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यदि ट्रम्प के नेतृत्व वाला अमेरिका रूस-चीन के गठबंधन को तोड़ता है, तो सबसे पहले किसे समस्या होगी ?

Lokesh Pal December 12, 2024 05:15 32 0

संदर्भ: 

ट्रम्प के नेतृत्व वाले प्रशासन के तहत एक मजबूत अमेरिका के संभावित भू- राजनीतिक परिणाम होंगे, जिसमें इस बात पर विशेष ध्यान दिया जाएगा कि अमेरिका रूस और चीन के बीच मतभेदों का फायदा उठाकर उनके रणनीतिक गठबंधन को कमजोर कैसे कर सकता है। 

रूस-चीन संबंध

  • सीमा रहित गठबंधन: मास्को और बीजिंग के बीच “सीमा रहित गठबंधन” के गठन की आधिकारिक घोषणा राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और शी जिनपिंग द्वारा फरवरी 2022 में रूस के यूक्रेन पर आक्रमण से ठीक पहले की गई थी।
  • विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग: यह गठबंधन सुरक्षा, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों में रणनीतिक सहयोग के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है, जिसमें सहयोग पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
  • गठबंधन की नींव: 2000 के दशक की शुरुआत से रूस और चीन के मध्य रणनीतिक संबंध मजबूत हो रहे हैं, लेकिन 2022 की घोषणा ने संबंधों को नई ऊंचाइयों पर पहुँचा दिया है।
  • 2008 के संकट के बाद मित्रता: दोनों नेता अमेरिका के नेतृत्व वाली विश्व व्यवस्था के पतन में विश्वास करते हैं, विशेष रूप से 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से।
  • शी जिनपिंग की टिप्पणी: शी ने इस बात की पुष्टि कि है कि चीन और रूस ऐसे परिवर्तन चाहते हैं जो दुनिया ने 100 वर्षों में नहीं देखा है।
    • अर्थ: वह विश्व व्यवस्था में बदलाव की बात कर रहे थे, जिस पर पहले अमेरिका का प्रभुत्व था, और अब चीन और रूस का प्रभुत्व होगा।
  • वैश्विक दक्षिण पर ध्यान: ब्रिक्स में बढ़ती वैश्विक रुचि और वैश्विक दक्षिण के कथित उदय ने अमेरिकी प्रभुत्व से दूर जाने की दिशा में बदलाव की पुष्टि की है ।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि : रूस और चीन के बदलते गठबंधन का प्रभाव 

  • ऐतिहासिक रूप से, रूस और चीन के संबंध काफी उतार – चढाव भरे रहे हैं।
  • वर्ष 1950 के दशक में वे दोनों ही देश अमेरिकी साम्राज्यवाद के विरुद्ध वैचारिक सहयोगी रहे थे, लेकिन वर्ष 1970 के दशक तक दोनों ने एक-दूसरे पर संबंधों को कमजोर करने के आरोप लगाते हुए अमेरिका के साथ अलग-अलग समझौते करने का प्रयास किया है ।
  • वर्ष 1990 के दशक के अंत में, उन्होंने वाशिंगटन का सामना करने के लिए अपनी साझेदारी को फिर से बढाने का प्रयास किया है ।
  • बदलते गठबंधनों की यह ऐतिहासिक पृष्ठभूमि यह प्रश्न उठाता है कि क्या वर्तमान मास्को-बीजिंग गठबंधन ज़ारी रह सकता है  अथवा एक नेता दूसरे के साथ संबंधों के विषय में प्रभावी नहीं रह सकते ?

मित्रभेदम: 

  • पंचतंत्र का प्राचीन ग्रंथ “मित्रभेदम” शासकों के बीच संबंधों में मित्रता, विश्वास और विश्वासघात की जटिलताओं का पता लगाता है।

मुख्य बिंदु : 

