भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) की 40वीं वर्षगाँठ 3 दिसंबर, 2024 को मनाई गई।
भोपाल गैस त्रासदी: यह भारत के मध्य प्रदेश के भोपाल में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) कीटनाशक संयंत्र में हुई एक भयावह औद्योगिक आपदा है।
विषाक्त गैस रिसाव: यह आपदा 3 दिसंबर, 1984 को हुई थी, जब भोपाल शहर में एक कीटनाशक कारखाने से लगभग 40 टन जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट (Methyl Isocyanate-MIC) गैस लीक हो गई थी।
मिथाइल आइसोसाइनेट (Methyl Isocyanate- MIC) के बारे में
विशेषता: एक ज्वलनशील, रंगहीन तरल, जिसमें तीखी गंध होती है।
MIC का रासायनिक सूत्र: CH3NCO या C2H3NO)।
अभिक्रिया: वायु के संपर्क में आने पर जल्दी वाष्पित हो जाती है।
घनत्व: गैसीय MIC वायु से अधिक सघन होता है, जो जमीनी स्तर पर जमा होता है।
उत्पादन: फॉस्जीन (Phosgene) के साथ मिथाइलमाइन (Methylamine) की अभिक्रिया के माध्यम से प्राप्त किया जाता है।
उपयोग
मुख्य रूप से कीटनाशकों के उत्पादन में एक रासायनिक मध्यवर्ती के रूप में कार्य करता है।
पॉलीयुरेथेन फोम (Polyurethane Foams) और प्लास्टिक के निर्माण में उपयोग किया जाता है।
अभिक्रियाशीलता: जल के साथ खतरनाक रूप से अभिक्रिया करता है।
असंयोज्यता: ऑक्सीडाइजर, एसिड, क्षार, एमाइन, लोहा, टिन और ताँबे के साथ संयोज्य नहीं है।
एंटीडोट: कोई उपलब्ध नहीं है।
स्वास्थ्य पर प्रभाव
त्वचा और आँखों का संपर्क: जलन उत्पन्न करता है और गंभीर नेत्र क्षति का कारण बन सकता है।
अंतर्ग्रहण: गंभीर जठराँत्रीय जलन उत्पन्न करता है।
साँस लेना: पल्मोनरी इडेमा (Pulmonary Edema), वायुकोशीय शिराओं को चोट पहुँचाना और संभावित रूप से मृत्यु का कारण बनता है।
विषाक्त अपशिष्ट निपटान की वर्तमान स्थिति
जारी की गई धनराशि: मार्च 2024 में केंद्र सरकार द्वारा मध्य प्रदेश को 337 मीट्रिक टन विषाक्त अपशिष्ट के निपटान के लिए 126 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, इस अपशिष्ट को वर्ष 2005 में एकत्र किया गया था और कारखाने के परिसर में रखा गया था।
कोई बुनियादी कार्रवाई नहीं: धनराशि जारी होने के बावजूद, राज्य सरकार ने प्रशासनिक बाधाओं के कारण निपटान प्रक्रिया शुरू नहीं की है।
डॉव केमिकल्स (Dow Chemicals)
वर्ष 2001 में, डॉव केमिकल (Dow Chemical) ने यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) का अधिग्रहण किया और अमेरिका में एस्बेस्टस पीड़ितों के दावों जैसे मामलों में अपनी देनदारियों की जिम्मेदारी स्वीकार की।
हालाँकि, इसने भोपाल में अनसुलझी देनदारियों को संबोधित करने से इनकार कर दिया।
खतरनाक अपशिष्ट के बने रहने के कारण
कानूनी प्रयास और प्रारंभिक कार्रवाई (2004-2007)
वर्ष 2004 में दायर एक जनहित याचिका (PIL) में डॉव केमिकल्स की जवाबदेही की माँग की गई।
BEIL (गुजरात) में प्रस्तावित भस्मीकरण को विरोध के कारण रद्द कर दिया गया था।
भस्मीकरण एक दहन प्रक्रिया है, जिसमें अपशिष्ट पदार्थ को जलाया जाता है।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश
