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महत्त्वपूर्ण खनिज और भारत की खनिज कूटनीति रणनीति

Lokesh Pal December 17, 2024 03:28 42 0

संदर्भ

चूँकि भारत अपनी विनिर्माण और तकनीकी क्षमता का विस्तार करना चाहता है, इसलिए इस महत्त्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए महत्त्वपूर्ण खनिज अत्यधिक प्रासंगिक हो जाएँगे।

  • भारत की खनिज सुरक्षा चुनौती से निपटने के लिए, जिसका उद्देश्य इसकी सामरिक भेद्यता को कम करना है, नई दिल्ली ने खनिज कूटनीति में संलग्न होने का प्रयास शुरू कर दिया है।

महत्त्वपूर्ण खनिज

  • परिभाषा: ये वे खनिज हैं, जो आर्थिक विकास एवं राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं, लेकिन इसकी भौगोलिक उपलब्धता की कमी और सीमा के कारण आपूर्ति शृंखला में भेद्यता और व्यवधान के कारण इसकी महत्ता बनी हुई है।

  • प्रमुख महत्त्वपूर्ण खनिज: केंद्रीय खान मंत्रालय द्वारा गठित महत्त्वपूर्ण खनिजों की पहचान समिति की रिपोर्ट में 30 महत्त्वपूर्ण खनिजों की पहचान की गई है।
    • एंटीमनी (Antimony), बेरिलियम (Beryllium), बिस्मथ (Bismuth), कोबाल्ट (Cobalt), कॉपर (Copper), गैलियम (Gallium), जर्मेनियम (Germanium), ग्रेफाइट (Graphite), हेफनियम (Hafnium), इंडियम (Indium), लीथियम (Lithium), मोलिब्डेनम (Molybdenum), नियोबियम (Niobium), निकेल (Nickel), पीजीई (PGE), फॉस्फोरस (Phosphorous), पोटाश (Potash), आरईई (REE), रेनियम (Rhenium), सिलिकॉन (Silicon), स्ट्रांशियम (Strontium), टैंटलम (Tantalum), टेल्यूरियम (Tellurium), टिन (Tin), टाइटेनियम (Titanium), टंगस्टन (Tungsten), वैनेडियम (Vanadium), जिरकोनियम (Zirconium), सेलेनियम (Selenium) और कैडमियम (Cadmium)।

  • शीर्ष उत्पादक: अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार, महत्त्वपूर्ण खनिजों के प्रमुख उत्पादक चीन, कांगो, चिली, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया हैं।
    • प्रसंस्करण के मामले में चीन का वैश्विक प्रभुत्व है।
  • उपयोग 
    • उन्नत इलेक्ट्रॉनिक्स: वे सेमीकंडक्टर निर्माण और उच्च-स्तरीय इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
    • स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी: ये खनिज कई स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों, जैसे- पवन टर्बाइन और सौर पैनलों से लेकर इलेक्ट्रिक वाहनों तक में एक आवश्यक घटक हैं,।
    • परिवहन और संचार: इनका उपयोग लड़ाकू विमान, ड्रोन और रेडियो सेट, विमान निर्माण में भी किया जाता है तथा यह मुख्य रूप से इलेक्ट्रिक वाहनों में परिवर्तन को शक्ति प्रदान करता है।
    • विविध क्षेत्र: मोबाइल फोन, टैबलेट, इलेक्ट्रिक वाहन, सौर पैनल, पवन टर्बाइन, फाइबर ऑप्टिक केबल और रक्षा और चिकित्सा अनुप्रयोगों जैसे विविध क्षेत्रों में उन्नत प्रौद्योगिकियों का निर्माण करना।

