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राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से बढ़कर जैव विविधता

Lokesh Pal November 27, 2024 05:15 4 0

संदर्भ :  

भारत द्वारा हाल ही में राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैव विविधता (BBNJ) समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने से, जिसे उच्च सागर संधि के रूप में भी जाना जाता है, समुद्री पर्यवेक्षकों के बीच आशावाद और संदेह दोनों पैदा हो गए हैं।

BBNJ का विस्तार

  • BBNJ समझौता उच्च समुद्र, गहरे समुद्र तल और अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल क्षेत्र को कवर करता है। 
  • उच्च सागर, महासागर के वे क्षेत्र हैं जो देशों के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्रों से बाहर हैं तथा महासागर का 61% भाग निर्मित करते हैं। 
  • ये क्षेत्र मिलकर महासागर की सतह का लगभग दो-तिहाई भाग तथा उसके आयतन का 95% भाग बनाते हैं। 

संधि की आवश्यकता

  • उच्च सागरीय चुनौतियों का समाधान : यह संधि उच्च सागरीय चुनौतियों का समाधान करने के लिए आवश्यक है, जिनमें शामिल हैं :
    • बढ़ता प्रदूषण : प्लास्टिक कचरे, रासायनिक अपवाह और तेल रिसाव से बढ़ता प्रदूषण समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचा रहा है।
    • अत्यधिक मत्स्यन : गैर-संवहनीय मत्स्यन प्रथाएँ संसाधनों को नष्ट कर रही हैं, प्रजातियों के लिए खतरा पैदा कर रही हैं, जिससे पारिस्थितिक असंतुलन पैदा हो रहा है।
    • समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र का ह्रास : आवास विनाश, जलवायु परिवर्तन और अवैध संसाधन निष्कर्षण से समुद्री स्वास्थ्य में तेजी से गिरावट हो रही है।
  • सामूहिक उत्तरदायित्व सुनिश्चित करें : उच्च समुद्र को वैश्विक साझा संसाधन माना जाता है, जहाँ यह सिद्धांत प्रचलित है कि “प्रत्येक का उत्तरदायित्व किसी एक का नहीं है।” 
    • इसके परिणामस्वरूप अनियमित शोषण और न्यूनतम जवाबदेही पैदा हुई है, जिससे सामूहिक उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने के लिए समझौते की आवश्यकता पड़ी है।

महासागरीय संसाधन  

महासागर कई संसाधनों के मूल्यवान स्रोत हैं, जिनमें शामिल हैं:

  • ऊर्जा : तेल और प्राकृतिक गैस को समुद्र से निकाला जाता है तथा इसका उपयोग घरों और कारों को चलाने  एवं प्लास्टिक आदि के निर्माण में किया जाता है। 
  • निर्माण सामग्री : अवसंरचना निर्माण और समुद्र तट पोषण के लिए रेत और बजरी समुद्र से निकाली जाती है। 
  • खनिज : महासागर में निकेल, तांबा, कोबाल्ट और दुर्लभ-पृथ्वी धातु जैसे मूल्यवान खनिज मौजूद हैं। 
  • भोजन : मछलियाँ और शंख समुद्र से प्राप्त किए जाते हैं।
  • जैव-चिकित्सीय जीव : महासागर में ऐसे जीव पाए जाते हैं जिनमें रोगों से लड़ने की क्षमता होती है। 

संधि के उद्देश्य

BBNJ संधि संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (UNCLOS) के तहत तीसरा कार्यान्वयन समझौता है। यह गहरे समुद्र में खनन और मत्स्य प्रबंधन पर पिछले समझौतों का अनुसरण करता है। संधि तीन मुख्य उद्देश्यों पर केंद्रित है :

