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भारत में अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए एक वैधानिक ढाँचा

Lokesh Pal November 28, 2024 05:15 4 0

संदर्भ :

भारत अंतरिक्ष गतिविधियों के विस्तार को विनियमित करने, निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ाने और वैश्विक संधियों के साथ तालमेल स्थापित करने के उद्देश्य से एक राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून का मसौदा तैयार कर रहा है। इस कानून का प्रमुख उद्देश्य नवाचार को बढ़ावा देना, राष्ट्रीय सुरक्षा को सुनिश्चित करना तथा भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं का विस्तार करना है।  

अंतरिक्ष संबंधी विभिन्न अंतरराष्ट्रीय कानून 

  • बाह्य अंतरिक्ष संधि (1967)
    • संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के तहत विकसित बाह्य अंतरिक्ष संधि के मुख्य सिद्धांत अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग, मानवता के साझा लाभ के लिए अंतरिक्ष के उपयोग तथा अंतरिक्ष में राष्ट्रीय संप्रभुता के निषेध पर केंद्रित हैं। इस संधि ने अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून की नींव रखी। 
    • बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग पर समिति (COPUOS) इन सिद्धांतों के कार्यान्वयन की देखरेख करती है।
  • पूरक संधियाँ
    • बचाव समझौता (1968): इसका उद्देश्य अंतरिक्ष यात्रियों और अंतरिक्ष वस्तुओं की सुरक्षित वापसी के लिए प्रक्रियाओं का ध्यान रखना है।
    • उत्तरदायित्व कन्वेंशन (1972): अंतरिक्ष से संबंधित क्षति की स्थिति में उत्तरदायित्व के लिए दिशा-निर्देश स्थापित करता है।
    • पंजीकरण कन्वेंशन (1976): अंतरिक्ष में जाने वाले देशों को अंतरिक्ष वस्तुओं को पंजीकृत करने और संयुक्त राष्ट्र के साथ विवरण साझा करने की आवश्यकता होती है।
    • चंद्रमा की सतह के लिए समझौता : चंद्र समझौता (1984) चंद्रमा और खगोलीय पिंडों को “मानव जाति की साझा विरासत” के रूप में नामित करता है, जो उनके शांतिपूर्ण उपयोग और न्यायसंगत अन्वेषण पर ध्यान केंद्रित करता है।
      • हालाँकि, केवल 19 देशों ने ही इसका अनुमोदन किया है, क्योंकि अमेरिका, रूस और चीन जैसे प्रमुख अंतरिक्ष यात्री देश वाणिज्यिक संसाधन दोहन पर इसके प्रतिबंधों के कारण इससे दूर रहे हैं।

राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून

  • वैश्विक स्तर पर स्वीकृति : अब तक 44 देशों ने राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून को अपना लिया है, जिनमें अमेरिका, जर्मनी, फ्राँस और ब्रिटेन जैसी प्रमुख शक्तियाँ तथा केन्या, नाइजीरिया और पेरू जैसे उभरते अंतरिक्ष राष्ट्र भी शामिल हैं।
    • ये कानून अपने क्षेत्रों में सरकारी और वाणिज्यिक अंतरिक्ष गतिविधियों को विनियमित करते हैं।
  • राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानूनों में विरोधाभास : कुछ राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून बाह्य अंतरिक्ष संधि के शांतिपूर्ण उपयोग, संप्रभुता और संसाधन दोहन के सिद्धांतों के साथ टकराव रखते हैं।
    • उदाहरण के लिए, फ्राँस अपने कानूनों में अंतरिक्ष रक्षा पर जोर देता है, जबकि अमेरिका का वाणिज्यिक अंतरिक्ष अधिनियम, अंतरिक्ष संसाधनों के वाणिज्यिक दोहन की अनुमति देता है, जो संधि के साझा वैश्विक विरासत के ढाँचे को चुनौती देता है।

