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अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों द्वारा ऋण माफ करना

Lokesh Pal November 27, 2024 04:33 8 0

संदर्भ

यद्यपि वित्तीय वर्ष 2023-24 में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों द्वारा ऋण माफ करने में 18.2 प्रतिशत की कमी आई है, तथापि मार्च में समाप्त वर्ष में 1/5वें हिस्से से अधिक बैंकों द्वारा माफ किए गए ऋणों की राशि में वृद्धि देखी गई।

‘ऋण को बट्टे खाते में डालने’ संबंधी रुझान

  • बट्टे खाते में डाले गए ऋणों में वृद्धि वाले बैंक: वित्त वर्ष 2024 में सबसे अधिक ऋण माफ करने वाले शीर्ष दस बैंकों के आधिकारिक आँकड़ों से पता चला है कि शीर्ष दस बैंकों में से छह बैंक शामिल हैं।
    • पंजाब नेशनल बैंक, केनरा बैंक, एचडीएफसी बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन बैंक और एक्सिस बैंक ने वर्ष के दौरान ऋण माफी में वृद्धि दर्ज की।
  • बट्टे खाते में कुल गिरावट: वित्त वर्ष 2024 में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (Scheduled Commercial Banks- SCBs) द्वारा ऋण बट्टे खाते में 18.2% की गिरावट आई, जो कि वित्त वर्ष 2023 में ₹2.08 लाख करोड़ की तुलना में ₹1.70 लाख करोड़ थी।
  • पाँच वर्षीय बट्टे खाता संबंधी आँकड़े: वित्त वर्ष 2020 से वित्त वर्ष 2024 के दौरान कुल बट्टा खाता आँकड़ा 9.90 लाख करोड़ रुपये रहा, जो वित्त वर्ष 2023 में बढ़ोतरी को छोड़कर सामान्य गिरावट दर्शाता है।
  • 31 मार्च, 2024 तक सकल NPA: ₹4.81 लाख करोड़, मार्च 2023 में ₹5.72 लाख करोड़ से कम।
    • NPA में शीर्ष योगदानकर्ता भारतीय स्टेट बैंक (₹84,276 करोड़) एवं पंजाब नेशनल बैंक (₹56,343 करोड़) हैं।
  • रिकवरी दरों में गिरावट: वित्त वर्ष 2024 में वसूली तीन वर्ष के निचले स्तर ₹1.23 लाख करोड़ (वित्त वर्ष 2023 की तुलना में -22.8%) पर थी।
    • हालाँकि वित्त वर्ष 2024 में समग्र ऋण बट्टे खाते में डालने और NPA में कमी आई, वसूली दरों में काफी गिरावट आई, जिससे खराब ऋणों की वसूली में दक्षता को लेकर चिंताएँ बढ़ गईं।

लोन राइट ऑफ (Loan Write-Off) या ‘ऋण को बट्टे खाते में डालना’ के बारे में

  • ‘लोन राइट-ऑफ’ या ‘ऋण को बट्टे खाते में डालना’ बैंकों की पुस्तकों से खराब ऋणों को हटाने की प्रक्रिया है, जिसके लिए पर्याप्त प्रावधान किए जाने के बाद उन्हें हटाया जाता है।
  • निहितार्थ: किसी ऋण को बट्टे खाते में डालने का अर्थ है कि उसे अब बैंक की बैलेंस शीट पर परिसंपत्ति के रूप में नहीं गिना जाएगा।
  • महत्व: ऋणों को बट्टे खाते में डालकर, बैंक अपनी पुस्तकों में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) के स्तर को कम कर सकते हैं।
  • उधारकर्ता दायित्व: ऋण बट्टे खाते में डालने से उधारकर्ता अपने पुनर्भुगतान दायित्वों से मुक्त नहीं होते हैं, न ही इसका मतलब यह है कि बैंक उनसे वसूली करना बंद कर देते हैं।
  • उद्देश्य: बैंकों की बैलेंस शीट को सही करने एवं उनकी वास्तविक वित्तीय स्थिति को प्रतिबिंबित करने के लिए ‘लोन राइट-ऑफ’ किया जाता है।
  • RBI के दिशा-निर्देश: बैंक चार वर्ष के बाद पूरी तरह से प्रावधानित ऋण को बट्टे खाते में डाल देते हैं।

गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (Non-Performing Assets- NPA) के बारे में

  • गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (NPAs) किसी बैंक के ऋण या अग्रिम को संदर्भित करती हैं, जो डिफाॅल्ट या बकाया हैं।
  • NPA वर्गीकरण के लिए मानदंड: एक ऋण तब बकाया होता है, जब मूलधन या ब्याज का भुगतान देर से होता है या चूक जाता है। 
    • यह तब NPA बन जाता है, जब ब्याज एवं/या मूलधन की किस्त 90 दिनों से अधिक समय तक बकाया रहती है।

गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ का वर्गीकरण

  • अवमानक संपत्तियाँ (Sub-Standard Assets): ऐसी संपत्तियाँ, जिन्हें 12 महीने से कम या बराबर अवधि के लिए NPA के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • संदेहास्पद संपत्तियाँ (Doubtful Assets): ऐसी संपत्तियाँ, जो 12 महीने से अधिक अवधि के लिए गैर-निष्पादित रही हैं।
  • हानि वाली संपत्तियाँ (Loss Assets): ऐसी संपत्तियाँ, जिन्हें वसूला नहीं जा सकता, जहाँ वसूली की बहुत कम या कोई उम्मीद नहीं है और जिन्हें पूरी तरह से बट्टे खाते में डालने की आवश्यकता है।

परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियाँ (Asset Reconstruction Companies- ARCs) 

  • ARCs विशेष वित्तीय संस्थान हैं, जो बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों से गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (NPAs) खरीदते हैं।
  • NPA समाधान में भूमिका: ARCs बैंकों को खराब ऋण प्राप्त करके एवं विभिन्न रणनीतियों के माध्यम से धन की वसूली का प्रयास करके अपनी बैलेंस शीट को संरक्षित करने में मदद करते हैं।
  • वसूली के तरीके: ARCs वसूली को अधिकतम करने के लिए ऋण पुनर्गठन, परिसंपत्ति बिक्री, कानूनी कार्रवाई एवं ऋण वसूली जैसी रणनीतियों को नियोजित करते हैं।
  • विनियमन: ARCs को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा सरफेसी अधिनियम (Sarfaesi Act) अर्थात् ‘सिक्योरिटाइजेशन एंड रिकंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनेंशियल एसेट्स एंड एनफोर्समेंट ऑफ सिक्योरिटी इंटरेस्ट एक्ट’ (Securitisation and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest Act), 2002  के तहत विनियमित किया जाता है।

‘एवरग्रीनिंग ऑफ लोन’ 

  • ‘एवरग्रीनिंग ऑफ लोन’ एक ऐसी प्रथा है, जहाँ बैंक उन उधारकर्ताओं को नए ऋण या अतिरिक्त ऋण देते हैं, जो अपने मौजूदा ऋण को चुकाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ऐसा ऋणों को गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPAs) या बुरे ऋण के रूप में वर्गीकृत होने से रोकने के लिए किया जाता है।
  • हालाँकि यह समस्या को अस्थायी रूप से छुपा सकता है, लेकिन यह गंभीर समस्याओं को जन्म दे सकता है जैसे:-
    • बैंकों के वास्तविक वित्तीय स्थिति को छिपाना: यह बैंक की वित्तीय स्थिति के बारे में गलत धारणा बना सकता है।
    • संपत्ति की गुणवत्ता में गिरावट: इससे डिफॉल्ट का जोखिम बढ़ सकता है एवं बैंक की बैलेंस शीट को और नुकसान हो सकता है।
    • वित्तीय संकेतकों को विकृत करना: इससे गलत वित्तीय रिपोर्टिंग एवं निर्णय लेने में समस्या हो सकती है।
  • भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने इस प्रथा पर अंकुश लगाने एवं बेहतर ऋण प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए हैं।

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