    • बैटरी और भंडारण प्रौद्योगिकी: लीथियम-आयन जैसी बैटरी प्रौद्योगिकी में प्रगति के संदर्भ में भंडारण प्रौद्योगिकी विकसित करने के लिए ये खनिज महत्त्वपूर्ण हैं।
  • मूल्य शृंखला के घटक
    • भू-विज्ञान और अन्वेषण
    • अपस्ट्रीम: खनन और निष्कर्षण
    • मिडस्ट्रीम: प्रसंस्करण, शोधन और धातुकर्म
    • डाउनस्ट्रीम: घटक विनिर्माण और स्वच्छ डिजिटल उन्नत प्रौद्योगिकी उत्पादन।
      • उदाहरण: शून्य-उत्सर्जन वाहन (ZEV) विनिर्माण, अर्द्धचालक, चिप्स आदि
    • सामग्री पुनर्प्राप्ति और पुनर्चक्रण

महत्त्वपूर्ण खनिजों का महत्त्व

  • हरित ऊर्जा संक्रमण में महत्त्वपूर्ण भूमिका: बैटरी (लीथियम, कोबाल्ट), सौर पैनल (सिलिकॉन, सिल्वर) और पवन टर्बाइन (दुर्लभ पृथ्वी तत्त्व) जैसी प्रौद्योगिकियों के लिए आवश्यक।
    • अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, वर्ष 2023 में लीथियम की माँग में 30% की वृद्धि हुई, जबकि निकेल, कोबाल्ट और ग्रेफाइट की माँग में 8-15% की वृद्धि हुई।
  • वैश्विक जलवायु लक्ष्य: नेट-जीरो उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने और वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए महत्त्वपूर्ण।
    • अनुमान: वर्ष 2040 तक, माँग में वृद्धि होने की उम्मीद है:
      • लीथियम (8x), ग्रेफाइट (4x), कोबाल्ट, निकेल और दुर्लभ पृथ्वी (2x)।
  • आर्थिक और सामरिक महत्त्व: महत्त्वपूर्ण खनिजों का कुल वैश्विक मूल्य वर्ष 2023 में 325 बिलियन डॉलर अनुमानित है।
    • रक्षा उपकरण, EV और सेमीकंडक्टर के निर्माण के लिए महत्त्वपूर्ण।

भारत में महत्त्वपूर्ण खनिजों के भंडार

  • ग्रेफाइट: भारत में 9 मिलियन टन भंडार है, जिसमें 12 खदानों से उत्पादन की सूचना है।
    • वर्ष 2021-22 में तमिलनाडु भारत में ग्रेफाइट का अग्रणी उत्पादक था, जिसकी कुल उत्पादन में 63% हिस्सेदारी थी। ओडिशा दूसरा प्रमुख उत्पादक था।
    • अरुणाचल प्रदेश में भारत में सबसे अधिक ग्रेफाइट भंडार है, जो देश के कुल संसाधनों का 43% है।
  • लीथियम: भारत का पहला लीथियम भंडार वर्ष 1999 में जम्मू और कश्मीर में खोजा गया था।
    • भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) ने राजस्थान के डेगाना में भी लीथियम भंडार की खोज की, जो जम्मू और कश्मीर के भंडार से बड़ा माना जाता है।
  • इल्मेनाइट (टाइटेनियम): भारत में वैश्विक भंडार का 11% हिस्सा है, फिर भी यह वार्षिक रूप से 1 बिलियन डॉलर का ‘टाइटेनियम डाइऑक्साइड’ आयात करता है।
    • ओडिशा भारत में इल्मेनाइट का अग्रणी उत्पादक है, जो वर्ष 2021-22 में देश के कुल उत्पादन में 60% का योगदान देता है।
    • केरल और तमिलनाडु क्रमशः दूसरे और तीसरे सबसे बड़े उत्पादक हैं।
  • फॉस्फोरस: राजस्थान और मध्य प्रदेश भारत के दो राज्य हैं, जो सर्वाधिक फॉस्फेट का उत्पादन करते हैं:
    • राजस्थान: भारत के कुल रॉक फॉस्फेट भंडार और संसाधनों का 31%।
    • मध्य प्रदेश: भारत के कुल रॉक फॉस्फेट भंडार और संसाधनों का 19%।
  • पोटाश: राजस्थान भारत में पोटाश का सबसे अधिकउत्पादन करने वाला राज्य है, जो देश के कुल पोटाश संसाधनों में 91% का योगदान देता है।
    • राज्य में अनुमानित 2.4 बिलियन टन पोटाश भंडार है, जो भारत के कुल अनुमानित भंडार का लगभग 90% है।
    • अन्य प्रमुख भंडार मध्य प्रदेश (पन्ना जिला) और उत्तर प्रदेश (सोनभद्र और चित्रकूट जिले) में स्थित हैं।
  • दुर्लभ मृदा तत्त्व (Rare Earth Elements-REE): भारत में समुद्र तट की रेत में 11.93 मिलियन टन मोनाजाइट का अनुमान है, जिसमें 55-65% दुर्लभ मृदा ऑक्साइड हैं।
    • आंध्र प्रदेश भारत का ऐसा राज्य है, जहाँ दुर्लभ मृदा तत्त्वों (REEs) के सबसे अधिक संसाधन हैं, जहाँ 3.69 मिलियन टन दुर्लभ मृदा तत्त्व पाए जाते हैं।
    • REE संसाधनों वाले अन्य राज्यों में शामिल हैं: केरल, तमिलनाडु, ओडिशा।
  • प्लैटिनम समूह तत्त्व (Platinum Group Elements-PGE): लगभग 15.7 टन PGE ओडिशा (नीलगिरि, बौला-नुआसाही, सुकिंदा) और कर्नाटक (हनुमलपुरा) में स्थित हैं।

