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निष्पक्ष और नियमित चुनाव स्थानीय स्वशासन की सुदृढ़ता की कुंजी

Lokesh Pal December 04, 2024 05:00 74 0

संदर्भ: 

शहरी स्थानीय निकायों और पंचायतों के चुनावों में होने वाले विलम्ब (जैसा कि हाल ही में उत्तराखंड में देखा गया है) के कारण राज्य के पंचायती राज विभाग द्वारा प्रशासकों को शासन की निगरानी संबंधी कुछ महत्त्वपूर्ण निर्देश दिए गए है। इससे भारत में स्थानीय निकायों की प्रभावशीलता और स्वायत्तता के संबंध में महत्वपूर्ण प्रश्न उठते हैं ।

स्थानीय स्वशासन का अर्थ एवं संवैधानिक प्रावधान :

  • स्थानीय स्वशासन का तात्पर्य, लोकतंत्र के अंतर्गत, राजनीतिक व्यवस्था के सबसे निचले पायदान पर शासन करने संबंधी शक्ति के हस्तांतरण से है।
  • यह लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का एक रूप है। इसके माध्यम से शासन व प्रशासन की प्रक्रिया में समाज के निचले स्तर की भी भागीदारी सुनिश्चित की जाती है।
  • 1992 के 73वें और 74वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम द्वारा जिसे क्रमशः 24 अप्रैल 1993 और 1 जून 1993 से लागू किया गया। इसके तहत  ग्रामीण (पंचायत) और शहरी (नगर पालिकाओं) क्षेत्रों में स्थानीय स्वशासन को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया । 
  • इन संशोधनों द्वारा स्थानीय निकायों हेतु स्वतंत्र और नियमित चुनाव कराने के लिए राज्य चुनाव आयोग (एसईसी) के गठन संबंधी प्रावधान किए गए ।
  • इन संशोधनों के तहत संविधान में , भाग IX (पंचायत) और भाग IXA (नगर पालिकाओं) को शामिल किया गया, जिसमें इन निकायों की संरचना, शक्तियों और कार्यों का उल्लेख है।
  • अनुच्छेद 243K (पंचायत) और अनुच्छेद 243ZA (नगर पालिकाएँ) स्थानीय स्वशासन के लिए चुनावी प्रक्रिया को परिभाषित करते हैं।

राज्य चुनाव आयोग (एसईसी)

  • राज्य चुनाव आयोग की संरचना: संविधान में राज्य चुनाव आयुक्तों (एसईसी) के लिए योग्यता, कार्यकाल या सेवा की शर्तों का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है एवं इन्हें राज्य विधानमंडलों द्वारा निर्धारित करने हेतु उनकी मर्जी दिया गया है।
  • अनुच्छेद 243K निर्दिष्ट करता है कि :
    •  राज्य चुनाव आयुक्त द्वारा एसईसी की अध्यक्षता की जाती है, जिसे राज्य के राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाता है।
    • राज्य विधानमंडल को स्थानीय निकाय प्रतिनिधियों के चुनाव के संबंध में कानून बनाने का अधिकार प्राप्त है।
    • राज्य चुनाव आयोग के कार्यकाल और सेवा की शर्तों को नियुक्ति पश्चात् उसकी क्षति हेतु  परिवर्तित नहीं किया जा सकता, इससे  कार्यालय की स्वतंत्रता सुनिश्चित हो सकेगी ।

राज्य चुनाव आयोग के कार्य:

  • अनुच्छेद 243 के और अनुच्छेद 243जेडए के तहत, पंचायतों और नगर पालिकाओं के संदर्भ में  चुनावी प्रक्रियाओं की देखरेख और नियंत्रण हेतु राज्य चुनाव आयोग एक उत्तरदायी  निकाय हैं।
  • मतदाता सूची तैयार करने और चुनाव प्रक्रिया की देखरेख सहित स्थानीय निकाय चुनावों के संचालन के संबंध में राज्य चुनाव आयोग को भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) के समान शक्तियां प्राप्त हैं।
  • किशनसिंह तोमर बनाम अहमदाबाद नगर निगम (2006) मामले में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्देश दिया गया है कि राज्य सरकारों को राज्य चुनाव आयोग के निर्देशों का उसी तरह सम्मान करना चाहिए जिस प्रकार उनके द्वारा ईसीआई के आदेशों का पालन किया जाता है।

राज्य चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली में व्याप्त चुनौतियाँ

