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भारत में महिला श्रम बल भागीदारी

Lokesh Pal December 09, 2024 04:27 65 0

संदर्भ

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) की रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण भारत में महिला श्रम बल भागीदारी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो वर्ष 2017-18 और 2022-23 के बीच 24.6% से बढ़कर 41.5% हो गई है।

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) एक स्वतंत्र निकाय है, जिसका गठन भारत सरकार, विशेष रूप से प्रधानमंत्री को आर्थिक एवं अर्थव्यवस्था संबंधित मुद्दों पर सलाह देने के लिए किया गया है।

महिला श्रम बल भागीदारी पर EAC-PM कार्य पत्र से महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ

  • डेटा स्रोत और विश्लेषण: विश्लेषण वर्ष 2017-18 से 2022-23 तक आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) पर आधारित है, जिसमें 2.5 मिलियन से अधिक व्यक्तियों के रोजगार और जनसांख्यिकीय डेटा शामिल हैं।
  •  महिला श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) में उल्लेखनीय वृद्धि (2017-18 से 2022-23): ग्रामीण महिला श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) 24.6% से बढ़कर 41.5% हो गई।
    • शहरी महिला LFPR में उल्लेखनीय अंतरराज्यीय विविधताओं के साथ 20.4% से 25.4% तक सामान्य वृद्धि देखी गई।
  • राज्य-स्तरीय मुख्य अंश
    • ग्रामीण क्षेत्र
      • झारखंड में 233% की वृद्धि दर्ज की गई तथा बिहार में 6 गुना वृद्धि देखी गई।
      • नगालैंड जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में 15.7% से 71.1% तक की तीव्र वृद्धि देखी गई।
    • शहरी क्षेत्र
      • गुजरात में उल्लेखनीय वृद्धि 16.2% से बढ़कर 26.4% हो गई।
      • तमिलनाडु में सामान्य परिवर्तन देखा गया, जो 27.6% से बढ़कर 28.8% हो गया।
  • LFPR में वैवाहिक स्थिति की भूमिका
    • ग्रामीण क्षेत्रों में विवाहित महिलाओं ने अविवाहित महिलाओं की तुलना में अधिक भागीदारी वृद्धि दिखाई, विशेष रूप से राजस्थान और झारखंड जैसे राज्यों में।
    • शहरी क्षेत्रों में, विवाह महिला LFPR में कमी से जुड़ा था, जबकि पूर्वोत्तर राज्यों में सामान्य वृद्धि देखी गई।
  • पश्चिमी और दक्षिणी राज्यों में LFPR वृद्धि
    • ग्रामीण क्षेत्र: श्रम शक्ति भागीदारी में वृद्धि मुख्य रूप से पश्चिमी और दक्षिणी राज्यों में ग्रामीण महिलाओं के बीच देखी गई है।
    • शहरी क्षेत्र: इन राज्यों के शहरी क्षेत्रों में महिला LFPR में सामान्य वृद्धि देखी गई है।
    • आंध्र प्रदेश: विशेष रूप से, आंध्र प्रदेश में बच्चों वाली शहरी महिलाओं के बीच LFPR में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है।
  • महिला श्रम बल भागीदारी (LFPR) रुझान: महिला LFPR 30-40 वर्ष की आयु के बीच उच्च होती है और उसके बाद तेजी से घटती है।
  • पुरुष श्रम बल भागीदारी (LFPR) रुझान: पुरुष LFPR 30-50 वर्ष की आयु के बीच लगातार उच्च (लगभग 100%) रहता है, जो उम्र बढ़ने के साथ धीरे-धीरे कम होता जाता है।

