हाल ही में संसद में विपक्षी सांसदों ने नए कानूनों को हिंदी और संस्कृत में नाम देने के लिए सरकार की आलोचना की।
विपक्ष की आलोचना
संवैधानिक चिंताएँ: यह तर्क दिया गया कि जिन विधेयकों की विषय-वस्तु अंग्रेजी में है, उनके लिए हिंदी शीर्षक का उपयोग करना संविधान के अनुच्छेद-348 (1B) का उल्लंघन हो सकता है।
संघीय और भाषायी विविधता की अनदेखी: सरकार पर भारत की भाषायी विविधता और संघीय सिद्धांतों को कमजोर करने का आरोप लगाया गया और विपक्ष ने इसे कानूनों का ‘हिंदीकरण (Hindification)’ करार दिया।
पहले के उदाहरणों, जैसे कि भारतीय दंड संहिता की जगह भारतीय न्याय संहिता को इस प्रवृत्ति के उदाहरण के रूप में उद्धृत किया गया था।
गैर-हिंदी राज्यों ने आपत्ति जताई: यह तर्क दिया गया कि हिंदी नाम गैर-हिंदी भाषी लोगों को अलग-थलग कर देते हैं।
भारतीय वायुयान विधेयक का नाम बदलकर एयरक्राफ्ट बिल, 2024 करने की माँग उठाई गई।
विशेष रूप से भारत की गैर-हिंदी भाषी आबादी के लिए हिंदी नामों के उच्चारण में कठिनाई होती है ।
अनावश्यक प्रवृत्ति: विधेयकों को हिंदी नाम देने के ‘फैशन’ की आलोचना की गई और कहा गया कि यह विधायी प्रक्रियाओं को अनावश्यक रूप से जटिल बनाता है।
विधेयकों के लिए हिंदी/संस्कृत नामों के उपयोग के समर्थन में तर्क
सांस्कृतिक पहचान और विरासत: कानूनों के लिए हिंदी या संस्कृत नामों का उपयोग भारत की समृद्ध भाषायी और सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है, जो औपनिवेशिक प्रभावों पर देशी परंपराओं पर गर्व को बढ़ावा देता है।
भारतीय भाषाओं का प्रतिनिधित्व: हिंदी को शामिल करना, जिसका देश भर में व्यापक उपयोग होता है, भाषायी समावेशिता को बढ़ावा देते हुए कानूनों के लिए एक अनूठी और भरोसेमंद पहचान बनाने में मदद करता है।
कई भाषाओं का एकीकरण: नामों में अक्सर विभिन्न भारतीय भाषाओं के तत्त्व शामिल होते हैं, जो भारत के भाषायी परिदृश्य की विविधता और एकता को दर्शाते हैं।
औपनिवेशिक विरासत को समाप्त करना: केवल अंग्रेजी नामों से दूर जाना भारत को औपनिवेशिक मानदंडों से स्वतंत्रता का दावा करने में सहायता करता है, जो इसकी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान के पुनर्ग्रहण का प्रतीक है।
कोई कानूनी या व्यावहारिक बाधा नहीं: विधेयकों का ‘मूल टेक्स्ट’ अंग्रेजी में रहता है, जो हितधारकों के लिए सुलभता सुनिश्चित करता है, जबकि शीर्षक की भाषा संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन नहीं करती है।
प्रयोग को प्रोत्साहित करना: आधिकारिक नामों के माध्यम से हिंदी या संस्कृत शब्दों से परिचय लोगों को शास्त्रीय और राष्ट्रीय भाषाओं से परिचित होने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिससे भाषायी समझ बढ़ती है।
शास्त्रीय भाषाओं को बढ़ावा देना: हिंदी और संस्कृत का उपयोग शास्त्रीय भारतीय भाषाओं को संरक्षित और बढ़ावा देने के प्रयासों के साथ जुड़ा हुआ है, जो आधुनिक शासन में उनकी निरंतर प्रासंगिकता में योगदान देता है।
भारतीय संसद में विधेयकों की भाषा के लिए संवैधानिक प्रावधान और नियम
अनुच्छेद-348(1): यह प्रावधान संघ की आधिकारिक भाषा हिंदी और देवनागरी लिपि को संघ के आधिकारिक उद्देश्यों के लिए उपयोग करने का आदेश देता है।
हालाँकि, यह आधिकारिक उद्देश्यों के लिए अंग्रेजी के उपयोग की भी अनुमति देता है।
