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जलवायु परिवर्तन (CoP 29 ) : अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण सहयोग हेतु वित्तीय प्रावधान

Lokesh Pal November 26, 2024 05:45 13 0

संदर्भ:

हाल ही में, 11 से 22 नवंबर 2024 तक, विश्व के प्रमुख नेतृत्वकर्ता जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के 29वें सम्मेलन (सीओपी29) के लिए बाकू, अजरबैजान में एकत्र हुए। जिसमें वित्तीय प्रावधानों पर विस्तृत चर्चा की गई। 

सीओपी 29 में वित्त पर चर्चा

  • 100 बिलियन डॉलर का वित्तीय लक्ष्य: विकसित देशों द्वारा वर्ष 2025 तक प्रति वर्ष 100 बिलियन डॉलर देने के लक्ष्य पर सहमति बनी, ताकि विकासशील देशों को कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल ढलने में मदद मिल सके।
  • विकासशील देशों की मूल मांग: विकासशील देशों ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वर्ष 2035 तक प्रति वर्ष 1.5 ट्रिलियन डॉलर की मांग पर बल दिया।
    • अंतर्राष्ट्रीय वार्ताओं में, देशों द्वारा अधिकतम मांगें रखने की प्रवृत्ति आम बात है, जिससे सबसे अधिक आशावादी परिणाम प्राप्त होने की उम्मीद की जाती है।
  • सहमत राशि: यद्यपि सभी शीर्ष नेतृत्वकर्ताओं के मध्य यह वार्ता लंबे समय तक चली और अंततः सम्मेलन की दो अतिरिक्त कार्यदिवसों के बाद संपन्न हुई। 
    • परिणामस्वरूप, विकसित देश 2035 तक प्रति वर्ष 300 बिलियन डॉलर की वार्षिक प्रतिबद्धता पर सहमत हुए, जो मूल अनुरोध का केवल 20 प्रतिशत है।
  • सार्वजनिक और निजी वित्तपोषण: हालांकि इस सम्मेलन के केंद्र में एक अन्य उम्मीद सार्वजनिक और निजी दोनों तरह के वित्तपोषण की थी। उदाहरण के लिए, विकासशील देशों में विकसित देशों की निजी फर्मों द्वारा किए गए निवेश को $300 बिलियन की प्रतिबद्धता में गिना जाएगा।
    • सार्वजनिक निधियों से विकासशील देशों को किफायती प्रौद्योगिकी हस्तांतरण या वैश्विक दक्षिण में कमज़ोर समुदायों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनाने में मदद करने के लिए बुनियादी ढाँचे का वित्तपोषण किया जा सकता है।
  • $1.3 ट्रिलियन का अतिरिक्त वादा: इसके अलावा, देशों (विकसित और विकासशील) ने 2035 तक सार्वजनिक और निजी दोनों स्रोतों से वित्त पोषण को $1.3 ट्रिलियन प्रति वर्ष तक बढ़ाने की दिशा में काम करने का वादा किया।    

वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था

  • विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों की मदद की आवश्यकता : विकसित देशों में दशकों की वैज्ञानिक प्रगति ने बढ़ते कार्बन उत्सर्जन से उत्पन्न गंभीर खतरों को उजागर किया है, फिर भी ये देश अपनी प्रतिबद्धताओं से पीछे हटना जारी रखते हैं।
  • अमेरिका की भूमिका: कई विकसित देश, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका, विकासशील देशों को जीवाश्म ईंधन आधारित विकास को आगे बढ़ाने से रोकने में विफल रहे हैं।
  • ट्रंप प्रेसीडेंसी: निकट भविष्य को ध्यान में रखते हुए, यह संभव है कि अगले साल के संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (COP) में पिछले नाटकीय क्षणों की पुनरावृत्ति हो, जैसे कि पेरिस समझौते से, विशेष रूप से ट्रम्प प्रेसीडेंसी शुरू होने के बाद, अमेरिका का हटना ।
  • जलवायु कार्रवाई और व्यापार संघर्षों का अंतर्संबंध: 2024 की वार्ताओं से पता चला है कि जलवायु कार्रवाई व्यापार संघर्षों के साथ और अधिक उलझती जा रही है, जिससे सार्थक परिणाम प्राप्त करना और भी कठिन हो रहा है।
    • जलवायु कूटनीति की बढ़ती ध्रुवीकृत प्रकृति जलवायु संकट से निपटने के वैश्विक प्रयासों को कमजोर कर सकती है।        

निष्कर्ष 

हालांकि राजनीतिक प्रदर्शन, शब्दों का खेल और व्यापार से जुड़ी असहमतियाँ वास्तविक, कार्रवाई योग्य जलवायु समाधानों पर हावी नहीं हो सकतीं। चूंकि ग्रह अभूतपूर्व जलवायु प्रभावों का सामना कर रहा है, इसलिए वैश्विक नेताओं के लिए संकीर्ण राजनीतिक और आर्थिक हितों की तुलना में वास्तविक सहयोग, सतत विकास और भावी पीढ़ियों  के कल्याण को प्राथमिकता देने का समय आ गया है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न 

प्रश्न: CoP-29 की चर्चाओं से ज्ञात होता है कि जलवायु कार्रवाई वैश्विक एकजुटता के बजाय बाजार प्रतिस्पर्धा के तर्क के भीतर तेजी से तैयार की जा रही है। इस बदलाव और अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण सहयोग के लिए इसके निहितार्थों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।

(15 अंक, 250 शब्द)

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