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Lokesh Pal November 26, 2024 05:30 15 0
भारत के संविधान निर्माताओं से जुड़ी कहानी अक्सर “संस्थापक पिताओं” (“founding fathers”) पर केंद्रित होती है, जो “संस्थापक माताओं” (“founding fathers”) संविधान सभा की प्रतिष्ठित महिलाओं द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका को दबा देती है।
नोट : स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने हिंदू कोड बिल पर मतभेदों के कारण 1951 में इस्तीफा दे दिया था। |
संस्थापक माताओं ने धर्म और राज्य के बीच संबंधों पर भी महत्वपूर्ण बहस में भाग लिया।
यद्यपि भारत अपनी संवैधानिक विरासत का जश्न मना रहा है, ऐसे में उन संस्थापक माताओं के योगदान को पहचानना और उनका सम्मान करना ज़रूरी है, जिन्होंने अपने पुरुष समकक्षों के साथ मिलकर भारतीय गणराज्य की दिशा तय की। परंतु समानता और न्याय के वादे को पूरा करना, खास तौर पर महिलाओं के लिए, तब तक अधूरा काम रहेगा, जब तक संस्थापक माताओं के सपने को व्यवहार में पूरी तरह से साकार नहीं किया जाता।
मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्नप्रश्न: लैंगिक समानता सुनिश्चित करने वाले संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद, भारत की संस्थापक माताओं का सपना अधूरा रह गया है। भारतीय संवैधानिक प्रथाओं में नारीवादी विचारधारा को लागू करने में चुनौतियों का आलोचनात्मक विश्लेषण करें तथा साथ ही संवैधानिक वादों और वास्तविकता के बीच की खाई को पाटने के उपाय सुझाएँ। (15 अंक, 250 शब्द) |
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