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क्षेत्रीय एकीकरण हासिल करने में सार्क की विफलता

Lokesh Pal December 11, 2024 04:13 133 0

संदर्भ 

8 दिसंबर को दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) की स्थापना के 39 वर्ष पूर्ण हो गए।

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) 

  • स्थापना: दिसंबर 1985 में ढाका में दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) चार्टर पर हस्ताक्षर के साथ स्थापित किया गया।
  • सचिवालय: वर्ष 1987 में काठमांडू में स्थापित।
  • सदस्य: अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका।
  • पर्यवेक्षक: ऑस्ट्रेलिया, चीन, यूरोपीय संघ, ईरान, जापान, दक्षिण कोरिया, मॉरीशस, म्यांमार और संयुक्त राज्य अमेरिका।
  • प्राधिकार क्षेत्र: सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों या शासनाध्यक्षों की बैठकें सार्क के अंतर्गत निर्णय लेने का सर्वोच्च प्राधिकरण है।

  • मेजबान: शिखर सम्मेलन आमतौर पर सदस्य राष्ट्र द्वारा वर्णमाला क्रम में द्विवार्षिक रूप से आयोजित किए जाते हैं।
    • शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने वाला सदस्य राष्ट्र संघ की अध्यक्षता ग्रहण करता है। 
  • दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) के विशेष निकाय: दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) विकास कोष, सार्क मध्यस्थता परिषद, दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय मानक संगठन।

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) की उपलब्धियाँ

  • दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र (SAFTA): वर्ष 2004 में हस्ताक्षरित SAFTA, दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) के सदस्यों के बीच एक मुक्त व्यापार समझौता है।
  • दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन विकास कोष (SAARC Development Fund- SDF): SDF, दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) के लिए गरीबी उन्मूलन और विकास जैसे सामाजिक क्षेत्रों में परियोजनाओं और कार्यक्रमों को वित्तपोषित करने के लिए वित्तीय संस्था है।
    • SDF की स्थापना वर्ष 2010 में भूटान के थिम्पू में 16वें दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) शिखर सम्मेलन के दौरान की गई थी।
  • दक्षिण एशियाई अधिमान्य व्यापार समझौता (SAPTA): सदस्य देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 1993 में ढाका में SAPTA पर हस्ताक्षर किए गए थे और यह वर्ष 1995 में लागू हुआ।
  • दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय मानक संगठन (SARSO): वर्ष 2011 में स्थापित SARSO, मानकीकरण और अनुरूपता मूल्यांकन के क्षेत्रों में दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) सदस्य देशों के बीच समन्वय एवं सहयोग को प्राप्त करने और इसे बढ़ाने के लिए एक विशेष निकाय है।
  • सेवाओं में व्यापार समझौते: इस समझौते को सभी सदस्य राष्ट्रों द्वारा अनुमोदित किया गया है और यह वर्ष 2012 में लागू हुआ।
  • दोहरा कराधान अपवंचन समझौता (DTAA): दोहरे कराधान से बचने के लिए सभी सदस्यों द्वारा वर्ष 2005 में इस पर हस्ताक्षर किए गए थे। भारत ने वर्ष 2011 में इसका अनुमोदन किया।
  • दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ विश्वविद्यालय (South Asian Association For Regional Cooperation University): भारत में एक सार्क विश्वविद्यालय, एक खाद्य बैंक और पाकिस्तान में एक ऊर्जा भंडार स्थापित करना।
  • सार्क आपदा प्रबंधन केंद्र (SDMC): यह एक अंतर-सरकारी संगठन है जो सदस्य राष्ट्रों को आपदा जोखिम को कम करने, आपदा जोखिम का प्रबंधन करने और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने में मदद करता है।
  • सार्क सामाजिक चार्टर (SAARC Social Charter): सार्क चार्टर का उद्देश्य सदस्य देशों के बीच सहयोग और पारस्परिक सहायता के माध्यम से सामाजिक प्रगति को गति देना है।
  • दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्थाओं को दक्षिण-पूर्व एशिया से जोड़ना: इससे भारत में विशेषतः सेवा क्षेत्र में आर्थिक एकीकरण और समृद्धि को बढ़ावा मिलेगा।

