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आर्कटिक टुंड्रा: कार्बन सिंक से स्रोत तक

Lokesh Pal December 19, 2024 03:19 27 0

संदर्भ

आर्कटिक टुंड्रा (Arctic Tundra), एक हिमाच्छादित वृक्षविहीन बायोम (Biome) जिसने हजारों वर्षों से कार्बन संग्रहीत किया है, अब ‘आर्कटिक रिपोर्ट कार्ड’ विश्लेषण के अनुसार, ऊष्मा उत्सर्जन को रोकने वाली ग्रीनहाउस गैसों (GHGs) का स्रोत बन गया है। 

आर्कटिक टुंड्रा (Arctic Tundra) 

  • आर्कटिक टुंड्रा एक ठंडा, रेगिस्तान जैसा बायोम है जो उत्तरी ध्रुव को घेरता है और दक्षिण में टैगा (Taiga) या बोरियल वन (Boreal Forest) तक विस्तृत है।
  • अवस्थिति: यह उत्तरी गोलार्द्ध में अवस्थित है, जो उत्तरी अमेरिका, यूरोप और एशिया में विस्तृत है।
  • जलवायु: यह पृथ्वी पर सबसे ठंडा बायोम है, जिसमें सर्दियों का औसत तापमान -34° C (-30° F) और गर्मियों का औसत तापमान 3-12° C होता है।
    • गर्मियों/सर्दियों की वृद्धि का मौसम अल्पकालिक होता है, जो केवल 50 से 60 दिनों तक रहता है।
  • वर्षा: इसमें कम मात्रा में वर्षा होती है, जिसमें वार्षिक वर्षा 15 से 25 सेमी. (6 से 10 इंच) होती है।
  • मृदा: स्थायी रूप से जमा हुआ ‘उप-संस्तर’ जिसे पर्माफ्रॉस्ट (Permafrost) कहा जाता है, बजरी एवं महीन सामग्री से निर्मित होता है।
  • वनस्पति: विभिन्न प्रकार के पौधे जो ठंडी जलवायु में जीवित रह सकते हैं, जिनमें शैवाल, लाइकेन, जड़ी-बूटियाँ और बौनी झाड़ियाँ (Dwarf Shrubs) शामिल हैं।
  • जीव-जंतु: यहाँ अनेक जीव जंतु पाए जाते हैं, जिनमें शाकाहारी जानवर जैसे लेमिंग्स, वोल्स, कारिबू, आर्कटिक खरगोश और गिलहरी, तथा मांसाहारी जानवर जैसे आर्कटिक लोमड़ी, भेड़िये और ध्रुवीय भालू शामिल हैं।

आर्कटिक टुंड्रा द्वारा कार्बन का भंडारण 

  • कार्बन चक्र: एक सामान्य पारिस्थितिकी तंत्र में, पौधे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के माध्यम से वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) को अवशोषित करते हैं। 
    • जब इन पौधों एवं जीवों की मृत्यु हो जाती हैं, तो बैक्टीरिया एवं कवक जैसे सूक्ष्मजीव कार्बनिक पदार्थ को विघटित कर देते हैं, जिससे CO₂ वातावरण में वापस चला जाता है। इस तरह कार्बन चक्र पूरा हो जाता है।
  • अपघटन की धीमी गति: हालाँकि, आर्कटिक टुंड्रा में, ठंडी जलवायु अपघटन प्रक्रिया को आकस्मिक रूप से धीमा कर देती है।
  • पर्माफ्रॉस्ट में फँसना: पौधों एवं जीव जंतुओं के कार्बनिक अवशेष पर्माफ्रॉस्ट में फँस जाते हैं, जो किसी भी ऐसे स्थल को संदर्भित करता है जो कम-से-कम दो लगातार वर्षों तक जमी रहती है।
  • वातावरण में पुनः विकिरण नहीं: ठंडे तापमान के कारण, कार्बनिक पदार्थों में संग्रहीत CO₂ वायुमंडल में वापस विकर्णित नहीं होती है।
  • भंडारण: वैज्ञानिकों का अनुमान है कि आर्कटिक मृदा में 1.6 ट्रिलियन मीट्रिक टन कार्बन जमा है, जो वायुमंडल में मौजूद कार्बन की मात्रा से लगभग दोगुना है।

आर्कटिक टुंड्रा क्षेत्र कार्बन उत्सर्जित क्यों कर रहा है?

