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मृदा लवणता पर FAO की रिपोर्ट

Lokesh Pal December 17, 2024 02:19 40 0

संदर्भ

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) की रिपोर्ट, जिसका शीर्षक है ‘लवण प्रभावित मृदा की वैश्विक स्थिति’ (Global Status of Salt-Affected Soils), के अनुसार, लगभग 1.4 बिलियन हेक्टेयर भूमि या वैश्विक भूमि क्षेत्र का 10.7 प्रतिशत, लवणता से प्रभावित है।

लवण प्रभावित मृदा के संबंध में

  • लवण प्रभावित मृदा, मृदा का एक विशिष्ट समूह है, जिसमें घुलनशील लवण (लवणीय मृदा) या विनिमय योग्य सोडियम (सोडिक मृदा) की उच्च मात्रा होती है, जो अधिकांश पौधों की वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।

लवण प्रभावित मृदा के प्रकार

  • लवणीय मृदा: लवणीय मृदा को ऐसी मृदा के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसमें क्लोराइड, सल्फेट और कार्बोनेट जैसे जल में घुलनशील लवण जमा हो जाते हैं। लवणीय मृदा शुष्क और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में अधिक पाई जाती है।
    • मृदा की संरचना स्थिर होती है।
    • जल निकासी में सुधार, लवणों का निक्षालन लवणीय मृदा के उपचार के लिए कुछ समाधान हैं।
  • सोडिक/क्षारीय मृदा: सोडिक मृदा तब बनती है, जब सोडियम आयन अन्य धनायनों की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक होते हैं, जिससे मृदा की संरचना प्रभावित होती है।
    • सोडिक मृदा अर्द्ध-शुष्क और उप-आर्द्र क्षेत्रों में हावी होती है।
    • मृदा की संरचना अस्थिर होती है।
    • जिप्सम मिलाने जैसे मृदा संशोधन से सोडिक मृदा की संरचना में सुधार हो सकता है।

मृदा लवणीकरण (Soil Salinisation)

  • मृदा लवणीकरण उस प्रक्रिया को कहते हैं, जिसके द्वारा घुलनशील लवण मृदा में जमा हो जाते हैं।
  • मृदा लवणीकरण वह प्रक्रिया है, जिसमें सोडियम आयन मृदा के कणों पर जमा हो जाते हैं, जिससे कैल्शियम एवं मैग्नीशियम जैसे आवश्यक पोषक तत्त्व विस्थापित हो जाते हैं।

‘लवण प्रभावित मृदाओं की वैश्विक स्थिति रिपोर्ट’ के बारे में

  • ‘लवण प्रभावित मृदा की वैश्विक स्थिति’ FAO द्वारा 50 वर्षों में लवण प्रभावित मृदा का पहला प्रमुख वैश्विक मूल्यांकन है।
  • यह रिपोर्ट बैंकॉक में आयोजित ‘इंटरनेशनल साइल एंड वाटर फोरम 2024’ में लॉन्च की गई।
  • यह कार्यक्रम FAO और थाईलैंड के कृषि एवं सहकारिता मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था।

लवण प्रभावित मृदा पर FAO की रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष

  • मृदा लवणता का प्रभाव: जलवायु परिवर्तन और खराब भूमि प्रबंधन के कारण अतिरिक्त 1 बिलियन हेक्टेयर भूमि खतरे में है। 
    • लवणता से प्रभावित मृदा से फसलों की पैदावार (जैसे- चावल एवं फलियाँ) 70% तक कम हो सकती है, जिससे वैश्विक खाद्य सुरक्षा को खतरा हो सकता है।
  • सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र वाले देश: ऑस्ट्रेलिया (357 मिलियन हेक्टेयर), अर्जेंटीना (153 मिलियन हेक्टेयर), कजाखस्तान (94 मिलियन हेक्टेयर), रूस (77 मिलियन हेक्टेयर) और अमेरिका (73.4 मिलियन हेक्टेयर)।
  • सबसे अधिक आनुपातिक प्रभाव वाले देश: ओमान (कुल भूमि का 93.5%), उज्बेकिस्तान (92.9%) और जॉर्डन (90.6%)।
  • सिंचित और वर्षा आधारित फसल भूमि
    • FAO के लवण प्रभावित मृदाओं के वैश्विक मानचित्र से पता चलता है कि 10% सिंचित कृषि भूमि और 10% वर्षा आधारित कृषि भूमि वर्तमान में लवणता से प्रभावित है। इससे वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया है।
  • भारत में लवण प्रभावित मृदा की स्थिति
    • विस्तार: भारत में 6.72 मिलियन हेक्टेयर लवण प्रभावित मृदा क्षेत्र है। (कुल भूमि क्षेत्र का 2.1%)
      • लवणीय मृदा (Saline Soils): 2.95 मिलियन हेक्टेयर।
      • सोडिक मृदा (Sodic Soils): 3.77 मिलियन हेक्टेयर।
    • सबसे अधिक प्रभावित राज्य: गुजरात, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और राजस्थान में देश की लवण प्रभावित मृदा का लगभग 75 प्रतिशत हिस्सा है।
    • कृषि पर प्रभाव
      • भारत की 20% कृषि भूमि प्रभावित हुई है, विशेषकर जैसलमेर, गुजरात तटरेखा और गंगा बेसिन में।
      • भारत में लवणीय और क्षारीय मृदा पर उगाई जाने वाली सबसे अधिक फसलें चावल, कपास, जौ, ज्वार और बाजरा थीं।
      • देश की लगभग 17 प्रतिशत सिंचित कृषि में खारे सिंचाई जल के उपयोग के परिणामस्वरूप द्वितीयक लवणीकरण की स्थिति उत्पन्न हो गई।
  • मृदा लवणीकरण के कारण
    • प्राकृतिक कारण: जलवायु परिवर्तन से प्रेरित शुष्कता और मीठे जल की कमी।
      • समुद्र जल स्तर में वृद्धि और पिघलती हुई पर्माफ्रॉस्ट (Permafrost)।
      • कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचित मृदा में भी जल के वाष्पीकरण के माध्यम से सतह परतों में लवणों के संचय के कारण लवणता एवं क्षारीयता विकसित हो जाती है।
    • मानव-प्रेरित कारक: खराब गुणवत्ता वाला सिंचाई जल, अपर्याप्त जल निकासी और उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग।
      1. वनों की कटाई और गहरी जड़ों वाली वनस्पतियों को हटाना।
      2. जलभृतों का अत्यधिक दोहन और खनन गतिविधियाँ।
  • लवण प्रभावित मृदा के प्रबंधन के लिए रणनीतियाँ: रिपोर्ट में बढ़ती खाद्य माँगों को पूरा करने के लिए लवण प्रभावित मृदा के सतत् प्रबंधन के लिए कई रणनीतियाँ प्रस्तुत की गईं। ये हैं:-
    • शमन (Mitigation): मल्चिंग, अस्थिर सामग्री की परतों का उपयोग, जल निकासी प्रणाली स्थापित करना और फसल चक्र में सुधार करना।
    • अनुकूलन (Adaptation): लवण सहिष्णु पौधों का प्रजनन जो मैंग्रोव दलदलों, उष्णकटिबंधीय रेत और चट्टानी तटरेखाओं और यहाँ तक ​​कि लवणीय रेगिस्तानों में पनपते हैं।
    • बायोरेमेडिएशन (Bioremediation): पर्यावरण से खतरनाक पदार्थों को हटाने, नष्ट करने या पृथक करने के लिए बैक्टीरिया, कवक, पौधों या जानवरों का उपयोग करना।
  • नीति अनुशंसाएँ
    • प्राकृतिक लवणीय पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिए कानूनी ढाँचा विकसित करना। 
    • लवणीकरण के जोखिम वाले सिंचाई क्षेत्रों में सतत् मृदा प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देना।

अंतरराष्ट्रीय प्रयास

  • ‘ग्लोबल सॉइल डॉक्टर्स प्रोग्राम’: यह FAO द्वारा संचालित एक कार्यक्रम है।
    • यह किसान-से-किसान प्रशिक्षण पहल है, जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय सरकारों और हितधारकों को उनके ग्रामीण समुदायों की आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता करते हुए सतत् मृदा प्रबंधन पर किसानों की क्षमता का निर्माण करना है।
    • ‘मृदा चिकित्सक’ के रूप में पहचाने जाने वाले प्रशिक्षित व्यक्तियों को उनके स्थानीय समुदाय में मृदा का निदान एवं उपचार करने के लिए अन्य किसानों को सहायता एवं शिक्षा देने के लिए चुना जाता है।
  • वैश्विक मृदा भागीदारी (Global Soil Partnerships-GSP): इसकी स्थापना वर्ष 2012 में मृदा से जुड़े सभी हितधारकों के बीच एक मजबूत पारस्परिक साझेदारी विकसित करने के तंत्र के रूप में की गई थी।