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) के महत्वाकांक्षी लक्ष्य

  • दक्षिण एशियाई आर्थिक संघ (SAEU): सार्क ने दक्षिण एशियाई आर्थिक संघ (SAEU) के गठन की परिकल्पना की थी।
    • इसमें सामान्य व्यापार नीतियों को अपनाना, एक एकीकृत बाहरी व्यापार नीति और अंततः क्षेत्र के लिए एकल मुद्रा की शुरूआत जैसे उद्देश्य शामिल थे।
  • कार्यात्मक और गतिशील मुक्त व्यापार क्षेत्र: इस संगठन का उद्देश्य एक कार्यात्मक और गतिशील मुक्त व्यापार क्षेत्र स्थापित करना था।
    • इसे प्राप्त करने के लिए, वर्ष 2006 में दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र (SAFTA) समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे, और सेवाओं में अंतर-क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ाने के लिए सेवाओं में व्यापार पर सार्क समझौता प्रस्तुत किया गया था।

सार्क का महत्व

  • क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा: सार्क (SAARC) आठ दक्षिण एशियाई देशों को गरीबी, निरक्षरता और स्वास्थ्य संकट जैसी साझा चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक मंच प्रदान करता है।
    • उदाहरण के लिए, सार्क तपेदिक और HIV/AIDS केंद्र जैसी पहल का उद्देश्य क्षेत्रीय स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का समाधान करना है।
  • आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा: दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार समझौते (SAFTA) जैसे समझौतों का उद्देश्य सदस्य देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देना है।
    • हालाँकि कार्यान्वयन धीमा रहा है, लेकिन आर्थिक विकास के लिए अंतर-क्षेत्रीय व्यापार (वर्तमान में लगभग 5%) बढ़ाने की संभावना महत्त्वपूर्ण बनी हुई है।
  • साझा मुद्दों को संबोधित करना: दक्षिण एशिया आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं जैसी साझा चुनौतियों का सामना करता है। सार्क (SAARC) इन अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को संबोधित करने के लिए संवाद एवं सहयोग को बढ़ावा देता है।
    • उदाहरण के लिए, सार्क आपदा प्रबंधन केंद्र सहयोगात्मक आपदा तैयारियों को बढ़ावा देता है।
  • सांस्कृतिक और लोगों के बीच आदान-प्रदान को बढ़ावा देता है: सार्क (SAARC), SAARC फिल्म महोत्सव और SAARC साहित्यिक पुरस्कार जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से सांस्कृतिक एकीकरण को बढ़ावा देता है, जो क्षेत्र में विविध संस्कृतियों के बीच आपसी समझ एवं सम्मान को बढ़ावा देने में मदद करते हैं।
  • सामूहिक सौदेबाजी की क्षमता को मजबूत करता है: एक समूह के रूप में, SAARC विश्व व्यापार संगठन या जलवायु वार्ता जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों में अपनी स्थिति को सशक्त कर सकता है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि क्षेत्र के सामूहिक हितों का वैश्विक मंच पर प्रतिनिधित्व हो।
  • कनेक्टिविटी और एकीकरण को बढ़ाता है: सार्क मोटर वाहन समझौते और सार्क सैटेलाइट परियोजना जैसी पहलों का उद्देश्य क्षेत्रीय कनेक्टिविटी में सुधार करना है।
    • हालाँकि अवरोधित इन परियोजनाओं में दक्षिण एशिया में आर्थिक और सामाजिक एकीकरण को बढ़ावा देने की क्षमता है।
  • क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देता: भारत और पाकिस्तान जैसे देशों को एक ही मंच पर लाकर, सार्क (SAARC) तनाव कम करने और संवाद को बढ़ावा देने के लिए एक विश्वास-निर्माण तंत्र के रूप में कार्य करता है। 
    • उदाहरण के लिए, सार्क (SAARC) शिखर सम्मेलनों में अक्सर द्विपक्षीय बैठकों की सुविधा होती है।