भारत में महिला श्रम बल भागीदारी

  • महिला श्रम बल भागीदारी से तात्पर्य औपचारिक या अनौपचारिक कार्यबल में लगी महिलाओं के प्रतिशत से है, जो या तो कार्यरत हैं अथवा सक्रिय रूप से रोजगार की तलाश कर रही हैं। 
    • यह महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण और सामाजिक समानता के संकेतक के रूप में कार्य करता है।
  • डेटा सर्वेक्षण: राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO), सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) द्वारा आयोजित राष्ट्रीय घरेलू सर्वेक्षण, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण, भारत में महिला रोजगार की स्थिति की रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं।
  • महिलाओं के लिए वैश्विक श्रम भागीदारी दर: महिलाओं के लिए वैश्विक श्रम बल भागीदारी दर पुरुषों के लिए 80% की तुलना में 50% से थोड़ी अधिक है।
  • भारत की भागीदारी दर: महिला भागीदारी दर अभी भी वैश्विक औसत के बराबर नहीं है, हालाँकि, पिछले कुछ वर्षों में इसमें सुधार हो रहा है।
    • आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2022-23 के दौरान, श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी उल्लेखनीय रूप से बढ़कर 37.0% हो गई है।

श्रम बल में महिलाओं की कम भागीदारी के लिए उत्तरदायी कारक

  • अवैतनिक घरेलू कार्य/अवैतनिक देखभाल कार्य: महिलाओं पर अवैतनिक घरेलू कार्य और देखभाल संबंधी जिम्मेदारियों का बोझ बहुत अधिक होता है, जिसमें बच्चों की देखभाल और घर-गृहस्थी शामिल है।
    • इससे ‘समय की कमी’ उत्पन्न होती है, जो महिलाओं को कार्यबल में शामिल होने से रोकती है। उदाहरण
      • PLFS 2021-22 के अनुसार, लगभग 44.5% महिलाएँ बच्चों की देखभाल और घर पर व्यक्तिगत प्रतिबद्धताओं के कारण श्रम बल से बाहर थीं।
      • टाइम यूज सर्वे, 2019 के आँकड़ों के अनुसार, कामकाजी आयु वर्ग की महिलाएँ अकेले अवैतनिक घरेलू कामों में प्रतिदिन लगभग सात घंटे बिताती हैं।
  • सामाजिक और सांस्कृतिक मानदंड: सामाजिक अपेक्षाएँ अक्सर महिलाओं को देखभाल करने वाली और गृहिणी की भूमिका सौंपती हैं, जिससे आर्थिक गतिविधियों में उनकी भागीदारी कम हो जाती है।
    • सामान्य तौर पर पुरुषों से प्राथमिक रूप से कमाने वाले होने की अपेक्षा की जाती है, जिससे यह धारणा मजबूत होती है कि महिलाओं को कार्यबल में योगदान देने के बजाय घरेलू कर्तव्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • विवाह: विवाह, विशेष रूप से कम उम्र में विवाह, अक्सर महिला LFPR को कम करता है, क्योंकि महिलाओं से घरेलू और बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारियाँ उठाने की अपेक्षा की जाती है।
    • विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, यह अनुमान लगाया गया है कि भारत में, विवाह के बाद, महिलाओं की रोजगार दर में 12 प्रतिशत अंकों की कमी आती है, जो विवाह से पहले उनकी रोजगार दर का लगभग एक-तिहाई है, भले ही उनके बच्चे न हों।
  • बढ़ती घरेलू आय: जैसे-जैसे घरेलू आय बढ़ती है, महिलाओं के लिए कार्य करने की वित्तीय आवश्यकता कम होती जाती है, जो उन्हें रोजगार की खोज करने से हतोत्साहित कर सकती है।
  • वेतन/मजदूरी असमानता: लिंग आधारित वेतन अंतर और महिलाओं के कार्य का कम मूल्यांकन श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी को हतोत्साहित करता है।
    • CRISIL के सहयोग से DBS बैंक इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 23% वेतनभोगी महिलाएँ लिंग वेतन अंतर को महसूस करती हैं।
  • शैक्षिक बाधाएँ: श्रम शक्ति में महिलाओं की भागीदारी को प्रभावित करने में शैक्षिक उपलब्धि महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
    • कई महिलाएँ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने या उसे पूरा करने में असमर्थ हैं, जिससे उनके रोजगार के अवसर सीमित हो जाते हैं।
    • उदाहरण: वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, कुल जनसंख्या में केवल 63 प्रतिशत महिलाएँ साक्षर हैं, जो पुरुष साक्षरता दर 80 प्रतिशत से काफी कम है।
  • प्रशिक्षण और योग्यता अंतराल: आवश्यक प्रशिक्षण, योग्यता या आयु प्रतिबंधों की कमी महिलाओं को नौकरी के अवसरों तक पहुँचने से रोक सकती है, जिससे भागीदारी दर कम हो सकती है।
  • अध्ययन को वरीयता देना: लगभग 33.6% महिलाएँ कार्यबल में प्रवेश करने के बजाय अपनी पढ़ाई जारी रखना पसंद करती हैं, जो उन्हें श्रम बल से बाहर रखता है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित अवसर: ग्रामीण भारत में सीमित अवसर हैं, जिसके कारण महिलाओं को अपनी पसंद के अनुसार रोजगार नहीं मिल पाता है।
    • निम्न कौशल स्तर और गैर-कृषि नौकरियाँ भी सीमित पाई गई हैं, जिसके कारण महिलाएँ श्रम बल से हट रही हैं।
  • अपराध: महिलाओं के विरुद्ध अपराध अर्थव्यवस्था में उनके उत्पादक योगदान में सबसे बड़ी बाधा है।
    • ये मुद्दे मुख्य रूप से कार्य पर आने-जाने और यात्रा की लागत से संबंधित हैं, जो महिलाओं को श्रम बल में शामिल होने से रोकते हैं।
      • उदाहरण: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की एक रिपोर्ट के अनुसार,  महिलाओं के विरुद्ध अपराध बढ़ रहे हैं, वर्ष 2022 में 4,45,256 मामले दर्ज किए गए, जिसका अर्थ है कि हर घंटे 51 मामले दर्ज हुए।

