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संभल मस्जिद को लेकर विवाद

Lokesh Pal November 28, 2024 02:58 12 0

संदर्भ 

संभल मस्जिद को लेकर विवाद तब शुरू हुआ, जब एक याचिका में दावा किया गया कि संभल में 16वीं सदी की जामा मस्जिद एक प्राचीन हरि हर मंदिर पर बनाई गई थी, जिसके कारण न्यायालय के आदेश पर सर्वेक्षण, विरोध एवं हिंसक झड़पें हुईं।

  • यह दावा वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद एवं उत्तर प्रदेश में मथुरा की ईदगाह मस्जिद तथा मध्य प्रदेश के धार में कमाल-मौला मस्जिद के मामले में किए गए दावे के समान था।

शाही जामा मस्जिद, संभल के बारे में

  • संरक्षित स्मारक की स्थिति: जामा मस्जिद ‘एक संरक्षित स्मारक है’, जिसे 22 दिसंबर, 1920 को प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम, 1904 की धारा 3, उप-धारा (3) के तहत अधिसूचित किया गया था।
  • राष्ट्रीय महत्त्व: इसे ‘राष्ट्रीय महत्त्व का स्मारक’ घोषित किया गया है एवं भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) की वेबसाइट पर इसे केंद्रीय संरक्षित स्मारकों की सूची में शामिल किया गया है।
  • ऐतिहासिक महत्त्व: यह मुगल सम्राट बाबर के शासनकाल के दौरान पानीपत एवं अयोध्या में बनी तीन प्रमुख मस्जिदों में से एक है।

पृष्ठभूमि

  • याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर किया गया मामला: आठ याचिकाकर्ताओं ने संभल न्यायालय में मामला दायर किया है, जिसमें दावा किया गया है कि 1527-28 ईसवी में, बाबर के सेनापति, हिंदू बेग ने श्री हरि हर मंदिर को आंशिक रूप से ध्वस्त कर दिया एवं इसे मस्जिद में बदल दिया। 
    • आरोप है कि वर्तमान मस्जिद का निर्माण मंदिर की जगह पर किया गया है।
  • संरक्षित स्मारक तक पहुँच का अधिकार: याचिकाकर्ताओं का कहना है कि स्मारक प्राचीन स्मारक और पुरातत्त्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 के तहत संरक्षित है और अधिनियम की धारा 18 के तहत जनता को ‘संरक्षित स्मारकों तक पहुँच का अधिकार’ है।
  • मस्जिद सर्वेक्षण के लिए न्यायालय के आदेश: 19 नवंबर को, संभल न्यायालय ने एक मस्जिद सर्वेक्षण का आदेश दिया, जो जिला अधिकारियों की देखरेख में किया गया था। 
    • विरोध के बावजूद, 24 नवंबर को दूसरा सर्वेक्षण हुआ, जिससे हिंसा भड़क उठी क्योंकि भीड़ को विध्वंस की आशंका थी।

पूजा स्थल अधिनियम, 1991

  • उद्देश्य: अधिनियम में यह अनिवार्य किया गया है कि सभी पूजा स्थलों का धार्मिक चरित्र वैसा ही बना रहना चाहिए जैसा वह 15 अगस्त, 1947 को था तथा यह अधिनियम किसी भी पूजा स्थल को एक धार्मिक संप्रदाय से दूसरे धार्मिक संप्रदाय में, पूर्णतः या आंशिक रूप से, परिवर्तित करने पर रोक लगाता है।
  • अधिनियम के प्रमुख प्रावधान
    • धर्मांतरण निषेध (धारा 3): यह किसी पूजा स्थल को, चाहे वह पूर्ण रूप से हो या आंशिक रूप से, एक धार्मिक संप्रदाय से दूसरे में अथवा उसी संप्रदाय के भीतर परिवर्तित होने से रोकता है।
    • धार्मिक चरित्र का रखरखाव [धारा 4(1)]: यह सुनिश्चित करता है कि पूजा स्थल की धार्मिक पहचान वैसी ही बनी रहे जैसी 15 अगस्त, 1947 को थी।
    • अधिनियम के अपवाद (धारा 5)
      • प्राचीन एवं ऐतिहासिक स्मारक: यह अधिनियम प्राचीन स्मारक और पुरातत्त्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 के अंतर्गत संरक्षित स्मारकों, पुरातात्त्विक स्थलों और अवशेषों पर लागू नहीं होता है।
      • सुलझे हुए या हल किए गए विवाद: अधिनियम में पहले से ही सुलझाए जा चुके मामले, आपसी सहमति से सुलझाए गए विवाद या अधिनियम के लागू होने से पहले हुए धर्मांतरण शामिल नहीं हैं।
      • राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद: अधिनियम में अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल और उससे संबंधित किसी भी चल रही कानूनी कार्यवाही को विशेष रूप से शामिल नहीं किया गया है।
  • दंड (धारा 6): अधिनियम का उल्लंघन करने के लिए दंड निर्दिष्ट करता है, जिसमें अधिकतम तीन वर्ष की कारावास की अवधि और जुर्माना शामिल है।
  • न्यायिक समीक्षा पर रोक: अधिनियम की मुख्य आलोचना यह है कि यह न्यायिक समीक्षा पर रोक लगाता है, जो संविधान की एक मूलभूत विशेषता है।

पूजा स्थल अधिनियम संबंधी चुनौतियाँ

  • संभल याचिका और चरित्र परिवर्तन: संभल में दायर याचिका में पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बदलने की माँग की गई है, जो वर्ष 1991 के अधिनियम के प्रावधानों का खंडन करता है।
  • न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ की मौखिक टिप्पणी: याचिकाकर्ता न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ की वर्ष 2022 की टिप्पणी का हवाला देते हैं कि प्रक्रियात्मक जाँच के हिस्से के रूप में किसी स्थान के धार्मिक चरित्र का निर्धारण करना, जरूरी नहीं कि अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करता हो।
    • इसका अनिवार्य रूप से मतलब है कि 15 अगस्त, 1947 को पूजा स्थल की प्रकृति क्या थी, इसकी जांच की अनुमति दी जा सकती है, भले ही उस प्रकृति को बाद में बदला न जा सके।
  • न्यायालयों ने याचिकाएँ स्वीकार की हैं: न्यायालयों ने वाराणसी, मथुरा, धार और अब संभल में पूजा स्थलों के धार्मिक चरित्र को बदलने की माँग करने वाली याचिकाओं को स्वीकार कर लिया है, जबकि सर्वोच्च न्यायालय को अभी तक पूजा स्थल अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला करना है।

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