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) की विफलताएँ

  • स्थगित या रद्द किए गए शिखर सम्मेलन: पिछले तीन दशकों में, राजनीतिक असहमति के कारण सार्क शिखर सम्मेलन 10 से अधिक बार स्थगित किए गए हैं।
    • उदाहरण: उरी आतंकवादी हमले के बाद भारत, बांग्लादेश, भूटान और अफगानिस्तान द्वारा भागीदारी से इनकार करने के बाद इस्लामाबाद में वर्ष 2016 का सार्क शिखर सम्मेलन रद्द कर दिया गया था।
  • कमजोर संगठन: दक्षिण एशिया का क्षेत्रीय सहयोग ऐतिहासिक रूप से आसियान, यूरोपीय संघ और अफ्रीका जैसे अन्य क्षेत्रों की तुलना में कमजोर रहा है।
    • अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र (African Continental Free Trade Area): क्षेत्रीय व्यापार एकीकरण के महत्त्व को दर्शाता है।
    • मर्कोसुर (MERCOSUR): लैटिन अमेरिका की क्षेत्रीय एकीकरण परियोजना ने दक्षिण एशिया से बेहतर प्रदर्शन किया है।
  • अपर्याप्त आर्थिक एकीकरण: वर्ष 2006 में दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार समझौते (SAFTA) के कार्यान्वयन के बावजूद, अंतर-क्षेत्रीय व्यापार क्षेत्र के वैश्विक व्यापार का मात्र 5% ही बना हुआ है।
    • सीमित व्यापार उदारीकरण और गैर-टैरिफ बाधाओं के कारण आर्थिक सहयोग की संभावना का एहसास नहीं हो पाया है।
  • अवरुद्ध हुई क्षेत्रीय पहल: सार्क मोटर वाहन समझौता और सार्क सैटेलाइट परियोजना जैसी प्रमुख पहल मुख्य रूप से सदस्य देशों के बीच आम सहमति की कमी के कारण प्रभाव में नहीं आ पाई हैं।
    • यह रुकावट सार्क की क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को पूरा करने में असमर्थता को दर्शाती है।
  • क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दों को संबोधित करने में विफलता: सार्क एक सामूहिक सुरक्षा ढाँचा विकसित करने में सक्षम नहीं है।
    • उदाहरण: आतंकवाद एक विभाजनकारी मुद्दा बना हुआ है, जिसमें राष्ट्रीय हितों के टकराव के कारण सीमा पार आतंकवाद को संबोधित करने पर कोई आम सहमति नहीं बन पाई है।
  • संसाधनों का कम उपयोग: सार्क संस्थाएँ, जैसे सार्क विकास निधि (SDF), अपर्याप्त निधि और प्रभावशाली परियोजनाओं की कमी के कारण अपनी क्षमता को पूर्ण करने में विफल रही हैं।
    • ये संस्थाएँ पूरे क्षेत्र में सतत विकास को बढ़ावा देने में काफी हद तक अप्रभावी हैं।
  • संकट प्रबंधन में अप्रभाविता: COVID-19 महामारी जैसे क्षेत्रीय संकटों के प्रति सार्क की प्रतिक्रिया अन्य क्षेत्रीय समूहों की तुलना में न्यूनतम थी।
    • हालाँकि भारत ने वर्ष 2020 में COVID-19 आपातकालीन निधि का प्रस्ताव रखा था, लेकिन सार्क के तहत व्यापक क्षेत्रीय सहयोग की कमी थी।
  • वैकल्पिक मंचों की ओर बदलाव: बिम्सटेक (BIMSTEC) का एक अधिक सक्रिय और कार्यात्मक संगठन के रूप में उदय, सार्क की प्रासंगिक बने रहने में असमर्थता को उजागर करता है।
    • क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने में बिम्सटेक की सफलता, सार्क की स्थिरता से एकदम अलग है।
  • अनुमानित अप्रासंगिकता: कई सदस्य देश द्विपक्षीय संबंधों या अन्य क्षेत्रीय समूहों को सार्क से ज्यादा प्राथमिकता देते हैं, जिससे क्षेत्रीय मुद्दों को संबोधित करने में इसका महत्त्व कम हो जाता है।
    • उदाहरण: बिम्सटेक (BIMSTEC) और क्वाड (Quad) के साथ भारत की बढ़ती भागीदारी, सार्क से ध्यान हटाने में बदलाव को दर्शाती है।