  • अमेरिकी अर्थव्यवस्था का लचीलापन: अमेरिकी अर्थव्यवस्था ने उल्लेखनीय लचीलापन प्रदर्शित किया है, तथा यह विकास और तकनीकी नवाचार में यूरोपीय संघ और चीन दोनों से आगे निकल गया है।
    • अमेरिका लगातार निवेश को आकर्षित कर रहा है, जबकि यूरोप घटती जनसंख्या, उच्च बेरोजगारी और धीमी आर्थिक वृद्धि जैसी संरचनात्मक चुनौतियों से जूझ रहा है। 
    • इस बीच, जनसांख्यिकीय परिवर्तन, कम लागत वाले श्रम की कमी, बढ़ते कर्ज और ट्रम्प के सत्ता में आने के बाद व्यापार तनाव के कारण चीन की अर्थव्यवस्था धीमी हो रही है।
  • अमेरिकी अर्थव्यवस्था का भविष्य: 2024 के अनुमानों के अनुसार अमेरिकी जीडीपी तकरीबन 29 ट्रिलियन डॉलर होगी, जबकि चीन की 19 ट्रिलियन डॉलर और यूरोजोन की 16 ट्रिलियन डॉलर होगी , तथा रूस की अर्थव्यवस्था 2.5 ट्रिलियन डॉलर पर काफी पीछे रहेगी।

यूरोज़ोन, जिसे आधिकारिक तौर पर यूरो क्षेत्र कहा जाता है, 27 यूरोपीय संघ के सदस्य देशों में से 20 के समूह को संदर्भित करता है जो यूरो (€) को अपनी आधिकारिक मुद्रा के रूप में उपयोग करते हैं।

  • वैश्विक व्यवस्था में अमेरिका की स्थिति मजबूत: संयुक्त राज्य अमेरिका की आर्थिक मजबूती से पता चलता है कि वैश्विक व्यवस्था में उसकी स्थिति उतनी अनिश्चित नहीं है जितनी पहले सोची गई थी।

डोनाल्ड ट्रम्प के अधीन अपेक्षित अमेरिकी विदेश नीति:

  • डोनाल्ड ट्रम्प की वापसी: ट्रम्प प्रशासन से अमेरिका और रूस के बीच तनाव कम होने और बेहतर संबंध होने की उम्मीद है।
    • उनके प्रशासन से यह अपेक्षा की जाती है कि वह उत्तर-पश्चिमी विश्व व्यवस्था के लिए चीन-रूस की महत्वाकांक्षाओं को चुनौती देने में सशक्त रुख अपनाएगा।
  • चीन-रूस लक्ष्यों के लिए चुनौती: ट्रम्प ने स्वयं रूस और चीन को “असंबद्ध” करने के विचार पर चर्चा की है, तथा दोनों पड़ोसी शक्तियों के बीच प्राकृतिक विरोधाभासों की ओर इशारा किया है।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार पद के लिए उनके नामित माइक वाल्ट्ज ने इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए रणनीतियाँ प्रस्तावित की हैं।
  • क्षेत्रीय पुनर्मूल्यांकन: कुछ रिपब्लिकन यह मानते हैं कि अमेरिका को यूरोप, मध्य पूर्व और एशिया में अपनी प्राथमिकताओं के पुनर्मूल्यांकन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, क्योंकि मॉस्को-बीजिंग गठबंधन एक चुनौती पेश करता है, लेकिन उनके समन्वित प्रयासों से अपेक्षित परिणाम नहीं मिले हैं।
  • राष्ट्रीय हित पर ध्यान: अमेरिका से अपेक्षा की जाती है कि वह गठबंधन-आधारित रणनीतियों की तुलना में राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देगा।
  • रूस-यूक्रेन समझौता: राष्ट्रपति पुतिन, ट्रम्प द्वारा प्रस्तावित पश्चिम के साथ एक उचित समझौते के लिए अधिक खुले हो सकते हैं, क्योंकि उन्हें अपनी स्थिति का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।
    • रिपब्लिकन विदेश नीति प्रतिष्ठान के भीतर, यूक्रेन में मूल्यवान सैन्य संसाधनों को खर्च करने के बजाय एशिया में चीन का मुकाबला करने पर ध्यान केंद्रित करने की माँग बढ़ रही है।
  • फूट डालो और राज करो की रणनीति: ट्रम्प के नेतृत्व में एक मजबूत अमेरिका, रूस और चीन के बीच विभाजन का फायदा उठाने के लिए प्रत्येक देश के साथ अलग-अलग समझौते कर सकता है।
    • मास्को और बीजिंग के बीच बढ़ते आर्थिक संबंधों और साझा भू-राजनीतिक हितों के कारण, आलोचकों को इस रणनीति की सफलता पर संदेह है।
    • अमेरिका विरोधी बयानबाजी के बावजूद, पुतिन और शी दोनों ही पश्चिम के खिलाफ एकीकृत रुख बनाए रखने की अपेक्षा वाशिंगटन के साथ द्विपक्षीय संबंधों को प्राथमिकता दे सकते हैं।

