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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal November 29, 2024 02:55 7 0

रियाद डिजाइन कानून संधि (Riyadh Design Law Treaty)

भारत ने विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) के सदस्य देशों के साथ मिलकर डिजाइन कानून संधि (DLT) को अपनाया है।

संधि के बारे में

  • संधि का उद्देश्य विभिन्न देशों में औद्योगिक डिजाइनों की प्रक्रियाओं में सामंजस्य स्थापित करना तथा पंजीकरण प्रक्रियाओं को सरल बनाना है।
  • उद्देश्य: संधि लालफीताशाही को समाप्त करके तथा आवेदन प्रक्रियाओं को सरल बनाकर डिजाइन संरक्षण को सुगम बनाएगी, जिससे डिजाइनों की सुरक्षा तथा विपणन को आसान तथा किफायती बनाया जा सकेगा।
  • सम्मेलन: संधि पर सऊदी अरब के रियाद में हस्ताक्षर किए गए, जिसने अंतिम चरण की संधि वार्ता का प्रतिनिधित्व करते हुए डिजाइन कानून संधि को समाप्त करने तथा अपनाने के लिए राजनयिक सम्मेलन की मेजबानी की है।
  • संरचना: संधि में अनुच्छेद तथा नियम शामिल होंगे।
    • अपडेशन: अनुबंधकारी पक्षों की सभा नियमों में संशोधन करने में सक्षम होगी, जिससे एक गतिशील ढाँचे को बढ़ावा मिलेगा, जिसके अंतर्गत डिजाइन कानून को और विकसित किया जा सकेगा।
  • निर्माण: विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) के ट्रेडमार्क, औद्योगिक डिजाइन और भौगोलिक संकेत, ब्रांड और डिजाइन क्षेत्र विभाग।
  • प्रावधान
    • डिजाइन आवेदन प्रक्रियाओं को सरल बनाना: अब आवेदन में एक ही आवेदन में कई डिजाइन हो सकते हैं, बजाय इसके कि प्रत्येक व्यक्तिगत डिजाइन के लिए अलग से आवेदन दाखिल करना पड़े।
    • फाइलिंग तिथि प्राप्त करना आसान: आवेदकों के लिए अब पूरा आवेदन जमा करने के बजाय आवेदन के कुछ आवश्यक भाग जमा करना पर्याप्त होगा।
    • पंजीकरण के बाद की प्रक्रियाओं के लिए रूपरेखा: कुछ लेन-देन रिकॉर्ड करने के लिए अनुरोध में आवश्यक सभी तत्त्वों की स्पष्ट परिभाषा, जैसे कि नवीनीकरण, स्वामित्व में परिवर्तन या लाइसेंस आदि।
    • सुरक्षा को सुविधाजनक बनाना: आवेदक फाइलिंग तिथि प्राप्त करने के बाद भी डिजाइन की प्रकाशन तिथि पर नियंत्रण बनाए रखेंगे।
    • राहत उपाय: यदि औद्योगिक संपत्ति कार्यालय के समक्ष किसी प्रक्रिया में समय सीमा चूक जाती है, तो आवेदकों को अपने अधिकारों को खोने से बचाने में मदद करने के लिए राहत उपाय उपलब्ध होंगे।

साइबेरियन क्रेन: सुकपाक (Siberian Crane: Sukpak)

सुकपाक नामक एक साइबेरियन डेमोइसेल क्रेन ने भारत के राजस्थान में आने वाले प्रवासी पक्षियों के लिए एक नया दूरी रिकॉर्ड स्थापित किया है।

सुकपाक के बारे में

  • वैज्ञानिक नाम: एंथ्रोपोइड्स विर्गो (Anthropoides virgo) (जिसे ग्रस विर्गो के नाम से भी जाना जाता है)।
  • प्रजनन और शीतकालीन क्षेत्र
    • प्रजनन: मध्य एशिया, मंगोलिया और पूर्वोत्तर चीन तक फैले हुए पाए जाते हैं।
    • शीतकाल: वे मुख्य रूप से पश्चिमी भारत, विशेष रूप से गुजरात और राजस्थान में सर्दियाँ बिताते हैं।
  • माइग्रेशन पथ
    • पारंपरिक मार्ग: आमतौर पर हिमालय की घाटियों से होकर प्रवास करते हैं।
    • उल्लेखनीय मार्ग: कुछ, जैसे कि क्रेन सुकपाक, रूस, कजाखस्तान, तुर्कमेनिस्तान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से होकर विपरीत दिशा में प्रवास करते हैं।
  • सांस्कृतिक महत्त्व 
    • भारतीय नाम: स्थानीय भाषाओं में इसे कुंज या कुरजा कहा जाता है।
    • प्रतीकात्मकता: गुजरात और राजस्थान के क्षेत्रों में इसका महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक महत्त्व है।
    • संरक्षण स्थिति
      • IUCN स्थिति: कम चिंताजनक (Least Concern) के रूप में वर्गीकृत।

प्रेसिडेंट्स कलर (President’s Colours)

सेना की मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री की चार बटालियनों को अहिल्या नगर स्थित मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री सेंटर और स्कूल में एक समारोह के दौरान सेना प्रमुख जनरल द्वारा प्रेसिडेंट्स कलर प्रदान किए गए।

