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Lokesh Pal December 09, 2024 05:30 44 0
भारत की सतत आर्थिक वृद्धि को वैश्विक मान्यता प्राप्त हो रही है, लेकिन इसके साथ ही ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (जीएचजी) में भी वृद्धि हो रही है। इससे भारत के विकास पथ की स्थिरता और जलवायु परिवर्तन पर इसके संभावित प्रभाव के बारे में चिंताएँ पैदा होती हैं।
यद्यपि भारत का सापेक्ष वियोजन एक सराहनीय उपलब्धि है, लेकिन यह पूर्ण वियोजन से कम है, जो निम्नलिखित कारणों से महत्वपूर्ण चुनौतियां प्रस्तुत करता है:
चूंकि भारत ने पेरिस समझौते के तहत महत्वाकांक्षी जलवायु प्रतिबद्धताएं की हैं, जिसमें वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन हासिल करना भी शामिल है। इन लक्ष्यों को पूरा करने और दीर्घकालिक पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए पूर्ण वियोजन प्राप्त करना महत्वपूर्ण है।
पूर्ण वियोजन की दिशा में प्रगति करने के लिए, भारत को ऐसी नीतियों और पहलों को अपनाना होगा जो आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण दोनों को समर्थन प्रदान कर सकें। कुछ महत्त्वपूर्ण सिफारिशें इस प्रकार से हैं :
सापेक्षिक वियोजन की नीति पर भारत का दावा महत्त्वपूर्ण प्रगति को दर्शाता है, लेकिन यह भावी की चुनौतियों को भी उजागर करता है। जबकि उत्सर्जन वृद्धि से आगे निकलकर आर्थिक विकास एक सकारात्मक संकेत हो सकता है, पूर्ण वियोजन का अंतिम लक्ष्य हासिल करने में अभी समय लगेगा परंतु वह आवश्यक लक्ष्य है। सतत विकास की मांग है कि भारत आर्थिक नीतियों को जलवायु कार्रवाई के साथ एकीकृत करने के अपने प्रयासों को जारी रखे, ताकि राष्ट्रीय समृद्धि के लिए और भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ ग्रह सुनिश्चित हो सके।
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