दुर्लभ मृदा तत्त्व

  • दुर्लभ मृदा तत्त्व (RE) कई उच्च तकनीक उपकरणों का एक अनिवार्य हिस्सा हैं और इसमें 17 तत्त्व शामिल हैं, जिन्हें हल्के RE तत्त्व (LREE) और भारी RE तत्त्व (HREE) के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिनमें शामिल हैं:-
  • 15 लैंथेनाइड्स (Lanthanides): आवर्त सारणी में परमाणु संख्या 57 (लैंटानम) से 71 तक।
  • स्कैंडियम (Scandium) (परमाणु संख्या 21)।
  • यट्रियम (Yttrium) (परमाणु संख्या 39)।
  • अनुप्रयोग: कंप्यूटर हार्ड ड्राइव, सेलुलर टेलीफोन, फ्लैट स्क्रीन मॉनिटर और टेलीविजन, तथा इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहन।
  • उपलब्धता: भारत में दुर्लभ मृदा तत्त्वों का दुनिया का पाँचवाँ सबसे बड़ा भंडार मौजूद है, जो ऑस्ट्रेलिया से लगभग दोगुना है।
    • भारत में उपलब्ध LREEs: लैंथेनम, सेरियम, नियोडिमियम, प्रेजोडिमियम और सैमरियम, आदि।
    • भारत में उपलब्ध नहीं HREEs: डिस्प्रोसियम, टर्बियम और यूरोपियम भारतीय भंडारों में निष्कर्षण योग्य मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं।

महत्त्वपूर्ण खनिजों की आयात निर्भरता

  • लीथियम: लीथियम के लिए भारत 100% आयात पर निर्भर है, जिसे मुख्य रूप से चिली, रूस और चीन से प्राप्त किया जाता है।
  • कोबाल्ट: पूरी तरह से आयातित, जिसका मुख्य स्रोत चीन, बेल्जियम और जापान हैं।
  • निकेल: स्वीडन, चीन और इंडोनेशिया जैसे देशों से 100% आयातित।
  • वैनेडियम: पूरी तरह से आयातित, मुख्य रूप से कुवैत, जर्मनी और दक्षिण अफ्रीका से।
  • जर्मेनियम: पूरी तरह से चीन, दक्षिण अफ्रीका और फ्रांस से आयातित।
  • रेनियम: भारत रूस, यूके और चीन से आयात पर निर्भर है।
  • बेरिलियम और टैंटलम: पूरी तरह से आयातित, जिसका कोई घरेलू भंडार नहीं बताया गया है।
  • सिलिकॉन: भारत सीमित मात्रा में उत्पादन करता है और चीन, मलेशिया एवं नॉर्वे से आयात पर अत्यधिक निर्भर करता है।