वर्ष 2010 में, सर्वोच्च न्यायालय ने परीक्षण के बाद मध्य प्रदेश के पीथमपुर उपचार, भंडारण एवं निपटान सुविधा (Treatment, Storage, and Disposal Facility- TSDF) में 346 मीट्रिक टन अपशिष्ट को जलाने की अनुमति दी थी।
भस्मीकरण सुविधाओं से जुड़ी चुनौतियाँ (वर्ष 2012)
मध्य प्रदेश सरकार ने इंदौर के लिए एक प्रमुख जल स्रोत यशवंत सागर बाँध के संभावित संदूषण और आस-पास के निवासियों के स्वास्थ्य के लिए जोखिम का हवाला देते हुए पीथमपुर में जहरीले अपशिष्ट को जलाने का विरोध करते हुए उच्चतम न्यायालय में एक विशेष अनुमति याचिका दायर की।
जर्मन कंपनी GIZ ने पहले 346 मीट्रिक टन अपशिष्ट को हैम्बर्ग में 25 करोड़ रुपये में परिवहन एवं जलाने की पेशकश की थी।
हालाँकि, जर्मन पर्यावरण संगठनों और कार्यकर्ताओं के विरोध के बाद योजना को छोड़ दिया गया था।
असफल प्रयास और देरी (वर्ष 2015-2023)
रिपोर्ट से पता चला है कि इस सुविधा पर सात में से छह परीक्षण असफल रहे, जिससे जहरीले रसायन उत्पन्न हुए हैं।
केंद्र और राज्य के बीच आम सहमति की कमी के कारण सात वर्ष तक प्रगति रुकी रही है।
विषाक्त अपशिष्ट के निपटान के जोखिम
उत्सर्जन से स्वास्थ्य जोखिम: विषाक्त अपशिष्ट को जलाने से हानिकारक उत्सर्जन के कारण स्वास्थ्य संबंधी महत्त्वपूर्ण जोखिम उत्पन्न होते हैं।
वर्ष 2022 केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट में बताया गया है कि सात में से छह ट्रायल रन के दौरान, आस-पास के निवासियों में डाइऑक्सिन (Dioxins) और फ्यूरान (Furans) का उच्च स्तर पाया गया था।
ऑर्गेनोक्लोरीन का प्रभाव: जलाने से बड़ी मात्रा में ऑर्गेनोक्लोरीन (Organochlorines) और कार्सिनोजेनिक (Carcinogenic) रसायन निकल सकते हैं।
डाइऑक्सिन (Dioxins) और फ्यूरान (Furans) सहित ये रसायन मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों को नुकसान पहुँचाने के लिए जाने जाते हैं।
डाइऑक्सिन की विषाक्तता: डाइऑक्सिन रासायनिक रूप से संबंधित यौगिकों का एक समूह है, जो लगातार पर्यावरण प्रदूषक (POP) हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, डाइऑक्सिन अत्यधिक विषैले होते हैं और येप्रजनन और विकास संबंधी समस्याओं का कारण बन सकते हैं, प्रतिरक्षा प्रणाली को नुकसान पहुँचा सकते हैं, हार्मोनल संतुलन में बाधा डाल सकते हैं और कैंसर के जोखिम को बढ़ा सकते हैं।
भोपाल गैस त्रासदी के परिणाम
खतरनाक अपशिष्ट का निपटान न होना
भोपाल गैस त्रासदी के 40 वर्ष बाद भी 337 मीट्रिक टन जहरीले अपशिष्ट के निपटान की योजना अभी तक लागू नहीं हुई है।
सरकार ने अभी तक फैक्ट्री परिसर में मौजूद 11 लाख टन दूषित मिट्टी और पारे तथा लगभग 150 टन भूमिगत अपशिष्ट के निपटान के लिए कोई योजना नहीं बनाई है।
भूजल संदूषण फैलने के कारण उच्चतम न्यायालय और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के आदेशों की वर्षों से अनदेखी की जा रही है।
भूजल संदूषण
विषाक्त प्रसार: अध्ययनों से पता चला है कि फैक्ट्री के बाहर आवासीय क्षेत्रों में भूजल भारी धातुओं और अन्य विषाक्त पदार्थों से दूषित है, जिससे कैंसर एवं अन्य बीमारियाँ हो सकती हैं।
संदूषण का विस्तार: विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि समय के साथ संदूषण और भी फैल रहा है।