रूस, चीन और ईरान के समक्ष चुनौतियाँ

रूस:

  • यूक्रेन में रूस का “विशेष सैन्य अभियान”, जो अब अपने तीसरे वर्ष में प्रवेश कर रहा है, आरंभिक अनुमान से कहीं अधिक महंगा साबित हुआ है।
  • पूर्वी यूक्रेन में हाल ही में कुछ क्षेत्रीय लाभ के बावजूद, रूस को कार्मिकों और संसाधनों के क्षेत्र में महत्वपूर्ण क्षति हुई है, तथा यूरोप में उसका राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव कम हो गया है।
  • इन असफलताओं को देखते हुए, यह उम्मीद करना अवास्तविक लगता है कि रूस इस संघर्ष से और अधिक मजबूत होकर उभरेगा।

ईरान:

  • मध्य पूर्व में, चीन-रूस गठबंधन में एक प्रमुख भागीदार ईरान को भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। गाजा और लेबनान में ईरानी सहयोगियों को नुकसान उठाना पड़ा है, और बशर अल-असद ने मास्को में शरण ली है।
  • इज़राइल ने विशेष रूप से लेबनान के साथ समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद, ईरान की “प्रतिरोध की धुरी” का प्रभावी ढंग से मुकाबला किया है ।
  • ईरान और रूस की मदद से सत्ता बरकरार रखने वाले सीरियाई बशर अल-असद भी देश छोड़कर भाग गए हैं।
  • यह उभरती गतिशीलता क्षेत्र में अमेरिका विरोधी मोर्चे को कमजोर कर रही है, तथा चीन-रूस रणनीति को और जटिल बना रही है।

एशिया में चीन की असफलताएँ: अमेरिकी प्रतिक्रिया:

  • संयुक्त राज्य अमेरिका ने पुराने गठबंधनों को पुनर्जीवित किया है, नई साझेदारियाँ स्थापित की हैं और चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए क्वाड और AUKUS जैसी संस्थाएं बनाई हैं।
  • चूँकि ट्रम्प चीन पर आर्थिक दबाव बढ़ाने की तैयारी कर रहे हैं, इसलिए बीजिंग की धीमी होती अर्थव्यवस्था और आंतरिक चुनौतियाँ उसे अपने पड़ोसि देशों और वाशिंगटन के प्रति अपने दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर करेंगी।
  • अमेरिका के साथ द्विपक्षीय वार्ता करना हमेशा से चीन की रणनीति का हिस्सा रहा है, और अब यह एक नई तात्कालिकता ग्रहण कर सकता है।

भारत की भूमिका:

  • भारत का लाभ: भारत यूरोपीय सुरक्षा मुद्दों पर मास्को और वाशिंगटन के बीच सामंजस्य का स्वागत करेगा, जिससे “बहुध्रुवीय एशिया” को बढ़ावा मिलेगा।
    • हालाँकि, भारत को अमेरिका-चीन समझौते में कोई दिलचस्पी नहीं है, जो “द्विध्रुवीय एशिया” की ओर ले जाएगा।
  • संबंधों में संतुलन: भारत की स्थिति इसकी व्यापक विदेश नीति रणनीति का प्रतिबिंब है, जो प्रमुख वैश्विक शक्तियों के साथ संबंधों में संतुलन बनाए रखते हुए रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने का प्रयास करती है।

निष्कर्ष:

निष्कर्षतः भू-राजनीतिक परिदृश्य के निरंतर विकसित होने के साथ ही रूस-चीन गठबंधन का भविष्य भी अनिश्चित बना हुआ है। ट्रम्प मॉस्को और बीजिंग के मध्य गठबंधन को सफलतापूर्वक विभाजित कर पाते हैं या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि वे आर्थिक और रणनीतिक हितों के जटिल जाल को पार करने में कितने सक्षम हैं और कितने नहीं, जो इन दोनों देशों को एकजुट करता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: एशिया में अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता के क्षेत्रीय स्थिरता और भारत की रणनीतिक स्वायत्तता पर पड़ने वाले प्रभावों का परिक्षण कीजिए।

(10 अंक, 150 शब्द)

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