भारत में महिला श्रम बल भागीदारी बढ़ाने का महत्त्व

  • आर्थिक विकास: उच्च श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) का अर्थ है, कि अधिक महिलाएँ कार्यबल में योगदान दे रही हैं, जिससे उत्पादकता और समग्र आर्थिक विकास में वृद्धि हो सकती है।
    • महिलाएँ विविध कौशल और दृष्टिकोण लाती हैं, जो कार्यस्थलों में नवाचार और दक्षता को बढ़ावा देता है।
    • उदाहरण के लिए, मैकिन्से ग्लोबल इंस्टिट्यूट की एक रिपोर्ट का अनुमान है, कि महिलाओं को समान अवसर प्रदान करके, भारत संभावित रूप से वर्ष 2025 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद में 770 बिलियन अमेरिकी डॉलर अर्जित कर सकता है।
  • जनसांख्यिकीय लाभांश को अधिकतम करना: युवा आबादी वाला भारत अपने जनसांख्यिकीय लाभांश से लाभ उठा सकता है, बशर्ते महिलाओं को कार्यबल में समान रूप से शामिल किया जाए।
    • उत्पादक गतिविधियों में भाग लेने के लिए महिलाओं को प्रोत्साहित करना सुनिश्चित करता है कि आबादी का एक बड़ा भाग अर्थव्यवस्था में योगदान दे।
  • महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण: रोजगार महिलाओं को वित्तीय स्वतंत्रता प्रदान करता है, जिससे परिवार के पुरुष सदस्यों पर उनकी निर्भरता कम होती है।
    • इससे वे अपने व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक जीवन में निर्णय लेने में सक्षम होती हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य में समग्र सुधार होता है।
  • सामाजिक परिवर्तन: जैसे-जैसे महिलाएँ श्रम शक्ति में शामिल होती हैं, पारंपरिक लैंगिक मानदंड और सामाजिक धारणाएँ धीरे-धीरे बदलती हैं, जिससे लैंगिक समानता को बढ़ावा मिलता है।
  • SDG लक्ष्यों की प्राप्ति: महिला LFPR में सुधार सीधे तौर पर प्रमुख सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने में योगदान देता है:
    • SDG 5: लैंगिक समानता।
    • SDG 8: सभ्य कार्य और आर्थिक विकास।
    • SDG 10: असमानताओं में कमी​।

  • मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017: मातृत्व अवकाश को 12 से बढ़ाकर 26 सप्ताह किया गया, जिससे महिलाओं को बच्चे की देखभाल के लिए पर्याप्त समय मिल सके।
  • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना: गर्भवती महिलाओं को उचित पोषण और स्वास्थ्य के लिए नकद प्रोत्साहन प्रदान करती है।
  • तमिलनाडु की निःशुल्क लैपटॉप योजना: तमिलनाडु सरकार राज्य में सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों तथा कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्रों को लैपटॉप वितरित करने की योजना को लागू कर रही है, ताकि उन्हें बेहतर कौशल हासिल करने में सुविधा हो और उन्हें अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।
  • पुनः प्रवेश कार्यक्रम: कई कंपनियाँ प्रतिभा की कमी के मुद्दे को संबोधित करने के लिए महिलाओं हेतु पुनः प्रवेश कार्यक्रम प्रदान करती हैं।
    • उदाहरण: इंफोसिस कॅरियर ब्रेक से लौटने वाली महिलाओं के लिए मेंटरशिप के अवसरों को बढ़ावा देती है।
  • लिंग संवेदनशीलता के लिए समर्पित कार्यालय: कई बहुराष्ट्रीय निगमों ने समर्पित कार्यालय स्थापित किए हैं, जहाँ महिला कर्मचारी परामर्श सुविधाएँ और नर्सिंग स्टेशन का लाभ उठा सकती हैं, जो चौबीसों घंटे उपलब्ध होंगे।

भारत में महिला श्रम बल भागीदारी में सुधार के लिए सरकारी पहल

  • बजट 2024-25 में नई पहल: बजट 2024-25 में घोषित प्रधानमंत्री पैकेज में पाँच प्रमुख योजनाएँ शामिल हैं, जिनका उद्देश्य अगले पाँच वर्षों में 4.1 करोड़ महिलाओं सहित युवाओं को सशक्त बनाना है। इन योजनाओं के लिए 2 लाख करोड़ रुपये का केंद्रीय परिव्यय निर्धारित किया गया है। इन पहलों में शामिल हैं:
    • रोजगार, कौशल और अवसरों पर ध्यान केंद्रित करना।
    • उद्योग के सहयोग से कामकाजी महिलाओं के लिए छात्रावास स्थापित करना।
    • कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए क्रेच (बाल संरक्षण गृह) की स्थापना करना।
    • कार्यबल में महिलाओं के लिए अनुकूल माहौल को बढ़ावा देने के लिए अतिरिक्त नीतिगत हस्तक्षेप करना।
  • ‘पालना-Palna’ योजना: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ‘पालना’ योजना या आंगनवाड़ी-सह-क्रेच पर राष्ट्रीय कार्यक्रम चलाता है, जो कामकाजी माता-पिता के बच्चों के लिए डे-केयर सुविधाएँ प्रदान करता है।
    • इस योजना का उद्देश्य बच्चों के स्वास्थ्य, पोषण और संज्ञानात्मक विकास के लिए सुरक्षित वातावरण प्रदान करके कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना है।
    • इस योजना के तहत अब तक कुल 1,000 आंगनवाड़ी क्रेच प्रारंभ किए जा चुके हैं।
  • प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY): PMMY सूक्ष्म और लघु उद्यमों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है, विशेष रूप से महिला उद्यमियों पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • इस योजना के तहत, गैर-कॉरपोरेट, गैर-कृषि लघु/सूक्ष्म उद्यम क्षेत्र में आय-उत्पादक गतिविधियों के लिए ₹10 लाख तक का ऋण प्रदान किया जाता है।
  • ‘विज्ञान और इंजीनियरिंग में महिलाएँ-किरण (WISE-KIRAN)’: WISE-KIRAN योजना विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों के माध्यम से महिलाओं द्वारा अपनी वैज्ञानिक यात्रा में सामना की जाने वाली विभिन्न चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण है।
  • SERB-POWER (अन्वेषणात्मक अनुसंधान में महिलाओं के लिए अवसरों को बढ़ावा देना): यह पहल महिला वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को अग्रणी परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए वित्तपोषण करके अन्वेषणात्मक अनुसंधान में महिलाओं को बढ़ावा देती है।
  • पंडित दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना (DDU-GKY): DDU-GKY महिलाओं सहित ग्रामीण क्षेत्रों के युवाओं को उनकी रोजगार क्षमता बढ़ाने के लिए कौशल विकास प्रशिक्षण प्रदान करती है।
    • यह बाजार संचालित क्षेत्रों में प्रशिक्षण प्रदान करके गरीबी उन्मूलन पर ध्यान केंद्रित करता है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं को कौशल और आर्थिक अवसरों के साथ सशक्त बनाना है।
  • नमो ड्रोन दीदी: यह एक केंद्रीय क्षेत्रक योजना है, जिसका उद्देश्य महिलाओं के नेतृत्व वाले स्वयं सहायता समूहों (SHG) को कृषि सेवाएँ प्रदान करने के लिए ड्रोन तकनीक से लैस करके सशक्त बनाना है।
  • कौशल भारत मिशन: महिला श्रमिकों की रोजगार क्षमता बढ़ाने के लिए, सरकार महिला औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों, राष्ट्रीय व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों और क्षेत्रीय व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों के नेटवर्क के माध्यम से उन्हें प्रशिक्षण प्रदान कर रही है।
  • कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013: इसे महिलाओं के लिए सुरक्षित कार्यस्थल सुनिश्चित करने, कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करने और यौन उत्पीड़न की शिकायतों की रोकथाम एवं निवारण के लिए अधिनियमित किया गया था।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020: नीति लैंगिक समानता को प्राथमिकता देती है और सामाजिक तथा आर्थिक रूप से वंचित समूहों (SEDG) पर विशेष जोर देते हुए सभी छात्रों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुँच सुनिश्चित करने की परिकल्पना करती है।