वर्ष 2018 में, भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान (Indian Institute of Toxicology Research) ने परित्यक्त यूनियन कार्बाइड के फैक्ट्री के पास दूषित जल से प्रभावित 42 कॉलोनियों की पहचान की।
भोपाल स्थित संभावना ट्रस्ट क्लिनिक द्वारा वर्ष 2022 में किए गए अध्ययन में 29 अतिरिक्त कॉलोनियों में संदूषण की सूचना दी गई।
न्यायालय की टिप्पणियाँ: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने सतही और भूमिगत जल को संदूषित करने वाले लीचेट के जोखिम को उजागर किया और वर्षा के दौरान इसके और अधिक फैलने, नदी निकायों तथा अन्य क्षेत्रों को प्रदूषित करने का जोखिम बताया।
विषाक्त भस्मीकरण जोखिम: परीक्षण के दौरान जलाए जाने वाले पदार्थों से निकलने वाले उत्सर्जन में डाइऑक्सिन और फ्यूरान जैसे कैंसरकारी रसायन निकलते हैं, जो निवासियों और पर्यावरण को हानि पहुँचाते हैं।
प्रशासनिक उदासीनता
विलंबित कार्रवाई: कई न्यायिक आदेशों के बावजूद, सफाई के प्रयास अपर्याप्त और धीमे गति से हो रहे हैं।
जवाबदेही की उपेक्षा: 310 करोड़ रुपये की सफाई लागत के लिए संदूषण फैलाने वालों को जवाबदेह ठहराने के लिए कोई सख्त उपाय नहीं किए गए।
पीड़ितों का संघर्ष
लगातार स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं: श्वसन, प्रजनन और विकास संबंधी समस्याएँ अभी भी आपदा प्रभावित लोगों को परेशान करती हैं।
समापन का अभाव: दशकों के बावजूद, कोई व्यापक पुनर्वास या अपशिष्ट निपटान की व्यवस्था नहीं की गई है।
सार्वजनिक दायित्व बीमा अधिनियम (Public Liability Insurance Act), 1991
अधिनियम के बारे में: यह अधिनियम भोपाल गैस त्रासदी के बाद लागू किया गया था।
बीमा कवरेज के लिए अधिदेश: यह खतरनाक पदार्थों को प्रबंधित करने वाले उद्यमों के लिए सार्वजनिक देयता बीमा पॉलिसी रखना अनिवार्य करता है।
बीमा कवरेज का दायरा: बीमा खतरनाक पदार्थों के कारण होने वाली मृत्यु, चोट या संपत्ति की क्षति के दावों को कवर करता है।
बीमा प्रीमियम आवंटन: उद्योगों से एकत्र किया गया प्रीमियम पर्यावरण राहत कोष में योगदान देता है।
निधि का उद्देश्य: पर्यावरण राहत कोष भोपाल त्रासदी जैसी आपदाओं के पीड़ितों को मुआवजा प्रदान करने के लिए बनाया गया है।
मुआवजा प्रक्रिया
पीड़ित घटना के 5 वर्ष के भीतर जिला कलेक्टर के पास दावा दायर कर सकते हैं।
कलेक्टर जाँच करता है, सुबूतों पर विचार करता है और मुआवजा तय करता है।
कंपनी की लापरवाही के बावजूद मुआवजा दिया जाता है।
अधिनियम की आलोचनाएँ
पुरानी मुआवजा राशि: मुआवजा दरें लगभग दो दशक पहले निर्धारित की गई थीं और उन्हें अपर्याप्त माना जाता है।
मृत्यु या स्थायी दिव्यांगता के लिए अधिकतम मुआवजा 25,000 रुपये है, जिसमें चिकित्सा व्यय के लिए 12,500 रुपये तक की प्रतिपूर्ति शामिल है।
निष्कर्ष
भोपाल गैस त्रासदी स्थल से खतरनाक अपशिष्ट का निपटान एक बड़ी चुनौती बनी हुई है, क्योंकि इसमें कई वर्षों से देरी हो रही है और उपाय अपर्याप्त हैं।
इस खतरनाक अपशिष्ट के उचित निपटान के लिए व्यापक, तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है, ताकि आगे संदूषण को रोका जा सके और स्थानीय समुदायों के स्वास्थ्य की रक्षा की जा सके।
Latest Comments