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विश्व वन्यजीव संरक्षण दिवस: भारत की गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों का संरक्षण

Lokesh Pal December 05, 2024 05:29 61 0

संदर्भ

हाल ही में विश्व वन्यजीव संरक्षण दिवस (World Wildlife Conservation Day) मनाया गया। 

विश्व वन्यजीव संरक्षण दिवस के बारे में 

  • यह प्रत्येक वर्ष 4 दिसंबर को मनाया जाता है। 
  • उद्देश्य: अवैध शिकार, अतिव्यावसायीकरण और वैश्विक वन्यजीव ट्रैकिंग सहित संरक्षण मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाना।

  • वर्ष 2024 की थीम: ‘लोगों एवं ग्रह को जोड़ना: वन्यजीव संरक्षण में डिजिटल नवाचार की खोज’ (Connecting People and Planet: Exploring Digital Innovation in Wildlife Conservation)

भारत की जैव विविधता स्थिति

  • भारत, विश्व के भूमि क्षेत्र का केवल 2.4% भाग कवर करता है, लेकिन इसका कारण है:
    • सभी दर्ज प्रजातियों में से 7-8%, जिनमें शामिल हैं:
      • 45,000 पौधों की प्रजातियाँ।
      • 91,000 पशु प्रजातियाँ।
  • अपनी समृद्ध जैव विविधता के कारण एक विशाल विविधता वाले देश के रूप में पहचाना जाता है।
    • स्तनधारी प्रजातियों का 8.58%
    •  पक्षी प्रजातियों का 13.66%
    • सरीसृप का 7.91% 
    • उभयचर प्रजातियों का 4.66% 
    • मछली प्रजातियों का 11.72% 
    • पादप प्रजातियों का 11.8%। 
  • भारत में 10 जैव-भौगोलिक क्षेत्र हैं, जिनमें शामिल हैं:
    • ट्रांस-हिमालयी क्षेत्र: इसमें लद्दाख पर्वत, तिब्बती पठार और हिमालयी सिक्किम शामिल हैं
    • हिमालयी क्षेत्र: भारत में एक जैव-भौगोलिक क्षेत्र
    • उत्तर-पश्चिमी रेगिस्तानी क्षेत्र: भारत में एक जैव-भौगोलिक क्षेत्र
    • अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र: भारत में एक जैव-भौगोलिक क्षेत्र
    • पश्चिमी घाट: विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों वाला एक वैश्विक जैव-विविधता हॉटस्पॉट
    • दक्कन का पठार: एक अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र, जो भारत के भौगोलिक क्षेत्र का 42% हिस्सा कवर करता है।
    • गंगा का मैदान: भारत में एक जैव-भौगोलिक क्षेत्र
    • मध्य उच्चभूमि: भारत में एक जैव-भौगोलिक क्षेत्र
    • पूर्वोत्तर क्षेत्र: भारत में एक जैव-भौगोलिक क्षेत्र
    • तटीय क्षेत्र: भारत में एक जैव-भौगोलिक क्षेत्र
  • भारत में चार वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट हैं:-हिमालय, इंडो-बर्मा, पश्चिमी घाट-श्रीलंका, सुंडालैंड।

खतरे में प्रजातियाँ

  • भारत में गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियाँ
    • भारत में 73 गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियाँ (वर्ष 2022 तक) हैं।
    • IUCN वर्गीकरण: गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों को जंगल में विलुप्त होने का सबसे अधिक खतरा है।
    • वर्ष 2011 से संख्या (47 प्रजातियाँ) में वृद्धि के कारण
      • बेहतर डेटा संग्रह एवं निगरानी।
      • पर्यावास विनाश एवं अन्य खतरे।
  • स्थानिक प्रजातियाँ खतरे में
    • आठ स्थानिक प्रजातियों सहित 9 गंभीर रूप से लुप्तप्राय स्तनधारी शामिल हैं:
      • कश्मीर स्टैग (हंगुल)
      • मालाबार लार्ज स्पॉटेड सिवेट (Malabar large-spotted Civet)।
      • अंडमान श्रेव (Andaman Shrew)
      • जेनकिन श्रेव (Jenkin’s shrew)
      • निकोबार श्रेव (Nicobar Shrew)
      • नमदाफा उड़ने वाली गिलहरी (Namdapha Flying Squirrel)
      • लार्ज रॉक रैट (Large Rock Rat)
      • लीफलेटेड लीफ नोज्ड बैट (Leafletted Leaf-nosed Bat)
  • कम महत्त्व प्राप्त प्रजातियाँ खतरे में
    • शेर, बाघ एवं चीता जैसे बड़े मांसाहारी जीवों, जिनके अक्सर अपने पर्यटन आकर्षण के कारण अन्य लुप्तप्राय प्रजातियों पर कम ध्यान दिया जाता है।
    • राजस्थान में विद्युत लाइनों से टकराव के कारण ग्रेट इंडियन बस्टर्ड जैसे पक्षियों को गंभीर खतरों का सामना करना पड़ता है।

