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ग्लोबल मैचमेकिंग प्लेटफॉर्म

Lokesh Pal November 27, 2024 03:56 15 0

संदर्भ 

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन (UNIDO) और क्लाइमेट क्लब ने COP29 में ऊर्जा दिवस पर ‘ग्लोबल मैचमेकिंग प्लेटफॉर्म’ (GMP) लॉन्च किया।

ग्लोबल मैचमेकिंग प्लेटफॉर्म (GMP)

  • ग्लोबल मैचमेकिंग प्लेटफॉर्म (GMP) औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन में तेजी लाने के लिए एक नई पहल है।
  • UNIDO द्वारा आयोजित GMP, डीकार्बोनाइजेशन परियोजनाओं को लागू करने के लिए देशों को सही संसाधनों और विशेषज्ञता से जोड़ेगा।
  • उद्देश्य: भारी उत्सर्जन वाले उद्योगों में डीकार्बोनाइजेशन में तेजी लाना।
  • शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक $125 बिलियन वार्षिक वित्तीयन अंतराल को संबोधित करता है।
  • GMP की मुख्य विशेषताएँ
    • जलवायु क्लब के लिए एक समर्थन तंत्र के रूप में कार्य करता है, जिसका सचिवालय UNIDO द्वारा संचालित है।
    • OECD और अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) द्वारा संयुक्त रूप से संचालित अंतरिम सचिवालय द्वारा समर्थित।
    • देशों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उन्हें तकनीकी और वित्तीय संसाधनों से जोड़कर मिलान की सुविधा प्रदान करता है।
  • प्रतिभागी और साझेदारियाँ
    • उपस्थित राज्य पक्षकार: जर्मनी, चिली (सह-अध्यक्ष), उरुग्वे, तुर्किए, बांग्लादेश और इंडोनेशिया।
    • गैर-राज्य प्रतिभागी: UNIDO, विश्व बैंक, जलवायु निवेश कोष (CISF), जीआईजेड और अन्य।
    • सरकारों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और निजी क्षेत्र के बीच साझेदारी को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करना।

लाभ

  • GMP देशों को उनकी डीकार्बोनाइजेशन आवश्यकताओं की पहचान करने और उन्हें प्राथमिकता देने में मदद करेगा। 
  • यह सरकारों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और निजी क्षेत्र के बीच साझेदारी को सुगम बनाएगा। 
  • यह प्लेटफॉर्म डीकार्बोनाइजेशन परियोजनाओं का समर्थन करने के लिए आवश्यक धन जुटाएगा।

‘क्लाइमेट क्लब’ कार्यक्रम

  • COP28 में शुरू किया गया ‘क्लाइमेट क्लब’ औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देता है।
  • GMP औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन में तेजी लाने के क्लब के प्रयासों का एक प्रमुख घटक है।
  • वर्तमान कार्यक्रम (2025-26) तीन स्तंभों पर केंद्रित है:
    • महत्त्वाकांक्षी जलवायु शमन नीतियाँ।
    • औद्योगिक परिवर्तन।
    • अंतरराष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करना।
  • GMP की भूमिका
    • GMP, COP30 के लिए राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान (NDCs) में औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन को शामिल करने में सहायता करेगा।

औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन

  • औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन औद्योगिक गतिविधियों से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और अन्य ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम करने की प्रक्रिया है। 
  • जलवायु परिवर्तन को कम करने और वैश्विक स्थिरता लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है।

डीकार्बोनाइजेशन की आवश्यकता वाले प्रमुख क्षेत्र

  • पेट्रोलियम रिफाइनिंग: हाइड्रोक्रैकिंग और कैटेलिटिक क्रैकिंग जैसी प्रक्रियाओं से उत्सर्जन को कम करना।
  • रासायनिक विनिर्माण: ऊर्जा दक्षता को बढ़ाना और ‘कार्बन फीडस्टॉक्स’ का कम उपयोग करना।
  • लोहा और इस्पात: ऊर्जा-कुशल तरीकों को अपनाना और ‘कार्बन कैप्चर’ प्रौद्योगिकियों को लागू करना।
  • सीमेंट उद्योग: उच्च तापमान वाली भट्टियों से उत्सर्जन को कम करना और वैकल्पिक ईंधन का उपयोग करना।
  • खाद्य एवं पेय क्षेत्र: ऊर्जा दक्षता और अपशिष्ट को न्यूनतम करने पर ध्यान केंद्रित करना।

औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन का महत्त्व

  • जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करना
    • पेरिस समझौते जैसे अंतरराष्ट्रीय लक्ष्यों को पूरा करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • आर्थिक विकास को बढ़ावा देना
    • नवाचार को बढ़ावा देना और नए रोजगार के अवसर पैदा करना।
  • पर्यावरणीय प्रभाव को कम करना
    • वायु गुणवत्ता में सुधार, प्रदूषण को कम करना और सार्वजनिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाना।

वैश्विक जलवायु वित्त

  • जलवायु नीति पहल की वर्ष 2024 की रिपोर्ट के अनुसार:
    • वैश्विक CO2 उत्सर्जन में उद्योग का योगदान 30% है।
    • वर्ष 2018 से 2022 तक कुल जलवायु शमन वित्त का केवल 1.4% औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन की ओर निर्देशित किया गया था।
  • जलवायु निवेश कोष (CIF) कम कार्बन प्रौद्योगिकियों के संचालन और विस्तार में जलवायु वित्त की भूमिका पर जोर देते हैं।

औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन में चुनौतियाँ

  • भारी उत्सर्जन वाले उद्योग (स्टील, सीमेंट, रसायन, एल्युमीनियम) वैश्विक औद्योगिक CO2 उत्सर्जन का 70% हिस्सा हैं।
  •  उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाएँ (EMDE) निम्नलिखित चुनौतियों का सामना करती हैं:
    • संसाधन सीमाएँ। 
    • स्वच्छ औद्योगिक प्रथाओं के लिए क्षमता और प्रौद्योगिकी की कमी।
  • नेट जीरो लक्ष्य के संगत उत्पादन संयंत्रों में वर्तमान निवेश केवल 15 बिलियन डॉलर प्रतिवर्ष है, जिसे वर्ष 2030 तक 70 बिलियन डॉलर तथा वर्ष 2050 तक 125 बिलियन डॉलर तक बढ़ाने की आवश्यकता है।

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