सार्क के समक्ष चुनौतियाँ और सीमाएँ

  • राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता: भारत-पाकिस्तान प्रतिद्वंद्विता, विशेष रूप से आतंकवाद और कश्मीर को लेकर, सहयोग में बाधा डालती है।
    • उदाहरण: उरी आतंकवादी हमले के कारण वर्ष 2016 के इस्लामाबाद शिखर सम्मेलन को रद्द करना सार्क के कामकाज पर द्विपक्षीय तनाव के प्रभाव को उजागर करता है।
  • सदस्य देशों के बीच विश्वास की कमी: अविश्वास, विशेष रूप से बड़े और छोटे देशों के बीच, क्षेत्रीय सामंजस्य को बाधित करता है।
    • भारत के नेतृत्व वाली पहलों, जैसे कि सार्क सैटेलाइट और मोटर वाहन समझौते का पाकिस्तान द्वारा लगातार विरोध, इस मुद्दे को दर्शाता है।
  • कमजोर आर्थिक एकीकरण: यह दक्षिण एशिया के अंतर्गत अंतर-क्षेत्रीय व्यापार क्षेत्र के कुल व्यापार का मात्र 5.6% है, जो कि आसियान के 25% से बहुत कम है। गैर-टैरिफ बाधाएँ, संरक्षणवादी नीतियाँ और अपर्याप्त कनेक्टिविटी बुनियादी ढाँचा समस्या को और बढ़ा देता है।
    • उदाहरण: दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र (SAFTA) को वर्ष 2006 में अपनी स्थापना के बाद से सीमित सफलता मिली है।
  • संरचनात्मक और निर्णय लेने की कमजोरियाँ: निर्णय लेने में सर्वसम्मति के लिए सार्क की आवश्यकता प्रायः गतिरोध की ओर ले जाती है।
    • सार्क मोटर वाहन समझौते और क्षेत्रीय रेलवे समझौते जैसे महत्त्वपूर्ण समझौते, आम सहमति की कमी के कारण हस्ताक्षर नहीं किए गए हैं।
  • सार्क चार्टर के तहत सीमित दायरा: चार्टर सार्क को द्विपक्षीय विवादों को छोड़कर केवल बहुपक्षीय मुद्दों से निपटने तक सीमित करता है।
    • यह भारत-पाकिस्तान संघर्ष या सीमा पार आतंकवाद जैसे दबाव वाले मुद्दों को संबोधित करने की इसकी क्षमता को सीमित करता है।
  • भारत के प्रभुत्व की धारणा: छोटे सदस्य देश भारत को एक प्रमुख “पथ प्रदर्शक” के रूप में देखते हैं, जिससे सहयोग के प्रति आशंका और प्रतिरोध उत्पन्न होता है।
    • यह भावना विश्वास को कमजोर करती है और छोटे देशों को सार्क पहलों में पूरी तरह से शामिल होने में हिचकिचाहट उत्पन्न करती है।
  • द्विपक्षीय संबंधों को प्राथमिकता: भारत की विदेश नीति पारंपरिक रूप से अपने पड़ोसियों के साथ द्विपक्षीय संबंधों को प्राथमिकता देती है।
  • कम अंतर-क्षेत्रीय निवेश: विश्व बैंक (2021) के अनुसार, दक्षिण एशिया में वैश्विक आगम FDI का केवल 0.6% अंतर-क्षेत्रीय निवेश है, जो विकासशील क्षेत्रों में सबसे कम है।
    • आर्थिक अंतर-निर्भरता की यह कमी सार्क की प्रासंगिकता को कमजोर करती है।
  • सुरक्षा चुनौतियाँ: सदस्य देशों के बीच अलग-अलग खतरे की धारणाएँ सुरक्षा सहयोग में बाधा डालती हैं।
    • उदाहरण: पाकिस्तान की ओर से सीमा पार आतंकवाद पर भारत की चिंताएँ अभी भी अनसुलझी हैं, जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा पहलों में प्रगति अवरुद्ध हो रही है।
  • वैकल्पिक क्षेत्रीय मंचों का उदय: एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में बिम्सटेक (BIMSTEC) के उभरने से सार्क से ध्यान हटा है।
    • बिम्सटेक (BIMSTEC) के अपने सदस्यों के बीच कनेक्टिविटी और साझा उद्देश्यों पर ध्यान केंद्रित करने से अधिक राजनीतिक और आर्थिक प्रतिबद्धता प्राप्त हुई है।
  • बाहरी प्रभाव: बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) जैसी पहलों के माध्यम से दक्षिण एशिया में चीन का बढ़ता प्रभाव सार्क के भीतर विभाजन उत्पन्न करता है।
    • चीन के साथ पाकिस्तान का गठबंधन भारत के सतर्क दृष्टिकोण के विपरीत है, जिससे विवाद बढ़ता है।
  • सदस्य देशों में आंतरिक अस्थिरता: सदस्य देशों के भीतर राजनीतिक अस्थिरता क्षेत्रीय प्रतिबद्धताओं से ध्यान हटाती है।
    • उदाहरण: वर्ष 2021 में तालिबान के सत्ता में आने बाद अफगानिस्तान की भागीदारी अनिश्चित हो गई।
  • लॉजिस्टिक अक्षमताएँ: ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन के अनुसार, संरक्षणवादी नीतियों, उच्च लॉजिस्टिक्स लागत, राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और व्यापक विश्वास घाटे के कारण, दक्षिण एशिया में अंतर-क्षेत्रीय व्यापार क्षेत्र के वैश्विक व्यापार के 5% पर अपनी क्षमता से काफी नीचे रहता है।
    • दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार समझौता (SAFTA) जैसी पहल, हालाँकि वर्ष 2006 में लागू की गई थी, लेकिन इस क्षेत्र में व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने में बहुत कम सफलता मिली है।
    • उदाहरण: भारत के लिए पड़ोसी सार्क देशों की तुलना में ब्राजील के साथ व्यापार करना 20% सस्ता है।