भारत में मृदा लवणता से निपटने के लिए किए गए उपाय

  • मृदा स्वास्थ्य कार्ड (Soil Health Card-SHC) किसी विशेष भूमि जोत की एक मुद्रित रिपोर्ट है, जो विभिन्न फसलों के लिए उपयोग किए जाने वाले पोषक तत्त्वों की मात्रा की सिफारिश के साथ-साथ 12 मृदा मापदंडों की जानकारी देती है।
    • सरकार प्रत्येक 3 वर्ष में एक बार किसानों को व्यक्तिगत मृदा कार्ड जारी करती है।
    • खेत की मृदा के नमूनों का pH, विद्युत चालकता (EC), कार्बनिक कार्बन, नाइट्रोजन (N), फॉस्फोरस (P), पोटेशियम (K), सल्फर (S), जिंक (Zn), बोरॉन (B), आयरन (Fe), मैंगनीज (Mn), कॉपर (Cu) के लिए परीक्षण किया जाता है।
    • कार्ड में किसान का विवरण, मृदा के नमूने का विवरण, मृदा परीक्षण के परिणाम और सामान्य सिफारिशें प्रदर्शित होती हैं।
  • डिजिटल कृषि को बढ़ावा देना: डिजिटल कृषि से तात्पर्य उत्पादकता, स्थिरता और संसाधन प्रबंधन को अनुकूलित करने के लिए खेती के तरीकों में ‘इंटरनेट ऑफ थिंग्स’ (IoT), आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), बिग डेटा और मशीन लर्निंग जैसी उन्नत तकनीकों के एकीकरण से है।
    • उदाहरण: स्मार्ट सिंचाई प्रणाली मृदा की लवणता के स्तर के आधार पर जल के उपयोग को अनुकूलित करने के लिए सेंसर और मौसम संबंधी डेटा को एकीकृत करती है, जिससे मृदा की लवणता को प्रबंधित करते हुए अधिक सिंचाई को रोका जा सकता है और जल का संरक्षण किया जा सकता है।

आगे की राह

  • बायोड्रेनेज (Biodrainage): यह एक ऐसी तकनीक है, जिसका उपयोग जलभराव वाले क्षेत्रों में भूजल स्तर को कम करने के लिए किया जाता है, इसके लिए पौधों की ऐसी प्रजातियाँ लगाई जाती हैं, जो वाष्पोत्सर्जन के माध्यम से अतिरिक्त जल को हटाती हैं।
    • यह निवारक विधि नहर नियंत्रण क्षेत्रों में लवणता एवं जलभराव की समस्याओं से बचने में मदद करती है, विशेषकर जब मृदा अभी भी लवणीकरण की प्रक्रिया में हो।
    • हालाँकि, यदि मृदा पहले से ही लवणीकृत है, तो इसका दायरा सीमित है।
    • बायोड्रेनेज के लिए आशाजनक प्रजातियों में यूकेलिप्टस, पॉपुलस (Populus), कैसुरीना (Casuarina) और बैम्बुसा (Bambusa) शामिल हैं।
  • जैव लवणीय कृषि (Biosaline Agriculture): इसमें लवणीय मृदा को प्रबंधित करने और क्षरित भूमि को पुनः प्राप्त करने के लिए लवण सहिष्णु पौधों का उपयोग करना शामिल है।
    • उदाहरण: लेप्टोक्लोआ फुस्का (Leptochloa Fusca), प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा (Prosopis Juliflora) और अकेशिया निलोटिका (Acacia Nilotica) का रोपण।
  • भूजल गुणवत्ता मानचित्र का अद्यतन: मौजूदा भूजल गुणवत्ता मानचित्र को वर्तमान स्थितियों को दर्शाने के लिए अद्यतन करने की आवश्यकता है, विशेष रूप से अच्छी गुणवत्ता वाले क्षेत्रों में अत्यधिक पंपिंग एवं खराब गुणवत्ता वाले क्षेत्रों से सीमित निष्कर्षण के संबंध में।
  • पुनर्प्राप्त क्षेत्रों में उत्पादकता को बनाए रखना: संरक्षण के माध्यम से हरित खाद/जैविक खाद के उपयोग को बढ़ाने सहित कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

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