  • तापमान में वृद्धि: आर्कटिक वर्तमान में वैश्विक दर की तुलना में चार गुना अधिक गर्म हो रहा है।
    • रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2024 में वार्षिक सतही वायु तापमान वर्ष 1900 के बाद से दूसरा सबसे गर्म तापमान रिकॉर्ड किया गया।
    • परिणामस्वरूप, इस क्षेत्र में पर्माफ्रॉस्ट (Permafrost) पिघल रहा है।
      • जब पर्माफ्रॉस्ट पिघलता है, तो मृदा में मौजूद सूक्ष्मजीव सक्रिय हो जाते हैं और पर्माफ्रॉस्ट में फँसे कार्बनिक पदार्थों को विघटित करना शुरू कर देते हैं।
      • इस प्रक्रिया से कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) और मीथेन (CH₄) का उत्सर्जन होता है, जो क्रियाशील ग्रीनहाउस गैसें हैं।
    • उदाहरण के रूप में: पिघली हुई पर्माफ्रॉस्ट ‘फ्रोजन चिकन’ की तरह व्यवहार करती है।
      • जब तक चिकन बर्फ में जमा रहता है, तब तक सूक्ष्मजीव उस पर सक्रिय नहीं होते हैं। हालाँकि, बर्फ के पिघलने के बाद, सूक्ष्मजीव उसका अपघटन करना शुरू कर देते हैं, जिससे उसमें सड़न की शुरुआत होती है।
      • पर्माफ्रॉस्ट में भी इसी तरह की प्रक्रिया देखी जाती है, जिससे संग्रहीत कार्बन का उत्सर्जन होता है।
  • वनाग्नि में वृद्धि: हाल के वर्षों में आर्कटिक क्षेत्र में वनाग्नि की आवृत्ति एवं तीव्रता में वृद्धि देखी गई है।
    • वर्ष 2023 में आर्कटिक में सर्वाधिक वनाग्नि का मौसम दर्ज किया गया, जबकि वर्ष 2024 वनाग्नि के मौसम के लिए दूसरा सर्वाधिक खराब वर्ष था।
    • वनाग्नि का धुआँ ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में योगदान देता है और साथ ही पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने की दर को भी तीव्रता से बढ़ाता है।

वैश्विक परिणाम

  • प्रभाव: वनाग्नि और तापमान में वृद्धि के संयुक्त प्रभाव के कारण आर्कटिक टुंड्रा ने वर्ष 2001 और वर्ष 2020 के बीच जितना कार्बन अवशोषित किया था, उससे कहीं अधिक कार्बन उत्सर्जित किया।
    • संभवतः यह पहली बार है जब हजारों वर्षों में ऐसा परिवर्तन हुआ है।
  • कार्बन उत्सर्जन: यदि आर्कटिक टुंड्रा जितना कार्बन अवशोषित करता है, उससे अधिक कार्बन उत्सर्जित करता रहता है, तो इसके वैश्विक स्तर पर महत्त्वपूर्ण परिणाम होंगे।
    • CO₂ और CH₄ का उत्सर्जन वैश्विक तापमान को और बढ़ाएगा, जिससे दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव और बढ़ेंगे।

आगे की राह

  • आर्कटिक उत्सर्जन की प्रक्रिया को परिवर्तित करने के लिए वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम करना।
  • GHG के कम स्तर के परिणामस्वरूप पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से उत्सर्जन कम होगा, जिससे ‘कार्बन सिंक’ के रूप में आर्कटिक टुंड्रा की भूमिका को पुनर्स्थापित करने में मदद मिलेगी।
  • जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए अत्यधिक उत्सर्जन में कमी आवश्यक है।

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