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भारत-चीन संबंध और सीमा तनाव : एक धीमी प्रगति

Lokesh Pal December 06, 2024 05:00 56 0

संदर्भ:

संसद में, चीन के साथ सीमा तनाव पर स्वप्रेरणा के तहत बयान देने एवं संसदीय पैनल को जानकारी देने संबंधी भारत के निर्णय को सराहा गया। वहीं इस महत्वपूर्ण मुद्दे को पारदर्शिता पूर्वक संबोधित करने की दिशा में एक स्वागत योग्य कदम माना जा रहा है,लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इस कदम को उठाने में काफी विलंब हुआ I 

एलएसी वार्ता पर प्रगति

हालांकि भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर के बयानों और विदेश सचिव विक्रम मिस्री की ब्रीफिंग ने सरकार के दृष्टिकोण पर एक आवश्यक स्पष्टता प्रदान की है । चर्चा के मुख्य कारक इस प्रकार हैं :

  • एलएसी प्रस्तावों को व्यापक वचनबद्धता के साथ जोड़ना: भारत द्वारा चीन को दृढ़तापूर्वक  बताया गया कि जब तक एलएसी पर तनाव पूरी तरह से हल नहीं हो जाता, तब तक “सामान्य” द्विपक्षीय संबंध पुनः  शुरू नहीं हो सकते।
  • सतत कार्य और चरणबद्ध बातचीत:
    • भारत-चीन सीमा मामलों पर परामर्श और समन्वय के लिए कार्य तंत्र (डब्ल्यूएमसीसी) की 17 बैठकों का निर्धारण ।
    • वरिष्ठ सर्वोच्च सैन्य कमांडरों की 21 दौर /राउन्ड की बैठकों (एसएचएमसी) का निर्धारण।
    • विदेश और रक्षा मंत्रियों एवं विशेष प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए उच्च स्तरीय बैठकों का निर्धारण।
  • विलगाव के पश्चात् अगला चरण:
    • हालांकि कई बिंदुओं पर सैनिकों की वापसी “पूरी तरह से हासिल” हो गई है। अब संघर्ष संभावित क्षेत्रों से सैनिकों और उपकरणों को पीछे हटाने और युद्ध संबंधी स्थितियों की तीव्रता में कमी लाने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
    • सीमावर्ती क्षेत्रों में दोनों देशों के मध्य संबंधों के प्रबंधन हेतु एक दीर्घकालिक रूपरेखा को प्रस्तुत करने की बात की जा रही है।
  • संघर्ष वाले बिंदुओं पर महत्त्वपूर्ण  प्रगति:
    • देपसांग और डेमचोक के लिए, “गश्त व्यवस्था” पर चर्चा की गई है, लेकिन गश्त संबंधी व्यवस्था अभी तक पुनः शुरू नहीं हुई है।
    • उत्तर और दक्षिण पैंगोंग त्सो, गोगरा और हॉट स्प्रिंग्स में बफर ज़ोन (प्रत्यक्ष टकराव को कम करने के लिए डिज़ाइन किए गए अस्थायी उपाय) के निर्माण के माध्यम से ये विलगाव (disengagements) हासिल किये गए हैं ।

महत्त्वपूर्ण अनसुलझे बिन्दु :

इन अद्यतनों के बावजूद, सरकार द्वारा प्रस्तुत किये गए 2,500 शब्दों के बयान में कई प्रमुख मुद्दों के संबंध में महत्वपूर्ण विवरणों का अभाव था:

  • संघर्ष का कारण: इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया कि  द पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने 2020 के उल्लंघन की शुरुआत क्यों की? यह स्पष्ट है कि रणनीतिक प्रतिक्रिया तैयार करने के लिए चीन की मंशा को समझना आवश्यक है।
  • 2020 की ‘यथास्थिति’ पर लौटना: सरकार द्वारा 2020 से पूर्व की यथास्थिति को बहाल करने के लिए कोई समयरेखा या रोडमैप की प्रस्तुत नहीं की गयी, जिससे भारत के क्षेत्रीय दावों के बारे में जनता की अनिश्चितता बनी हुयी है ।
  • प्रादेशिक अखंडता बनाम राष्ट्रीय सुरक्षा: इस महत्त्वपूर्ण संवाद में “राष्ट्रीय सुरक्षा” पर बल दिया गया, लेकिन “क्षेत्रीय अखंडता” की सुरक्षा से संबंधित किसी भी उल्लेख से बचने की कोशिश की गयी है, जो ऐसे विवादों के संबंध में एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है।

निष्कर्ष:

हालाँकि भारत-चीन संबंधों की दिशा में प्रगति धीमी रही है, लेकिन फिर भी यह कदम आशा की किरण जगाता है। हालाँकि अत्यधिक पारदर्शिता और निरंतर वार्ता की दिशा में उठाए गए ये कदम उत्साहजनक माने जा सकते हैं, परन्तु विश्वास के पुनर्निर्माण और भारत के क्षेत्रीय और सुरक्षा हितों की प्रभावी ढंग से रक्षा की सुनिश्चितता हेतु अभी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है ।

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