बिम्सटेक (BIMSTEC) 

  • बिम्सटेक एक बहुपक्षीय क्षेत्रीय संगठन है जिसकी स्थापना बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में तटीय और समीपवर्ती देशों के बीच साझा विकास और सहयोग को गति देने के उद्देश्य से की गई।

  • इसकी स्थापना जून 1997 में बैंकॉक घोषणा को अपनाने के साथ ही BIST-EC के रूप में की गई थी, जिसमें बांग्लादेश, भारत, श्रीलंका और थाईलैंड सदस्य शामिल थे।
  • वर्ष 1997 के अंत में म्यांमार के शामिल होने के बाद यह BIMSTEC (बांग्लादेश, भारत, म्यांमार, श्रीलंका और थाईलैंड आर्थिक सहयोग) बन गया।
  • अंततः, इसका वर्तमान स्वरूप तब रखा गया जब वर्ष 2004 में नेपाल और भूटान इसके सदस्य बन गए।
  • सचिवालय: ढाका, बांग्लादेश।
  • सदस्यता: इसके कुल सात सदस्य देश हैं:
    • दक्षिण एशिया से पाँच, जिनमें बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल और श्रीलंका शामिल हैं;
    • दक्षिण पूर्व एशिया से दो, जिनमें म्यांमार और थाईलैंड शामिल हैं।
  • BIMSTEC क्षेत्र में 1.67 बिलियन लोग रहते हैं और इनका संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद लगभग 3.71 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है।

क्या भारत को सार्क के प्रभाव पर बिम्सटेक को प्राथमिकता देनी चाहिए?