  • समुद्री जैव विविधता का संरक्षण : राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे समुद्री जैव विविधता, लुप्तप्राय प्रजातियों और संवेदनशील पारिस्थितिकी प्रणालियों की रक्षा करना विश्व के महासागरों के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण है। 
    • यदि इन पारिस्थितिक तंत्रों का संरक्षण नहीं किया गया, तो पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ सकता है, जिसके दूरगामी नकारात्मक पर्यावरणीय परिणाम सामने आएंगे। 
    • समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (MPA) की स्थापना के माध्यम से संरक्षण प्रयासों को समर्थन दिया जा सकता है।
  • समुद्री आनुवंशिक संसाधनों का न्यायसंगत विभाजन : धनी देश और कंपनियाँ अक्सर इन संसाधनों, जैसे- समुद्री जीव और उनकी आनुवंशिक सामग्री, का उपयोग दवाओं आदि के निर्माण के लिए खुले समुद्र से करती हैं।
    • हालाँकि, ऐसी गतिविधियों से होने वाले लाभ को गरीब और विकासशील देशों के साथ भी साझा किया जाना चाहिए, जिनके पास इन संसाधनों का स्वयं दोहन करने की तकनीकी क्षमता का अभाव हो सकता है।  
  • पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) : संधि में उन गतिविधियों के लिए पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) को अनिवार्य बनाया गया है, जो समुद्री पर्यावरण को हानि पहुँचा सकती हैं। 

संधि से जुड़ी चुनौतियाँ

  • धीमी अनुसमर्थन प्रक्रिया : 104 देशों द्वारा संधि पर हस्ताक्षर किए जाने के बावजूद अब तक केवल 14 देशों ने ही इसका अनुसमर्थन किया है।
    • यह संधि तब तक लागू नहीं हो सकती, जब तक कि इसके लिए आवश्यक 60 अनुमोदनों की सीमा नहीं प्राप्त हो जाती। 
  • क्षेत्राधिकार का अतिव्यापी होना : भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और क्षेत्रीय विवाद, जैसे कि दक्षिण चीन सागर में, समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (MPA) पर आम सहमति में बाधा उत्पन्न करके संधि कार्यान्वयन को जटिल बनाते हैं। 
    • तटीय राष्ट्रों, विशेषकर दक्षिण-पूर्व एशिया और बंगाल की खाड़ी के देशों को डर है कि उच्च सागरीय राष्ट्रीय उद्यान उनके क्षेत्रीय अधिकारों का उल्लंघन कर सकते हैं या मत्स्यन तथा तेल निष्कर्षण जैसी आर्थिक गतिविधियों को प्रतिबंधित कर सकते हैं।
  • समुद्री प्रशासन में विषमता : धनी राष्ट्र अपनी गतिविधियों की गलत रिपोर्टिंग करके कमजोर जवाबदेही का लाभ उठा सकते हैं, जबकि गरीब राष्ट्रों को संधि के कार्यान्वयन में संसाधन और तकनीकी बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
  • संकीर्ण उद्देश्य : उच्च समुद्र को प्राथमिकता देकर, संधि समुद्री पारिस्थितिकी प्रणालियों की परस्पर संबद्धता को नजरअंदाज करती है। 
    • विशिष्ट आर्थिक क्षेत्रों (EEZ) में अत्यधिक मत्स्यन, प्रदूषण और आवास विनाश जैसी हानिकारक क्रियाएँ अंतर्राष्ट्रीय जलक्षेत्र को प्रभावित करती हैं, जिससे यह दृष्टिकोण अपर्याप्त हो जाता है।
  • कमजोर प्रवर्तन : संधि में पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) को अनिवार्य बनाया गया है, लेकिन तेल और गैस अन्वेषण जैसे प्रमुख खतरों को इसमें शामिल नहीं किया गया है, जिससे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा में इसकी प्रभावशीलता कम हो गई है।

निष्कर्ष

अंततः विश्व के सभी राष्ट्रों को महासागरों को साझा वैश्विक संसाधन के रूप में पहचानना चाहिए और उन्हें  बचाने के लिए सामूहिक रूप से कार्य करना चाहिए। हालाँकि, संधि की सफलता इसके कमज़ोर प्रवर्तन  तंत्र और भू-राजनीतिक चुनौतियों पर नियंत्रण पाने पर निर्भर करती है, फिर भी यह कहना गलत नहीं होगा कि यदि उपर्युक्त चुनौतियों के उपाय किए गए तो इसके दूरगामी सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे | 

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

समुद्री आनुवंशिक संसाधनों के संबंध में “राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैव विविधता” (BBNJ) समझौते के प्रावधानों का विश्लेषण कीजिए । ये प्रावधान किस प्रकार वैश्विक रूप से समता संबंधी चिंताओं को संबोधित कर सकते हैं, व्याख्या कीजिए ?

(10 अंक, 150 शब्द)

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