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समय की मांग : प्लास्टिक प्रदूषण समाधान हेतु कार्ययोजना को तीव्र करना

Lokesh Pal December 05, 2024 05:45 35 0

संदर्भ: 

बढ़ती जलवायु व पर्यावरण चुनौतियों के मध्य, हाल ही में, प्लास्टिक प्रदूषण में कमी लाने के उद्देश्य से की गई वैश्विक प्लास्टिक संधि को संयुक्त राष्ट्र वार्ता में विभिन्न मतभेदों का सामना करना पड़ा और अभी तक इसमें कोई सफलता नहीं मिली है, जिससे यह चर्चा में बनी हुई है । 

वैश्विक प्लास्टिक संधि का अवलोकन :

  • वर्ष 2022 में, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) द्वारा  समुद्री पर्यावरण सहित वैश्विक स्तर पर प्लास्टिक प्रदूषण को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया था । 
  • इसका उद्देश्य प्लास्टिक प्रदूषण में कमी लाने के लिए समन्वित वैश्विक कार्रवाई हेतु एक व्यापक रूपरेखा तैयार करना था।
  • हालाँकि, संधि के अगले दो वर्षों में सदस्य देशों की पाँच बार बैठक हो चुकी है, जिसमें बुसान की अंतिम बैठक में संधि को अंतिम रूप देने की उम्मीद जताई गयी थी। 
  • गौरतलब है कि गहन संवाद के बावजूद, प्रस्तावित समाधानों पर मतभेद के कारण परिणाम  विफल सिद्ध हुए।

समाधान में विभाजन

  • उत्पादन में कटौती के समर्थक देश: यूरोपीय संघ और प्रशांत द्वीपीय देशों के नेतृत्व में संधि के आधे सदस्य देशों द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि विशेषकर समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के संबंध में प्लास्टिक के स्थायित्व गुण और व्यापक उपयोग के कारण वर्तमान स्थिति पर्यावरणीय खतरे के रूप में परिवर्तित हो चुकी है। 
    • यूरोपीय संघ और प्रशांत द्वीपीय देशों का मानना ​​था कि पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग में सुधार करना ही सिर्फ पर्याप्त नहीं होगा I प्रदूषण से निपटने के लिए एकमात्र प्रभावी समाधान के रूप में उन्होंने प्लास्टिक उत्पादन, विशेष रूप से वर्जिन पॉलिमर में क्रमिक कटौती का आह्वान किया।
  • विकासशील देशों का विरोध: कई विकासशील देशों, विशेष रूप से तेल और पेट्रोकेमिकल उद्योगों पर निर्भर देशों द्वारा प्लास्टिक उत्पादन में कटौती के प्रस्ताव का विरोध किया गया । 
    • उन्होंने इन आह्वानों को वास्तविक पर्यावरण संरक्षण के बजाय प्रछन्न व्यापार बाधाओं के रूप में देखाI उनका तर्क था कि उत्पादन का विनियमन, 2022 के प्रस्तावित संकल्प के मूल इरादे से इतर है।

भारत की स्थिति

  • भारत द्वारा प्लास्टिक और उसके पेट्रोकेमिकल उद्योग पर अपनी आर्थिक निर्भरता को उजागर करते हुए, उत्पादन में कटौती का विरोध करने वाले देशों का पक्ष लिया गया । 
  • वर्तमान में भारत की प्लास्टिक रीसाइक्लिंग क्षमता सीमित है। वार्षिक रूप से प्रस्तुत प्लास्टिक का केवल एक-तिहाई भाग ही प्रभावी ढंग से रीसाइक्लिंग किया जा रहा  है। 

प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने में चुनौतियाँ

  • पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव: बढ़ती प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या ही एकमात्र इस समस्या का कारण नहीं है, गौरतलब है कि यह प्रदूषण जानवरों और मनुष्यों के शरीर में प्रवेश कर चुका है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र और सार्वजनिक स्वास्थ्य को दीर्घकालिक नुकसान हो रहा है।
  • पुनर्चक्रण की प्रभावशीलता: हालाँकि पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग प्लास्टिक प्रदूषण समस्या के समाधान का हिस्सा माने जाते हैं, लेकिन वे अकेले इस समस्या का समाधान नहीं कर सकते । 
    • सबसे बड़ा मुद्दा, स्रोत पर प्लास्टिक के उत्पादन को कम करने में निहित है, विशेष रूप से वर्जिन पॉलिमर जो बड़ी मात्रा में कचरे में योगदान करते हैं।

आगे की राह 

  • रणनीतियों का पुनर्मूल्यांकन करना : अगले साल नए दृष्टिकोण के साथ वार्ता पुनः संयोजित की जा  सकती है और साथ ही संभवना है कि वर्तमान गतिरोध को अधिक रचनात्मक तरीके से रेखांकित किया जा सके। 
    • वर्तमान में वैश्विक सहयोग के लिए एक अधिक संतुलित दृष्टिकोण को अपनाया जाना आवश्यक है, जो पर्यावरण और आर्थिक अर्थात दोनों क्षेत्रों की चिंताओं पर विचार करता हो।
  • नियोजित निकासी: वर्तमान में प्लास्टिक पर अत्यधिक निर्भरता के संबंध में चरणबद्ध निकासी की आवश्यकता महत्वपूर्ण मानी जा रही है। 
    • संबंधित कार्ययोजना को अमलीजामा पहनाने हेतु बहुत लंबा इंतजार करना, राष्ट्रों को इतिहास की तारीखों के प्रतिकूल खड़ा कर सकता है, क्योंकि इस संबंध में निष्क्रियता की लागत, प्रभावी समाधानों को लागू करने की लागत से अधिक हो जायेगी ।

निष्कर्ष

संक्षेप में, प्लास्टिक प्रदूषण एक वैश्विक मुद्दा है एवं वर्तमान में पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य दोनों की सुरक्षा के लिए एक योजनाबद्ध समन्वित प्रतिक्रिया आवश्यक हो चुकी है। भविष्य में पर्यावरणीय निम्नीकरण को रोकने हेतु प्लास्टिक उत्पादन में कमी लाने और रीसाइक्लिंग में सुधार के संबंध में, देशों द्वारा वर्तमान में एक सक्रिय रुख को अपनाये जाने की नितांत आवश्यकता है।

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