जब तक संसद कानून द्वारा अन्यथा प्रावधान नहीं करती, तब तक सर्वोच्च न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कार्यवाही अंग्रेजी भाषा में संचालित की जाएगी।
अनुच्छेद-348 (1b): यह खंड विशेष रूप से यह बताता है कि आधिकारिक पाठ अंग्रेजी भाषा में होना चाहिए।
आधिकारिक पाठ
संसद के किसी भी सदन में या किसी राज्य के विधानमंडल के सदन या किसी भी सदन में प्रस्तुत किए जाने वाले सभी विधेयकों या उनमें प्रस्तावित किए जाने वाले संशोधनों का,
संसद या किसी राज्य के विधानमंडल द्वारा पारित सभी अधिनियमों का और राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रख्यापित सभी अध्यादेशों का, और
इस संविधान के अधीन या संसद या किसी राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए किसी कानून के अधीन जारी किए गए सभी आदेशों, नियमों, विनियमों और उपविधियों का।
भारतीय संदर्भ में किसी विधेयक का आधिकारिक पाठ उसका ‘अंग्रेजी संस्करण’ ही होता है।
इसका अर्थ यह है कि किसी विवाद या अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी संस्करण को ही कानून की अंतिम और बाध्यकारी व्याख्या माना जाएगा।
अनुवाद की आवश्यकता: यदि कोई राज्य विधानमंडल अपने विधेयकों, अधिनियमों या अध्यादेशों के लिए अंग्रेजी के अलावा कोई अन्य भाषा निर्धारित करता है, तो उस राज्य के आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित अंग्रेजी में अनुवाद को अंग्रेजी भाषा में आधिकारिक पाठ माना जाएगा।
उच्च न्यायालय की कार्यवाही में क्षेत्रीय भाषाओं का उपयोग (अनुच्छेद-348(2)): किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से, उस राज्य में स्थित उच्च न्यायालय की कार्यवाही में हिंदी या राज्य के आधिकारिक उद्देश्यों के लिए उपयोग की जाने वाली किसी अन्य भाषा के उपयोग को अधिकृत कर सकता है।
संसद में प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियम
विधेयकों के प्रस्तुतीकरण और पारित होने से संबंधित नियमों में शीर्षक की भाषा का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया है।
हालाँकि, विधेयक की भाषा आमतौर पर अंग्रेजी होती है, क्योंकि यह वह भाषा है, जिसमें कानूनी प्रारूपण को मानकीकृत किया जाता है।
हिंदी का प्रचार-प्रसार: अनुच्छेद-351 केंद्र सरकार को यह दायित्व प्रदान करता है कि वह:
हिंदी के प्रसार को बढ़ावा दे।
भारत की विविध संस्कृति की अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में हिंदी का विकास करे।
हिंदुस्तानी और अन्य अनुसूचित भाषाओं के तत्त्वों को आत्मसात करके हिंदी को समृद्ध बनाए।
मुख्य रूप से संस्कृत और गौण रूप से अन्य भाषाओं से शब्दावली बनाए।
संघ की आधिकारिक भाषा के रूप में अंग्रेजी
आरंभिक 15 वर्ष की अवधि: संविधान के लागू होने से 15 वर्ष की अवधि के लिए अंग्रेजी को संघ की आधिकारिक भाषा के रूप में नामित किया गया था।
अंग्रेजी का जारी रहना: वर्ष 1963 के आधिकारिक भाषा अधिनियम ने संघ के आधिकारिक उद्देश्यों और संसद में 15 वर्ष की अवधि के बाद भी अंग्रेजी के निरंतर उपयोग को सुनिश्चित किया।
भाषा के उपयोग को विनियमित करने की संसदीय शक्ति: संसद के पास आरंभिक 15 वर्ष की अवधि से परे आधिकारिक उद्देश्यों के लिए अंग्रेजी और देवनागरी अंकों के उपयोग पर कानून बनाने की शक्ति है।
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