  • इसके पक्ष में तर्क:
    • बिम्सटेक में पाकिस्तान को शामिल न करने से राजनीतिक तनाव में कमी आई है
    • अधिक क्षेत्रीय एकीकरण: दक्षिण एशिया को दक्षिण-पूर्व एशिया से जोड़ना।
    • रणनीतिक महत्व: बिम्सटेक कलादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट और त्रिपक्षीय राजमार्ग जैसी परियोजनाओं के माध्यम से भारत की एक्ट ईस्ट नीति के साथ संरेखित है।
    • बढ़ती प्रासंगिकता: बिम्सटेक शिखर सम्मेलन एवं समझौतों ने प्रगति दिखाई है, जबकि सार्क ने राजनीतिक संघर्षों के कारण वर्ष 2014 के बाद से कोई शिखर सम्मेलन आयोजित नहीं किया है।
  • विपक्ष में तर्क:
    • साझी दक्षिण एशियाई पहचान: गरीबी, स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन जैसी दक्षिण एशिया-विशिष्ट चुनौतियों से निपटने के लिए सार्क महत्वपूर्ण है।
    • क्षेत्रीय विखंडन का जोखिम: सार्क को दरकिनार करने से क्षेत्रीय एकता कमजोर हो सकती है, जिससे दक्षिण एशिया चीन की ‘बेल्ट एंड रोड’ पहल जैसे बाहरी भू-राजनीतिक प्रभावों के प्रति संवेदनशील हो सकता है।
    • मौजूदा रूपरेखा: आर्थिक और विकासात्मक सहयोग के लिए दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र (SAFTA) और सार्क विकास कोष जैसी संस्थाओं को पुनर्जीवित किया जा सकता है।
  • मुद्दा-आधारित सहयोग के माध्यम से दोनों मंचों में संतुलन स्थापित कर भारत अपने क्षेत्रीय और सामरिक प्रभाव को अधिकतम कर सकता है।

भारत के लिए सार्क का महत्त्व

  • पड़ोस पहले नीति को मजबूत करना: सार्क भारत के अपने निकटतम पड़ोसियों के साथ मजबूत संबंधों को बढ़ावा देने, क्षेत्रीय सहयोग और विकास को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • यह दक्षिण एशियाई देशों के सहयोग से गरीबी और जलवायु परिवर्तन जैसी साझा चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक संरचित मंच प्रदान करता है।
  • सॉफ्ट पावर प्रोजेक्शन: सार्क भारत को एक प्रमुख क्षेत्रीय हितधारक के रूप में अपना प्रभाव स्थापित करने में सक्षम बनाता है। दिल्ली में दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय जैसी पहल सदस्य देशों में भारत की सांस्कृतिक और शैक्षिक स्थिति को बढ़ाती है।
  • चीन के प्रभाव का मुकाबला करना: सार्क को पुनर्जीवित करने से भारत को क्षेत्र के भीतर आर्थिक और बुनियादी ढाँचे के सहयोग को बढ़ावा देकर ‘बेल्ट एंड रोड’ पहल के माध्यम से चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने की अनुमति मिलती है।
  • क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देना: सार्क के माध्यम से, भारत विशेष रूप से पाकिस्तान के साथ विश्वास-निर्माण उपायों को बढ़ावा दे सकता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि क्षेत्रीय हितों को द्विपक्षीय विवादों पर प्राथमिकता दी जाए।
    • यह आर्थिक विकास और क्षेत्रीय शांति के लिए आवश्यक स्थिर वातावरण को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।
  • आर्थिक अवसर: सार्क को पुनर्जीवित करने से भारतीय कंपनियों के लिए विशेषकर कृषि, फार्मास्यूटिकल्स और सेवाओं जैसे क्षेत्रों में बड़े क्षेत्रीय बाजार खुल सकते हैं।
    • SAFTA के पूर्ण कार्यान्वयन से व्यापार बाधाएँ कम हो सकती हैं, इससे भारत के निर्यात को बढ़ावा मिलेगा और पड़ोसियों के साथ व्यापार घाटे में कमी आएगी।
  • ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ को बढ़ावा: दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्थाओं को दक्षिण पूर्व एशिया से जोड़कर, सार्क भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी को आगे बढ़ा सकता है, आर्थिक एकीकरण और विकास को बढ़ावा दे सकता है, विशेष रूप से भारत के अविकसित पूर्वी क्षेत्रों को लाभ पहुँचा सकता है।