  • शक्तियों का अपूर्ण हस्तांतरण: संविधान द्वारा राज्य चुनाव आयोग को स्थानीय निकाय चुनावों की निगरानी का अधिकार प्रदान किये जाने के बावजूद, कुछ राज्यों में शक्तियों का हस्तांतरण अभी भी अधूरा है। 
    •  उदाहरण के लिए,राज्य चुनाव आयोग, निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन और सीट आरक्षण जैसे महत्वपूर्ण कार्यों के लिए राज्य सरकारों पर निर्भर हैं।
  • सहयोग की कमी: राज्य चुनाव आयोग को राज्य सरकारों से अक्सर अपर्याप्त सहयोग मिलता है, जैसा कि पश्चिम बंगाल में 2013 के पंचायत चुनावों के दौरान स्पष्ट हुआ, जहां राज्य चुनाव आयोग को चुनाव सुरक्षा और चुनाव चरणबद्धता (election phasing) से संबंधित चुनौतियों का सामना करना पड़ा और कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी ।
  • परिचालन संबंधी मुद्दे: कुछ राज्यों में, राज्य चुनाव आयोग कार्यालय राज्य सचिवालय के भीतर अवस्थित होता है और वहां पूर्णकालिक सरकारी अधिकारियों को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया जाता है I यह स्थिति स्वतंत्र निकायों के रूप में एसईसी की संवैधानिक दृष्टिकोण को कमजोर करता है।
  • अलग-अलग दर्जा और कार्यकाल: राज्य चुनाव आयुक्तों का दर्जा, कार्यकाल और सेवा की शर्तें अलग-अलग राज्यों में भिन्न होती हैं, जो परिचालन संबंधी कठिनाइयाँ उत्पन्न करती हैं। इसके अतिरिक्त, अपर्याप्त फंडिंग और स्टाफिंग भी एसईसी के कामकाज में  बाधा डालती है।

आगे की राह : 

  • राज्य चुनाव आयोग की स्वतंत्रता को सुदृढ़ करना: स्वायत्तता सुनिश्चित करने और राज्य सरकार के हस्तक्षेप को कम करने के लिए निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन और आरक्षण रोटेशन जैसी सभी अनुपूरक शक्तियों को एसईसी को हस्तांतरित करना।
  • संस्थागत सुधार: अधिक पारदर्शिता और स्थायित्व के लिए एसईसी की नियुक्ति के संदर्भ में   कॉलेजियम-आधारित प्रणाली हेतु द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिश को अपनाया जाना।
  • संसाधन आवंटन: एसईसी को उनकी परिचालन दक्षता बढ़ाने के लिए पर्याप्त धन, जनशक्ति और बुनियादी ढांचा प्रदान करना।
  • क्षमता निर्माण और सहयोग : ई-वोटिंग जैसी सर्वोत्तम प्रथाओं और तकनीकी प्रगति को साझा करने के लिए एसईसी और भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) के मध्य सहयोग को बढ़ावा देना।
  • अंतर-राज्य समन्वय को प्रोत्साहित करना: विद्यमान चुनौतियों को हल करने, चुनावी प्रथाओं में सामंजस्य स्थापित करने और स्थानीय निकाय चुनावों में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए अखिल भारतीय राज्य चुनाव आयोग फोरम जैसे प्लेटफार्मों का उपयोग करना।

अखिल भारतीय राज्य चुनाव आयोग फोरम की भूमिका

अखिल भारतीय राज्य चुनाव आयोग फोरम राज्य चुनाव आयोग के संस्थागत तंत्र को सुदृढ़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह इनके लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है। जिसके अंतर्गत निम्नलिखित शामिल है : 

  • स्थानीय सरकार के चुनावों के संबंध में डेटा और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करना।
  • ई-वोटिंग और वन नेशन, वन इलेक्शन जैसे चुनावी कानूनों और सुधारों पर चर्चा करना ।
  • सहयोग और ज्ञान साझाकरण के माध्यम से स्थानीय निकाय चुनावों की पारदर्शिता और दक्षता में अभिवृद्धि करना ।

निष्कर्ष:

भारत में स्थानीय शासन को सुदृढ़ करने के लिए निष्पक्ष और नियमित चुनाव सम्पन्न कराना महत्वपूर्ण हैं। राज्य चुनाव आयोगों (एसईसी) के समक्ष आने वाली चुनौतियों का समाधान करके, स्थानीय निकाय चुनावों की स्वतंत्रता और प्रभावशीलता सुनिश्चित की जा सकती है, जिससे जमीनी स्तर पर सुदृढ़ लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली को बढ़ावा मिल सकेगा।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न:

प्रश्न :  जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को सुदृढ़ करने में राज्य चुनाव आयोगों (एसईसी) की भूमिका का मूल्यांकन करें। स्वतंत्र और प्रभावी कामकाज सुनिश्चित करने में उनके समक्ष आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालें।

(15 अंक, 250 शब्द)

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