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सदन के काम-काज में व्यवधान न डालें

Lokesh Pal December 10, 2024 05:15 34 0

संदर्भ:

भारत के संसदीय लोकतंत्र को बार-बार व्यवधान और बहस की गुणवत्ता में गिरावट जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जो जनता के विश्वास को कमज़ोर करती हैं। प्रभावी शासन के लिए शिष्टाचार बनाए रखना, संवाद को प्रोत्साहित करना और आम सहमति स्थापित करना आवश्यक है।

संसद की भूमिका, महत्व और कार्यप्रणाली

1. भूमिका:

  • सर्वोच्च विधायी निकाय: शासन के लिए कानून निर्माता की भूमिका में है।
  • विचार-विमर्श मंच के रूप में : महत्वपूर्ण राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर बहस करता है।
  • प्रतिनिधित्व: लोगों की इच्छा और आकांक्षाओं को दर्शाता है।
  • जवाबदेही तंत्र: प्रश्नों, प्रस्तावों और समितियों के माध्यम से कार्यपालिका को जवाबदेह बनाता है।

2. महत्व:

  • लोकतांत्रिक आधार: यह सुनिश्चित करता है कि सरकार पारदर्शी और जिम्मेदारी से काम करे।
  • नीति निर्माण: सूचित चर्चाओं के माध्यम से सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का समाधान करता है।
  • अधिकारों की सुरक्षा: नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है और न्याय सुनिश्चित करता है।

3. कार्य:

  • सत्र: नियमित सत्र (बजट, मानसून, शीतकालीन) व्यवसाय के संचालन के लिए।
  • समितियाँ: विशेष समितियाँ कार्यकुशलता बढ़ाती हैं और मुद्दों की जाँच करती हैं।
  • बहस और चर्चा: नीतियों को आकार देने के लिए स्वास्थ्य पर चर्चा को प्रोत्साहित करती हैं।
  • नियंत्रण और संतुलन: विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के मध्य संतुलन बनाए रखती हैं।

वर्तमान चुनौतियाँ

  • बार-बार व्यवधान और अनियंत्रित व्यवहार: सदस्यों द्वारा सदन के अन्दर जाने, नारे लगाने, कागज छीनने और यहाँ तक कि डेस्क पर चढ़ने जैसी घटनाओं की वजह से सदन में जरुरी मुद्दों पर होनी वाली चर्चाएँ बड़े स्तर पर प्रभावित हुई हैं।
    • उक्त कार्य प्रक्रियात्मक मानदंडों का उल्लंघन करते हैं, विधायी प्रक्रियाओं को बाधित करते हैं और संसद की प्रतिष्ठा को धूमिल करते हैं।
  • रचनात्मक विचार-विमर्श में गिरावट: लगातार और अधिक तेज आवाज में की जाने वाली नारेबाजी और तीखी बहस ने सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर महत्वपूर्ण चर्चाओं की जगह ले ली है। 
    • सदन में किए गए ऐसे बहस और नारेबाजी लोकतांत्रिक निर्णय लेने के मूल को कमजोर करता है।
  • बाधा डालने वाली रणनीति: बहिष्कार, वाकआउट और पीठासीन अधिकारियों के साथ टकराव रचनात्मक रूप से जुड़ने की इच्छा की कमी को दर्शाता है। ऐसी कार्रवाइयाँ सामान्यतया विधायी गतिरोध की स्थिति पैदा करती हैं, जिससे शासन और नीति निर्माण में बाधा आती है।

संसदीय शिथिलता के प्रभाव

  • सार्वजनिक मोहभंग: व्यवधान नागरिकों में निराशा और मोहभंग की स्थिति पैदा करते हैं, जिसका प्रमुख उदाहरण मतदाताओं की घटती संख्या और लोकतांत्रिक संस्थाओं पर आम लोगों में बढ़ते अविश्वास से मेल खता है।
    • लोगों को लगता है कि संसद उनकी चिंताओं को दूर करने में विफल रही है, जिससे मतदाता और भी अलग-थलग पड़ गए हैं।
  • आर्थिक लागत: संसदीय व्यवधानों से कर्मचारियों के वेतन और परिचालन व्यय सहित आवश्यक लागत आती है, जिससे ये घटनाएँ सरकारी खजाने पर वित्तीय बोझ बन जाती हैं।
  • वैश्विक छवि और विश्वसनीयता: लोकतंत्र और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के प्रतीक के रूप में, एक निष्क्रिय संसद के कारण भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँच सकता है।
    • अक्षमता भारत की विश्वसनीयता और अंतरराष्ट्रीय मंच पर इसकी नेतृत्वकारी भूमिका को कमजोर करती है।

सुधार के लिए सिफारिशें

  • रचनात्मक संवाद को बढ़ावा देना: राजनीतिक दलों को अनावश्यक व्यवधानों से बचते हुए बहस और चर्चा की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए।
    • संवाद में आपसी सम्मान और पार्टी लाइन से हटकर बातचीत करने की इच्छा होनी चाहिए।
  • जवाबदेही और ईमानदारी सुनिश्चित करना: राजनीतिक दलों को सदस्यों के आचरण के लिए कठोर मानदंड लागू किए जाने चाहिए, ईमानदारी और प्रक्रियात्मक पालन पर जोर देना चाहिए। 
    • मौजूदा और महत्वाकांक्षी नेताओं के लिए नैतिक व्यवहार को प्राथमिकता देनी चाहिए।
  • पार्टी लाइन से हटकर आम सहमति स्थापित करना: महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों को ध्यान में रखते हुए आम सहमति वाली राजनीति के लिए सामूहिक प्रतिबद्धता की आवश्यकता है।
    • इसके लिए देने और लेने की भावना की आवश्यकता है, जिसमें सरकार रचनात्मक आलोचना का स्वागत करे और विपक्ष के बाधा डालने वाली रणनीति से दूर रहे।
  • संसदीय प्रतीकों से प्रेरणा: महत्वाकांक्षी नेताओं को अटल बिहारी वाजपेयी और हिरेन मुखर्जी जैसे दिग्गज नेतृत्वकर्ताओं का अनुकरण करना चाहिए, जिनकी शालीनता और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के प्रति समर्पण ने विधायी आचरण के लिए उच्च मानक स्थापित किए।
  • प्रक्रियात्मक तंत्र को मजबूत करना: अनियंत्रित व्यवहार के लिए कठोर दंड और संसदीय प्रक्रियाओं पर अनिवार्य प्रशिक्षण जैसे उपाय शिष्टाचार और दक्षता को स्थापित करने में मदद कर सकते हैं।

निष्कर्ष:

संसदीय मानकों में गिरावट सभी राजनीतिक शक्तियों के लिए अपने मतभेदों से ऊपर उठने और अधिक समावेशी और उत्तरदायी शासन ढाँचे की दिशा में काम करने के लिए एक चेतावनी है। रचनात्मक संवाद और नैतिक व्यवहार के लिए सामूहिक रूप से प्रतिबद्ध होकर, राजनीतिक दल भारतीय लोकतंत्र की स्वतंत्रता को बनाए रख सकते हैं और भविष्य की पीढ़ियों के लिए इसकी नींव को मजबूत कर सकते हैं।

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: “प्रभावी शासन के लिए एक कार्यशील संसद एक पूर्वापेक्षा है।” इस कथन के आलोक में, भारतीय लोकतंत्र में जवाबदेहिता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने में संसदीय बहस की भूमिका पर चर्चा कीजिए।

(10 अंक, 150 शब्द) 

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