खनिज विदेश इंडिया लिमिटेड (KABIL)  

  • KABIL का अर्थ है खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड, यह एक संयुक्त उद्यम कंपनी है, जिसका गठन भारत को महत्त्वपूर्ण खनिजों की विश्वसनीय आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए किया गया था।
  • KABIL को वर्ष 2019 में कंपनी अधिनियम 2013 के अंतर्गत शामिल किया गया था।
  • यह तीन सरकारी उद्यमों के बीच एक संयुक्त उद्यम है:
    • नेशनल एल्युमीनियम कंपनी लिमिटेड (NALCO), हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड (HCL), और मिनरल एक्सप्लोरेशन एंड कंसल्टेंसी लिमिटेड (MECL)।

महत्त्वपूर्ण खनिजों के उत्पादन के लिए सरकारी पहल

  • राष्ट्रीय महत्त्वपूर्ण खनिज मिशन (2024): केंद्रीय बजट 2024-25 में घोषित राष्ट्रीय महत्त्वपूर्ण खनिज मिशन का उद्देश्य अन्वेषण और खनन से लेकर लाभकारीकरण, प्रसंस्करण और जीवन-काल समाप्त होने वाले उत्पादों से पुनर्प्राप्ति तक सभी चरणों में भारत की महत्त्वपूर्ण खनिज मूल्य शृंखला को सुदृढ़ बनाना है।
    • मिशन का लक्ष्य महत्त्वपूर्ण खनिजों की औद्योगिक माँगों को पूरा करने में आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करना है।
    • मिशन घरेलू अन्वेषण को बढ़ावा देने और निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करने पर केंद्रित है।
  • खान एवं खनिज अधिनियम (2023) में संशोधन: सरकार ने महत्त्वपूर्ण खनिज ब्लॉकों की नीलामी की अनुमति देने के लिए खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 में संशोधन किया है। पहली नीलामी नवंबर 2023 में 20 ब्लॉकों के लिए आयोजित की गई थी।
    • इन संशोधनों का उद्देश्य अन्वेषण और खनन में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ाना है।
    • सुव्यवस्थित नीलामी प्रक्रिया और अन्वेषण लाइसेंस की शुरुआत का उद्देश्य गहरे और अप्रयुक्त खनिज भंडारों का दोहन करना है।
  • रिफाइनिंग और प्रसंस्करण क्षमताओं को मजबूत करना: भारत ने ‘डाउनस्ट्रीम’ प्रक्रियाओं के लिए आयात पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए घरेलू रिफाइनिंग और प्रसंस्करण बुनियादी ढाँचे के निर्माण के प्रयास शुरू किए हैं।
    • खान मंत्रालय के विज्ञान और प्रौद्योगिकी कार्यक्रम के अनुसंधान और विकास घटक के अंतर्गत वर्ष 2024 के दौरान, विभिन्न भारतीय संस्थानों और अनुसंधान प्रयोगशालाओं के माध्यम से महत्त्वपूर्ण खनिजों के निष्कर्षण, पुनर्प्राप्ति और पुनर्चक्रण से संबंधित 10 अनुसंधान और विकास परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है।

भारत की खनिज कूटनीति रणनीति

भारत महत्त्वपूर्ण खनिजों को सुरक्षित करने के लिए संसाधन संपन्न देशों के साथ साझेदारी बनाने में सक्रिय रूप से शामिल है।