  • पुरस्कार: प्रेसिडेंट्स कलर मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री रेजिमेंट की 26वीं और 27वीं बटालियनों और गार्ड्स ब्रिगेड की 20वीं और 22वीं बटालियनों को प्रदान किए गए।

मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री 

  • यह इन्फैंट्री और मैकेनाइज्ड बलों का सर्वश्रेष्ठ मिश्रण है, जिसकी बटालियनें सभी थिएटरों में और संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों में भी तैनात हैं।
  • उत्पत्ति: मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री रेजिमेंट की आधिकारिक स्थापना 2 अप्रैल, 1979 को लेफ्टिनेंट जनरल ए.एस. कलकट (A.S. Kalkat) के दूरदर्शी नेतृत्व में हुई थी।

प्रेसिडेंट्स कलर पुरस्कार के बारे में

  • यह भारतीय सेना में किसी भी सैन्य इकाई को दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है।
    • इसे निशान के नाम से भी जाना जाता है, जो एक प्रतीक है, जिसे सभी यूनिट अधिकारी अपनी वर्दी की बाईं बाँह पर पहनते हैं।
  • कलर एक औपचारिक ध्वज है, जिस पर यूनिट का प्रतीक चिह्न और आदर्श वाक्य अंकित होता है, जिसे संचालन तथा शांतिकाल में उनके योगदान को मान्यता देने के लिए निर्दिष्ट सराहनीय सेवा पूरी करने पर यूनिट को प्रदान किया जाता है।

भारत और ISA ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सौर परियोजनाओं पर सहयोग किया 

हाल ही में  भारतीय विदेश मंत्रालय (MEA) और अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) के बीच चार इंडो-पैसिफिक देशों में सौर परियोजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए एक परियोजना कार्यान्वयन समझौते (PIA) पर हस्ताक्षर किए गए।

समझौते के मुख्य तथ्य

  • निवेश और कार्यान्वयन: भारत ने सौर परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिए 2 मिलियन अमेरिकी डॉलर देने की प्रतिबद्धता जताई है और ISA परियोजना कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में कार्य करेगा, जो देशों को तकनीकी और कार्यक्रम संबंधी सहायता प्रदान करेगा।
    • शामिल देश: फिजी, कोमोरोस, मेडागास्कर और सेशेल्स
  • परियोजना के उद्देश्य: ऊर्जा चुनौतियों का समाधान करना, जैसे कि अविश्वसनीय बिजली और कृषि उत्पादों का खराब होना।
    • फोकस क्षेत्रों में शामिल हैं:
      • सौर शीत भंडारण प्रणालियाँ।
      • स्वास्थ्य सुविधाओं का सौर्यकरण।
      • सिंचाई के लिए सौर जल पंपिंग प्रणालियाँ।
  • अपेक्षित परिणाम
    • ऊर्जा तक पहुँच और विश्वसनीयता में सुधार।
    • रोजगार के अवसरों का सृजन।
    • स्वच्छ ऊर्जा अर्थव्यवस्था में परिवर्तन की दिशा में प्रगति।
  • महत्त्व
    • स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति शृंखलाओं को बढ़ावा देने के लिए क्वाड्स विलमिंगटन (Quads Wilmington) घोषणा के अनुरूप।।
    • जलवायु परिवर्तन से निपटने और सतत् विकास सुनिश्चित करने के वैश्विक प्रयासों का समर्थन करता है।
    • समग्र आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय में योगदान देता है।
    • वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण में भारत के नेतृत्व को मजबूत करता है।

रेड ब्रेस्टेड फ्लाईकैचर (Red-Breasted Flycatcher)

हैदराबाद के अमीनपुर झील में मात्र 12 सेमी. लंबे छोटे रेड-ब्रेस्टेड फ्लाईकैचर  ने पक्षी प्रेमियों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है।

रेड-ब्रेस्टेड फ्लाईकैचर के बारे में

  • वैज्ञानिक नाम: फिसेडुला परवा (Ficedula parva)
  • प्रवास: यह छोटा पक्षी पूर्वी यूरोप से दक्षिण एशिया तक अपनी अविश्वसनीय प्रवासी यात्रा के लिए जाना जाता है।
  • स्वरुप: नर पक्षी की पहचान गर्दन के नीचे उनके चमकीले लाल-नारंगी पैच से होती है।
  • IUCN स्थिति: कम से कम चिंताजनक (Least Concern)
  • खतरा: संख्या में अपेक्षाकृत स्थिर होने के बावजूद, उनके आवास, विशेष रूप से आर्द्रभूमि और जंगल, शहरीकरण और पर्यावरणीय गिरावट के कारण खतरे में हैं।

अमीनपुर झील के बारे में

  • अमीनपुर  झील एक कृत्रिम झील है, जिसका निर्माण 16वीं शताब्दी में कुतुब शाही राजवंश के दौरान पास के बगीचे की सिंचाई के लिए किया गया था।
  • शहरी जैव विविधता विरासत स्थल: यह भारत का पहला शहरी जैव विविधता विरासत स्थल है और पक्षियों एवं वन्यजीवों के लिए एक आश्रय स्थल के रूप में अपनी स्थिति को पुनः प्राप्त कर रहा है।
  • पुनरुद्धार: हैदराबाद आपदा प्रतिक्रिया और संपत्ति संरक्षण एजेंसी (HYDRAA) ने झील के पारिस्थितिकी स्वास्थ्य को बहाल करने के लिए प्रयास किए हैं।

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