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ग्रेजुएशन कैप और गाउन की स्वीकार्यता : पश्चिमी प्रभाव के कारण

Lokesh Pal December 04, 2024 05:15 32 0

संदर्भ: 

शैक्षणिक उपलब्धियों के अवसर पर पश्चिमी संस्कृति के प्रतीक ग्रेजुएशन कैप और गाउन को धारण करने के संबंध में होने वाली बहस के तहत अनेक सवाल उठाये गए हैं।  जिसमे सबसे अधिक बल इस पर दिया गया है कि ऐसे महत्वपूर्ण आयोजनों पर परंपरा से समृद्ध देश भारत द्वारा विदेशी पोशाकें ही धारण क्यों की जाती रही हैं ?

ग्रेजुएशन समारोहों पर पश्चिमी प्रभाव के कारण

  • औपनिवेशिक विरासत: औपनिवेशिक शासन के दौरान अंग्रेजों द्वारा  पश्चिमी शैली पर आधारित  शिक्षा और शैक्षणिक अनुष्ठानों की शुरुआत की गयी । 
    • इस कारण समकालीन शिक्षा और शैक्षणिक अनुष्ठानों विशेषकर औपचारिक, “सभ्य” शिक्षा प्रणाली से जुड़ी उपलब्धि का प्रतीक बन गईं।
    • स्वतंत्रता के पश्चात् भी ये प्रथाएँ औपनिवेशिक विरासत के एक हिस्से के रूप में कायम रहीं।
  • वैश्वीकरण और पश्चिमीकरण: धीरे-धीरे ये कैप और गाउन  मीडिया, फिल्मों, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और शिक्षा के माध्यम से वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठा और सफलता के प्रतीक बन गए।
  • औपचारिकता और प्रतिष्ठा की धारणा: भारत में, पश्चिमी शैली की स्नातक पोशाक को अधिक औपचारिक और सम्मानजनक माना जाता रहा है। 
    • इसे वैश्विक शैक्षणिक मानकों के अनुरूप माना जाता है, जो  विद्वतापूर्ण उपलब्धि की भावना को व्यक्त करता है एवं यह मनोभाव इसे स्वदेशी पोशाक की तुलना में अधिक वांछनीय बनाती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों का प्रभाव:  वर्तमान समय में अनेक भारतीय विश्वविद्यालय, पश्चिमी संस्थानों के साथ कार्य  कर रहे हैं, जो पश्चिमी स्नातक प्रथाओं को अपनाने संबंधी विचारों को प्रभावित करते हैं । 
    • इसके अतिरिक्त, विदेश में पढ़ने वाले छात्र पश्चिमी प्रथाओं को देश में वापस लेकर आते हैं, जिससे शैक्षणिक समारोहों के मानक के रूप में कैप और गाउन को धारण करने की मानसिकता सुदृढ़ होती हैं।

ग्रेजुएशन कार्यक्रमों के दौरान पारंपरिक पोशाक का महत्व

  • सांस्कृतिक गौरव और पहचान: शैक्षणिक समारोहों के दौरान पारंपरिक पोशाक पहनने से व्यक्तियों को भारत के विविध इतिहास और क्षेत्रीय रीति-रिवाजों पर प्रकाश डालने के साथ-साथ अपनी सांस्कृतिक विरासत का जश्न मनाने और गौरवान्वित होने का मौका मिलता है।
  • विरासत से जुड़ाव: पारंपरिक पोशाक यथा  साड़ी, पगड़ी या कुर्ता-पायजामा जैसे परिधानों का एक गहरा सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व हैं। 
    • इन परिधानों को पहनकर छात्र अपने पूर्वजों और सांस्कृतिक मूल्यों का सम्मान कर सकते हैं, जिससे यह सुनिश्चित हो सकता है कि यह शैक्षणिक उत्कृष्टता भारत की सांस्कृतिक विरासत के साथ निरंतरता से जुड़ी हुयी है।
  • चुनौतीपूर्ण औपनिवेशिक विरासत: पारंपरिक पोशाकों को अपनाने से, पश्चिमी-प्रभुत्व वाले मानदंडों से अधिक स्थानीयकृत और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध दृष्टिकोण के परिप्रेक्ष्य में होने वाले बदलाव को बढ़ावा मिलता है। परिणामस्वरूप अकादमिक संस्थान स्वदेशी संस्कृति का जश्न मनाने वाले निकायों के रूप में पुनः स्थापित हो सकेंगे ।
  • अपनत्व और समुदायिक भावना का विकास : यह मनोभाव, समावेशिता को बढ़ावा देता है, क्योंकि ये पारंपरिक कपड़े, विदेशी शैलियों की तुलना में छात्रों के लिए अधिक भरोसेमंद और आरामदायक सिद्ध हो सकते हैं।

स्वदेशी पोशाक को पुनः प्राप्त करने का प्रयास

  • हथकरघा कपड़ों पर यूजीसी की सलाह (2015): 2015 में, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा औपनिवेशिक शासन से प्रेरित कैप और गाउन के बदले दीक्षांत समारोह की पोशाक के लिए हथकरघा कपड़ों को अपनाने की सलाह दी गयी । 
    • हालांकि कई केंद्रीय संस्थानों द्वारा इस परिवर्तन को अपनाया भी गया लेकिन परिवर्तन संबंधी यह संक्रमण अभी भी सीमित बना हुआ है, क्योंकि कुछ कॉलेजों में अभी भी पश्चिमी शैली के गाउन और कैप का उपयोग जारी है।

आगे की राह :

  • क्षेत्रीय विविधता को प्रोत्साहित करना : भारत की विशाल सांस्कृतिक विविधता को प्रतिबिंबित करने के लिए क्षेत्र-विशिष्ट परिधानों को प्रोत्साहित करना और शैक्षणिक कार्यक्रमों में क्षेत्रीय गौरव को बढ़ावा देना ।
  • स्कूलों में जागरूकता बढ़ाना : स्कूलों में पश्चिमी मानदंडों की तुलना में पारंपरिक पोशाक संबंधी मूल्य को बढ़ावा देते हुए ( विशेष रूप से स्नातक कार्यक्रमों के दौरान), आरम्भ से ही सांस्कृतिक शिक्षा की शुरूआत करनी चाहिए।
  • यूजीसी के दिशानिर्देशों को लागू करना: दीक्षांत समारोह की पोशाक के लिए हथकरघा कपड़ों को अपनाने संबंधी बदलाव का समर्थन जारी रखना आवश्यक है ताकि अधिक से अधिक संस्थान इन बदलावों को अपना सकें।

निष्कर्ष

भारत में स्नातक समारोहों के लिए पारंपरिक पोशाक को पुनः अपनाने संबंधी दृष्टिकोण, एक फैशन स्टेटमेंट से कहीं अधिक मायने रखता है । यह देश की विविधतापूर्ण सांस्कृतिक विरासत के साथ फिर से जुड़ने और उपनिवेशवाद के लंबे समय से चले आ रहे प्रभावों को चुनौती देने का एक अवसर भी प्रदान करता है।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न:

प्रश्न : “भारत में शिक्षा के उपनिवेशीकरण को पाठ्यक्रम सुधारों से आगे भी बढ़ना चाहिए।” भारतीय शैक्षणिक संस्थानों में औपचारिक पोशाकों जैसी प्रतीकात्मक प्रथाओं के संबंध में इस कथन का आलोचनात्मक विश्लेषण करें।

(10 अंक, 150 शब्द)

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