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कार्बन मुक्त उद्योग : हरित हाइड्रोजन नीति एवं वित्तपोषण चुनौती

Lokesh Pal December 17, 2024 05:15 24 0

संदर्भ: 

भारत ने उद्योगों को कार्बन मुक्त करने और 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के लिए 2030 तक प्रतिवर्ष 5 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) हरित हाइड्रोजन उत्पादन का लक्ष्य रखा है, लेकिन वित्तपोषण संबंधी चुनौतियों की वजह से इस क्षेत्र में बाधाएँ उत्पन्न हो रही हैं।

ब्लूमबर्ग रिपोर्ट के निष्कर्ष:

ब्लूमबर्ग एनईएफ के एक हालिया विश्लेषण से पता चलता है कि भारत 2030 तक अपने घोषित लक्ष्य का केवल 10% ही हासिल कर पाएगा। 

  • धीमी प्रगति मुख्य रूप से हरित हाइड्रोजन और पारंपरिक हाइड्रोजन उत्पादन विधियों के बीच महत्वपूर्ण लागत अंतर से उत्पन्न होती है।

ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रे हाइड्रोजन के बीच अंतर 

  • ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन नवीकरणीय ऊर्जा (जैसे पवन या सौर) का उपयोग करके इलेक्ट्रोलिसिस के लिए किया जाता है, जिससे पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित किया जाता है और कार्बन उत्सर्जन शून्य हो जाता है। 
  • ग्रे हाइड्रोजन का उत्पादन प्राकृतिक गैस से स्टीम मीथेन रिफॉर्मिंग (एसएमआर) के माध्यम से किया जाता है, तथा इस प्रक्रिया के दौरान काफी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है।

हरित हाइड्रोजन के विकास की चुनौतियाँ

1. हरित हाइड्रोजन के उत्पादन की उच्च लागत: हरित हाइड्रोजन के उत्पादन की लागत दो महत्वपूर्ण कारकों पर निर्भर करती है जो हरित हाइड्रोजन के उत्पादन को महंगा बनाते हैं:   

  • विद्युत की स्तरीय लागत  किसी परियोजना के जीवनकाल में नवीकरणीय विद्युत उत्पादन की लागत लगभग औसत है। 
    • उच्च LCOE से हरित हाइड्रोजन उत्पादन लागत में प्रत्यक्ष रूप से वृद्धि होती है, क्योंकि नवीकरणीय ईंधन इसके उत्पादन के लिए प्राथमिक श्रोत है।
    • वर्तमान में, हरित हाइड्रोजन उत्पादन लागत ($5.30-$6.70 प्रति किलोग्राम) और पारंपरिक ग्रे/ब्लू हाइड्रोजन उत्पादन लागत ($1.90-$2.40 प्रति किलोग्राम) के बीच पर्याप्त रूप से असमानता है। 
    • यह लागतअंतर ग्रे हाइड्रोजन के प्रति प्राथमिकता को बनाये रखता है।
  • इलेक्ट्रोलाइजर का प्रयोग एवं लागत: इलेक्ट्रोलाइजर ऐसे उपकरण हैं जिनका उपयोग इलेक्ट्रोलिसिस के माध्यम से पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित करने के लिए किया जाता है। 
    • ये प्रणालियाँ उन्नत प्रौद्योगिकी पर निर्भर हैं, लेकिन अपेक्षाकृत कम मांग के कारण इलेक्ट्रोलाइज़र की लागत अधिक रहती है।
    • क्षारीय इलेक्ट्रोलाइजर की लागत लगभग 500-1,400 डॉलर प्रति किलोवाट (kW) होती है।
    • हालाँकि प्रोटॉन एक्सचेंज मेम्ब्रेन (पीईएम) प्रणालियाँ और भी महँगी हैं, जिनकी कीमत 1,100 डॉलर से 1,800 डॉलर प्रति किलोवाट तक है।

2. उच्च उधार लागत: पूँजी की लागत, विशेष रूप से भारत जैसे विकासशील बाजारों में, सामान्यतः अधिक होती है।  

  • यह समस्या इसलिए उत्पन्न होती है क्योंकि माँग से जुड़ी अनिश्चितताओं के कारण ऐसे निवेशों को जोखिमपूर्ण माना जाता है।   
  • इस धारणा के कारण उधार लेने की लागत बढ़ जाती है, जो पूँजी की भारित औसत लागत (WACC) में वृद्धि के रूप में परिलक्षित होती है।
  • विविध स्तर पर किए गए अध्ययनों से इस बात की जानकारी मिलती है कि WACC में 10% से 20% की वृद्धि से हाइड्रोजन की लागत में तकरीबन 73% तक की वृद्धि हो सकती है।
  • चूँकि, नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश लागत LCOE का तकरीबन 50-80% का योगदान देती है, इसलिए पूँजी की भारित औसत लागत में मामूली वृद्धि भी उत्पादन लागत को काफी बढ़ा सकती है।

भारत में हरित हाइड्रोजन हेतु हरित वित्तपोषण बढ़ाने के लिए प्रभावी कदम

1. निवेश को जोखिम मुक्त करने के लिए नीतिगत हस्तक्षेप:

  • वित्तपोषण बाधाओं को दूर करने के लिए उत्पादन प्रोत्साहन से आगे बढ़कर एक व्यापक नीतिगत ढाँचा विकसित करना।
  • निवेशक अनिश्चितता को कम करने के लिए दीर्घकालिक हाइड्रोजन खरीद समझौते और आंशिक ऋण गारंटी को लागू करना।
  • फिनटेक नवाचारों से लाभ उठाते हुए, नए व्यवसाय मॉडल के साथ सुरक्षित और कुशलतापूर्वक प्रयोग करने के लिए “नियामक सैंडबॉक्स” स्थापित करना।