प्रजातियों के विलुप्त होने के पीछे कारक

  • पर्यावास की हानि: शहरीकरण एवं वनों की कटाई प्राकृतिक आवासों को नष्ट कर देती है।
  • प्रजातियों का स्थानांतरण: प्रजातियों को उनके प्राकृतिक आवास से हटाने से पारिस्थितिकी संतुलन बाधित होता है।
  • वैश्विक प्रदूषण: प्रदूषण पारिस्थितिकी तंत्र को खराब करता है, जिससे प्रजातियों का अस्तित्व प्रभावित होता है।
  • जलवायु परिवर्तन: तेजी से हो रहे पर्यावरणीय परिवर्तनों से उन प्रजातियों को खतरा है, जो अनुकूलन नहीं कर सकती हैं।
  • अवैध वन्यजीव व्यापार: प्रजातियों का निरंतर दोहन उनके विलुप्त होने की संभावना को बढ़ा देता है एवं जूनोटिक बीमारियाँ के संक्रमण को बढ़ावा देता है।

वन्यजीव संरक्षण के लिए भारत का घरेलू कानूनी ढाँचा

वन्यजीवों के लिए संवैधानिक प्रावधान

  • 42वाँ संशोधन अधिनियम 1976: ‘वन’ एवं ‘जंगली जानवरों तथा पक्षियों की सुरक्षा’ को समवर्ती सूची में जोड़ा गया।
  • अनुच्छेद-51A (g): वनों एवं वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा तथा सुधार करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य है।
  • अनुच्छेद-48A: राज्य को पर्यावरण की रक्षा एवं सुधार तथा वनों एवं वन्यजीवों की सुरक्षा का आदेश देता है।

कानूनी ढाँचा

  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: वन्यजीव संरक्षण एवं लुप्तप्राय प्रजातियों की सुरक्षा के लिए कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986: पर्यावरण की सुरक्षा एवं सुधार पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • जैविक विविधता अधिनियम, 2002: इसका उद्देश्य जैविक विविधता का संरक्षण करना एवं इसके घटकों का सतत् उपयोग सुनिश्चित करना है।

वैश्विक वन्यजीव संरक्षण प्रयासों के साथ भारत का सहयोग

  • वन्यजीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES): लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतरराष्ट्रीय व्यापार को नियंत्रित करता है।
  • जंगली जानवरों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर अभिसमय (CMS): प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • जैविक विविधता अभिसमय (CBD): सतत् विकास एवं जैव विविधता संरक्षण को बढ़ावा देता है।
  • विश्व विरासत सम्मेलन: दुनिया भर में सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक विरासत की रक्षा करता है।
  • रामसर अभिसमय: आर्द्रभूमि के संरक्षण एवं सतत् उपयोग के लिए अंतरराष्ट्रीय संधि है।
  • वन्यजीव व्यापार निगरानी नेटवर्क (TRAFFIC): प्रजातियों को शोषण से बचाने के लिए वन्यजीव व्यापार पर नजर रखता है।
  • वनों पर संयुक्त राष्ट्र फोरम (UNFF): विश्व स्तर पर सतत् वन प्रबंधन को बढ़ावा देता है।
  • अंतरराष्ट्रीय व्हेलिंग आयोग (International Whaling Commission- IWC): व्हेल आबादी के संरक्षण एवं व्हेलिंग के प्रबंधन के लिए कार्य करता है।
  • अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN): वैश्विक संरक्षण प्रयासों के लिए डेटा, विश्लेषण एवं वकालत प्रदान करता है।
  • ग्लोबल टाइगर फोरम (GTF): बाघों को विलुप्त होने से बचाने के लिए समर्पित अंतरराष्ट्रीय निकाय है।

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