आगे की राह

  • सामाजिक और सांस्कृतिक मानदंडों को चुनौती देना: अवैतनिक देखभाल कार्य को कलंकमुक्त करने की आवश्यकता है, जो लैंगिक रूढ़ियों को तोड़ने और देखभाल करने वाली भूमिकाओं को फिर से परिभाषित करने में मदद करेगा।
    • सार्वजनिक अभियान, शैक्षिक कार्यक्रम और मीडिया देखभाल में पुरुषों की सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा दे सकते हैं, जिससे श्रम का अधिक संतुलित विभाजन हो सकता है।
    • यह बदलाव महिलाओं को औपचारिक कार्यबल में अधिक पूर्ण रूप से भाग लेने की अनुमति देगा, जिससे उनकी श्रम शक्ति भागीदारी में सुधार होगा।
  • लचीली कार्य व्यवस्था: लचीली कार्य व्यवस्था, जैसे कि दूर से काम करना और लचीले घंटे, महिलाओं को पेशेवर तथा व्यक्तिगत जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाने की अनुमति देते हैं, जिससे उनके लिए कार्यबल में शामिल होना एवं बने रहना आसान हो जाता है।
  • व्यावसायिक प्रशिक्षण को बढ़ावा देना: महिलाओं को कौशल प्रदान करने से उनकी रोजगार क्षमता बढ़ती है और उन्हें अर्थव्यवस्था में योगदान देने के लिए तैयार किया जाता है।
    • उदाहरण: प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान (PMGDISHA) के कार्यान्वयन से ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता को बढ़ाया जा सकता है।
  • नौकरियों का औपचारिकीकरण: नौकरियों का औपचारिकीकरण महिलाओं को नौकरी की सुरक्षा, समान वेतन और कानूनी संरक्षण प्रदान करता है, जिससे रोजगार अधिक आकर्षक बनता है और महिला श्रम बल भागीदारी को बढ़ावा देने में सहायता मिल सकती है।

निष्कर्ष

भारत में महिला श्रम शक्ति भागीदारी में लगातार सुधार हो रहा है, लैंगिक समानता, आर्थिक सशक्तीकरण और समावेशी विकास सुनिश्चित करने के लिए लक्षित नीतिगत हस्तक्षेप आवश्यक हैं, जो वर्ष 2047 तक विकसित भारत के दृष्टिकोण को साकार करने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

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