2. नवीन वित्तपोषण तंत्र:

  • भारतीय बैंकों को हाइड्रोजन की विशिष्ट चुनौतियों, जैसे अनिश्चित माँग और लंबी परियोजना समयसीमा, के अनुरूप गैर-पारंपरिक वित्तपोषण संरचनाएँ अपनानी चाहिए।
  • मॉड्यूलर परियोजना वित्तपोषण से सुविधाओं का चरणबद्ध विस्तार हो सकता है, जिससे अग्रिम पूँजी आवश्यकताओं में कमी आएगी।
  • “एंकर-प्लस” वित्तपोषण मॉडल औद्योगिक ग्राहकों से आधार क्षमता निवेश को सुरक्षित कर सकते हैं, तथा लचीले उपकरणों से अतिरिक्त क्षमता का वित्तपोषण किया जा सकता है।
  • इलेक्ट्रोलाइजर्स के लिए उपकरण पट्टे पर देने से निषेधात्मक प्रारंभिक लागत को प्रबंधनीय परिचालन व्यय में बदला जा सकता है, जो सौर और पवन उर्जा क्षेत्रों की सफलता को दोहराता है।

3. एकीकृत हाइड्रोजन हब का विकास:

  • नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से जुड़े रणनीतिक हाइड्रोजन हब बनाये जाने चाहिए। इसके अलावा ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, जो उत्पादन, नवाचार और खपत सह-विकास में सहायक हो सके।
  • क्षेत्रीय आत्मनिर्भर हाइड्रोजन गलियारों को बढ़ावा देने के लिए ओडिशा, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों में स्थानीय औद्योगिक क्लस्टर स्थापित करना।

4. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग को मजबूत करना:

  • हरित हाइड्रोजन की कार्बन तीव्रता और उत्पत्ति के लिए अंतरराष्ट्रीय मानक और प्रमाणन स्थापित करने से इसकी आपूर्ति श्रृंखला के प्रति विश्वास बढ़ेगा।
  • आस्ट्रेलिया और जापान की हाइड्रोजन ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला परियोजना जैसी साझेदारियाँ विकसित करने से माँग में निश्चितता की स्थिति पैदा हो सकती है और इस ओर निवेशकों का विश्वास बढ़ सकता है।

5. पायलट परियोजनाओं और लागत प्रभावी व्यवसाय मॉडल पर ध्यान केंद्रित करना :

  • औद्योगिक केंद्रों में प्रारंभिक परियोजनाएँ शुरू करना, जो वित्तीय संरचना को एकीकृत करे और लागत-व्यवहार्य व्यवसाय मॉडल प्रदर्शित कर सके।
  • इस्पात और अमोनिया उत्पादन जैसे उद्योगों के लिए प्रतिस्पर्धी कीमतों पर हरित हाइड्रोजन उपलब्ध कराने पर जोर दिया जाना चाहिए।

वैश्विक रणनीतियों से सीखना :

कई देश इन चुनौतियों का सफलतापूर्वक समाधान कर रहे हैं और भारत के लिए उपयोगी मॉडल प्रस्तुत कर रहे हैं:

  • यूनाइटेड किंगडम: निम्न कार्बन हाइड्रोजन मानक प्रमाणन हरित हाइड्रोजन उत्पादन के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश स्थापित करके बाजार में विश्वास बढ़ाने का काम कर रहा है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया: ये देश हाइड्रोजन हब विकसित कर रहे हैं – पारिस्थितिकी तंत्र जो उत्पादन, नवाचार, बुनियादी ढाँचे और खपत को एकीकृत कर रहे हैं। यह दृष्टिकोण बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिए माँग की प्रतीक्षा करने के बजाय आत्मनिर्भर हाइड्रोजन गलियारों को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।

इसी प्रकार की रणनीति अपनाकर भारत स्थानीय औद्योगिक क्लस्टरों का निर्माण कर सकता है जो हाइड्रोजन उत्पादन को नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से जोड़ने में सहायक होंगे, जिससे  परियोजनाएँ निवेशकों के लिए अधिक आकर्षक बन जाएंगी।

निष्कर्ष:

निष्कर्षतः ग्रीन हाइड्रोजन में भारत के ऊर्जा परिदृश्य को बदलने और इसके नेट-ज़ीरो लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करने की क्षमता है। हालाँकि, इसके सफल संचालन मार्ग के लिए महत्वपूर्ण वित्तपोषण और नीतिगत चुनौतियों को नियंत्रित करना आवश्यक है। वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाकर, औद्योगिक केंद्रों को बढ़ावा देकर और निवेशों को जोखिम मुक्त करके, भारत खुद को वैश्विक ग्रीन हाइड्रोजन क्रांति में अग्रणी देश के रूप में स्थापित कर सकता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: हालाँकि ग्रीन हाइड्रोजन भारत के डीकार्बोनाइजेशन लक्ष्यों के लिए एक आशाजनक मार्ग प्रस्तुत करता है परंतु वित्तपोषण एक बड़ी बाधा बनी हुई है। ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में विद्यमान प्रमुख चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए और भारत में ग्रीन हाइड्रोजन को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाने के लिए अभिनव समाधान सुझाएँ|

(15 अंक, 250 शब्द)

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