  • द्विपक्षीय साझेदारियाँ
    • ऑस्ट्रेलिया: मार्च 2022 में, KABIL ने एक महत्त्वपूर्ण खनिज निवेश साझेदारी के लिए ऑस्ट्रेलिया के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए और ऑस्ट्रेलिया-भारत महत्त्वपूर्ण खनिज अनुसंधान केंद्र की स्थापना की।
      • ये पहल लीथियम और कोबाल्ट परियोजनाओं और संधारणीय खनन पर अनुसंधान पर केंद्रित हैं।
    • लैटिन अमेरिका (अर्जेंटीना, चिली, बोलीविया): भारत ने जनवरी 2024 में अर्जेंटीना में एक सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी के साथ पाँच लीथियम ‘ब्राइन ब्लॉक’ के लिए 24 मिलियन डॉलर का लीथियम अन्वेषण समझौता किया।
      • KABIL बोलीविया और चिली में परिसंपत्तियों के अधिग्रहण की सुविधा प्रदान करके खनिज आपूर्ति को सुरक्षित करने पर सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका: भारत अमेरिका के नेतृत्व वाली खनिज सुरक्षा साझेदारी (MSP) के अंतर्गत कोबाल्ट, लीथियम, निकेल और दुर्लभ मृदा तत्त्वों की आपूर्ति शृंखला को बढ़ाने के लिए एक समझौते पर वार्ता कर रहा है।
    • कनाडा और ब्राजील: भारत द्विपक्षीय संबंधों के माध्यम से खनन और महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखलाओं में सहयोग की संभावनाएँ तलाश रहा है।
    • मध्य एशिया के साथ सहयोग: नवंबर 2024 में, भारत और कजाखस्तान ने भारत में टाइटेनियम स्लैग का उत्पादन करने के लिए IREUK टाइटेनियम लिमिटेड नामक एक संयुक्त उद्यम बनाया।
      • भारत ने क्षेत्र के समृद्ध संसाधन आधार का लाभ उठाने के लिए भारत-मध्य ‘एशिया रेयर अर्थ फोरम’ की स्थापना का प्रस्ताव रखा है।
  • बहुपक्षीय साझेदारियाँ
    • खनिज सुरक्षा भागीदारी (MSP): भारत जून 2023 में वैश्विक स्तर पर लचीली एवं जिम्मेदार महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखलाओं को बढ़ावा देने के लिए 14वें सदस्य के रूप में शामिल हुआ।
    • क्वाड और इंडो-पैसिफिक आर्थिक ढाँचा (IPEF): भारत स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों और महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखला लचीलेपन को मजबूत करने के लिए इन रूपरेखाओं में भाग लेता है।
    • G20 और G7: भारत ने इन प्लेटफॉर्मों के माध्यम से महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिए न्यायसंगत और लचीली आपूर्ति शृंखला सुनिश्चित करने वाले सिद्धांतों का सक्रिय रूप से समर्थन किया है।
    • अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी: भारत के खान मंत्रालय ने वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप महत्त्वपूर्ण खनिज क्षेत्र के लिए नीतियों, विनियमों और निवेश रणनीतियों को सुव्यवस्थित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।
  • ग्लोबल साउथ के साथ सहभागिता
    • भारत ने ताँबा और कोबाल्ट जैसे खनिजों की आपूर्ति के लिए जांबिया, कांगो और नामीबिया सहित अफ्रीकी देशों के साथ साझेदारी शुरू की है।
    • ये सहयोग नैतिक आपूर्ति, निष्पक्ष व्यवहार और खनिज आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लाने पर जोर देते हैं।

खनिज सुरक्षा साझेदारी (Minerals Security Partnership-MSP) 

