सर्वोच्च न्यायालय ने बलवंत सिंह राजोआना की दया याचिका पर फैसला करने के लिए केंद्र सरकार को चार सप्ताह का समय दिया।
मुख्य तथ्य
मामला: दया याचिका वर्ष 1995 में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के लिए वर्ष 2007 में राजोआना को दी गई मृत्युदंड की सजा के लिए है।
वर्तमान स्थिति: राजोआना ने अपनी सजा को कम करने के लिए एक नई याचिका दायर की, जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को दिए गए समय सीमा के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दिया है।
दया याचिका
दया याचिका मृत्युदंड या कारावास की सजा पाए व्यक्ति द्वारा भारत के राष्ट्रपति (अनुच्छेद-72 के तहत) या किसी राज्य के राज्यपाल (अनुच्छेद-161 के तहत) से क्षमादान की माँग करने का औपचारिक अनुरोध है।
यह शक्ति क्षमा, स्थगन, राहत, छूट या सजा में परिवर्तन की अनुमति देती है।
भारत में प्रसिद्ध दया याचिकाएँ
याकूब मेमन केस ( वर्ष 1993 मुंबई विस्फोट): वर्ष 1993 मुंबई सीरियल बम धमाकों के मुख्य साजिशकर्ता याकूब मेमन को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई थी। उसने भारत के राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर की थी, जिसे खारिज कर दिया गया था।
धनंजय चटर्जी केस (1994): मृत्युदंड की सजा पाए एक दोषी ने राष्ट्रपति से दया की गुहार लगाई। उसके मामले ने मृत्युदंड और दया याचिकाओं की भूमिका पर बहस छेड़ दी।
राजीव गांधी हत्याकांड केस (1991): पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या में शामिल कई दोषियों ने दया याचिका दायर की, जिससे न्याय और मृत्युदंड पर सवाल उठाए गए।
निर्भया केस (2012): क्रूर सामूहिक दुष्कर्म और हत्या मामले में चार दोषियों ने राष्ट्रपति से दया की गुहार लगाई, जिसके कारण न्यायिक प्रक्रिया और मृत्युदंड पर व्यापक विरोध और चर्चा हुई।
दया याचिका के लिए संवैधानिक प्रावधान
अनुच्छेद-72 (राष्ट्रपति की शक्ति): राष्ट्रपति को निम्नलिखित मामलों में क्षमादान देने का अधिकार है:
कोर्ट-मार्शल सजाएँ: सैन्य न्यायालयों द्वारा दी गई सजा या दंड के लिए।
संघीय कानून अपराध: संघ की कार्यकारी शक्ति के अंतर्गत मामलों से संबंधित कानूनों के विरुद्ध अपराधों के लिए।
मृत्युदंड: मृत्युदंड से जुड़े सभी मामलों में।
अनुच्छेद-161 (राज्यपाल की शक्ति): राज्यपाल राज्य की कार्यकारी शक्ति के तहत मामलों से संबंधित कानूनों के खिलाफ अपराधों के लिए समान क्षमादान शक्तियों का प्रयोग कर सकते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति: दया याचिकाओं की समीक्षा करने की सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति का भारतीय संविधान में स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है।
हालाँकि, यह संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत न्यायिक समीक्षा की अपनी अंतर्निहित शक्ति से प्राप्त होती है, जो संवैधानिक उपचारों के अधिकार की गारंटी देती है।
सर्वोच्च न्यायालय राज्यपाल या राष्ट्रपति द्वारा क्षमादान की शक्ति के प्रयोग की समीक्षा कर सकता है और मनमाना या दुर्भावनापूर्ण पाए जाने पर इसे रद्द कर सकता है।
दया याचिकाओं में राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्ति में अंतर
शक्ति
राज्यपाल
राष्ट्रपति
क्षमा करने की शक्ति
कुछ मामलों में क्षमा, प्रतिविलंब, लघुकरण, विराम या दंड में छूट दे सकता है अथवा सजा को निलंबित या माफ कर सकता है।
कुछ मामलों में प्रतिविलंब, लघुकरण, विराम या दंड में छूट दे सकता है अथवा सजा को निलंबित या माफ कर सकता है।
मृत्युदंड की सजा
मृत्युदंड को माफ नहीं कर सकता।
प्रतिविलंब, लघुकरण, विराम में छूट दे सकता है या मृत्युदंड की सजा को निलंबित या माफ कर सकता है।
कोर्ट मार्शल
सैन्य न्यायालय के मामलों में क्षमा करने की कोई शक्ति नहीं है।
क्षमा, प्रतिविलंब, लघुकरण, विराममें छूट दे सकता है या कुछ मामलों में सजा को निलंबित या माफ कर सकता है, जिसमें कोर्ट मार्शल द्वारा दी गई सजा भी शामिल है।
क्षेत्राधिकार
राज्य कानूनों के विरुद्ध अपराध।
केंद्रीय कानूनों के विरुद्ध अपराध।
दया याचिका की मुख्य विशेषताएँ
कोई समय सीमा नहीं: अनुच्छेद-72 और 161 दया याचिकाओं पर निर्णय लेने के लिए कोई विशिष्ट समय सीमा निर्धारित नहीं करते हैं।
विवेकाधीन प्रकृति: ये अनुच्छेद राष्ट्रपति या राज्यपाल पर सभी दया याचिकाओं को स्वीकार करने का कोई दायित्व नहीं डालते हैं।
व्यापक दायरा: दया याचिका में क्षमा, प्रतिविलंब, लघुकरण, विराम या प्रविलंबन शामिल हो सकते हैं।
दया का प्रकार
विवरण
क्षमा
यह कानून अपराधी को अपराध से पूरी तरह मुक्त कर देता है तथा उसकी दोषसिद्धि और उससे संबंधित सभी दंडों को समाप्त कर देता है।
लघुकरण
कठोर दंड के स्थान पर हल्का दंड दिया जाता है।
परिहार
सजा की प्रकृति में परिवर्तन किए बिना उसकी अवधि कम कर दी जाती है।
प्रविलंबन
किसी सजा के निष्पादन को अस्थायी रूप से स्थगित कर देता है, सामान्य तौर पर अल्प समय के लिए।
विराम
यह प्रविलंबन राहत के समान है, लेकिन यह अधिक लंबी अवधि के लिए होती है और अक्सर चिकित्सीय कारणों से होती है।
दया याचिका दायर करने की प्रक्रिया
दया याचिका दायर करने या उस पर कार्रवाई करने के लिए कोई वैधानिक लिखित प्रक्रिया नहीं है।
याचिकाएँ प्राप्त करना: गृह मंत्रालय (MHA) राष्ट्रपति को संबोधित दया याचिकाएँ प्राप्त करता है।
जाँच: MHA याचिका, केस रिकॉर्ड और संबंधित राज्य सरकार की सिफारिशों की जाँच करता है।
सिफारिशें: MHA एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करता है और राष्ट्रपति को कार्रवाई की एक सिफारिश करता है।
राष्ट्रपति का निर्णय: राष्ट्रपति, मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करते हुए, दया याचिका पर अंतिम निर्णय लेता है।
संचार: MHA राष्ट्रपति के निर्णय को संबंधित अधिकारियों को बताता है।
राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह से बाध्य नहीं है, लेकिन व्यवहार में, गृह मंत्रालय की सिफारिशों का आमतौर पर पालन किया जाता है।
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