नरसापुर क्रोशिया लेस (Narsapur Crochet Lace) के लिए GI टैग
नरसापुर क्रोशिया लेस (Narsapur Crochet Lace) शिल्प के लिए GI रजिस्ट्री टैग प्रमाण-पत्र पश्चिमी गोदावरी जिला कलेक्टर द्वारा ‘जीआई एंड बियॉन्ड 2024’ शिखर सम्मेलन के समापन समारोह के दौरान दिया गया।
मंत्रालय: केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत उद्योग तथा आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) ने इस शिल्प को भौगोलिक संकेतक रजिस्ट्री (GIR) में पंजीकृत किया।
नरसापुर क्रोशिया लेस क्राफ्ट के बारे में
उत्पत्ति: लेस शिल्प की शुरुआत वर्ष 1844 में स्कॉटलैंड के एक जोड़े द्वारा डुम्मुगुडेम (वर्तमान में तेलंगाना में) में एक ईसाई मिशनरी के सहयोग से की गई थी।
स्थान: यह शिल्प आंध्र प्रदेश के गोदावरी क्षेत्र के पश्चिम गोदावरी और डॉ. बी. आर. अंबेडकर कोनसीमा जिलों के 19 मंडलों में प्रचलित है।
नरसापुर और पलाकोले पश्चिमी गोदावरी जिले में फीता उत्पादों के प्रमुख व्यापार केंद्र हैं।
शिल्प: फीते (लेस) का कार्य महीन सूती धागों का उपयोग करके किया जाता है एवं इन्हें फिर से अलग-अलग आकार की पतली क्रोकेट सुइयों से बुना जाता है।
महिलाओं के नेतृत्व में शिल्प: लेस से बने उत्पादों की 3 श्रेणियाँ अर्थात् वस्त्र, घरेलू सामान और सहायक उपकरण, जिनमें लगभग 15,000 महिलाएँ सीधे तौर पर शामिल हैं।
एक अनुमान के अनुसार इस शिल्प में शामिल कारीगरों में 60% महिलाएँ हैं।
GI एंड बियॉन्ड 2024 शिखर सम्मेलन के बारे में
GI एंड बियॉन्ड-2024 शिखर सम्मेलन पूरे भारत में GI हथकरघा और हस्तशिल्प उत्पादों को प्रदर्शित करने वाला एक दिवसीय कार्यक्रम है।
उद्देश्य: इस आयोजन का उद्देश्य विदेशी खरीदारों, निर्यातकों, बहुराष्ट्रीय कंपनियों आदि सहित हितधारकों के व्यापक स्पेक्ट्रम के बीच GI हथकरघा और हस्तशिल्प उत्पादों का ब्रांड प्रचार करना है।
रियांग जनजाति
रियांग (Reang) समुदाय द्वारा उनकी मौखिक भाषा, काउबरू (Kaubru) को मान्यता देने के अनुरोध के बाद, त्रिपुरा सरकार ने सभी भाषाओं के विकास एवं उनके विलुप्त होने को रोकने के लिए अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की।
रियांग समुदाय की माँगें
काउबरू भाषा की मान्यता: 75 विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTGs) में से एक, रियांग समुदाय ने अपनी भाषा, काउबरू के लिए आधिकारिक मान्यता का अनुरोध किया।
होजागिरी दिवस पर छुट्टी: समुदाय ने होजागिरी दिवस पर छुट्टी की भी माँग की, जो उनके पारंपरिक होजागिरी नृत्य का जश्न मनाता है, जिसका उद्देश्य वैश्विक मंच पर त्रिपुरा की सांस्कृतिक पहचान को बढ़ावा देना है।
सरकारी कार्रवाइयाँ
त्रिपुरा सरकार ने मार्च 2022 में डॉ. अतुल देबबर्मा की अध्यक्षता में काउबरू भाषा के लिए एक विशेषज्ञ समिति की स्थापना की।
एक अलग अल्पसंख्यक भाषा के रूप में काउबरू की मान्यता का आकलन करने के लिए सितंबर 2023 में विधायक प्रमोद रियांग के नेतृत्व में एक नई समिति का गठन किया गया था।
रियांग जनजाति के बारे में
रियांग जनजाति, जिसे “ब्रू” के नाम से भी जाना जाता है, पुराने त्रिपुरी कबीले के बाद त्रिपुरा में दूसरा सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय है।
उन्हें त्रिपुरा में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
त्रिपुरा के अलावा रियांग जनजाति के सदस्य पड़ोसी राज्य मिजोरम, असम में भी पाए जाते हैं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
रियांग जनजाति की उत्पत्ति म्याँमार (पूर्व में बर्मा) के शान राज्य में हुई है।
वे अलग-अलग तरंगों में चटगाँव पहाड़ी इलाकों और उसके बाद दक्षिणी त्रिपुरा की ओर चले गए।
नृजातीयता और भाषा
वे इंडो-मंगोलॉयड नस्लीय समूह से संबंधित हैं।
वे काउबरू नामक भाषा बोलते हैं, जो कोक-बोरोक बोली का हिस्सा है और तिब्बती-बर्मी भाषायी परिवार से संबंधित है।
सामाजिक संरचना: रियांग समुदाय दो प्रमुख कुलों में विभाजित है, जिन्हें मेस्का और मोलसोई के नाम से जाना जाता है।
आर्थिक प्रथाएँ: वे परंपरागत रूप से एक कृषि जनजाति थे, जो हुक या झूम खेती करते थे, जो स्थानांतरित कृषि का एक रूप है।
धार्मिक मान्यताएँ
त्रिपुरा में अधिकांश रियांग हिंदू धर्म का पालन करते हैं।
वे विभिन्न प्रकार के देवताओं की पूजा करते हैं, जिनमें बुराहा, बोनिराव, सोंग्रग्मा, जम्पिरा और लैम्प्रा शामिल हैं।
सांस्कृतिक योगदान
होजागिरी लोक नृत्य रियांग जनजाति की एक प्रमुख सांस्कृतिक अभिव्यक्ति है।
इस नृत्य ने वैश्विक पहचान हासिल की है और यह उनकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत तथा कलात्मक परंपराओं का प्रतिनिधित्व करता है।
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