  • यह महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखलाओं को मजबूत करने के लिए एक वैश्विक पहल है, जिसे महत्त्वपूर्ण खनिज गठबंधन के रूप में भी जाना जाता है।
  • स्थापना: जून 2022 में टोरंटो, कनाडा में वार्षिक ‘प्रॉस्पेक्टर्स एंड डेवलपर्स एसोसिएशन ऑफ कनाडा’ (PDAC) सम्मेलन में आधिकारिक तौर पर ‘खनिज सुरक्षा साझेदारी(MSP) की घोषणा की गई।
    • यह विश्व का सबसे बड़ा खनन कार्यक्रम है।
  • संस्थापक सदस्य: संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फिनलैंड, फ्राँस, जर्मनी, जापान, कोरिया गणराज्य, स्वीडन, यूनाइटेड किंगडम और यूरोपीय आयोग।
    • भारत जून 2023 में इस पहल में शामिल हुआ।
  • उद्देश्य: मूल्य शृंखला के साथ रणनीतिक परियोजनाओं के लिए लक्षित वित्तीय और कूटनीतिक समर्थन की सुविधा के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से सतत महत्त्वपूर्ण ऊर्जा खनिज आपूर्ति शृंखलाओं के विकास में तेजी लाना।

भारत की खनिज कूटनीति में चुनौतियाँ

  • भारी आयात निर्भरता: भारत लीथियम, कोबाल्ट और निकेल जैसे महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिए लगभग पूरी तरह से आयात पर निर्भर है।
    • वित्त वर्ष 2023-24 में भारत ने लीथियम, कोबाल्ट, निकेल और ताँबे के आयात पर 34,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए, जिसमें से 70-80% लीथियम आयात चीन से हुआ।
    • भारत ने वर्ष 2017 से वर्ष 2023 के बीच चीन से 50,000 टन  ग्रेफाइट तथा 5,300 टन निकेल ऑक्साइड खरीदा।
  • आपूर्ति शृंखलाओं में चीन का प्रभुत्व: चीन वैश्विक उत्पादन का लगभग 60% और महत्त्वपूर्ण खनिजों, जिनमें दुर्लभ मृदा, लीथियम और कोबाल्ट शामिल हैं, के लिए 85% प्रसंस्करण क्षमता को नियंत्रित करता है।
    • चीन वैश्विक स्तर पर 59% लीथियम तथा 73% कोबाल्ट का प्रसंस्करण करता है, जो मिडस्ट्रीम तथा डाउनस्ट्रीम मूल्य शृंखलाओं पर हावी है।
    • वर्ष 2023 में, चीन ने ग्रेफाइट और अन्य खनिजों पर निर्यात प्रतिबंध लगा दिए, जिससे वैश्विक आपूर्ति शृंखला बाधित हो गई।
  • घरेलू प्रसंस्करण क्षमताओं का अभाव: भारत में महत्त्वपूर्ण खनिजों के शोधन और प्रसंस्करण के लिए बुनियादी ढाँचे का अभाव है, जो ‘डाउनस्ट्रीम’ उद्योगों के लिए आवश्यक हैं।
    • भारत में नीलाम किए गए अधिकांश खनिज ब्लॉक अपर्याप्त घरेलू प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों के कारण बिक नहीं पाते।
  • तकनीकी और अनुसंधान एवं विकास घाटा: निष्कर्षण और शोधन प्रौद्योगिकियों के लिए अनुसंधान और विकास में निवेश सीमित है।
    • उन्नत खनन तकनीकों के अभाव के कारण भारत में कोबाल्ट और निकेल जैसे गहरे खनिजों का अब तक अन्वेषण नहीं हो पाया है।
  • भू-राजनीतिक कमजोरियाँ: महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिए कुछ देशों पर निर्भरता के कारण भारत को भू-राजनीतिक तनाव के कारण आपूर्ति में व्यवधान का सामना करना पड़ सकता है।
    • वर्ष 2010 के चीन-जापान विवाद के दौरान, चीन ने दुर्लभ मृदाओं पर निर्यात प्रतिबंध लगा दिया, जिससे जापान के तकनीकी उद्योग पर गंभीर असर पड़ा।
    • चल रही US-चीन प्रतिद्वंद्विता में महत्त्वपूर्ण खनिज निर्यात पर एक-दूसरे के विरुद्ध प्रतिबंध लगाए गए हैं, जिससे संकेंद्रित आपूर्ति शृंखलाओं के जोखिम उजागर हुए हैं।
  • निजी क्षेत्र की अपर्याप्त भागीदारी: अस्पष्ट नीतियों और उच्च जोखिमों के कारण अन्वेषण और प्रसंस्करण में निजी क्षेत्र की भागीदारी सीमित है।
    • वर्ष 2023 में खान एवं खनिज अधिनियम में संशोधन के बावजूद, महत्त्वपूर्ण खनिज ब्लॉकों की नीलामी निजी क्षेत्र की पर्याप्त रुचि आकर्षित करने में विफल रही।
  • सोर्सिंग में पर्यावरण और नैतिक चिंताएँ: वैश्विक खनन प्रथाओं को प्रायः मानवाधिकारों के उल्लंघन और पर्यावरण क्षरण के लिए जाँच का सामना करना पड़ता है।
    • कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में चीनी कंपनियों के विरुद्ध आरोपों में बाल श्रम और कोबाल्ट खनन कार्यों में जबरन बेदखली शामिल हैं।

