का योगदान लगभग 20.33% है, जिसमें से 25.7% CBAM के अंतर्गत आता है। 
    • लोहा और इस्पात (भारत के यूरोपीय संघ के निर्यात का 77%), एल्युमीनियम, सीमेंट और उर्वरक जैसे क्षेत्रों की लागत में वृद्धि हुई है, जिससे यूरोपीय संघ के बाजार में प्रतिस्पर्द्धा कम हो गई है।

आगे की राह  

  • इसके लिए मजबूत तर्क प्रस्तुत किए जाने की आवश्यकता है, जिसमें यह रेखांकित किया जाए कि सभी विकासशील देश CBAM से समान रूप से प्रभावित नहीं हैं, क्योंकि यूरोपीय संघ पर उनकी व्यापार निर्भरता भारत की तुलना में काफी भिन्न है।
  • इसके अतिरिक्त, जलवायु परिवर्तन का प्रभाव विकासशील देशों पर एक समान नहीं है, कुछ देश अन्य की तुलना में अधिक संवेदनशील हैं।
  • प्रस्तावित तर्क
    • अनुकूलन का समय
      • यूरोपीय संघ के पास अपने उत्सर्जन में कमी के लक्ष्यों को निर्धारित करने हेतु दशकों का समय था, जिसकी शुरुआत 2008 के जलवायु कार्रवाई पैकेज से हुई, जिसमें 2020 तक 20% की कमी का लक्ष्य रखा गया था।
      • बाद में इसे 2019 के यूरोपीय ग्रीन डील के तहत 2030 तक 55% की कमी तक बढ़ा दिया गया।
      • भारत जैसे विकासशील देशों के पास अनुकूलन के लिए पर्याप्त समय नहीं है, क्योंकि CBAM की 2026 कार्यान्वयन समयसीमा उत्सर्जन में कमी के लिए सीमित बुनियादी ढाँचे वाले देशों के लिए बहुत जल्दी है।
    • राजस्व एवं सशक्तीकरण
      • CBAM राजस्व, जो 2030 तक €5-14 बिलियन प्रतिवर्ष अनुमानित है, यूरोपीय संघ के पास रहेगा।
      • भारत विकासशील देशों को जलवायु अनुकूलन के लिए क्षमता निर्माण और सतत प्रौद्योगिकियों तक पहुँच बनाने में मदद करने के लिए राजस्व साझा करने का समर्थन करता है।
    • इक्विटी-आधारित उत्सर्जन लेखांकन (EBA)
      • भारत मौजूदा CBAM ढाँचे के विकल्प के रूप में EBA का प्रस्ताव कर सकता है।
      • EBA में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद, प्रति व्यक्ति उत्सर्जन, व्यापार से संबंधित लाभ और व्यापार के माध्यम से बचाए गए उत्सर्जन जैसे कारकों को शामिल किया गया है, जिससे विकासात्मक और ऐतिहासिक असमानताओं को दर्शाते हुए उत्सर्जन में कमी की जिम्मेदारियों का उचित वितरण सुनिश्चित किया जा सके।
    • निष्पक्षता सुनिश्चित करना
      • UNFCCC के तहत मौजूदा उत्पादन-आधारित लेखांकन (PBA) विकसित देशों द्वारा ऐतिहासिक उत्सर्जन को नजरअंदाज करता है। 
      • न्यायसंगत उत्सर्जन लक्ष्यों में प्रत्येक देश के विकास चरण और शमन क्षमता को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

निष्कर्ष 

भारत को ऐतिहासिक उत्सर्जन और विकासात्मक असमानताओं पर विचार करने वाली न्यायसंगत जलवायु नीतियों की वकालत करके CBAM का मुकाबला करना चाहिए। ग्लोबल साउथ के साथ सहयोग, मजबूत तर्क और समानता-आधारित विकल्प निष्पक्ष जलवायु कार्रवाई और व्यापार प्रथाओं को सुनिश्चित कर सकते हैं।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न 

यूरोपीय संघ का कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (EU-CBAM) अंतर्राष्ट्रीय जलवायु ढाँचे के तहत “सामान्य लेकिन विभेदित जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं” के सिद्धांत के साथ कैसे संरेखित होता है, आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए ।

(15 अंक, 250 शब्द)

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