सार्क को पुनर्जीवित करने की आगे की राह

  • निर्णय लेने में सुधार: सर्वसम्मति आधारित दृष्टिकोण को बहुमत के दृष्टिकोण से बदलना ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय परियोजनाएँ और पहल द्विपक्षीय असहमति के कारण बाधित न हों।
  • भारत-पाकिस्तान वार्ता को बढ़ावा देना: विश्वास-निर्माण उपायों की शुरुआत करना और आतंकवाद एवं व्यापार बाधाओं जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित करने के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच वार्ता हेतु एक तटस्थ मंच का निर्माण करना।
  • आर्थिक सहयोग पर ध्यान देना: सदस्य देशों के बीच व्यापार और अन्योन्याश्रितता बढ़ाने के लिए सीमा पार ऊर्जा ग्रिड, रेलवे और सड़क नेटवर्क जैसी क्षेत्रीय संपर्क परियोजनाओं को प्राथमिकता देना।
  • लोगों के बीच संबंधों को बढ़ावा देना: विश्वास और सद्भावना निर्माण के लिए सांस्कृतिक, शैक्षणिक और पर्यटन आदान-प्रदान का विस्तार करना, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक तनाव कम हो।
  • संघर्ष समाधान मंच: सार्क का उपयोग विश्वास-निर्माण उपायों के लिए एक मंच के रूप में करना, राजनीतिक संघर्षों के बीच भी संवाद को खुला रखना, विशेषकर भारत और पाकिस्तान के बीच।
  • जलवायु सहयोग का लाभ उठाना: आपदा प्रबंधन, नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं और सतत विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने के लिए सामूहिक रणनीति विकसित करना।
  • सांस्कृतिक संबंध: सार्क दक्षिण एशिया की साझा सांस्कृतिक, भाषाई, धार्मिक और ऐतिहासिक पहचान का प्रतिनिधित्व करता है, जो इस क्षेत्र के प्राकृतिक भौगोलिक और सामाजिक संबंधों पर जोर देता है।
  • बड़े लक्ष्यों के साथ एकीकृत करना: दक्षिण एशिया को दक्षिण-पूर्व एशिया से जोड़कर भारत की एक्ट ईस्ट नीति के साथ सार्क के एजेंडे को संरेखित करना, जिससे अधिक क्षेत्रीय आर्थिक और रणनीतिक एकीकरण को बढ़ावा मिले।

निष्कर्ष

सार्क की चुनौतियाँ राजनीतिक संघर्षों, संरचनात्मक अक्षमताओं और आर्थिक कमजोरी में गहराई से निहित हैं। सार्क की प्रासंगिकता को पुनर्जीवित करने और इसके अधिदेश को पूरा करने के लिए लचीले निर्णय लेने, क्षेत्रीय व्यापार को प्राथमिकता देने और राजनीतिक विवादों को हल करने जैसे व्यापक सुधार आवश्यक हैं। सार्क देशों को केवल संकट के समय ही आम सहमति नहीं बनानी चाहिए। शांति, स्थिरता और विकास प्राप्त करने के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण भविष्य की सार्क बैठकों और एशियाई सदी के लाभों को प्राप्त करने का मार्गदर्शक होगा।

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