आगे की राह 

  • नीतिगत सुधार और प्रोत्साहन: भारत को व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण और अनुसंधान एवं विकास निवेश में वृद्धि के माध्यम से घरेलू खनन और प्रसंस्करण क्षमताओं में तेजी लाने की आवश्यकता है।
    • नीतियों में महत्त्वपूर्ण खनिज मूल्य शृंखला में निजी क्षेत्र की भागीदारी के लिए स्पष्ट प्रोत्साहन प्रदान किया जाना चाहिए।
  • आपूर्ति स्रोतों का विविधीकरण: भारत को लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के देशों के साथ साझेदारी को मजबूत करके चीन पर अपनी निर्भरता कम करनी चाहिए।
    • देश को सिंथेटिक ग्रेफाइट के लिए मोजांबिक, मेडागास्कर और ब्राजील सहित वैकल्पिक स्रोतों की खोज करनी चाहिए।
  • बहुपक्षीय भागीदारी को मजबूत करना: भारत को MSP तथा क्वाड जैसे ढाँचे के माध्यम से महत्त्वपूर्ण खनिजों तक समान पहुँच के लिए वैश्विक संवादों में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए।
    • बहुपक्षीय भागीदारी को इन महत्त्वपूर्ण संसाधनों के लिए लचीली तथा सतत आपूर्ति शृंखला निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • तकनीकी तथा अनुसंधान एवं विकास सहयोग: भारत को अत्याधुनिक रिफाइनिंग और पुनर्चक्रण तकनीक प्राप्त करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान जैसी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के साथ साझेदारी करनी चाहिए।
    • पुनर्चक्रण तकनीकों में निवेश से कच्चे माल के आयात पर निर्भरता कम करने और महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिए एक चक्रीय अर्थव्यवस्था बनाने में सहायता मिल सकती है।
  • ESG (पर्यावरण, सामाजिक और शासन) अनुपालन:  भारत को अपने सोर्सिंग अभ्यासों में ESG (पर्यावरण, सामाजिक और शासन) अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए, विशेष रूप से कांगो और दक्षिण अमेरिकी देशों जैसे देशों के साथ साझेदारी में।

निष्कर्ष 

भारत के आर्थिक विकास और रणनीतिक स्वायत्तता के लिए खनिज कूटनीति आवश्यक है। निजी क्षेत्र की भागीदारी, कूटनीतिक क्षमता और स्थायी भागीदारी से संबंधित चुनौतियों का समाधान भारत के खनिज सुरक्षा प्रयासों को मजबूत करने के लिए महत्त्वपूर्ण है। एक व्यापक और दूरदर्शी दृष्टिकोण के साथ, भारत महत्त्वपूर्ण खनिजों में दीर्घकालिक आत्मनिर्भरता प्राप्त कर सकता है।

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