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चीन+1 रणनीति: भारत के सीमित लाभ

Lokesh Pal December 05, 2024 05:12 46 0

संदर्भ

नीति आयोग ने अपनी पहली तिमाही रिपोर्ट ‘ट्रेड वॉच’ जारी की, जो भारत के व्यापार एवं वाणिज्य परिदृश्य का मूल्यांकन करती है।

नीति आयोग की टिप्पणियाँ

  • भारत की सीमित सफलता: रिपोर्ट में वियतनाम, थाईलैंड, कंबोडिया और मलेशिया की तुलना में चीन प्लस वन रणनीति का लाभ उठाने में भारत की सीमित सफलता को स्वीकार किया गया है।
    • ये देश सस्ते श्रम, सरलीकृत कर ढाँचे, कम टैरिफ और सक्रिय मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) जैसे प्रतिस्पर्द्धी लाभों के कारण महत्त्वपूर्ण लाभार्थी के रूप में उभरे हैं।
    • भारत ने चीन-केंद्रित आपूर्ति श्रृंखलाओं से दूर वैश्विक बदलाव द्वारा प्रस्तुत अवसरों का पूरी तरह से लाभ नहीं उठाया है।
    • बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अन्य देशों में विविधता लाकर अपने परिचालन को जोखिम मुक्त कर रही हैं।
  • वैश्विक व्यापार व्यवधान: हाल ही में पारस्परिक व्यापार प्रतिबंधों सहित अमेरिका-चीन व्यापार संघर्षों ने वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं को खंडित कर दिया है।
    • महत्त्वपूर्ण सामग्रियों पर निर्यात प्रतिबंध और चीनी वस्तुओं पर बढ़े हुए टैरिफ व्यापार की गतिशीलता को नया आकार दे रहे हैं।
  • क्षेत्रीय चुनौतियाँ: कमजोर घरेलू माँग और चीन से अधिक आपूर्ति के कारण भारतीय लौह एवं इस्पात निर्यात में भारी गिरावट (वित्त वर्ष 2025 की पहली तिमाही में 33%) देखी गई है।
    • भारत का लौह एवं इस्पात उद्योग विशेष रूप से यूरोपीय संघ के कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (Carbon Border Adjustment Mechanism-CBAM) के प्रति संवेदनशील है, जो 20-35% टैरिफ लगा सकता है।
  • अमेरिकी व्यापार नीतियों में अवसर: चीनी वस्तुओं पर टैरिफ (60% तक) भारत को वैश्विक बाजारों में प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त प्रदान कर सकता है।
    • व्यापार विविधीकरण कम प्रतिनिधित्व वाले क्षेत्रों में अवसर प्रदान करता है जहाँ भारत की वैश्विक हिस्सेदारी 1% से कम है।

चीन प्लस वन रणनीति के बारे में

  • यह बहुराष्ट्रीय निगमों द्वारा अन्य देशों में उत्पादन या सोर्सिंग का विस्तार करके चीन पर निर्भरता कम करने के लिए अपनाई गई रणनीति है। 
    • उदाहरण के लिए: एप्पल (Apple) ने चीन पर निर्भरता कम करने के लिए भारत में अपने कुछ उत्पादों का निर्माण शुरू कर दिया है।
  • चीन +1 के प्रमुख चालक
    • चीनी आयात पर अमेरिकी व्यापार बाधाएँ।
    • भू-राजनीतिक तनाव के कारण आपूर्ति शृंखलाओं का विखंडन।
    • चीन के लिए लागत-प्रतिस्पर्द्धी एवं स्थिर विकल्पों की खोज।

चीन+1 रणनीति के लाभ प्राप्त करने में चुनौतियाँ

  • आंतरिक सीमाएँ: वियतनाम और कंबोडिया जैसे प्रतिस्पर्द्धियों की तुलना में उच्च श्रम लागत होना।
    • जटिल कर कानून और प्रमुख व्यापार ब्लॉकों के साथ सीमित FTA
    • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा और नौकरशाही संबंधी देरी।
  • वैश्विक गतिशीलता: चीन में अधिशेष उत्पादन और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से प्रतिस्पर्द्धा के कारण भारतीय बाजारों में चीनी उत्पादों की डंपिंग, जो वैश्विक व्यापार में बेहतर स्थिति में हैं।
  • पर्यावरणीय विनियम: CBAM के अनुपालन से भारतीय निर्यातकों के लिए लागत बढ़ जाती है, विशेष रूप से लोहा, इस्पात और एल्यूमीनियम जैसे उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में।
    • यूरोपीय संघ के बाजार में भारतीय निर्यात की माँग में संभावित कमी होना।

चीन +1 रणनीति का लाभ उठाने के लिए भारत सरकार की पहल

  • उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना: यह योजना इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स, टेक्सटाइल और ऑटोमोबाइल जैसे प्रमुख क्षेत्रों में घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए उत्पादन से जुड़ा प्रोत्साहन प्रदान करती है। PLI योजना ने वैश्विक कंपनियों से महत्त्वपूर्ण निवेश आकर्षित किया है।
  • ‘मेक इन इंडिया’ पहल: इस पहल का उद्देश्य विनियमों को सरल बनाकर, बुनियादी ढाँचे में सुधार करके और कौशल विकास को बढ़ावा देकर भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाना है।
  • इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण पर ध्यान: भारत सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं, जिसमें सेमीकंडक्टर विनिर्माण सुविधाएँ स्थापित करना और निवेश आकर्षित करने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करना शामिल है।
  • व्यापार समझौते: भारत बाजार तक पहुँच बढ़ाने और व्यापार बाधाओं को कम करने के लिए विभिन्न देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों पर सक्रिय रूप से वार्ता कर रहा है।
  • बुनियादी ढाँचे का विकास: भारत सरकार कनेक्टिविटी में सुधार और रसद लागत को कम करने के लिए सड़क, बंदरगाह और रेलवे जैसी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में अधिक निवेश कर रही है।
  • कौशल विकास: भारत सरकार विनिर्माण क्षेत्र की माँगों को पूरा करने के लिए कुशल कार्यबल बनाने के लिए कौशल विकास कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित कर रही है।

आगे की राह 

  • विनिर्माण क्षमताओं में वृद्धि: उच्च तकनीक वाले उद्योगों और महत्त्वपूर्ण वैश्विक माँग वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना।
    • प्रोत्साहन और बुनियादी ढाँचे के विकास के माध्यम से घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना।
  • नीतियों को सरल बनाना: भारत को विदेशी निवेशकों के लिए अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिए कर कानूनों में सुधार करना।
    • नए बाजारों तक पहुँच बनाने के लिए मुक्त व्यापार समझौतों को तेजी से आगे बढ़ाना।
  • जोखिम कम करना: चीनी माल की डंपिंग को रोकने के लिए उपाय लागू करना।
    • कार्बन विनियमन के अंतर्गत आने वाले उद्योगों को अनुपालन लागत में छूट देकर या व्यापार शर्तों पर बातचीत करके सहायता प्रदान करना।
  • लीवरेज व्यापार अवसर (Leverage Trade Opportunities): अमेरिका-चीन व्यापार प्रतिबंधों से प्रभावित बाजारों में निर्यात का विस्तार करना।
    • विविधीकरण के लिए वैश्विक व्यापार में कम प्रतिनिधित्व वाले क्षेत्रों को लक्षित करना।

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