अंतरिक्ष कानून में परिवर्तन की आवश्यकता

  • निजी क्षेत्र की बढ़ती भागीदारी : अंतरिक्ष अन्वेषण एक राष्ट्रीय गौरव से बदलकर एक अत्यधिक वाणिज्यिक उद्योग बन गया है।
    • स्पेसएक्स जैसी कंपनियाँ स्टारशिप और स्टारलिंक जैसी परियोजनाओं के साथ बड़ी मात्र में राजस्व क्षमता को प्रदर्शित करती हैं। 
    • वैश्विक अंतरिक्ष क्षेत्र के 10% वार्षिक दर से बढ़ने का अनुमान है, जो अनुमानतः 2035 तक $1.8 ट्रिलियन तक पहुँच जाएगा।
  • भारत का बदलता दृष्टिकोण :
    • भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम मुख्य रूप से स्वदेशी अंतरिक्ष क्षमताओं के लागत प्रभावी विकास पर केंद्रित रहा है, मुख्य रूप से संचार, मौसम पूर्वानुमान और संसाधन प्रबंधन में।
    • भारत ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग सार्वजनिक हित के लिए किया है, जैसे- टेलीमेडिसिन और टेली-शिक्षा के माध्यम से।
    • हाल ही में, भारत सरकार ने अपना ध्यान अंतरिक्ष गतिविधियों के व्यावसायीकरण की ओर स्थानांतरित कर दिया है। अंतरिक्ष गतिविधियों में निजी क्षेत्र की भागीदारी को विनियमित करने के लिए IN-SPACe (भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र) जैसे संस्थान के निर्माण से यह स्पष्ट है।
      • नवाचार को प्रोत्साहित करने और उभरते अंतरिक्ष स्टार्टअप को समर्थन देने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी इन्क्यूबेशन केंद्र भी स्थापित किए गए हैं।

भारतीय अंतरिक्ष नीति, 2023

  • गैर-सरकारी संस्थाओं (NGEs) की भूमिका : भारतीय अंतरिक्ष नीति, 2023 का उद्देश्य अंतरिक्ष गतिविधियों में NGE की भागीदारी बढ़ाने के लिए एक रूपरेखा तैयार करना है।
    • नीति में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और इन-स्पेस सहित प्रमुख हितधारकों की भूमिकाओं को रेखांकित किया गया है, जो एक समृद्ध अंतरिक्ष पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने में सहायक हैं।
  • अंतरिक्ष अन्वेषण पर बल : नीति में अंतरिक्ष अन्वेषण और अंतरिक्ष में मानव उपस्थिति के लक्ष्य पर भी बल दिया गया है। इसमें घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों हितधारकों के साथ सहयोग की परिकल्पना की गई है।

कानून की आवश्यकता 

  • विनियामक स्पष्टता और उद्योग विकास : चूँकि भारत के अंतरिक्ष उद्योग में निजी क्षेत्र की भूमिका लगातार बढ़ रही है, इसलिए अंतरिक्ष गतिविधियों को विनियमित करने के लिए एक वैधानिक ढाँचा आवश्यक है। प्रस्तावित राष्ट्रीय कानून निम्नलिखित प्रमुख पहलुओं को संबोधित कर सकता है :
    • लाइसेंसिंग और प्राधिकरण
    • बीमा आवश्यकताएँ
    • बौद्धिक संपदा अधिकारों की सुरक्षा
    • अनधिकृत गतिविधियों के लिए दंड
    • राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों हितों के साथ समानता सुनिश्चित करना।
  • निजी क्षेत्र और स्टार्टअप के लिए समर्थन : नया वैधानिक ढाँचा भारत के बढ़ते निजी क्षेत्र के लिए नियामक स्पष्टता प्रदान करने और वाणिज्यिक अंतरिक्ष उद्योग के लिए एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र बनाने में मदद करेगा।

निष्कर्ष

निष्कर्षतः अंतरिक्ष में विकास पर केंद्रित एक राष्ट्र से वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख देश के रूप में अपनी भूमिका को स्पष्ट करने के लिए भारत को एक व्यापक राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून के निर्माण की आवश्यक है। ऐसा कानून भारत की अंतरिक्ष महत्त्वाकांक्षाओं को प्रभावी ढंग से निर्देशित करेगा, वैश्विक स्तर के पहलों के साथ समानता सुनिश्चित करेगा तथा तेजी से प्रतिस्पर्द्धी और व्यावसायिक अंतरिक्ष क्षेत्र में विकास को बढ़ावा देगा।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न 

अंतरिक्ष अन्वेषण राष्ट्रीय गौरव के विषय से विकसित होकर एक अत्यधिक वाणिज्यिक और लाभ-संचालित उद्योग बन गया है। वैश्विक अंतरिक्ष प्रशासन और भारत की अंतरिक्ष नीति पर इस परिवर्तन के प्रभाव का आकलन कीजिए ।

(15 अंक, 250 शब्द)

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